१६ दिसंबर दामिनी सामूहिक बलात्कार के बाद ऐसा लगने लगा था की शायद अब महिलाओ की स्तिथि देश और देश की राजधानी दिल्ली में कुछ सुधर जायगी, पर आज भी आये दिन देश और दिल्ली में होने वाली बलात्कार की घटनाओ ने इस देश की महिलाओ के दिल में अपनी सुरक्षा को ले कर न सिर्फ डर पैदा किया है बल्कि ऐसी वारदातों ने भारत का नाम पूरी दुनिया में बदनाम कर दिया है। हिन्दुस्तान जहाँ की ये कहावत पूरे विश्व में प्रचलित थी """""''यत्र नरियस्थे पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" अर्थात जहाँ नारियों की पूजा होती है वह साक्षात देवता विराजित होते हैं और इसलिए हमारे देश में नारियों को सदा ही पूजनीय माना जाता रहा है कही दुर्गा के रूप में तो कही पारवती के रूप में, घर की बेटी, बहु और पत्नी को भी साक्षात लक्ष्मी का रूप मन जाता रहा है, अब सवाल ये उठता है की जिस देश की परंपरा और सभ्यता पूरी दुनिया में सबसे आदर्श मानी जाती थी आज किस दिशा में जा रही है, ऐसे सभ्य और परंपरा वाले देश में आज नारी एक भोग की वस्तु बन कर रह गयी है। आज आलम ये है की घर, बाहर, अपने पराये सब से उसे डर कर रहना पड़ रहा है की कब कौन बदल जाए, किसके मन में हवस का राक्षश जाग जाए, आज दफ्तर से ले कर घर और घर से ले कर रास्ते भर तक न जाने कितनी गन्दी नज़रों का वो सामना करती है और अनेक छेड़ छाड़ को सहती है और इसके साथ ही अनेक कठिनाइयों को सामना करते हुए उन्हें हर वक़्त ये डर उन्हें सताता रहता है की कही उनके साथ कुछ गलत न हो जाये। और इस प्रकार महिलाये /लडकिया आज केवल स्कूल कॉलेज जाने वाली और नौकरी करने वाली ही नहीं अपितु छोटी छोटी बच्चीया भी इस डर के माहोल में जीने को मजबूर हैं वो भी उस देश में में जहाँ नारी को सबसे अधिक मान और सम्मान और प्रतिष्टा प्राप्त है और जहाँ ना जाने कितनी ही महान, विद्वान् और ताज्स्विनी महिलाओं का जन्म हुआ है और जिन्होंने इस देश का ना सिर्फ नाम रोशन किया है अपितु देश के इतिहास में भी अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित कराया है एवं देश के इतिहास हो भी अमर बना दिया है ।
अब सवाल उठता है की उस देश में ऐसी सोच आज के भारतवाशियों में कहाँ से आ रही है। क्यों दिनों दिन महिलाओं के प्रति अपराधिक मामले बड़ते जा रहे हैं, जिस देश की सभ्यता और संस्कृति इंतनी महान रही हो उस देश में आज ऐसे दुराचारी कहाँ से पैदा हो रहे हैं, कहाँ से उनमे ऐसा राक्षस पैदा हो रहा है, सच तो ये है ऐसा राक्षश पैदा करने वाले भी हम लोग ही है, आज हमारा बदलता समाज ही इसके लिए ज़िम्मेदार हैं, माता-पिता ही इसके लिए सबसे पहले ज़िम्मेदार है। प्राचीन काल में जहाँ लोग बेटी के पैदा होने के लिए भी मन्नते मानते थे उन्हें पुत्री रत्न के नाम से पुकारा जाता था इसके साथ उनकी परवरिश में अवं पारिवारिक प्रेम में कोई भेद भाव नहीं रखा जाता था आज स्तिथि इसके एक दम अलग है।
