Sunday 30 December 2018

प्रभु येशु का एक गीत। "येशु तेरे चरणों की"



येशु तेरे चरणों की इक धूल जो मिल जाये
माथे से लगा लू जो
ये जीवन सवर जाए

येशु तेरे चरणों की....................।

भटके  हुए कदमो को इक मन्ज़िल मिल जाये
तू थाम जो हाथ मेरा
ये जीवन सुधर जाए

येशु तेरे चरणों की इक धूल जो मिल जाये........................।

मझधार में फंसी नैया पार तो हो जाये
तू रोक दे जो ये तूफान
ये भवर तो थम जाए

येशु तेरे चरणों की........
.............................।

Monday 19 November 2018

ईश्वर वाणी-266 कही अधिक समय न हो जाये

ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यों ये दुनिया ये धरती और इस पर रहने वाले सभी जीव मेरे लिए उस राजा के बाग के सुंदर पुष्प के समान है जिसके बाग में सदा ऐसे ही फूल खिलते हो और बाग को सदा ऐसे ही महकाते हो।


वही मनुष्य मेरे लिए उस माली के समान है जिस पर एक बाग की ज़िम्मेदारी होती है, उसका कर्तव्य होता है कि किसी भी फूल, पौधे या पेड़ को किसी तरह का कोई नुकसान न हो, यदि कोई फूल या कली या पौध या पेड़ मुरझा रहा है तो माली देखता है कि ऐसा क्यों हो रहा है साथ ही इसका निवारण वो करता है, जैसे एक पिता के लिए उसकी संतान होती है और पिता पूरी जिम्मेदारी के साथ अपनी संतान का ख्याल रखता है  वैसा ही रिश्ता माली और बाग में लगे इन सभी पुष्पों, पौधों और वृक्षों का होता है।
किंतु क्या हो अगर माली खुद को इस बाग का स्वामी समझने लगे, अपनी शक्ति इस बाग की देखभाल के स्थान पर इसको उजाड़ने में लगाने लगे, फूलो को तोड़ कर पैरो तले कुचलने लगे, कलियों समय से पहले ही तोड़ दे पेड़ से और पैरों से कुचलने लगे, क्या हो माली और बाग के इन फूलों का पेड़ो का और पौधों का रिश्ता जो पिता और संतान का था आज मालिक और दास का बन गया है, अपने अभिमान में माली समस्त बगिया उजाड़ कर मनुष्यों की एक बस्ती बना दे।
क्या हो जिस बाग पर वो अधिकार दिखाने लगा है उसके असली मालिक को वो तुच्छ मान कर मनमानी करने लगे, क्या वो मालिक चुप रहेगा माली की इस हरकत पर या दंड देगा?
हे मनुष्यों दंड मिलेगा माली को या नही ये बाद में में तुम्हे बताऊंगा लेकिन तुम खुद देखोगे और महसूस करोगे एक सुंदर बाग के उजड़ने पर वो स्थान कैसा लगता है, क्या तुम्हें वो स्थान अच्छा लगता है, क्या ऐसा करने वाले कि तुम तारीफ करोगे??
हे मनुष्यों ये पूरी धरती व समस्त ब्रह्मांड मेरा घर है, धरती पर रहने वाले सभी जीव जंतु मेरे  धरती रूपी बगिया के सुंदर फूल है, चुकी मैंने श्रष्टि के प्रत्येक जीव को कोई न कोई कार्य दिया है, तो मैंने इस बगिया रूपी धरती की देखभाल व मेरे इन प्यारे पुष्पों की देखभाल हेतु मनुष्य बनाये, जिन्हें इनकी देखभाल का कार्य सौंपा।
किंतु समय के साथ मनुष्य खुद को यहाँ का स्वामी समझने लगा, जो अधिकार उसे मैने मेरी बगिया की देखरेख के दिये उसे उसने उसे अपनी शक्ति समझ इस बगिया को उजाड़ना शुरू कर दिया।
आज ये हालात है कि मेरी बगिया के कई फूल आज सदा के लिए धरती से गायब हो गए हैं, किन्तु मैं भी इस पूरी बगिया मालिक हूँ, मैंने भी मनुष्य को ऐसा सबक सिखाया है कि मनुष्य खुद अपनी जाति का शत्रु बन बैठा है और वो समय दूर नही जब मनुष्य खुद अपनी ही जाती के विनाश का उत्तरदायी होगा।
भाव ये है इंसानी स्वार्थ चाहे जीभ का स्वाद चाहे परंपरा या रीति रिवाज या मौज मस्ती इन सब के कारण मनुष्य निरीह जीवो की हत्या करता है, और इस कारण धरती से कई जीवो की प्रजाति पूरी तरह लुप्त भी हो चुकी है लेकिन फिर भी मनुष्य नही थमा है, वो आज भी निरीह जीवो को सताता है, मारता है खाता है वो भूल जाता है जिन अंगों को वो खा रहा है वो उसके अंदर भी है, क्या हो अगर कोई उसके अंगों को भी इसी तरह खाये, रीति रिवाज, मौज मस्ती या जीभ के स्वाद के लिए कोई उसके परिवार को मार दे तो कैसा लगेगा, तो जिन्हें तुम मारते व खाते हो क्या हुआ जो तुम्हारी भाषा वो नही बोलते तुम उन्हें मारते व खाते हो, क्यों ये पाप करते हों, मेरे अनुसार जब तक तुम्हारी जान पर न बने तब तक किसी भी प्राणी की किसी भी तरह हत्या नही करनी चाहिए, किसी निरीह या निर्दोष की जान बचाने हेतु भी की हत्या किसी पाप की श्रेडी में नही आती किंतु इसके अतिरिक्त जीवो की हत्या पाप है, क्योंकि प्रत्येक जीव को मैंने बनाया है, जैसे तुम्हे बनाने के कारण मैं तुम्हारा परमपिता हूँ  उसी तरह मैं उनका भी आदि पिता हूँ, मेरे लिए तुम सब समान हो, मेरे लिए भौतिक देह मायने नही रखती की तुम मनुष्य हो या अन्य जीव क्योंकि ये देह तो आत्मा रूपी तन को ढकने का एक वस्त्र समान है,

साथ ही मनुष्य जिसने अपने अधिकारों का गलत उपयोग शुरू कर जीवों की हत्या की निरीहों का रक्त बहाया, उन्हें यातना दी, उनकी हाय उनकी बद्दुआ समस्त मानव जाति को लगी और इसलिए इंसान इंसान का दुश्मन बन अपनों का और अपनी जाति का विनाश करने पर तुला है, जाती, धर्म, सम्प्रदाय, भाषा,वेशभूषा आदि के नाम पर मनुष्य लड़ कर एक दूसरे की हत्या कर रहा है, जितना खुद का विकास किया है उतना ही विनाश के साधनों का विकास कर अपने विनाश के तरफ तेज़ी से बड़ा है।

मनुष्य ने जैसा बोया वैसा ही उसे फल मिल रहा है किंतु अभी भी समय है सुधर जाओ कही अधिक समय न हो जाये और पश्चाताप का समय भी न मिले धरती से जीवन ही नष्ट हो जाये।"

कल्याण हो

Wednesday 5 September 2018

एक माँ के लिए उसकी बेटी एक सौतन के समान होती है

कहते है माँ ईश्वर का साक्षात रूप होती है, लेकिन मैंने महसूस किया है दुनियां की अधिकतर माँ बेटी के लिये ईश्वर का रूप नही होती, एक माँ बेटी को अपनी सौतन की तरह देखती है, उसे लगता है जो कुछ मान सम्मान और प्यार वो उसके हिस्से का उसकी बेटी ले जाएगी, उसकी शादी में भी उसका सब कुछ चला जायेगा, कुल मिला कर एक बेटी मा के लिए सिर्फ और सिर्फ सौतन के समान होती है। वही एक पिता के लिए वो एक आर्थिक नुक्सान के समान है, जिसके जन्म से लेकर पढ़ाई लिखाई और शादी सब कुछ एक आर्थिक नुकसान है। दुख की बात है जगत जननी नारी के बारे में अपनों की ही कितनी घटिया राय होती है, लेकिन एक औरत ही औरत की दुश्मन होती है जिस  दुश्मनी का फायदा ये पुरूष समाज तो उठाएगा ही, पता नही नारी की सोच कब बदलेंगी, कब अपनी ही जाती नारी जाति के प्रति प्यार और सम्मान जागेगा। और जब तक ऐसा नही होगा तब तक नारी यूँही अपनो के हाथों अपमानित होती रहेगी, उसके लिए मा का प्यार बस एक सौतन कि मोहब्बत जैसा और पिता का आर्थिक नुकसान में भी मजबूरीवश मुस्कुराने जैसा होगा।



کہتے ہے ماں خدا کا ساكشات طور ہوتی ہے، لیکن میں نے محسوس کیا ہے دنیاں کی زیادہ تر ماں بیٹی کے لیے خدا کا طور نہیں ہوتی، ایک ماں بیٹی کو اپنی سوتن کی طرح دیکھتی ہے، اسے لگتا ہے جو کچھ مان احترام اور محبت وہ اس حصے کا اس کی بیٹی لے جائے گی، اس کی شادی میں بھی اس کا سب کچھ چلا جائے گا، کل ملا کر ایک بیٹی ما کے لئے صرف اور صرف سوتن کی مانند ہوتی ہے. اسی باپ کے لئے، وہ مالی نقصان کی طرح ہے، تعلیم اور شادی کی پیدائش سے ہر چیز ایک اقتصادی نقصان ہے. افسوس ہے، دنیا کے بارے میں لوگوں کی ایک غریب رائے ہے، لیکن عورت خاتون کا دشمن ہے؛ اس دشمن کا دشمن اس کا فائدہ اٹھائے گا، یہاں تک کہ جب یہ نہیں جانتا کہ خواتین کس طرح تبدیل ہوجائے گی، ذات ذات کے لئے محبت اور احترام وہاں رہیں گے. اور جب تک ایسا نہیں ہوتا، عورت اپون کے ہاتھوں میں ذلیل ہوجائے گی، کیونکہ اس کی والدہ کی محبت والدین کی اقتصادی نقصان میں نرمی کی محبت اور غم کی مسکراہٹ کی طرح ہوگی.

