Monday 19 November 2018

ईश्वर वाणी-266 कही अधिक समय न हो जाये

ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यों ये दुनिया ये धरती और इस पर रहने वाले सभी जीव मेरे लिए उस राजा के बाग के सुंदर पुष्प के समान है जिसके बाग में सदा ऐसे ही फूल खिलते हो और बाग को सदा ऐसे ही महकाते हो।


वही मनुष्य मेरे लिए उस माली के समान है जिस पर एक बाग की ज़िम्मेदारी होती है, उसका कर्तव्य होता है कि किसी भी फूल, पौधे या पेड़ को किसी तरह का कोई नुकसान न हो, यदि कोई फूल या कली या पौध या पेड़ मुरझा रहा है तो माली देखता है कि ऐसा क्यों हो रहा है साथ ही इसका निवारण वो करता है, जैसे एक पिता के लिए उसकी संतान होती है और पिता पूरी जिम्मेदारी के साथ अपनी संतान का ख्याल रखता है  वैसा ही रिश्ता माली और बाग में लगे इन सभी पुष्पों, पौधों और वृक्षों का होता है।
किंतु क्या हो अगर माली खुद को इस बाग का स्वामी समझने लगे, अपनी शक्ति इस बाग की देखभाल के स्थान पर इसको उजाड़ने में लगाने लगे, फूलो को तोड़ कर पैरो तले कुचलने लगे, कलियों समय से पहले ही तोड़ दे पेड़ से और पैरों से कुचलने लगे, क्या हो माली और बाग के इन फूलों का पेड़ो का और पौधों का रिश्ता जो पिता और संतान का था आज मालिक और दास का बन गया है, अपने अभिमान में माली समस्त बगिया उजाड़ कर मनुष्यों की एक बस्ती बना दे।
क्या हो जिस बाग पर वो अधिकार दिखाने लगा है उसके असली मालिक को वो तुच्छ मान कर मनमानी करने लगे, क्या वो मालिक चुप रहेगा माली की इस हरकत पर या दंड देगा?
हे मनुष्यों दंड मिलेगा माली को या नही ये बाद में में तुम्हे बताऊंगा लेकिन तुम खुद देखोगे और महसूस करोगे एक सुंदर बाग के उजड़ने पर वो स्थान कैसा लगता है, क्या तुम्हें वो स्थान अच्छा लगता है, क्या ऐसा करने वाले कि तुम तारीफ करोगे??
हे मनुष्यों ये पूरी धरती व समस्त ब्रह्मांड मेरा घर है, धरती पर रहने वाले सभी जीव जंतु मेरे  धरती रूपी बगिया के सुंदर फूल है, चुकी मैंने श्रष्टि के प्रत्येक जीव को कोई न कोई कार्य दिया है, तो मैंने इस बगिया रूपी धरती की देखभाल व मेरे इन प्यारे पुष्पों की देखभाल हेतु मनुष्य बनाये, जिन्हें इनकी देखभाल का कार्य सौंपा।
किंतु समय के साथ मनुष्य खुद को यहाँ का स्वामी समझने लगा, जो अधिकार उसे मैने मेरी बगिया की देखरेख के दिये उसे उसने उसे अपनी शक्ति समझ इस बगिया को उजाड़ना शुरू कर दिया।
आज ये हालात है कि मेरी बगिया के कई फूल आज सदा के लिए धरती से गायब हो गए हैं, किन्तु मैं भी इस पूरी बगिया मालिक हूँ, मैंने भी मनुष्य को ऐसा सबक सिखाया है कि मनुष्य खुद अपनी जाति का शत्रु बन बैठा है और वो समय दूर नही जब मनुष्य खुद अपनी ही जाती के विनाश का उत्तरदायी होगा।
भाव ये है इंसानी स्वार्थ चाहे जीभ का स्वाद चाहे परंपरा या रीति रिवाज या मौज मस्ती इन सब के कारण मनुष्य निरीह जीवो की हत्या करता है, और इस कारण धरती से कई जीवो की प्रजाति पूरी तरह लुप्त भी हो चुकी है लेकिन फिर भी मनुष्य नही थमा है, वो आज भी निरीह जीवो को सताता है, मारता है खाता है वो भूल जाता है जिन अंगों को वो खा रहा है वो उसके अंदर भी है, क्या हो अगर कोई उसके अंगों को भी इसी तरह खाये, रीति रिवाज, मौज मस्ती या जीभ के स्वाद के लिए कोई उसके परिवार को मार दे तो कैसा लगेगा, तो जिन्हें तुम मारते व खाते हो क्या हुआ जो तुम्हारी भाषा वो नही बोलते तुम उन्हें मारते व खाते हो, क्यों ये पाप करते हों, मेरे अनुसार जब तक तुम्हारी जान पर न बने तब तक किसी भी प्राणी की किसी भी तरह हत्या नही करनी चाहिए, किसी निरीह या निर्दोष की जान बचाने हेतु भी की हत्या किसी पाप की श्रेडी में नही आती किंतु इसके अतिरिक्त जीवो की हत्या पाप है, क्योंकि प्रत्येक जीव को मैंने बनाया है, जैसे तुम्हे बनाने के कारण मैं तुम्हारा परमपिता हूँ  उसी तरह मैं उनका भी आदि पिता हूँ, मेरे लिए तुम सब समान हो, मेरे लिए भौतिक देह मायने नही रखती की तुम मनुष्य हो या अन्य जीव क्योंकि ये देह तो आत्मा रूपी तन को ढकने का एक वस्त्र समान है,

साथ ही मनुष्य जिसने अपने अधिकारों का गलत उपयोग शुरू कर जीवों की हत्या की निरीहों का रक्त बहाया, उन्हें यातना दी, उनकी हाय उनकी बद्दुआ समस्त मानव जाति को लगी और इसलिए इंसान इंसान का दुश्मन बन अपनों का और अपनी जाति का विनाश करने पर तुला है, जाती, धर्म, सम्प्रदाय, भाषा,वेशभूषा आदि के नाम पर मनुष्य लड़ कर एक दूसरे की हत्या कर रहा है, जितना खुद का विकास किया है उतना ही विनाश के साधनों का विकास कर अपने विनाश के तरफ तेज़ी से बड़ा है।

मनुष्य ने जैसा बोया वैसा ही उसे फल मिल रहा है किंतु अभी भी समय है सुधर जाओ कही अधिक समय न हो जाये और पश्चाताप का समय भी न मिले धरती से जीवन ही नष्ट हो जाये।"

कल्याण हो