Wednesday, 20 February 2013

Mehfil-e-Ishk-महफ़िल ऐ इश्क



इश्क की राह में धोखे हज़ार हैं, ये वो महफ़िल है जो दूर तलक दिखने पर लगती गुलज़ार है, इश्क की रौशनी से रोशन दिखता है इस महफ़िल का हर एक  कोना ,दूर से दिखने पर लगता है ये सब कितना खूबसुरत और बेहद सुहाना, इसकी सुबह और शाम की ही ये हसीं रंगीनिया खीचती हैं हर उस शख्स को जो अपनी मोहब्बत को है पाना चाहता,इसकी इन्ही रंगीनियों से न तो कभी कोई है बच पाया और ना आज भी है कोई बच पाता क्योंकि हर तरफ है बिखरा इश्क के नाम पर इन्ही रंगीनियों का हसीं साया। 

और जब गुज़र जाता है एक लम्हा इस महफ़िल की हसीं सुबह और  शाम के साथ तब इन रंगीनियों का असली मतलब है समझ में आता, जो मोहब्बत की तलाश में आये थे इस महफ़िल में उन्हें है बाद में  है ये पता लग पाता की लूट कर उनकी हर ख़ुशी, कर के बर्बाद उनकी ज़िन्दगी  ये उनकी आशिकी अब किसी और की मोहब्बत हो चली,मोहब्बत नाम था जिनके साथ का अब वो साथ किसी और के नाम है हो चुका, बिन उनके अब नम  होने  लगी  हैं ये आँखे और दिल में दर्द के साथ गम-ऐ -तन्हाई  अब आशिक को है  भाने लगी, जी चाहता है बदनसीब आशिक का उस बेवफा मोहब्बत की यादों के सहारे जीने के लिए हाथों में  कोई जाम लेने का लेकिन सुना है ऐसा करना भी बेईमान है क्योंकि जाम भी तो उसी के हाथ में होता है जिनके पास प्यार नहीं पैसा होता है और इन  पैसों की चमक को देख कर ही तो आज आशिक की मोहब्बत किसी और की रंगीन शाम है।


  ठोकर खा कर इस महफ़िल में ये बात समझ में आई है,मोहब्बत अब दिलों का रिश्ता नहीं बल्कि जिस्म का बाज़ार है,आते हैं जिस्म के भूखे लोग इस महफ़िल में अपनी भूख मिटाने के लिए, कुछ को मिल जाता है सब कुछ बहुत आसानी से तो कुछ को मेहनत करनी पड़ती है अपनी भूख मिटाने के लिए, कुछ सच तो कुछ झूठ का सहारा लेते हैं पर आखिर में अपने जिस्म की भूख मिटा ही लेते हैं इस महफ़िल में लोग,

  अजीब है ये महफ़िल में आते हैं  कयी  लोग यहाँ महबूब और महबूबा का चोगा ओढे हुए, आते हैं लोग इस महफ़िल में मोहब्बत के नाम पर अपनी भूख जिस्म की मिटाने के लिए, लेकिन  तकलीफ उसे  होती  है जो सोच बैठता है ये की शायद उसे मिल जायेगी उसकी सच्ची मोहब्बत इसी महफ़िल में कही ,कर रही होगी उसकी चाहत भी इंतज़ार इस महफ़िल में उसका भी यही कही, शायद वो उसे ढूँढ ही ले इस महफ़िल की रंगीनियों में कही , पर अफ़सोस उसे मिलती नहीं मोहब्बत और अगर मिलता है कोई उसे तो कर के बर्बाद उसकी हर ख़ुशी, कर के बार के बर्बाद उसकी ज़िन्दगी तनहा कर जाता है।  

होती है जिसके दिल में सच्ची चाहत किसी को पाने के लिए,कर कुर्बान किसी पे सब कुछ अपना वो  पाने की उसे जो हसरत करने की भूल इस महफ़िल में कर  बैठते हैं , और वो उनका सब कुछ लेने के बाद भी आखिर उन्हें इस इश्क की महफ़िल के जिस्मों के बाज़ार में दूसरों की भूख मिटाने के लिए तनहा छोड़ देते हैं , नहीं होता है इस महफ़िल में मतलब किसी का किसी के ज़ज्बातों से , मतलब तो होता है बस खुद से और अपने जिस्म की भूख मिटाने से, होते नहीं अब इस बाज़ार में मोहब्बत के  लालायित  लोग  होते हैं तो बस जिस्मों के अभिलाषी और हवस के पुजारी लोग।