ईश्वर वाणी-265, परम व सच्चा सुख

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों तुम्हारे दुख का कारण केवल भौतिक रिश्तों और भौतिक वस्तुओं के प्रति मोह है।

यद्धपि ये दुनिया ही एक माया अर्थात छलावा है, जो आज जैसा है कल वो न ऐसा होगा, जैसे तुम्हारा शरीर तुम्हारे जन्म से ले कर अब तक कितने ही रूप बदल चुका है और अंत मे एक दिन ये तुम्हारी आत्मा को भी खुद से दूर कर पंच तत्व में विलीन हो जायेगा, अर्थात ये तुम्हारी भौतिक देह भी एक माया ही है।

हे मनुष्यों में तुमसे कहता हूँ तुम इस माया का त्याग कर उस सत्य का अनुशरण करो जो तुम्हे वास्तविक सुख व शांति देता है, जो तुम्हे मुझ तक लाता है।

यद्धपि में ये नही कहता कि अपने भौतिक रिश्तो को त्याग कर वैरागी बन जाओ बल्कि उनका निर्वाह करते हुए मुझमे लीन हो जाओ, नित्य कर्म करते हुए मेरे बताये मार्ग पर चलो मेरे ही रूप को हॄदय की आँखों मे बसा मेरा ही नाम जपो, निश्चित ही तुम अपने समस्त दुखो से मुक्ति पाओगे में तुम्हे असीम शांति दूँगा, में परमात्मा हूँ।"

कल्याण हो

Chand alfaaz

[03/09 11:57 am] Meethi-khushi: Arz kiya hai
"kisi ko paane ka naam hi agar mohabbat hota-2

To aaj Krishna naa m bhi bin Radha ke adhura hota".....
[03/09 12:01 pm] Meethi-khushi: "ye jaruri nahi mohabbat mein kuch kar guzar jaaye haam,

Ae mere hamdam aise mile aaj ki tum Radha aur Krishan ban jaye ham"👌👍

कविता-टूट कर गिरता एक तारा हूँ मैं







“आसमां से टूट कर गिरता एक तारा हूँ मैं
कभी जो भी शान हुआ करता था महफ़िल की

आज लोगों की आंखों का बेबस एक नज़ारा हूँ मै
नज़्में में भी शान हुआ करती थी इस साहिल की

आज ज़मीन पर निशां ढूंढता कितना हारा हूँ मै
मोहब्बत की ज़माने से बस ये हरकत ज़ाहिल की

कभी आसमां में मेरा भी वज़ूद था औरो की तरह
बेवफ़ा से वफ़ा की उम्मीद ये अदा बस काहिल की

नाम भूल बैठा अपना शोहरत से भी आज मारा हूँ
कभी जो भी शान हुआ करता था महफ़िल की

“आसमां से टूट कर गिरता एक तारा हूँ मैं
कभी जो भी शान हुआ करता था महफ़िल की-२"

Wednesday 8 August 2018

कविता-उनसे मिल जाये कही




“ये जरूरी तो नही उनसे मिल जाये कही
जरूरी तो ये है उनके दिलमे बस जाए कभी

मोहब्बत की कहानिया सुनी हमने बहुत
काश हमारी भी दास्तान कही जाए कभी

पग पग गिरे फिर उठ कर चले हम यहाँ
अब किसी का साथ काश मिल जाये कभी

‘मीठी’ बातो से दिलमे वो ऐसे बसने लगे
‘खुशी’ से इकरार उन्हें भी हो जाये कभी

ज़िन्दगी की दौड़ में ‘खुशी’ के पल खो गए
‘मीठी’ के इश्क में ‘खुशी’ से झूम जाये कभी

नज़दीक होने पर तो सब देते है साथ यहाँ
दूर जा कर भी जो दिलमे रह जाये कभी

ये जरूरी तो नही उनसे मिल जाये कही
जरूरी तो ये है उनके दिलमे बस जाए कभी-२”

Copyright@Archana Mishra

Friday 3 August 2018

ये मेरी और तेरी कहानी है-कविता

“ये मेरी और तेरी कहानी है
यहाँ पर एक राजा और रानी है

इश्क में दीवाने दो दिल कैसे
मीठी-खुशी की हुई दीवानी है

मिली नज़रो से नज़र ऐसे
हुई ये कैसी नादानी है

इश्क में कैसे डूबे ये दो दिल
छाई ये इन पर ये रवानी है

भुला चुके जमाने को हम
लोग कहते हैं ये तो जवानी है

मिले दो दिल ऐसे फिर देखो
कैसी ये मोहब्बत की निशानी है

ये मेरी और तेरी कहानी है
यहाँ पर एक राजा और रानी है-2”

कॉपीराइट@अर्चना मिश्रा

Wednesday 25 July 2018

ईश्वर वाणी-264, प्राणियों पर दया

ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों यूँ तो तुमने कई धर्म ग्रंथ पड़े सुने होंगे, उनकी कई कहानियां सुनी होंगी, कई कहानियों में ‘भगवान’ को पशु रूप में अवतार ले कर दुष्टों का अंत करना पड़ा।
दुनिया के प्राचीन धर्म ग्रंथों व कथाओं के अनुसार कई पशु पक्षी बेहद पवित्र व पूजनीय होते थे, किंतु वर्तमान समय मे उन धार्मिक मान्यताओं को लोगों द्वारा अस्वीकार कर नए धर्म व मान्यता का उदय हुआ, प्रारम्भ में तो इसका उद्देश्य नेक था, एकता, भाईचारा, दया, करुणा, समानता जैसी भावना थी किंतु समय के अनुरूप लोगों ने स्वार्थवश इसमे परिवर्तन कर सिर्फ अपने फायदे की बातों को जोड़ मानव को मानव का ही शत्रु बना दिया,जब मानव अपनी ही जाती का घोर शत्रु इस कदर बन बैठा तो अन्य जीवों के विषय मे क्या सोचेगा।

किँतु दुनिया की प्राचीन मान्यताओं व कथाओ के अनुसार साथ ही हिन्दू धर्म मे ‘भगवान’ द्वारा निम्न पशुओं का अवतार ले दुष्टों का अंत जैसी कथा का सार ये है “संसार के समस्त जीव मेरी संतान हैं, कोई मनुष्य यदि अपनी जाति को किसी भी तरह श्रेष्ट कहता है व अन्य जीवों को तुच्छ समझता है तो उससे अज्ञानी कोई नही, मनुष्य ही आत्मा को भौतिक देह के अनुसार भेद करता है किंतु मे नही, मेरे लिये सभी जीव आत्माएं समान है, मे सभी से समान प्रेम रखता हूँ।

हे मनुष्यों कई मनुष्य अपनी आधुनिक मान्यता के अनुसार कहते हैं कि मनुष्य को ईश्वर अर्थात मैंने अपने जैसा बनाया है, और इसलिए उसको अधिकार है जो चाहे वो करे धरती पर, ऐसे मनुष्य अन्य जीव जंतुओं को केवल जीभ के स्वाद से नापते है किन्तु ऐसा मैंने नही किया ये सब उनकी अपनी तुच्छ मानसिकता है।

मनुष्य भी अन्य जीवों की तरह ही मुझे प्रिये है, और मैं इंसान जैसा दिखता हूँ ये सच नही, क्योंकि मेरा कोई रूप नही, और यदि मनुष्य ही मुझे प्रिये होते तो मै श्रष्टि की रक्षा हेतु पशु पक्षियों का रूप न धारण करता।

हे मनुष्यों इसलिये मै तुमसे कहता हूं जीवो पर दया रखो, प्रेम भाव रखो, निरीहो की रक्षा करो, ये न भूलो की तुम्हें मैंने जैसे बनाया वैसे ही इन्हें भी बनाया, वैज्ञानिक आधार पर तुम्हे बताता हूँ तुम्हे और इन समस्त प्राणियों को बनाने वाले ये अति सूक्ष्म जीव है इस कारण तुम सब एक से ही उतपन्न हुए हो और वो एक जिसे मेरे ही रूप ने बनाया है, इसलिए सभी जीवों से प्रेम रखो न कि आनंद के लिए अथवा मुँह के स्वाद के लिए उनकी हत्या करो अथवा घृणा भाव रखो।"

कल्याण हो

Friday 13 July 2018

ईश्वर वाणी-263, प्रेत, भूत मोक्ष व अनन्त जीवन

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि तुम्हे मैं अनेक जन्म व योनियो के विषय मे बता चुका हूँ, किँतु आज तुम्हें मैं भूत व प्रेत योनि के विषय में बताता हूँ, आखिर देह त्यागने के बाद कौन सी आत्मा प्रेत योनि में प्रवेश करती है और कौन सी भूत योनि में और कौन सी आत्मा मोक्ष को पाती है।

हे मनुष्यों यद्धपि तुम्हारे जन्म के समय से पूर्व ही तुम्हारी मृत्यु तेय हो जाती है साथ ही ये निश्चित हो जाता है कि तुम्हे इस जन्म के बाद मोक्ष मिलेगा या प्रेत या भूत योनि में रह कर समय व्यतीत करना होगा।

जिस व्यक्ति की मृत्यु अचानक किसी हादसे में हो जाती है, या कोई व्यक्ति किसी कारण आत्म हत्या कर लेता है, यदि किसी की अचानक हत्या कर दी जाती है,  ऐसे व्यक्ति खुद को सांसारिक बंधनो में बंधा ही समझते हैं, और वही ध्यान और आकर्षण अपने प्रियजनों से चाहते हैं जैसे जब वो जीवित थे, दूसरे शब्दों में ऐसी आत्माये अपने को मृत नही समझ पाते अपनी मृत्यु को स्वीकार नही कर पाती, ऐसी ही आत्माये प्रेत कहलाती है, ये वो अवस्था है जिसमे जीवन और मृत्यु के बीच सूक्ष्म देह फसी रहती है, और खुद को भौतिक देह के समान ही महत्व प्रदान करवाना चाहती है, और यदि इन आत्माओं की इच्छा पूर्ण नही होती या थोड़ी भी ये नाराज़ होती है तब अपने ही परिवार को हानि पहुंचाने में भी समय नही लगती, तभी इनकी शांति की प्रार्थना व पूजा अनिवार्य होती है अन्यथा ये कई युगों तक यूँही भटकती रहती हैं।

वही भूत ये वो अवस्था होती है जब प्राणी को ये पता होता है कि उसकी मृत्यु हो चुकी है, उसे अब भौतिक रिश्तों और भौतिक वस्तुओं से कोई मतलब नही, वो एकांत में रह कर केवल अपनी मुक्ति की कामना करती है, औरजब निश्चित समय आता है उसे मुक्ति मिल जाती है और आत्मा नए जीवन मे प्रवेश करती है, आमतौर ये आत्माये शांत होती है और मुक्ति की अभिलाषी होती है।