आज लोग लड़कियों के लिए तो कहते हैं कपडे ढंग के पहनो और समय पर आओ जाओ, ये मत करो वो मत करो, तुम लड़की हो तुम ये नहीं कर सकती तुम वह नहीं जा सकती, तुम्हे माँ और घर के काम काज में हाथ बटाना चाहिए, तुम्हे ये करना चाहिए वो नहीं, इसे दोस्ती रखो उसे नहीं, इसे बात करो उसे नहीं वगेरा वगेरा और अनेक प्रकार की बंदिशे उनपे लगायी जाती है । लेकिन माता-पिता अपने बेटों को ऐसी कोई रोक टोक नहीं करते की समय पर घर आओ-जाओ, ये मत करो वो मत करो, यहाँ मत जाओ वह मत जाओ, थोडा अपनी बहन और माँ के काम में भी हाथ बटा लो, इसे बात मत करो, ऐसे मत बोलो उसके साथ मत घूमो इत्यादि बल्कि लोग अपने बेटों को ऐसी छूट देते हैं जैसे अपराध और गलतिया तो केवल लड़कियां ही करती है और लड़के तो हमेशा सही काम करते है। मैंने बचपन में अपनी माँ के मुह से सुना था की लड़कियों को हमेशा दबा के रखना चाहिए क्यों की उनके कदम बहकते देर नहीं लगती ये सुन कर मुझे बड़ा बुरा लगता था और छोटी सी उम्र से ही मैंने इसका विरोध करना शुरू कर दिया, अब मेरे घर वाले और रिश्तेदार मुझे ताने मरते थे यहाँ तक की मुझपे तरह तरह के ज़ुल्म किये गए और वज़ह बस इतनी सी थी की मैंने अपने घर में अपने भाइयों जितना ही हक़ माँगा और बदले में मुझे ज़िल्लत मिली, मुझे मेरी सहेलियन के सामने पड़ोसियों के सामने नीचा दिखया गया, ज़लील किया गया और गलती की मैंने की बस हक़ माँगा बराबरी का, हर वो चीज़ मांगी जो भाइयों को दी जाती थी, मैंने घर के काम में माँ की भी कोई मदद नहीं की क्यों की मुझसे ऐसे करने को इसलिए कहा जाता था क्योंकि मैं एक लड़की हूँ और ये ही बात मुझे बुरी लगती थी की मैं घर का काम करू क्योंकी मैं एक लड़की हूँ यानि की भेद भाव के साथ मुझ पर ये जबरदस्ती है की मैं ही घर का काम करू क्यों की मैं एक लड़की हूँ, मैं सोचती थी जब लडकियां बाहर नौकरी कर सकती है और लड़कों के बराबर कमा सकती है तो लड़के घर का काम कर के माँ और बहन की मदद क्यों नहीं कर सकते, इसके साथ ही मैंने अपने घर वालो, रिश्तेदार, पड़ोसियों और जाननेवालों के मुह से एक और जूमला सुना की बेटा तो चाहे कुछ भी करे कभी उसका कुछ नहीं बिगड़ता, बिगड़ता तो लड़कियों का है इसके साथ ही मैंने सुना की लोग अपने बेटों की तुलना राज महाराजा या फिर बादशाहों से करते हैं की हमारा बेटा कुछ भी करे वो तो बादशाह है , वो तो कुछ भी कर सकता है पर लोग अपनी अपनी लड़कियों को संभाल कर रखे, जब भी मैं ये सुनती तो सोचती की इसका क्या मतलब है, इसका मतलब है की बेटा अगर किसी लड़की के साथ बलात्कार भी करे तो सही क्यों की वो लड़का है , घर और मोहल्ले जा बादशाह है और लड़की दासी या फिर बांदी या फिर उससे भी नीचे और फिर ऐसा कुकृत्य करने वाले का क्या बिगड़ा और अगर कुछ बिगड़ा है किसी का तो वो लड़की है और लड़के ने ऐसा इसलिए किया क्यों की घर वालों ने लड़की को परदे में नहीं रखा या फिर लड़कों के मुताबिक़ नही रखा और इसलिए लड़के को ये इजाज़त मिल गयी की वो उसके साथ ऐसा करे।
