प्रभु कहते हैं जो मनुष्य पूजा-पाठ के नाम पर मुझे बलि देते हैं मैं उनकी बलि स्वीकार नहीं करता, ऐसे लोग मेरा नाम ले कर केवल अपने जीभ के स्वाद हेतु ऐसा घ्रणित कार्य करते हैं, इश्वर कहते हैं ऐसे मनुष्यों की चाहिए की मेरे नाम की अपेक्षा किसी कसाई के पास जा कर अपनी भूख शांत करने हेतु मासाहार को खा कर अपने स्वाद को पाये।
प्रभु कहते हैं मैं केवल उन्ही से प्रसन्न होता हूँ जो मेरे बताये गए मार्ग पर चल कर उनका अनुसरण करते हैं, केवल वही मेरे प्रिये होते हैं जो मेरे वचनों का पालन करते हैं, किन्तु जो मनुष्य मुझे पसंन करने के नाम पर किसी निर्दोष की बलि देता है मैं उससे प्रसन्न होने की अपेक्षा क्र्धित होता हूँ क्यों को वो मेरे नाम पर एक निर्दोष की हत्या कर रहे होते हैं जबकि जीवन लेना और देना ये दोनों प्रक्रिया केवल मेरे ही अधिकार शेत्र में है, प्रभु कहते हैं मुष्य को केवल वो ही बस्तुये अपने भोजन में ग्रहण करनी चाहिए अवं मुहे अर्पित करनी चाहिए जिन्हें मैंने सब के लिए खुद उचित ठेराया है, उन समस्त खाने लायक वस्तुओं को मेरा प्रसाद मान कर मनुष्य को केवल वो ही ग्रहण करना चाहिए और अगर मुझे अर्पित करना है तो वो ही मुझे केवल अर्पित करना चाहिये…
प्रभु कहते हैं हमे अपने जीवन में किसी भी प्रकार की चिंता न रख कर बस प्रभु का ध्यान करते हुए अपने नित्य कर्म करते रहना चाहिए अवं अपने कर्मो के फल की चिंता उनपे छोड़ देनी चाहिए, ऐसा करने से निश्चित ही मनुष्य का कल्याण होगा ।
ईश्वर वाणी
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