वही मोक्ष प्राप्त आत्मा देह त्यागने के बाद बहुत जल्दी ही दूसरा जन्म ले लेती है, इससे उन्हें प्रेत व भूत योनि में नही भटकना पड़ता, ये सब उसके कर्म पर निर्भर होता है, औरकर्म इसके जन्म के पूर्व ही निश्चित हो जाते हैं।

हे मनुष्यों यद्धपि तुम्हारे लिये ये निम्न रूप व योनियां हो किंतु मेरे लिए तुम सब एक आत्मा हो, जो मुझसे ही निकल कर मुझमे ही जब समा जाती है तब अनन्त जीवन और मोक्ष को प्राप्त होति है और मैं ईश्वर हूँ।"

कल्याण हो

Tuesday 10 July 2018

ईश्वर वाणी-262, देह, आत्मा और कर्म प्रधान भौतिक जीवन






ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यू तो तुमने अपने जन्म कुंडली कई बार देखी होगी व कई ज्योतिष व जानकारों को दिखाई होगी, किंतु तुम्हे आज बताता हूँ इसके विषय में जिसे तुम्हे तुम्हारे ज्योतिष व जानकर ने भी नही बताया होगा।

यद्धपि जन्मपत्री में तुम अपने भविष्य व भूतकाल की जानकारी प्राप्त करते हो अथवा कर सकते हो, किंतु आज तुम्हें बताता हूँ तुम्हारे जन्म के समय से पूर्व ही तुम्हारे विषय में तुम्हारी भौतिक देह, आत्मा व कर्म के विषय मे पहले ही लिखा जा चुका होता है।

जब एक बालक माता के गर्भ में आता है तभी उसकी भौतिक देह का विकास होने के साथ ही कितनी आयु इस भौतिक देह की है ये लिखा जा चुका होता है।

इसके बाद उसमें जब आत्मा का प्रवेश हो कर जीवन आता है तब ये निश्चित होता है कि कितनी देर तक अर्थात कितने समय तक आत्मा इस भौतिक देह में रहेगी।

इसके बाद जब शिशु का जन्म होता है तब ये निश्चित होता है इसके कर्म कब तक रहेंगे अर्थात कब तक ये कर्म करता रहेगा इस भौतिक शरीर और आत्मा के साथ।

हे मनुष्यों यद्धपि इन तीनो की पूर्ण जानकारी के बिना जन्मपत्री में दी गयी जानकारी अपूर्ण है, किंतु ये जानना भी बहुत मुश्किल है कि एक शिशु कब अपनी माँ के गर्भ में आया, कब उसके शरीर मे आत्मा का प्रवेश हो जीवन प्रक्रिया की शुरुआत हुई साथ ही आत्मा और भौतिक शरीर के साथ शिशु का जन्म कब होगा।

किन्तु सारांश में जन्मपत्री केवल इस कर्म प्रधान समय और देह का ही आंकलन करते हुए भविष्यवाणी करता है किंतु ये भी सत्य है कि ये एक अधूरी जानकारी है।

हे मनुष्यों क्या तुमने कभी देखा है किसी प्राणी की आत्मा उसके भौतिक शरीर को के नष्ट होने के बाद छोड़ कर गयी है, नही ऐसा संभव ही नही, पहले आत्मा देह त्यागती है उसके बाद ही देह नष्ट होती है।

कभी कभी इंसान भौतिक शरीर व आत्मा दोनों के साथ तो होता है लेकिन कर्म करने की दशा में नही होता(जैसे कोई कोमा में होता है) किन्तु फिर एक निश्चित समय बाद उसकी आत्मा भौतिक देह को छोड़ जाती है और भौतिक देह भी अपने समय के बाद नष्ट हो जाती है अथवा कर दी जाती है।

भाव यही है भौतिक शरीर,आत्मा और कर्म प्रधान देह इन तीनो का ही ज्ञान अतिआवश्यक है, और जब तक इन तीनों की जानकारी नही होती अथवा कोई जानकर जब तक इनकी पूर्ण जानकारी नही देता तब तक जन्मपत्री की जानकारी पूर्ण नही अपितु अपूर्ण ही होगी।

कल्याण हो

Wednesday 4 July 2018

ईश्वर वाणी-261, भूकम्प की असली वजह👌👌👍👍






ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यू तो तुम्हें अनेक विषयों का ज्ञान दे चुका हूँ, ब्रह्माण्ड व अनेक ग्रह नक्षत्रों के विषय में बता चुका हूँ किंतु आज तुम्हें पृथ्वी के रहस्य के विषय में बताता हूँ।

अक्सर तुमने भूकम्प के आने के विषय मे सुना होगा, भूकम्प के झटके भी तुमने महसूस किए होंगे, अनेक वैज्ञानिक तथ्य भी तुमने सुने होंगे, किन्तु अब तक जो तुमने सुना और जाना वैज्ञानिक आधार पर वो पूर्ण सत्य नही है, पूर्ण सत्य क्या है आज तुम्हे मै बताता हूँ।

"एक मिट्टी का चूल्हा है जिस पर निरंतर आग जल रही है अभी आग कुछ धीमी है, उस पर पानी से भरा एक भगोना (पतीला) रखा गया जिसके तले में 7,8 तस्तरी  रख दी गयी, और उस पतीले को एक तस्तरी से ढक दिया गया साथ ही उस तस्तरी पर कुछ चने के दाने बिखेर दिए गए, कुछ समय बाद उस भगोने में भाप बनने के कारण वो तस्तरी हिलने लगती है, चुकी अभी आग कुछ धीमी है इसलिए भाप अधिक नही बन रही, किंतु जैसे ही इस आग पर लकड़ी या कोयला डाला गया  जो भगोने को सहायता देने के लिए  चूल्हे पर ही रखा गया था आग और तेज़ हो गयी जिससे पतीले में भाप तेज़ी से बनने लगी बल्कि पतीला भी हिल गया, जिससे उसके ऊपर रखी तस्तरी पूरी तरह हिलने लगी, और इस कारण इस तस्तरी पर रखे चने के दाने भी हिलने लगे और इधर उधर बिखरने लगे, जिस स्थान पर इन्हें रखा वो स्थान ये छोड़ अलग भागने लगे।

हे मनुष्यों यही प्रक्रिया भूकम्प के समय पृथ्वी की है, वो जलता हुआ चूल्हा धरती का वो गर्म भाग है जो सूर्य जैसी ही तपन रखता है, भगोने का वो तला धरती का वो भाग है जो इस आग उगलती धरती से ऊपर का है, इसके बाद पानी वो हिस्सा है जो इस धरती की गर्मी को ऊपर नही आने देता, लेकिन  जब धरती की सतह की दीवारे उसकी गर्मी के कारण टूट कर गिरती है उसके गर्म भाग पर तब ये वो चूल्हा बन जाती है जिस पर कोयला आदि ईंधन गिर कर  इस आग को भड़काता हो साथ ही उस पतीले में रखी निम्न तस्तरिया ही धरती की अनेक परते है जो कि उसके गर्म भाग और ऊपर के शांत और ठंडे भाग बीच में भी है, जब आग तेज़ होती है तब ये उस भगोने में रखे पानी की तरह ही क्रिया करती है, चुकी धरती की गहराई में अति गर्म वातावरण से उसकी सतह कोयला बन कर इस गर्म स्थान पर गिरी जिससे आग भड़की और साथ ही तेज़ी से भाप बन उस भगोने की तस्तरी की तरह धरती का ऊपरी भाग हिलने लगा और लोग जिसे भूकम्प कहते है, किंतु यह तुम्हें एक और बात बताता हूँ चूँकि धरती के नीचे थोड़ी थोड़ी मात्रा में ये भूस्खलन होता है जो इस सतह को निरंतर गर्म रखता है, और ये गर्मी धरती के जीवित रहने के लिए अनिवार्य है, यदि धरती जीवित नही तो कोई भी जीवित नही बचेगा, साथ ही जब एक बड़ा भाग टूट कर इस धरती रूपी भट्टी में गिरता है तब धरती के उस गर्म भाग से लेकर उस ठंडे भाग तक धरती कही नीची तो कही ऊपर हो जाती है किंतु इस बीच धरती की वो तस्तरी जिस पर सभी प्राणी रहते हैं वो हिलती है, धरती का वो हिस्सा धरती की एक तस्तरी है जो जीवन के योग्य है।

हे मनुष्यों यद्धपि भूकम्प से इस प्रकार की प्रक्रिया से धरती पर अनेक गढ्ढे हो जाते, इस प्रक्रिया को संतुलित रखने के लिए मैंने ज्वालामुखी का निर्माण किया, जिसके विस्फोट से लावा व राख निकलती है, जिससे धरती पर भूकम्प के कारण हर स्थान पर गढ्ढे नही पड़ते,साथ ही कई ज्वालामुखी तो धरती की उस गहराई में ही फटते है जहाँ से इनका लावा और राख धरती की इस तस्तरी रूपी सतह पर नही आते किंतु ये प्रक्रिया होती रहती है जो धरती का नियंत्रण बनाये रखने के साथ इसे जीवित रखती है।"

कल्याण हो


Sunday 1 July 2018

ईश्वर वाणी-260, मनुष्य जाति की प्रजाति



ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों यूँ तो मैंने अनेक विषयों की तुम्हें जान कारी दी है, किंतु तुम्हे आज मानव जाति की उत्तपत्ति के विषय में बताता हूँ जो हर मनुष्य को पता होनी ही चाहिए, जैसे कि तुमने ये सुना है मनुष्य का जन्म बंदर जैसी ही किसी प्रजाति के परिवर्तन से हुआ है, किंतु आज तुम्हे बताता हूँ ये एक अर्धसत्य है, पूर्ण सत्य तुम्हे आज बताता हूँ।

हे मनुष्यों जैसे शेर की प्रजाति के -चीता, तेंदुआ, बाघ बिल्ली, कुत्ता, लोमड़ी, गीदड़, भेड़िया आदि जानवर आते है, मगरमच्छ जाती में-छिपकली, विषखोपड़ा, आदि प्रजाति आती है,  गाये की जाती में-भैंस, बकरी, हिरण, ऊँट, खरगोश, गिलहरी, गेंडा,  बारहसिंगा,ज़ेबरा आदि जानवर आते हैं, उसी तरह साँप की प्रजाति में अनेक रेंगने वाले जीव आते हैं।

ठीक वैसे ही इंसान इन जानवरों (बन्दर) से  परिवर्तित प्रजाति नही अपितु इन्ही में से ही एक अतिबुद्धिमान पशु है, किंतु आज इंसान खुद को जानवर कहने से कतराता है किंतु कार्य उसके जानवरो से भी नीच करता है।

