Saturday, 29 June 2013

ईश्वर वाणी-४४,प्रभु कहते हैं हमे दूसरों की अपेक्षा सदा अपने ह्रदय की सुन्नी चाहिए (ishwar vaani-44)

प्रभु कहते हैं हमे अपने जीवन में केवल वो ही कार्य करने चाहिए जो ईश्वर की दृष्टि में श्रेष्ट हो, हमे सदा उनके बताये गए मार्ग पर चलना चाहिए चाहे इसके लिए हमे खुद ही कितने कष्ट एवं विरोध और आलोचनाओ को सहना पड़े किन्तु विचलित हुए बिना निरंतर प्रभु की बातों का अनुसरण कर उनके द्वारा बताये गए मार्ग पर ही चलना चाहिये। 


प्रभु कहते हैं यदि हम दुनिया और लोगों को खुश रखने और ये सोच कर कोई कार्य करते हैं की यदि हमने ऐसा कार्य नहीं किया तो लोग क्या कहेंगे और ये सोच कर हम प्रभु मार्ग पर चलने से डरते हैं तो ऐसे लोग कभी खुश नही रह सकते क्योंकि यदि कोई भी व्यक्ति दुनिया की बातों को दिल से लगा कर लोगों द्वारा बताई गयी बातों में आ कर उनके जैसा व्यवहार करता है तो भी ये दुनिया वाले उसके कार्य में कोई न कोई त्रुटी निकाल कर एक ऐसी स्तिथि में पंहुचा देते हैं की व्यक्ति इसके बाद न तो प्रभु का और ना ही इस दुनिया का रह जाता है। 


प्रभु कहते हैं हमे दूसरों की अपेक्षा  सदा अपने ह्रदय की सुन्नी चाहिए और उसी के अनुरूप ही अपना आचरण करना चाहिए  क्योंकि की प्रभु का निवास  स्थान  भी ह्रदय ही है, ह्रदय से आने वाली आवाज़ सदा ईश्वर की होती है और हमे सदा गलत और सही का  बोध कराती रहती है। 


ईश्वर इस बात को स्पष्ट करने हेतु एक गधे की और एक चूहे की दो अलग-अलग कहानिया सुनते है जो लोगों की बातों में आ कर किस प्रकार कष्ट पाते है। 


इसलिए प्रभु कहते हैं की हमे सदा अपने ह्रदय की सुनते हुए प्रभु के बताये गए मार्ग पर चलना चाहिए, लोग एवं दुनिया की परवाह न करते हुए केवल प्रभु के ध्यान में रहते हुए ईश्वर के द्वारा बताये गए कार्यों में सदा विलीन रहना चाहिये। 


 आमॆन। 



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