 जिस्मों के जादूगरों ने ही आज है ऐसा जादू किया , मोहब्बत पर आज सिर्फ पैसे  का हक़ और दौलत को ही उसके नाम किया, जिस्मों के जागुगारों ने ही आज मोहब्बत पे ऐसा जादू कर  डाला है  आज मोहब्बत के नाम पर केवल जिस्म का ही बोलबाला है , कही दिखती नहीं मोहब्बत आज पर बिकती जरुर है चंद सिक्कों को देख कर हर शहर और चौबारे पर , चंद सिक्कों के खातिर छोड़ जाता है प्यार, चंद सिक्कों के लिए पीछे रह जाता है यार,  चंद सिक्कों की खनक से बिक जाता है मोहब्बत से बना ये सपनो का संसार ,सुना था कभी मैंने की दुनिया में बिक सकता है सब कुछ पर नही बिकती है सच्ची मोहब्बत , मिलता है जहा सब कुछ इस दुनिया के बाज़ार में इन चंद चांदी के टुकड़ों से पर नहीं मिलता प्यार है इन  सिक्को की झंकार से  क्योंकि दिल के रिश्तो से दूर होता है ये सोने चाँदी का संसार , हर कीमती चीज़ से भी ज्यादा अनमोल होता है किसी का सच्चा  प्यार पर ऐ मेरे दोस्तों सुन लो जरा तुम भी मेरी ये बात की अब   मोहब्बत में  नहीं  रही वो पहली वाली बात क्योंकि मोहब्बत तो बन चुकी है आज जिस्म का व्यापार, नहीं किसी को मतलब आज सच्ची आशिकी से मतलब तो है आज बस जिस्मों की दिल्लगी से, बिक चुकी इस दुनिया में आज सब कुछ बिकता है , चाहत की दुनिया में आज चाहत के नाम पर सिर्फ जिस्म ही मिलता है, जो न दे सके अपने जिस्म को उसे इस ज़माने में कौन पूछता है, प्यार  वफ़ा को इस महफ़िल में कौन देखता है,,जिसके पास हो चांदी के सिक्के उसे ही सब कुछ और मनचाहे जिस्म पे अधिकार मिलता है, मोहब्बत तो नाम है अब सिर्फ जिस्म को पाने का, मोहब्बत तो नाम है अब सिर्फ अपनी हवस को  मिटाने का ,दिल के रिश्तो को आज कौन देखता है, वफादारी और कुर्बानी आज कौन पूछता है, पूछता है तो बस जिस्म पे अधिकार उसका है ये ही सवाल हर कोई करता है, मोहब्बत की इस महफ़िल में  आज केवल जिस्म ही मिलता है, 



  जब देखने चलो की आज कहाँ है सच्ची मोहब्बत, जब ढूँढने चलो की आज कहाँ मिलेगी सच्ची चाहत और कहाँ मिलेगा दिल से दिल का रिश्ता जोड़ने वाला कोई, थक जायंगी ये नज़रे और गुज़र जायेगी ये ज़िन्दगी इस सरज़मीन पे लेकिन सच्ची  ना मोहब्बत पड़ेगी कही दिखाई और न मिलेगी कही वफाई , दिखेगी तो जिस्म की  भूखी  दुनिया , मिलेंगी तो वासना से घूरती हुई ही लोगों की अंखिया क्योंकी आज  इसी को चाहता है ये सारा  ज़माना, इसी को कहते हैं आज का आशिकाना ,
जिस्मों और हवस से बने रिश्तों को ही आज कहते हैं मोहब्बत, हवस के नसे में बीगे हुए इस रिश्ते को ही आज कहते हैं सच्ची चाहत और ये  ही है आज दुनिया की  महफ़िल-ऐ-इश्क  में  हर कही पर,मोहब्बत की महफ़िल के इन जिस्मों के बाज़ार में आज इसे ही कहते हैं सच्ची आशिकी, दिलों के नहीं लेकिन जिस्मो से बने इन रिश्तो कोई ही आज कहते हैं सच्ची दिल्लगी, हवस से  भरी   हुई और वासना की प्यासी नज़रों  से जिस्म को पाने का नाम ही है आज सच्ची मोहब्बत, 
ये ही है आज  सबकी ज़िन्दगी , ये ही है आज सबकी हसरते और ये ही है आज सबकी ख़ुशी । 

इश्क की राह में धोखे हज़ार हैं, ये वो महफ़िल है जो दूर तलक दिखने पर लगती गुलज़ार है, …






2 comments:

  1. archu ji .aap bahut achchha likhti hain kripya roman ko hindi karne ke liye google translitrete ka prayog karen .आभार नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनायें दादा साहेब फाल्के और भारत रत्न :राजनीतिक हस्तक्षेप बंद हो . .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MANजाने संविधान में कैसे है संपत्ति का अधिकार-1

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