हे मनुष्यों इस प्रकार मनुष्य  जाति सिर्फ एक परिवर्तित जाती नही अपितु बंदर प्रजाति मेसे ही एक है तभी पुराने समय में बन्दर भी निम्न राज्यो के राजा हुआ करते थे, मनुष्य और वानरों  के सम्बंध तुम्हे रामायण में मिल जाएंगे, साथ ही ये सत्य तुम्हे अब ज्ञात हो चुका है मनुष्य भी इन्ही की प्रजाति का ही एक जीव है।“

कल्याण हो

Thursday 28 June 2018

ईश्वर वाणी-259, अभोतिक्ता की प्राप्ति👍👍




ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि तुम्हे मैं अनेक ज्ञान विभिन्न
विषयों पर दे चुका हूँ, किंतु तुम्हें आज बताता हूँ कैसे ब्रह्मांड के
समस्त ग्रह, नक्षत्र, उल्का, काले गड़हे(black whole), समस्त आकाशीय पत्थर
के विषय में।
हे मनुष्यों क्या तुमने कभी सोचा है कि आकाश में सभी ग्रह केवल गोल आकार
में ही घूमते हैं, यद्धपि तुम्हे बता चुका हूँ कि एक दूसरे के
गुरुत्वाकर्षण बल व अपने गुरुत्वाकर्षण बल के कारण समस्त ग्रह नक्षत्र
गोल गोल घूमते। हुए भी एक दूसरे से निश्चित दूरी बनाते हुए घूमते हैं और
एक दूसरे से नही टकराते।

किंतु क्या तुमने कभी विचार किया है ये सभी आकाशीय घटना सदैव गोल गोल ही क्यों होती हैं, समस्त ग्रह नक्षत्र गोल ही क्यों घूमते हैं, ब्लैक होल भी गोल आकार में ही फैलता है, समस्त आकाशीय उल्काये व पत्थर भी गोल आकार में घूमते हुए ही विचरण करते हैं।


ऐसा इसलिए कि समस्त ब्रह्माण्ड का आकार ही अंडाकार उस शून्य के समान है, इसमें उपलब्ध दिव्य जल के इस प्रकार घूमने से ही समस्त ब्रह्माण्ड ही इस प्रकार घूमता है जो ये बताता है श्रष्टि की उत्पत्ति इसी शून्य से हुई थी साथ ब्लैक होल ये बताते हैं इसी शून्य में तुम्हें मिल जाना है जिससे तुम उतपन्न हुए थे।

साथ ही ये बिल्कुल उस धरती की प्रक्रिया के समान है जैसे किसी बड़े से बर्तन में पानी भर कर उसमें कुछ चीज़ें जो डूब न सकती हो डाल कर उस जल को गोल गोल तेज़ी से घुमाया जाये, इस प्रकिया में वो चीज़े जो जल में डाली गई थी वो जिस प्रकार घूमेंगी साथ ही कुछ एक दूसरे से तक्रांयगी भी, यही प्रक्रिया इस आकाशीय दिव्य सागर की है, तभी कुछ उल्का पिंड व पत्थर आकाश में बहते हुए अनेक ग्रहो से टकरा जाते हैं।

हे मनुष्यों ये न भूलो उस दिव्य आकाशीय सागर को तुम इन भौतिक आंखों से नही देख सकते, जैसे आत्मा, वायु को तुम इन भौतिक आँखों से नही देख सकते, इन नेत्रों से तुम बस वही देख सकते हो जो भौतिक है और जो भौतिक है वो नाशवान है अर्थात एक माया अथवा एक छलावा है, इसलिए तुमसे कहता हूँ उस अभौतिक को देखो जानो महसूस करो जो परम् सत्य है और जिसे तुम केवल आध्यात्म के माध्यम से ही प्राप्त कर सकते हो,  जिस दिन तुमने भौतिकता को त्याग अभौतिक को प्राप्त कर लिया तुम्हे भी उस आकाशीय दिव्य सागर और उसमें किस प्रकार समस्त ब्रह्माण्ड समाया और कार्य करता है का ज्ञान हो जाएगा।"👍


कल्याण हो

Sunday 17 June 2018

ईश्वर वाणी-258, अनन्त जीवन, मोक्ष,

 ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यों यद्धपि तुमने स्वर्ग और नर्क की कई बातें सुनी होंगी, मोक्ष और अनन्त जीवन की बाते सुनी होंगी किंतु आज तुम्हे बताता हूँ यद्धपि पहले भी तुम्हे बता चुका हूँ आज फिर तुमसे कहता हूँ तुम्हारे कर्म के अनुसार मिलने वाला सुख और दुख ही वास्तविक स्वर्ग और नरक है।

व्यक्ति जो भी कार्य करता है जैसे कर्म व व्यवहार व आचरण करता है वैसा ही जन्म उसे अगला मिलता है, उदाहरण-यदि कोई व्यक्ति अपने शक्ति धन जन आदि के अभिमान में किसी निरीह, बेबस को सताता है, दूसरो की निंदा करता है,
आलोचना व तिरस्कार करता है तो निश्चित ही भले वो इस जीवन मे अपने पिछले जन्म के फलस्वरूप सुखो को प्राप्त करे किंतु अपने अगले जन्म के सुखों में कमी कर खुद ही अपने द्वारा नरक के दरवाजे खोलता है, वही दूसरी और अनेक कष्ट झेलने के बाद भी जो मनुष्य धैर्य पूर्वक सत्कर्म करता है वो अपने लिए स्वर्ग में स्थान सुनिश्चित करता है।

साथ ही जो व्यक्ति सत्कर्म करता है, मेरे बताये नियम पर चलता है, मेरे द्वारा ली गयी अनेक परीक्षा को भी सफलता पूर्वक उतीर्ण करता है, उसे मोक्ष रूपी अनन्त जीवन की प्राप्ति होती है।

हे मनुष्यों प्रत्येक जीव आत्मा के लिए ये भौतिक देह एक कैद के समान है, प्रत्येक जीव आत्मा इस कैद से आज़ाद होना चाहती है, मुक्ति पाना चाहती है, किंतु उसके कर्म ही निश्चित करते हैं उसे मुक्ति मिलेगी या नही, यद्धपि किसी की मृत्यु को मोक्ष कहना अनुचित है क्योंकि मृत्यु उस भैतिक देह की होती है जिसमे वो आत्मा कैद थी, किँतु इस कैदखाने के बाद उसे दूसरा कैदखाना मिलता है, और ये चक्र चलता रहता है जब तक आत्मा को मोक्ष रूपी अनन्त जीवन नही मिल जाता, और तब तक आत्मा अपनी मुक्ति के लिए तड़पती रहती है किंतु जीव खुद अपने स्वार्थ में इतना खोया रहता है कि आत्मा की तड़प उसे नही सुनाई देती और अपने स्वार्थ की पूर्ति मैं अपने अनेक जीवन व्यर्थ कर देता है।

हे मनुष्यों यु तो मैं एक अनन्त सागर हूँ, और तुम सब मुझ सागर से निकली एक बूँद हो, तुम्हारे भौतिक रूप उस मिट्टी के बर्तन के समान है जिसमे जल रूपी बूँद को रखा जाता है, और आत्मा का वही रूप तुम देखते हो जो जल रखे बर्तन में जल का होता है, किंतु जब जल को उस बर्तन से निकाल कर वापस सागर में डाल दिया जाता है फिर उस जल का कोई रूप न हो कर वो एक विशाल सागर बन जाता है, यद्धपि कुछ समय पश्चात बदल भाप बना फिर उसे ले जायँगे व वो फिर बूँद बन कर किसी न किसी स्थान पर गिरेगा व वही रूप उसका होगा। ठीक वैसे ही मोक्ष प्राप्त जीव आत्मा है जो मुझ विशाल सागर में अवश्य मिल जाती है किंतु फिर से नया किंतु श्रेष्ट जीवन को पाती है।

किंतु स्वर्ग धारण की आत्मा शीघ्र ही जन्म लेती है और अनेक भौतिक सुख पाती हैं वही नरक प्राप्त आत्माएं जीवन भर हर तरह कष्ट प्राप्त करती है।

हे मनुष्यों ये मत भूलो स्वर्ग और नर्क कहि और नही यही धरती पर है और तुम खुद अपने कर्मो के माध्यम से वहाँ पहुँचने का मार्ग बनाते हो, किंतु तुम मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बनाओ, क्योंकि ये मत भूलो आत्मा को भी जन्म मरण के कार्य कुछ समय का अवकाश चाहिए होता है जिसे मोक्ष कहते हैं किंतु मनुष्य स्वार्थ में डूबे होने कारण आत्मा की वो इच्छा नही समझता और सिर्फ भौतिक संसाधन एकत्रित करने में लगा रहता है और खुद की ही आत्मा को कष्ट पहुचाता रहता है। मनुष्य नही जानता कि ये आत्मा कितने ही जन्म ले चुकी है, अब इसे भी अवकाश चाहिए, ये भी थक चुकी है, यद्धपि अनेक रूपो में इसने जन्म लिया है किंतु जन्म मरण के चक्र में कई वर्षों से फसी आत्मा अब मोक्ष चाहती है, मुक्ति चाहती है, जिसे केवल तुम दे सकते हो।

हे मनुष्यों इसलिए नेक कर्म करो, मेरे बताये मार्ग पर चलो ताकि तुम मोक्ष रूपी अनन्त जीवन पा सको।

कल्याण हो

Saturday 16 June 2018

ईश्वर वाणी-257, ईश्वर के निम्न रूपों पर श्रद्धा



ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों यद्धपि में एक निराकार आदि व अनन्त ईश्वर हूँ, यद्धपि मैं ही  अपने अंश को देश काल परिस्थिति के अनुरूप धरती पर भेजता हूँ अपने समान ही समस्त अधिकार दे कर,  जिन्हें तुम निम्न नाम व रूपों में मानते व पूजते हो किन्तु आज तुम्हें बताता हूँ यद्धपि बहुत से मनुष्य मेरे जिस रूप को पूजते हैं उसे ही श्रेष्ठ समझ मेरे अन्य रूपों की आलोचना करते है, ऐसा करके वे केवल अपनी अज्ञानता व मूर्खता का ही परिचय देते हैं।
किंतु कई ज्ञानी व्यक्ति भी मेरे उसी रूप में मुझे देखना पसंद करते हैं जिसमें उनकी श्रद्धा है, कारण-जैसे तुम्हारा कोई प्रियजन जिस वस्त्र में अधिक सुंदर व आकर्षक तुम्हे लगता है, उसी रूप में तुम उसको देखना अधिक पसंद करोगे, ये जानते हुए भी की चाहे वो व्यक्ति कोई भी वस्त्र पहने रहेगा वही जो तुम्हारा अपना है किंतु फिर भी तुम उसे उसी रूप में देखना पसंद करते हो जिसमें वो तुम्हे अच्छा लगता है, वैसे ही ज्ञानी मनुष्य भले जानता है आत्माओ में प्रथम आत्मा परमात्मा में ही हूँ किंतु व्यक्ति मुझे उसी रूप में देखना अधिक पसंद करता है जिसमे उसकी असीम आस्था होती है।