आज लोग लड़कियों के लिए तो कहते हैं कपडे ढंग के पहनो और समय पर आओ जाओ, ये मत करो वो मत करो, तुम लड़की हो तुम ये नहीं कर सकती तुम वह नहीं जा सकती, तुम्हे माँ और घर के काम काज में हाथ बटाना चाहिए, तुम्हे ये करना चाहिए वो नहीं, इसे दोस्ती रखो उसे नहीं, इसे बात करो उसे नहीं वगेरा वगेरा और अनेक प्रकार की बंदिशे उनपे लगायी जाती है । लेकिन माता-पिता अपने बेटों को ऐसी कोई रोक टोक नहीं करते की समय पर घर आओ-जाओ, ये मत करो वो मत करो, यहाँ मत जाओ वह मत जाओ, थोडा अपनी बहन और माँ के काम में भी हाथ बटा लो, इसे बात मत करो, ऐसे मत बोलो उसके साथ मत घूमो इत्यादि बल्कि लोग अपने बेटों को ऐसी छूट देते हैं जैसे अपराध और गलतिया तो केवल लड़कियां ही करती है और लड़के तो हमेशा सही काम करते है। मैंने बचपन में अपनी माँ के मुह से सुना था की लड़कियों को हमेशा दबा के रखना चाहिए क्यों की उनके कदम बहकते देर नहीं लगती ये सुन कर मुझे बड़ा बुरा लगता था और छोटी सी उम्र से ही मैंने इसका विरोध करना शुरू कर दिया, अब मेरे घर वाले और रिश्तेदार मुझे ताने मरते थे यहाँ तक की मुझपे तरह तरह के ज़ुल्म किये गए और वज़ह बस इतनी सी थी की मैंने अपने घर में अपने भाइयों जितना ही हक़ माँगा और बदले में मुझे ज़िल्लत मिली, मुझे मेरी सहेलियन के सामने पड़ोसियों के सामने नीचा दिखया गया, ज़लील किया गया और गलती की मैंने की बस हक़ माँगा बराबरी का, हर वो चीज़ मांगी जो भाइयों को दी जाती थी, मैंने घर के काम में माँ की भी कोई मदद नहीं की क्यों की मुझसे ऐसे करने को इसलिए कहा जाता था क्योंकि मैं एक लड़की हूँ और ये ही बात मुझे बुरी लगती थी की मैं घर का काम करू क्योंकी मैं एक लड़की हूँ यानि की भेद भाव के साथ मुझ पर ये जबरदस्ती है की मैं ही घर का काम करू क्यों की मैं एक लड़की हूँ, मैं सोचती थी जब लडकियां बाहर नौकरी कर सकती है और लड़कों के बराबर कमा सकती है तो लड़के घर का काम कर के माँ और बहन की मदद क्यों नहीं कर सकते, इसके साथ ही मैंने अपने घर वालो, रिश्तेदार, पड़ोसियों और जाननेवालों के मुह से एक और जूमला सुना की बेटा तो चाहे कुछ भी करे कभी उसका कुछ नहीं बिगड़ता, बिगड़ता तो लड़कियों का है इसके साथ ही मैंने सुना की लोग अपने बेटों की तुलना राज महाराजा या फिर बादशाहों से करते हैं की हमारा बेटा कुछ भी करे वो तो बादशाह है , वो तो कुछ भी कर सकता है पर लोग अपनी अपनी लड़कियों को संभाल कर रखे, जब भी मैं ये सुनती तो सोचती की इसका क्या मतलब है, इसका मतलब है की बेटा अगर किसी लड़की के साथ बलात्कार भी करे तो सही क्यों की वो लड़का है , घर और मोहल्ले जा बादशाह है और लड़की दासी या फिर बांदी या फिर उससे भी नीचे और फिर ऐसा कुकृत्य करने वाले का क्या बिगड़ा और अगर कुछ बिगड़ा है किसी का तो वो लड़की है और लड़के ने ऐसा इसलिए किया क्यों की घर वालों ने लड़की को परदे में नहीं रखा या फिर लड़कों के मुताबिक़ नही रखा और इसलिए लड़के को ये इजाज़त मिल गयी की वो उसके साथ ऐसा करे।
