Friday, 31 May 2013

वक्त के हाथों हुए कितने मजबूर हम





वक्त के हाथों हुए कितने मजबूर हम, रहते थे कभी एक दुसरे के दिल में और आज दूर हुए हम, करते थे कितनी मोहब्बत तुमसे कभी हम, लुटाते थे तुम पे अपनी ये ज़िन्दगी भी हम, होती थी ख़ुशी कभी साथ रह कर तेरे संग, आज वक्त के साथ हुए कितने मजबूर हम, थे करीब कभी बेइन्तेहा और आज दूर हुए हम,
वक्त के हाथों हुए कितने मजबूर हम
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