हे मनुष्यों जैसे एक मिट्टी से कुम्हार अनेक बर्तन बना देता है, उन बर्तनों की गुडवत्ता उसी मिट्टी की गुडवत्ता पर निर्भर करती है जिससे उन बर्तनों का निर्माण हुआ था, और बर्तन टूटने के बाद वो बर्तन फिर उस मिट्टी में जाते हैं जिससे उन बर्तनों का निर्माण हुआ था, फिर पुनः कुम्हार उस मिट्टी से बर्तन बनाता है। भाव ये है मैं वो मिट्टी हूँ जिससे मेरे अंशो का निर्माण मेरे ही कुम्भार रूपी अंश द्वारा होता है, इसी प्रकार वो मेरे समान ही सम्मानीय और श्रेष्ठ है क्योंकि जैसे मिट्टी बर्तन का रूप धारण करने उपरांत भी मिट्टी होती है वैसे मेरे द्वारा संसार की भलाई हेतु जन्मे मेरे अंश मुझसे निकल कर परमेश्वर का ही रूप होते हैं, यद्धपि किस आत्मा को मोक्ष देना  है किसे नही देना वही तय करते हैं और मोक्ष वाली आत्मा को मुझ परमात्मा रूपी मिट्टी में मिला अनन्त जीवन देते हैं।“

कल्याण हो

Friday 15 June 2018

ईश्वर वाणी-256, व्यक्ति का व्यवहार व उसके कर्म

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यु तो तुम्हें ये मानव रूपी भौतिक देह प्राप्त हुई है किंतु केवल ये देह तुम्हें भौतिक संसाधनों का उपभोग करने के लिए नही मिला अपितु मोक्ष प्राप्त कर अनन्त जीवन पाने हेतु मिला है।

किंतु तुम मोक्ष को प्राप्त कर अनन्त जीवन पाओगे या फिर जन्म-मरण के चक्र में फसे रहोगे ये तुम्हारे कर्म तय करेंगे। यद्दपि मैंने सभी मनुष्यों को ये बुद्धि अवश्य दी है कि वो खुद तय कर सकता है कि क्या गलत है क्या सही किंतु उसके मस्तिष्क पर स्वार्थ इस कदर हावी होता है कि सब कुछ जान और समझ कर भी मनुष्य बुरे कर्म करता है और इस तरह जन्म मरन के चक्र में फसा रहता है।

किंतु मनुष्य जो जैसा भी व्यवहार करता है ये व्यवहार उसके पिछले कई जन्मों के अनुभव के आधार पर होता है, यद्धपि उसे पता होता है गलत सही किंतु फिर भी वो गलत रास्ता चुनता है चोरी करता है झूठ बोलता है व्याभिचार करता है दूसरों की संपत्ति धन छिनता है कटु व्यवहार करता है हत्या करता है परमात्मा अर्थात मेरे नाम पर भी लोगो को छलता है अज्ञान का प्रसार करता है आलोचना करता है कभी भौतिक आवश्यकताओं के लिए संतुष्ट नही होता दूसरो की तरक्की से ईर्ष्या करता है निरीहों की निम्न नामो से हत्या करता है, ये व्यवहार मनुष्य के कई पिछले जन्मों का फल है, सब कुछ जानते और समझते हुए उसका ऐसा व्यवहार उसे कभी मोक्ष पाने नही देता और मनुष्य निन्म रूपों में इस जन्म मरण के चक्र में फसा रहता है।

हे मनुष्यों यद्धपि तुमने सुना होगा कि कई पशु-पक्षी जिनमे से कई तो हिंसक और मासाहारी भी होते हैं वो नेक कर्म कर जाते हैं, कई जीवो की अथवा मनुष्यों की भी सहायता कर जाते हैं, उनका ये व्यवहार उनके पिछले अच्छे कर्म से शुरू हो कर मोक्ष की ओर ले जाता है, मोक्ष प्राप्त केवल मनुष्य देह से हो ये आवश्यक नही क्योंकि मोक्ष रूपी अनन्त जीवन भौतिक देह के आधार पर नही मिलता अपितु कर्म के आधार पर मिलता है और कर्म व्यवहार से तय होते है और व्यवहार पिछले कई जन्मों के आचरण से।

हे मनुष्यों मैं तुमसे फिर कहता हूँ भौतिक सुखों के पीछे मत भागों अपितु अपने कर्म सुधारो ताकि तुम्हें मोक्ष रूपी अनन्त जीवन मिल सके, अनन्त सुख मिल सके, वो तुम्हे मै दूँगा क्योंकि मैं ईश्वर हूँ।"

कल्याण हो

Copyright@Archana Mishra

Thursday 7 June 2018

2 lines

"तेरे हुश्न ने मुझे शायर बना दिया
तेरी मोहब्बत ने मुझे कायर बना दिया"

Wednesday 6 June 2018

कविता-आज लिख दु मैं👌👌👍👍

"दिल के सब ज़ज़्बात आज लिख दु मैं
है जो दिल मे बात उसे आज कह दु मैं

थी दफन मोहब्बत दिल की गहराई में
इस कागज़ पर लहू से आज लिख दु मैं

डरता रहा मैं इस जहाँ से अब तलक जो
है मोहब्बत कितनी उनसे आज कह दु मैं

इश्क में तेरे हुआ कैसा दीवाना ऐ ह्मनशीं
हर बात कागज़ पर ऐसे आज लिख दु में

दिल के सब ज़ज़्बात आज लिख दु मैं
है जो दिल मे बात उसे आज कह दु मैं-2"👍

Copyright@Archana Mishra

Thursday 24 May 2018

कविता-एक नई ज़मीन और आसमान ढूंढता हूँ मैं



"सदियों से यू प्यासा हूँ बस एक कुआ ढूंढता हूँ
फिर से एक नई ज़मीन और आसमान ढूंढता हूँ

शायद मिल जाये जहाँ में मोहब्बत के निशां
ऐ ज़िन्दगी ऐसा हमनसी और यार ढूंढता हूँ

कम पड़ जाती है ज़िन्दगी बस वफ़ा के लिये
मिले उमर भर वफ़ा  बस वो प्यार ढूंढता हूँ

इश्क में खेलने वाले इन ज़ज़्बातों से मिले बहुत
जो समझे इन ज़ज़्बातों को वो संसार ढूंढता हूँ

मज़हब के नाम पर लड़ ज़ख्म देते हर रोज़ यहाँ
इंसां को इंसा बनादे वो गीता-कुरान ढूंढता हूँ

सदियों से यू प्यासा हूँ बस एक कुआ ढूंढता हूँ
फिर से एक नई ज़मीन और आसमान ढूंढता हूँ-२"

कॉपीराइट@अर्चना मिश्रा




Tuesday 22 May 2018

चंद अल्फ़ाज़

"मैंने आज इश्क का ये पैगाम लिखा
इस महफ़िल में फिर सरेआम लिखा
कबूल कर न कर मर्ज़ी तेरी हमनशीं
दिल ने धड़कनो पर तेरा नाम लिखा"


"इश्क का दरिया युही बहने दो
दिलकी बात ज़ुबा पर आने दो
न रोको तुम अपने ज़ज़्बातों को
दिल से धड़कन की बात होने दो"



Monday 21 May 2018

ईश्वर वाणी-255, ईश्वर के द्वारपाल

ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों जैसे तुम किसी बड़े ओहदे वाले व्यक्ति से मिलने जाते हो और सबसे पहले तुम उसके सेवक व दरबान से मिलते हो, जब उसकी इच्छा व उसके मालिक की आज्ञा होती है तब तुम उक्त व्यक्ति से मिलते हो।

वैसे ही मुझ निराकार ईश्वर से मिलने से पहले तुम्हें मेरे द्वारा नियुक्त निम्न दरवानो से मिलना होगा, यद्धपि ये मेरा ही एक अंश है, इन्हें मैंने ही बनाया और अपना दरबान नियुक्त किया ताकि सही व्यक्ति ही मुझ तक पहुँच सके न कि हर व्यक्ति।
देश, काल, परिस्थिति के अनुरूप तुम मेरे जिन अंशो को मानते व पूजते हो वो तो मुझ तक तुम्हे लाने मात्र का मार्ग प्रशस्त करते हैं, मेरी ही आज्ञा यदि होती है तब तुम्हे मेरे पास लाते है, मेरी ही आज्ञा से तुम्हारे जीवन का दुःख-सुख वो तय करते हैं, यद्धपि मेरे द्वारपाल है वो किंतु पूजनीय प्रत्येक व्यक्ति के लिए उतने ही है जितना मैं हूँ।
 जैसे माता पार्वती से उतपन्न गणेश भगवान को माता ने अपने स्नान ग्रह के बाहर उन्हें द्वारपाल नियुक्त कर ये आदेश दिया कि कोई भी उनकी इच्छा के बिना भीतर प्रवेश न करे, जिसका पालन श्री गणेश ने अपने पिता द्वारा अपना सर कटवा कर भी पूरा किया, ठीक वैसे ही इस संसार के समस्त देवी-देवता देश काल परिस्थिति के अनुरूप मेरी ही आज्ञासे जन्मे व जीव और प्राणी जाती का कल्याण कर मनुष्य को उसके कर्म, उसके जीवन के उद्देश्य, संसार मे उसका पद, उसके कार्य याद दिला कर मुझमे लीन हो गए, किन्तु उनके उस भौतिक स्वरूप और उनके उस भौतिक स्वरूप में दिए वचनों पर चलने व मानने वाले व्यक्ति के लिए उनका वही रूप मेरे द्वारपाल के रूप में उपस्थित हो कर मुझसे मिलने और न मिलने का निर्णय मेरी ही आज्ञा से ले आत्मा को उसके लोक व जन्म का निर्धारण करते हैं।
हे मनुष्यों ये न भूलों मैं ही समस्त जीवों का, समस्त ब्रह्मांड का,कण कण का स्वामी परमेश्वर हूँ, परम*ऐश्वर्य=परमेश्वर। जिसका शाब्दिक अर्थ है
प=प्रथम
र=राजा
म=मैं, महान
ए=एक
श=शक्तिशाली
व=वीर, विशाल अनन्त
र=राज्य
अर्थात संसार का सृष्टि का प्रथम राजा एक इकलौता महानों में महान मैं हूँ, मेरे अतिरिक्त कोई नही, में ही सर्वशक्तिमान शक्तिशाली वीरों में वीर इस सृष्टि रूपी राज्य का स्वामी में ही हूँ।
किंतु अपने समान ही समस्त अधिकार दे कर मैं अपने अंशो को धरती पर देश काल परिस्तिथि के अनुरूप भेजता हूँ, धरती व धरती के समस्त जीवों के कल्याण हेतु, उनके मार्गदर्शन हेतु व सही उद्देश बताने व उनकी ओर अग्रसर करने हेतु। 
तत्पश्चात समस्त जीवों के कल्याण व प्रकति की देखरेख हेतु मनुष्य का जन्म हुआ, मनुष्य को मेरे अंशो द्वारा धरती पर केवल प्राणी व जीव जाती का सेवक अर्थात एक ऐसा राजा नियुक्त किया जो इन पर शाशन नही अपितु इनकी सेवा कर सके, निम्न कार्यो को कर जो मेरे अंशों ने बतलाये उन्हें पूर्ण कर अनन्त जीवन को पाये।

