Thursday, 30 May 2013

ईश्वर वाणी-ishwar vaani(main hi hoon) **41**

ईश्वर कहते हैं "इस सम्पूर्ण जगत में केवल एक मैं ही सत्य हूँ बाकी सब असत्य है, मैं ही आदि हूँ और मैं ही अंत हूँ, मैं ही जीवन हूँ और मैं ही मृत्यु हूँ, मैं ही आज हूँ मैं ही कल था और मैं ही आने वाले समय में रहूँगा, मैं ही अतीत हूँ और मैं ही वर्तमान हूँ और मैं ही भूतकाल भी हूँ, मैं ही शून्य हूँ और मैं ही आकर हूँ, मैं ही लौकिक हूँ और मैं ही पारलौकिक हूँ, मैं ही वायु हूँ और मैं ही अग्नि हूँ, मैं ही जल हूँ और मैं ही जीवन हूँ, इस ब्रह्माण्ड की प्रत्येक वश्तु में केवल मैं ही मैं हूँ, प्रत्येक प्राणी में भी मैं ही हूँ, मैं ही आत्मा हूँ और मैं ही परमात्मा हूँ, मैं ही सुख हूँ और मैं ही दुःख हूँ, मैं ही हसी हूँ और अश्रु भी मैं ही हूँ,  इस संसार की गति भी मैं हूँ और गड़ना भी मैं ही हूँ, चेतना भी मैं हूँ और अवचेतना भी मैं ही हूँ , मैं ही आकर हूँ और मैं ही निराकार हूँ, मैं वही हूँ जो प्राणी चाहता है, इसलिए हे मनुष्य आपसी बेर भुला कर तू मुझे जब भी सच्ची आस्था से जिस भी रूप में याद करेगा एवं अगर तेरे कर्म मुझे अपने तक लाने के काबिल हुए तो तेरे ह्रदय के रूप के अनुरूप तू मुझे सदा अपने ही समीप पायेगा, क्योंकि इस धरा का आदि और अनादि मैं ही हूँ, मैं ही स्वर्ग हूँ और मैं ही नरक हूँ, मैं ही तीन लोक हूँ  और मैं ही अथाह अन्तरिक्ष भी हूँ,  इसलिए हे मानव अपने अज्ञान की पट्टी अपने नेत्रों से खोल और मेरी शरण में आ ताकि तेरा कल्याण हो सके और तू मोक्ष को प्राप्त कर जन्म-जन्मान्तरों की पीड़ा से मुक्ति पा सके क्योंकि मैं ही पालनकर्ता हूँ और मैं ही संहारंक हूँ, मैं ही माता हूँ और मैं ही पिता हूँ, मैं ही भ्राता हूँ और मैं ही बहना हूँ, मैं ही मित्रा हूँ औरमैं ही शत्रु भी हूँ, अन्धकार भी मैं हूँ और उजाला भी मैं हूँ, इसलिए हे मनुष्य तू खुद पर अहंकार न कर क्योकि तू कुछ भी नहीं है क्योंकि तुझमे भी मैं ही हूँ, इसलिए अपने अहंकार तो त्याग और मेरी शरण में आ ताकि तेरा कल्याण हो सके" । 

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