Monday, 23 December 2019

कविता-नादां दिल

"नादां दिल फिर उसी रास्ते पर चलने लगा था
पागल पन देखो ये नादां फिर से करने लगा था
समझने लगा था यहाँ फिर से किसी को ये अपना
नादां दिल देखो फिर से मोहब्बत करने चला था


धड़कन में देखो किसी को फिर बसाने चला था
साँसों में देखो ये फिर किसीको समाने लगा था
अकेले में याद कर कैसे  मुस्कुराता था ये नादां
पागल मन फिर काँटो को फूल समझने लगा था


खुद से रूठ देखो खुद को ही ये मनाने चला था
किसी की ख्वाइशों पर देखो कैसे ये मरने लगा था
अपने ही दर्द से मोहब्बत सी हो गयी थी फिर इसे
 हाय ये नादां दिल देखो फिर क्या करने चला था

भूला सारी रस्मो रिवाज़ खता ये  करने लगा था
चलते चलते फिर कही ये रुकने लगा था
शायद होने लगा था ये धीरे धीरे फिर किसीका
नादां दिल फिर उसी रास्ते पर चलने लगा था"
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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