ऐसी ही ना जाने कितनी ही बाते मैंने अपने बचपन में देखि और झेली हैं पर मैं उन लड़कियों में से नहीं थी जो चुपचाप अपने साथ हो रहे अपने घर वालों के इस भेद भाव पूर्ण व्यवहार को सहती, मैं सोचती अगर ऐसा करने वाले बादशा है तो लड़कियों को भी कुछ भी करने का अधिकार होना चाहिए, और एक ही माँ बाप से पैदा हुआ दो बच्चे सिर्फ लिंग की वज़ह से एक बादशा बना और एक बांदी तो ऐसे माता-पिता मेरी नज़र में श्रेष्ट माता-पिता नहीं हैं, माता-पिता को चाहिए की वो अपने सभी बच्चो को बेहतर और आदर्श सीख दे न की एक को उद्दंडी और एक को बांदी बना के रखे, और मैंने अपनी इस धारणा के कारण अपने परिवार में विरोध किया पर अफ़सोस मेरे साथ कोई और लड़की खड़ी न हुई न कोई चचेरी, ममेरी बहन और न कोई सहेली,क्यों की उनकी सबकी समझ ये ही थी की वो लड़की है इसलिए उन्हें ये सब तो सहना ही है, पर मैं ये सोचती की अगर हम आज विरोध नहीं करेंगे तो कल जब हम खुद एक बेटी की माँ बनेगी तो हम भी अपने बच्चियों के साथ ऐसा ही व्यवहार करेंगी, मैं कहती नहीं मैं ऐसी माँ बिलकुल नहीं बनुगी और इसलिए मैं खुद अपने साथ हो रहे इस भेद भाव का विरोध करुँगी जो मैंने किया और आज भी कर रही हूँ । मैं ये भी सोचती की अगर हमारे माँ-बाप और हमारे घर वाले ही हमारी क़द्र नहीं करेंगे और हमारे साथ ऐसे भेद भाव रखेंगे तो ये समाज हमे क्या इज्ज़त देगा, अगर हमारे जन्म देने वाले ही हमारे साथ दॊयम दर्जे का वयवहार करेंगे तो ये समाज हमारे साथ कैसे प्रथम दर्जे का व्यवहार कर हमे इज्ज़त देगा और इसलिए अपनी छोटी सी उम्र से ही मैंने अपने घर वालो के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया, अपने साथ हो रहे इस भेद भाव के विरोध में।। ,
सच तो ये है की आज जो देश में महिलाओ की जो स्तिथि है इसके लिए जिम्मेदार हमारे बुजुर्ग यानी की हमारे माता-पिता और घर के अन्य सदस्य हमारे पडोशी और रिश्तेदार हमारे दोस्त और जानकार भी है जो हमेशा से ही बेटो को तरजीह देते रहे हैं और बेटियों को हेय दृष्टि से देखते रहे हैं, आपने देखा ही होगा की अगर किसी के घर में बेटी पैदा हो तो उसके घर में मातम का सा माहोल हो जाता है चाहे वो परिवार कितना ही संपन्न और आधुनिक क्यों न हो, अगर बेटी प्रथम संतान हो तो लोग कहने लगते हैं कोई बात नहीं अगली संतान बेटा ही होगी जैसे बेटी पैदा करके कोई विश्व युद्ध हार गए हो और जब लड़का होगा तब जा कर वो ये युद्ध जीतेंगे , फिर वो लोग दिलासा भी देते हैं ये कह कर " प्रथम संतान भी लगभग बेटा सामान ही है", यानी की अगर किसी के घर में बेटी हुई है तो बेटे के लिए दुसरे बच्चे की