प्रभु कहते हैं निश्चित रूप से प्रत्येक शादी के काबिल लड़के और लड़की को शादी के बंधन में बंध जाना चाहिए क्योंकि ऐसा प्रकृति और नेतिकता के अनुसार उचित है, प्रभु कहते हैं की उन्होंने निश्चित ही किसी उद्देश्य से हर एक को इस दुनिया में भेजा है और निश्चित ही हर एक के लिए कोई न कोई जीवनसाथी चुना है किन्तु यदि किसी को उसका अभी तक कोई हमसफ़र नहीं मिला है तो वो निराश न हों क्यों की ऐसे मनुष्यों को यकीनन प्रभु ने किसी ख़ास कार्य के लिए ही चुना है, प्रभु कहते हैं यदि आप विवाह करना चाहते हैं और आपको अभी तक कोई नहीं मिला है तो निराश न हो प्रभु का नाम लेते हुए सत्कर्म करते जाए आपका निश्चित ही कल्याण होगा । किन्तु प्रभु कहते हैं जो व्यक्ति विवाह नहीं करना चाहते ऐसे व्यक्तियों को किसी भी प्रकार से विवाह के लिए विवश नहीं करना चाहिए, प्रभु कहते हैं की एक विवाहित मनुष्य में विवाह के बाद परिवर्तन आ जाता है, उसे उससे अधिक उसके जीवन साथी के साथ से ज्यादा जाना जाता है किन्तु एक अविवाहित के जीवन में ऐसा मोड़ नहीं आता की लोग उसे उसकी जगह किसी और की वज़ह से या किसी और के साथ होने की वज़ह से जाने, प्रभु कहते है विवाहित स्त्री विवाह के बाद सुहागिन कहलाती है और यदि उसके पति की मर्त्यु हो जाए तो लोग उसे विधवा के नाम से बुलाते हैं किन्तु एक अविवाहित स्त्री सदेव एक जैसी ही रहती है न तो लोग उसे कभी सुहागिन बुलाते हैं और न ही उसके पति की मृत्यु के पश्चात विधवा, ऐसे ही पुरुष शादी के बाद विवाहित कहलाता है और यदि उसकी पत्नी की मृत्यु हो जाए तो विधुर, कुल मिलाकर स्त्री-पुरुष के जीवन में विवाह के बाद उनके जीवन में ही नहीं उनके जान्ने में भी और एक दुसरे के साथ से ही अनेक परिवर्तन आ जाते हैं किन्तु एक अविवाहित व्यक्ति सदेव एक जैसा ही रहता है।
प्रभु कहते हैं जिस मनुष्य में अपनी कामेच्छा को काबू में रखने की द्रिड इच्छाशक्ति है केवल वे ही व्यक्ति विवाह न करे और जिन मनुष्यों में अपने कामेछाशक्ति को काबू में रखने दम नहीं है उन्हें विवाह कर व्याभिचारी होने से बचना चाहिए, प्रभु कहते हैं एक पुरुष को विवाह के पश्चात उसके अपने जीवन और अपने शरीर परा उसका अधिकार नहीं रह जाता, ये अधिकार उसकी पत्नी को मिल जाता है और ठीक उसी प्रकार एक स्त्री को भी विवाह के पश्चात उसके जीवन एवं उसके शरीर पर उसका अधिकार न हो कर उसके पति का पूर्ण अधिकार होता है, इस प्रकार एक विवाहित व्यक्ति पूर्ण रूप से अपने जीवनसाथी पर समर्पित हो कर सुखद वैवाहिक जीवन प्राप्त करता है।
प्रभु कहते हैं एक अविवाहित और नेतिक पथ पर चलने वाला व्यक्ति बड़ी ही आसानी से प्रभु को प्राप्त कर सकता है, क्यों की ऐसे व्यक्ति बड़ी ही सहजता से प्रभु में ध्यान लगा लेते हैं किन्तु विवाहित व्यक्ति इतनी आसानी से प्रभु में ध्यान नहीं लगा पाते और इस प्रकार वो प्रभु को नहीं प् सकते किन्तु उनके अपने सत्कर्म उन्हें प्रभु का प्रिये अवश्य बना देते है, इसलिए प्रभु कहते है सदेव सत्कर्म करो और मेरे द्वारा बताये गए पथ पर चल कर मेरी बातों का अनुसरण करो और मोक्ष को प्राप्त हो।
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