किंतु मनुष्य अपनी शक्ति के मद में सब कुछ भूल बैठा है, और खुद को ईश्वर समझ बैठा है किंतु समय समय पर उसको में याद दिलाता रहता हूँ तुम एक इंसान हो सिर्फ इस धरती व जीवो के सेवक न कि मालिक क्योंकि मैं परमेश्वर हूँ।

कल्याण हो








Wednesday 16 May 2018

चंद अल्फ़ाज़ अपने लिए

"उफ कितना मासूम है ये चेहरा
रह रह कर चुराता है दिल ये मेरा
देख कर जिसे आता है प्यार मुझे
रिश्ता है मीठी का खुशी से गहरा"

"खुदा ने महनत से संसार बनाया
खुदा ने रहमत से मेरा यार बनाया
चाहे उसे दिल दिन रात युही बस
धड़कन ने उसे यु मन मे बसाया"

ईश्वर वाणी-254, ईश्वर की व्यवस्था

ईश्वर कहते हैं, "संसार में जितने भी प्राणी जितने भी जीव हैं मनुष्य उनसे अलग है, मैंने सभी जीवों के लिए व्यवस्था बनाई थी वो उस पर सदियों से चल रहे है जैसे-शेर हमेशा शिकार ही करता है, वो चाहकर भी सात्विक नही बन सकता (बड़े होने के बाद), मछली जल में ही रहती है, कुत्ता सदियों से वफादारी निभाता आ रहा है, पक्षी  हमेशा आसमान में उड़ते रहे, किन्तु कुछ जल व भूमि पर भी रहते हैं, सदियों से ये सभी प्राणी इस व्यवस्था पर कायम है, किंतु मनुष्य नही।

मैंने मनुष्य को व्यवस्था के अनुरूप समस्त प्राणियों की रक्षा हेतु भेजा था, जगत का व समस्त जीवों का सेवक बनने हेतु भेजा था, एक राजा का पद उसे दिया था जो अपनी प्रजा का पूर्ण ध्यान रख सके, एक राजा प्रजा का स्वामी नही सेवक होता है किंतु मनुष्य खुद को धरती का और सभी जीवों का स्वामी बन बैठा और मेरी बनाई व्यवस्था को नष्ट करने लगा।

निश्चित ही में मानव को दंड दूँगा और देता भी रहा हूँ किंतु मानव फिर से शक्ति के अभिमान में आ कर मेरी बनाई व्यवस्था को नष्ट करने में लगा है और यही एक कारण है मानव खुद अपने ही विनाश का कारण होगा।

हे मनुष्यों यही कारण है पृथ्वी के इस सबसे बुद्धिमान जीव की एक ही जाती मनुष्य जाति हो कर भी न सभी की भाषा एक है न रीति रिवाज, न रहन सहन और न पहनावा, यहाँ तक कि वो मुझे भी अनेक नाम व रूपो में इंसानी व्यवस्था के अनुरूप बाट कर आपस में लड़ते रहते हैं।

संसार में मनुष्य ही प्राणी ऐसा है जो एक जैसा हो कर भी एक दूसरे से कितना भिन्न है, ये भिन्नता खुद उसी ने बनाई है न कि मैंने, केवल मनुष्य ही है जो मेरी व्यवस्था से अलग खुद को ईश्वर समझ बैठा है और अपनी जाति में भी वहम फैला रहा है, मेरे द्वारा जो कार्य उसे दिया गया उसका गलत दिशा में उपयोग कर स्वार्थ सिद्धि में लगा है, किन्तु अन्य जीव मेरे द्वारा बनाई व्यवस्था पर सदियों से चलते आ रहे हैं और चलते रहेंगे, इस कारण अपनी  ही मनुष्य द्वारा बनाई व्यवस्था के साथ खुद ही अपनी जाति के विनाश का कारण होगा।

कल्याण हो

ईश्वर वाणी-253, काला रंग

ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों यु तो कई बार आकाश देखा होगा, इसकी अनन्त गहराई के विषय मे सोचा होगा, इसी आकाश में इसकी गहराई में ही समस्त ब्रह्मांड समाया हुआ है ये भी तुम्हे पता होगा। किंतु आज तुम्हे बताता हूँ इस ब्रह्मांड के वास्तविक रंग के विषय मे, यु तो तुमने कई रंग बिरंगे झिलमिलाते तारे व ग्रह देखे होंगे जो देखने मे बहुत अच्छे लगते है।

धरती से रात्रि के समय आकाश में देखने पर लगता है जैसे किसी ने अपने घर को सजाने हेतु बिजली की सुंदर लड़िया द्वार पर लगा घर के अंदर की बिजली बुझा वो  चेन से सो गया हो, लेकिन कभी गौर किया  इतनी रोशनी होने पर भी आकाश में अंधकार रूपी काला रंग अधिक है, इतनी रोशनी होने पर भी काले रंग की अधिकता है।
ऐसा क्या है जब कोई दिया या मोमबत्ती जलाई जाती है तो हर जगह तो रोशनी होती पर उसकी नीचे अंधेरा साथ ही एक निश्चित दूरी पर जाने पर भी इनकी रोशनी नही बल्की अंधेरा ही अधिक होता है, ऐसा क्या है धरती पर एक स्थान पर दिन तो दूजे हिस्से में रात होती है, ऐसा क्या है जो सागर की असीम गहराई में भी अंधेरा। होता हूं, जीव की परछाई भी काली क्यों होती है।
उत्तर है संसार का प्रथम रंग काला है, संसार मे ज्ञान, सच्चाई, नेकी, दयाशीलता, प्रेम व भ्रातत्व की भावना, सत्कर्म, ईश्वरीय आदेशो की मानना कर उनके पथ पर चलने वाले कम है किंतु बुराई का अनुसरण कर बुरे कर्म करने वाले अधिक है, किंतु इन थोड़े से अच्छे लोगों के कारण ही संसार आज सुंदर  दिखता है।

यद्धपि ब्रह्मांड के इसी काले रंग से ब्रह्मांड का जन्म हुआ है, इसकी उतपत्ति से पूर्व अंधकार ही व्याप्त था,न कोई दूरी न नज़दीकी, न कोई  धरती न आकाश, न ऊँचाई न नीचाई, किंतु इसी काले रंग से पहले रोशनी का निर्माण हुआ फिर जल का फिर समस्त ब्रह्मांड का, इस प्रकार इस काले रंग को शून्य भी कहा जाता है, शून्य अर्थात कुछ नही पर खुद में पूर्ण बिना इसके कुछ भी सम्भव नही है, और यही एक कारण समस्त भौतिक वस्तुओं के जन्म का तभी जो भौतिक है उसी के साथ ये काला रंग शुरू से जुड़ा है चाहे परछाई बन कर या छाया बन कर, बिना इसके भौतिकता सम्भव नही है, अतः समस्त भौतिकता को जन्म देने वाला ये काला रंग ही एक दिन सभी को अपने मे समा लेगा, फिर सब शून्य हो जाएगा,फिर से यही शुरू होगा, अर्थात काला रंग जीवन का और भौतिकता का प्रतीक है।

यही कार्य है इस सर्वव्यापी काले रंग का,जो मेरी ही आज्ञा से निरन्तर इस कार्य मे लीन है और सदा रहेगा,क्योंकि  में ईश्वर हूँ सभी का स्वामी परमात्मा हूँ।“


कल्याण हो


Saturday 12 May 2018

ईश्वर वाणी-252, संसार की उतपत्ति, मनुष्य का अस्तित्व

ईश्वर कहते हैं,  “हे मनुष्यों यद्धपि मैं ही समस्त संसार का स्वामी हूँ, मेरी ही इच्छा से समस्त ब्रह्मांड व जीवन का जन्म हुआ, मेरी ही इच्छा से जन्म व मृत्यु होती है किन्तु इतने बड़े ब्रह्मांड को व जीवन को उत्पन्न करने हेतु पहले मैंने अपने निम्न अंशों को खुद से उत्पन्न किया जिन्होंने मेरी आज्ञा का पालन करते हुए समस्त ब्रह्मांड व जीवन की उत्पत्ति की।