प्लानिंग में माँ-बाप लग जाए लेकिन अगर बेटा हुआ तो न तो कोई रिश्तेदार या फिर पडोशी ये कहता नज़र आएगा की कोई बात नहीं अगली संतान आपकी बेटी ही होगी और न माँ-बाप ही अपनी अगली संतान की प्लानिंग में कोई जल्दबाजी करेंगे और कई तो अब अगला बच्चा चाहेंगे भी नहीं क्योंकि अगर बेटी हो गयी तो जाने क्या हो जाएगा शायद समाज में उनका सर शर्म से झुक जाएगा या फिर वो कोई युद्ध हार जायंगे । पर इसके साथ अपनी इस हालत की ज़िम्मेदार कुछ हद तक लडकिय भी रही हैं क्यों की मैंने देखा है लड़की चाहे छोटे शहर की हो या फिर बड़े शहर की वो अपने साथ हो रहे अपने ही घर पर अपने लोगो द्वारा किये गए भेद भाव को चुपचाप सहती रहती है और उसका विरोध नहीं करती, मैंने देखा है की किसी किसी परिवार में बेटों का जन्दीन बड़े जोरदार तरीके से मनाया जाता है और बेटियों का तो याद भी नहीं रखते कारण अलग अलग बताते है पर सच तो ये है की वो लड़कियों को हेय द्रिस्थी से देखते है तभी ऐसा करते हैं और लडकिया भी चुपचाप सब सह लेती हैं और अपना मुह तक नहीं खोलती, बचपन से ही उसे ये कह कर चूल्हा चौक में आज भी झोंक दिया जाता है की उसे किसी और के घर जाना है इसकी ट्रेनिंग उसे यहाँ बचपन से दी जा रही है, जुबान बंद रख कर चुपचाप सब सहती रहे क्यों की ससुराल में भी सब सहना है, बस बचपन से ही उसे अपने अधिकारों की अपेक्षा बस सहना ही सिखाया जाता है और मर्दों से कम है वो और उनपे आश्रित है वो ये उसे सीखाय जाता है, इसके साथ ही लडकिया इसे अपना नसीब समझ कर सहती जाती हैं पर कभी कोई लड़की इसके विरोध में नहीं आती और इसके कारण शादी से पहले अपने मायेके में और शादी के बाद ससुसाल में शोषित होती रहती है इसके साथ ही समाज में भी उसका बलात्कार, छेड -छाड़ और अनेक तरीके से शोषण किया जाता है क्यों की बचपन से उसने बस ये ही सीखा है सहना और मर्द ने सीखा है करना की वो कुछ भी करे उसका क्या बिगड़ेगा, सच तो ये है की अगर आज की लड़कियों को समाज में इज्ज़त और मान सम्मान चाहिए तो खुद खड़े होना पड़ेगा और सबसे पहले अपने घर में बराबरी का हक़ मांगना होगा , अपने परिवार में अपने परिवार के अन्य मर्दों के सामान ही हर छेत्र में बराबरी का हक़ लेना होगा चाहे उसके लिए कितना ही विरोध सहना पड़े ,और इसके साथ ही उन्हें अपने घर वालों को कहना होगा की अगर लड़के कुछ भी करे तो उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा तो वो भी कुछ भी कर सकती है और माँ बाप अपनी बेटी के बारे में भी सोच बदले और बेटों के बारे में भी ताकि ये लिंग भेद जल्द ही समाप्त हो और महिलाओं के प्रति हो रहे अपराध कुछ हद तक रुक सके। इसके शुरुआत घर से आज से और अभी से ही करनी होगी तभी महिलाए अपना खोया हुआ मान सम्मान वापस प्राप्त कर पयंगी अन्यथा उनका शोषण ऐसे ही जारी रहेगा।
धन्यवाद
अर्चु
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