"सूनी सड़क और ये काली रात थी, भीगी हुई थी ये धरती क्या बरसात थी, अंधेरी रात में,
सुनसान स्थान में जाने कौन वो मुझे पुकरती थी, ना था निशान दूर-2 तक जहाँ इंसान का
वहा वो थी कौन जिसके पुकारने की आवाज़ हर पल मुझे आती थी, जब सुन कर उस आवाज़ को
जाने लागू में पास उसके वो दूर और जाने कहाँ ले जाती थी, सुनसान सड़क और अंधेरी रात में
पुकार कर बार-बार मुझे ही भटकाती थी, चल कर उस आवाज़ की ओर भी वो कभी ना मुझे
अपनी छवि दिखलाती थी, थी कौन वो कोई पारी या अप्सरा, थी कौन वो किसी प्रेत या चुड़ेल का साया,
बहुत ढुंडा उसे उन रास्तो पर कभी ना पड़ी खुद को मुझे दिखलाती थी, सूनी और उन
सुनसान राहों पर जाने क्यों और किसलिए मुझे बुलाती थी, ना पता मुझे मकसद के उसके
और ना पता वो थी कौन, पर मेरी ज़िंदगी की आखरी सांसो के थमने तक मुझे अपने पास बुलाती थी"
(वो कौन थी?)
(वो कौन थी?)
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