“एक आदमी था, उसके मन में विचार आया क्यों न में अपना खुद का घर बनाऊं जहाँ न सिर्फ में बल्की मेरी आने वाली पीढ़ी भी सुख चैन से उसमे रह सके। तो पहले उसने एक ज़मीन का टुकड़ा खरीदने की सोची,  उसने ज़मीन बेचने वाले से ज़मीन खरीदी, फिर उसने एक ठेकेदार को ठेका दिया मकान बनाने का, ठेकेदार अपने पाँच मज़दूरों के साथ घर बनाने को तैयार हो गया, लेकिन अब उस आदमी को आवश्यकता थी मकान बनाने हेतु ईंट, पत्थर, मिट्टी, रोड़ी, रेत, व अन्य सामग्री की, इसके लिए वो एक दुकान पर गया जहाँ से निम्न समान तो लिया किंतु समान उस स्थान तक पहुचाने हेतु तीन आदमी उस व्यक्ति को लेने पड़े दुकानदार से ताकि समान उचित स्थान तक पहुच सके।
इस प्रकार उस व्यक्ति का मकान बन कर तैयार हो गया, किंतु कभी कभी ही शायद कोई उन मज़दूरों उस समान वाले दुकानदार व उसके भेजे उन आदमियों व ठेकेदार व उस जमीन वाले का नाम लेता हो जिससे उस आदमी ने ज़मीन ली थी, हालांकि इनमे से एक के अभाव के बिना उस आदमी के घर का बनना नामुमकिन था, किंतु घर बनने के बाद लोग केवल यही कहते सुने गए कि तुमने बहुत सुंदर घर बनाया है, किंतु बाकी के सहयोग को सबने भुला दिया।“
भाव ये है इस समस्त ब्रमांड व जीवन को जन्म देने की मेरी ही प्रथम इच्छा थी, अर्थात इस ब्रह्माण्ड रूपी घर को बनाने की प्रथम इच्छा मेरी थी, मैंने ही सर्वप्रथम अपने एक अंश को उतपन्न किया जिसने समस्त ब्रमांड के लिए स्थान दिया, फिर इसको बनाने हेतु मैंने अपने ही एक अंश को जन्म दिया जिसने अपने से देवता, दैत्य, गंधर्व, किन्नर व मानव व समस्त जीव जाति की रचना की, फिर ब्रह्मांड रूपी घर के लिए निम्न सामग्री हेतु अपने ही एक अंश को जन्म दिया जिसने अपने तीन नौकर बनाये जो इस प्रकार है 1-जीवन, 2-मृत्यु, 3-नवजीवन, अब इन सबकी सहायता से समस्त ब्राह्मण व जीवन व मृत्यु व नवजीवन का निर्माण हुआ।

यद्धपि देश काल परिस्थिति के अनुरूप मनुष्य चाहे उस ज़मीदार की स्तुति करे जिससे मैंने समस्त ब्रह्मांड हेतु स्थान लिया था, अथवा उस ठेकेदार को मानव पूजे जिसने निम्नो को जन्म दिया या उस समान वाले को जिसने अपने तीन मज़दूर भेजे। ये सब मुझसे ही निकले और मुझसे ही जुड़े हैं, मनुष्य चाहे मुझ निराकार ईश को माने जो वास्तव में इस पूरे ब्रह्मांड का व समस्त जीवों का स्वामी है अथवा उनकी आराधना करें जिन्होंने अपना अपना योगदान किया इस विशाल घर को बनाने में, सभी मुझे प्रिये हैं किंतु जो जाती धर्म के नाम पर अराजकता फैला रहे हैं, खुद को और खुद के द्वारा निर्मित जाती धर्म को श्रेष्ठ बता रहे हैं वो पूर्ण अज्ञानी है।

हे मनुष्यों ये न भूलो समस्त मानव जाति का जन्म महज़ कुछ हज़ार वर्ष पहले का नही अपितु लाखो करोड़ो वर्ष पहले का है, यद्धपि कुछ अज्ञानी मानव सभ्यता को मात्र 4000 वर्ष पुरानी ही बताते हैं तो उन्हें आज बताता हूँ मनुष्य इतना बुद्धिमान नही था जो मात्र 4000 वर्षो में खुद को आज जैसा बना सके, यहाँ 4000 वर्ष का अभिप्राय 4 युग से है, पहला सतयुग, दूसरा त्रेता युग, तीसरा द्वापर युग और चौथा कलियुग। प्रत्येक युग के बदलने का समय तुम्हारे लिए लाखों हज़ारो या करोड़ो साल हो सकते हैं किंतु मेरे लिए पलक झपकने के समान है। इसलिए जो अज्ञानी मानव सभ्यता को मात्र हज़ारो वर्ष की मानते हैं उन्हें ये अवश्य जानना चाहिए, साथ ही में बता दु मनुष्य जाति व अन्य कई जीव जाती खत्म हो गयी उस दौर में जहाँ जब महादीप एक दूसरे से अलग हुए तो इस बीच कही महासागर तो कही विशाल पहाड़ तो कही विशाल रेगिस्तान का जन्म हुआ, किन्तु इसके साथ कई जीवन का अंत भी हुआ, किन्तु फिर मनुष्य जाति का उस नए स्थान पर जन्म व नई सभ्यता व संस्कृति का उदय हुआ, चुकी मनुष्य अपनी पिछली महान सभ्यता को भुला चुका था इसलिए जो अब उसे याद रहा वही सत्य वो समझ वो खुद को आज महज़ 4000 साल पुराना कहता है, किंतु वो पिछले कई करोड़ो लाखो वर्षो पुराने मानव अवशेषों को जो उसे मिलते रहे हैं ठुकराता रहा है, सत्य से मुख फेरता रहा है। किंतु सत्य तो यही है मनुष्य हज़ारो नही अपितु करोड़ो वर्ष पुराना जीव है बस समय के अनुरूप अवस्य कुछ बदलाव हुआ है और आगे भी होता रहेगा।“

कल्याण हो




Saturday 5 May 2018

ईश्वर वाणी-251, शून्य का महत्व

https://www.youtube.com/watch?v=g0rFiqlOA7Q&t=1s

ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों जैसे आकाश में अनेक खगोलीय घटना होती हैं, कई तारे, ग्रह नक्षत्र टूट कर बिखर जाते है किंतु पुनः कई वर्षों के बाद उनका पुनः निर्माण होता है। अर्थात वो टूट कर एक शून्य में परिवर्तित हो जाते हैं और फिर उसी शून्य से उनका पुनः निर्माण होता है।

हे मनुष्यो इसी प्रकार जब तुम्हारी आत्मा मोक्ष रूपी अनन्त जीवन पाती है तब वोभी इसी प्रकार शून्य में मिलकर मुझसे मिल जाती है, और मुझसे मिलकर मोक्ष रूपी अनन्त जीवन को प्राप्त करती है क्योंकि मैं ईश्वर हूँ।

हे मनुष्यों ये न भूलो कि संसार की उत्पत्ति समस्त जीवों की उत्पत्ति का आधार एक शून्य ही है और एक दिन समस्त ब्रह्मांड व समस्त जीव मात्र उसी शून्य में ही समा जाएंगे। शून्य अर्थात कुछ नही किन्तु इस कुछ नही में ही सबकुछ है, जिसने समस्त जीवों की उत्पत्ति समस्त ब्रमांड की उत्पत्ति की।

जैसे तुम्हारी देह का क्या अस्तित्व था तुम्हारे जन्म से पूर्व अथवा क्या तुम अपनी आत्मा पूर्व अस्तित्व को जानते हो, क्या जानते हो देह त्यागने के बाद तुम्हारी आत्मा कहाँ जाएगी, तुम्हारी देह को जलाते अथवा दफनाने के बाद क्या होगा। तो इसका उत्तर ये है जैसा तुम्हारा जन्म तुम्हारी आत्मा का जन्म शून्य अर्थात कुछ नही से हुआ उसी प्रकार तुम्हारा अंत भी उसी शून्य अर्थात कुछ नही में होता है तभी तुम्हारे अंतिम संसार के बाद तुम्हारा अस्तित्व पूरी तरह मिट जाता है, केवल व्यक्ति तुम्हारे कर्म ही याद रख पाते हैं।

हे मनुष्यों तुम जानना चाहोगे की शून्य है क्या?? शून्य अर्थात वो प्रकिया जो जहाँ से शुरू होती है अंत मे वही मिल जाती है, इसका कोई छोर या शिरा नही होता, जैसे तुम एक कागज पर शून्य लिखते हो अब इस लिखे हुए शून्य का तुम कोई छोर या शिरा ढूंढो,क्या मिला कोई शिरा या छोर तुम्हें, यदि तुम इस लिखे शून्य पर पेंसिल फिर चलाते हो तो जिस स्थान से घुमाना शुरू करोगे वही पर आ कर रुकोगे तब जा कर ये शब्द पूरा होगा। इसी प्रकार शून्य ‘कुछ नही’ हो कर भी सब कुछ है खुद में पूर्ण है।

जैसे 1 के पीछे 0 लगाने पर 10 बनता है, 2 के पीछे लगाने पर 20 बनता है, किंतु वही इसे यदि 1 से पहले लगा दे 01 तो ये एक ही कहलाता है, भाव ये है शून्य अर्थात कुछ नही से 1 का जन्म तो हुआ किन्तु उसका अंत नही हुआ और इस प्रकार 09 तक की संख्या उस एक कि पीढ़ी हुई लेकिन इसके आगे उसे शून्य की सहायता लेनी होगी, ताकि आगे की पीढ़ी बड़ सके इसके लिए उस 1 को शून्य में मिल कर 10 बनना होगा।

भाव ये है यहाँ जीव वो ‘1’ है, जो उस शून्य से बने हैं, इस प्रकार वो बिना शून्य में अर्थात बिना मिटे 9 अंक अर्थात पीढ़ी का सुख तो प्राप्त कर सकता है किन्तु आगे अपनी पीढ़ी बढ़ाने हेतु उस एक को 0 का सहारा ले कर 10 बनना ही होगा तभी वो 11 बन सकता है अर्थात पहली पीढ़ी को शून्य में मिलना ही होता है तभी आगे की पीढ़ी पड़ती जाती है जैसे तुम्हारे माता-पिता, दादा-दादी, उनके माता-पिता, उनके दादा-दादी, उनके माता-पिता व उनके दादा दादी। इस प्रकार तुम्हारी पीढ़ी युही चलती आ रही है और चलती रहेगी, ये इस शून्य के साथ युही चलता रहता है और रहेगा।

जैसे समस्त ग्रह नक्षत्रों का आकार अंडाकार है, और अंडे का सही आकार शून्य है, दिए कि लौ का आकार भी शून्य जैसा है, एक योगी की योग मुद्रा भी शून्य के समान है, उसी प्रकार आत्मा का स्वरूप भी शून्य के समान है, और मैं परमेश्वर एक विशाल शून्य हूँ जिसमे समस्त जीव आत्मा, समस्त ब्रमांड समाया रहता है व मेरी ही इच्छा से निरन्तर चलता है, मेरा कोई रूप नही रंग नही आकर नही प्रकार नही, मैं तो शून्य के समान ही पारदर्शी हूँ हवा के समान हर स्थान पर हू किँतु जैसे हवा को तुम केवल मेहसूस करते हो किंतु देख नही सकते वैसे ही मुझे आध्यात्म की शक्ति से महसूस तो करते हो पर देख नही सकते। लेकिन जैसे पुष्प के हिलने, पेड़ पौधों के हिलने, आँधी तूफान आदि के माध्यम से तुम हवा का अनुमान लगाते हो औऱ सोचते हो यही हवा का रूप व रंग है, वैसे ही मैं अपने अंश को देश काल परिस्थिति के अनुरूप धरती पर भेजता हूँ जिन्हें तुम भगवान कहते हो, वो मुझसे निकल कर मेरा ही एक रूप है और अंत मे मुझमे ही समा जाते है, में एक अनन्त विशाल सागर हूँ और मेरे अंश व मोक्ष प्राप्त समस्त जीव आत्मा मुझमे ही समा जाती  है, मैं वो विशाल शून्य हूँ, जो कुछ नही ही कर भी सब कुछ है,  मेरे बिना कुछ भी सम्भव नही, मैं ही आदि और अनन्त हूँ, में ईश्वर हूँ।“


कल्याण हो

https://www.youtube.com/watch?v=g0rFiqlOA7Q&t=1s

Saturday 28 April 2018

कविता-होती थी सुबह तुम्हारे साथ

"कभी होती थी सुबह तुम्हारे साथ
शाम का भी न होता था अहसास
आज जाने किस जहाँ में  है 'मीठी'
पर लगता है 'खुशी' के तुमहो पास

‘खुशी’ के ‘मीठे’ पल जिये हम साथ
दर्द में भी थामे रहे एक दूजे का हाथ
फिर जिंदगी ने सितम एक दिन ढाया
हारी ज़िन्दगी और मौत ने बढ़ाया हाथ

रोती है ‘मीठी’ करके ‘खुशी’ को याद
पल पल करति ‘मीठी’ ‘खुशी’ की बात
क्यों ज़िंदगीने फिर धोखा दिया हमे ऐसे
नही दी खुदा ने उमर भर की मुलाकात

कैसे जिये ज़िन्दगी ‘मीठी’ ‘खुशी’ आज
किसको कैसे समझाये अपने  ये ज़ज़्बात
रोती अश्क बहाती 'मीठी' और 'खुशी'
मौत के बाद भी होता तुम्हारा अहसास


कभी होती थी सुबह तुम्हारे साथ
शाम का भी न होता था अहसास
आज जाने किस जहाँ में  है 'मीठी' 
पर लगता है 'खुशी' के तुमहो पास-२"





कविता-ज़िन्दगी की तलाश में चलता रहा हूँ में

"मंज़िल की तलाश में भटकता रहा हूँ मैं
ज़िन्दगी की तलाश में चलता रहा हूँ में

मिली पग पग ठोकरे मुझे इस राह में
बस यहाँ खुद से ही तो हारता रहा हूँ मैं

खुद को हमसफर कहने वाले मिले बहुत
अपना समझ उन्ही से ठुकराता रहा हूँ मैं

रोती है आज ज़िन्दगी मेरे गमो पर फिर
कैसे खुद पर ही आज मुस्कुराता रहा हूँ मैं

बिखरे मोती माला के फिर पिरोने में लगा
 ख्वाब खुदको ज़िन्दगी के दिखाता रहा हूँ मै

मिल सकती है मंज़िल तुझे ज़िन्दगी सुन
बस हर बार ये कह खुदको बहलाता रहा हूँ मै

मंज़िल की तलाश में भटकता रहा हूँ मैं
ज़िन्दगी की तलाश में चलता रहा हूँ में-२"



Friday 27 April 2018

कविता-दस्तक दी है

आज इस दिलने फिर किसी को दस्तक दी है
धड़कन ने भी फिर इश्क की आहट की है

सूनी थी ज़िन्दगी जो अब से पहले मेरी
देखो फिर से इसने ऐसी करवट ली है

भूल चुका क्या मन इश्क में मिली बेवफाई
जो फिर से ज़िन्दगी में ऐसी हरकत की है

कहा थे इसे न करीब जाना किसी के तुम
क्यों सांसो से फिर मोहब्बत की बात की है

'खुशी' का ख्वाब दिखा गम दे गए लोग मुझे
'मीठी' ने क्यों फिर आखिर ये शरारत की है

रोई दिन रात 'खुशी' की तलाश में 'मीठी'
करके आशिकी तूने अश्को की बरसात की है

आज इस दिलने फिर किसी को दस्तक दी है
धड़कन ने भी फिर इश्क की आहट की है-२"

कॉपीराइट@अर्चना मिश्रा

कविता-ज़िन्दगी की राहों में

“ज़िन्दगी की राहों में रोज़ ठोकर खाते गए
मिले जीतने भी गम हम यू मुस्कुराते गए

मिले तोहफे वफ़ा के बदले बेवफाई के हमे
फिर भी मोहब्बत में वफ़ा हम निभाते गए

रोज टूट कर बिखरते थे हम तेरी आशिकी में
अश्क छिपा बस खुदको हम यू समेटते गए

तूने तो तोहफे दिए मुझे हर पल तन्हाई के
उन तन्हाइयो में भी तुम्हे हम यू पुकारते गए

ज़िन्दगी की राहों में रोज़ ठोकर खाते गए
मिले जीतने भी गम हम यू मुस्कुराते गए-2"

Thursday 26 April 2018

ईश्वर वाणी-250, गंगा नदी में स्नान व येशु नाम

ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों जैसे पवित्र गंगा जल में स्नान करने से पापी व्यक्ति पाप मुक्त हो जाता है, गंगा जल की धारा से उसके समस्त पाप धुल जाते है और पापी से पापी व्यक्ति भी पाप मुक्त हो कर स्वर्ग में स्थान पाने का अधिकारी बनता है, जैसे गंगा नदी संसार के सभी पापी व्यक्तियों के पाप का नाश कर उन्हें पाप मुक्त कराती है, उनके समस्त पाप अपनी धारा में समेट लेती है, और पापी मनुष्य पाप मुक्त हो कर स्वर्ग में स्थान पाता है,

वैसे ही येशु नाम तुम्हें पाप मुक्त करता है, यद्धपि गंगा नदी संसार मे हर स्थान पर नही है किंतु येशु  हर स्थान पर है, जैसे गंगा नदी का धरती पर आना लोगो को उनके पापों से मुक्ति दिलाना उद्देश्य था और है वैसे ही संसार के समस्त पापी मनुष्यों के पाप अपने उपर ले कर येशु ने निम्न पीड़ा सही, जैसे मनुष्यों के पाप से गंगा नदी का जल रंग बदल चुका है वैस ही  प्रभु येशु का शरीर भी लोंगो के पाप अपने ऊपर ले कर लहू लुहान हुआ ताकि मनुष्य पाप मुक्त हो कर स्वर्ग में स्थान पाये।

हे मनुष्यों मैं ही सागरो में महा सागर आत्माओ में परमात्मा जन्मो में अजन्मा  हूँ मैं ईश्वर हूँ, मैं ही तुम्हारे पापा अपने ऊपर ले कर उन्हें धोने वाली पवित्र गंगा नदी हूँ  और में ही समस्त संसार के पाप अपने ऊपर ले कर खुद को बलिदान करने वाला येशु हूँ क्योंकि ये सब मुझसे ही निकले हैं, मेरा ही एक अंश है, मेरी ही इच्छा और आज्ञा हैं इसलिए ये में ही हूँ मैं ईश्वर हूँ।

किंतु मनुष्यों ये मत समझना यदि गंगा में स्नान कर लिया या येशु का नाम जप लिया तो पाप धुल गए फिर चाहे जितने पाप और क्यों न कर ले बस गंगा नदी में स्नान कर ले या येशु नाम जप ले मुक्त हो जाएंगे, किन्तु ऐसा नही है, तुम्हारे स्नान व नाम के साथ तुम्हारे मन की शुद्धता व बुरे कर्मो के लिए प्रायश्चित की भावना बुरे कर्मो के लिए खुद पर आत्म ग्लानि व फिरसे ऐसा न करने की भावना व जीवन  व जीवों के कल्याण हेतु पवित्र भावना व सत्कर्म ही तुम्हारे पापा कम कर सकते हैं साथ ही जिन जीवों के साथ तुमने बुरा किया है उनकि हृदय से की तुम्हे क्षमा ही तुम्हें तुम्हारे अगले जन्म का निर्धारण कर स्वर्ग व नरक का स्थान तय करती है।

इसलिये पवित्र नदी में स्नान व पवित्र ईश्वरीय नाम तुम्हे ये ही सीख देता है कि पिछले बुरे कर्म का त्याग कर सत्मार्ग पर चल मेरे प्रिये बनो में तुम्हे अनन्त जीवन दूँगा"।

कल्याण हो

Wednesday 25 April 2018

ईश्वर वाणी-249, शैतान का जन्म

ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यो यद्धपि तुमने शैतान का नाम बहुत बार सुना होगा, शैतान अर्थात बुराई अर्थात गंदगी। तुम्हारे अंदर की बुराई ही शैतान है न कि निम्न धार्मिक मान्यता के अनुसार मुझे मानना या न मानना या निम्न धार्मिकता को मानने वाले।
हे मनुष्यों यद्धपि ये बुराई तुम्हारे कर्मो से उतपन्न होती है किँतु आज तुम्हें एक गूढ़ रहश्य की बात बताता हूँ, जैसे जीव का जन्म गंदगी में होता है, अर्थात चाहे कोई मनुष्य हो अथवा कोई पक्षी अथवा भूमि पर रेंगने या चलने वाले प्राणी जिनका भी जन्म होता है वो स्थान दूसित व गन्दा हो ही जाता है, वैसे ही जब समस्त ब्रह्मांड का जन्म हुआ उसी गन्दगी से शैतान अर्थात बुराई अर्थात अच्छाई की उलट बुराई का जन्म हुआ।

हे मनुष्यों मैं पहले ही बता चुका हूँ समस्त पृथ्वी समस्त ब्रमांड का प्रतीक है व जीव जंतु समस्त ग्रह नक्षत्रों का स्वरूप समान है, इस प्रकार तुम खुद ही समझ सकते हो जब तुम सब का जन्म गन्दी फैलाते हुए हुआ तो समस्त ब्रमांड का जन्म होते समय कितनी गन्दी हुई होगी, और ये ही गंदगी शैतान है।

हे मनुष्यों इसी प्रकार तुम्हारी आत्मा के जन्म के साथ ही तुम्हारी देह के कर्म रूपी अवगुण है जो शैतान का प्रतीक है।

हे मनुष्यों इस प्रकार संसार मे शैतान अर्थात बुराई अर्थात गन्दगी का जन्म हुआ किंतु साथ में अच्छाई का भी उदय हुआ, इसलिए अपने मन से समस्त बुराई को त्याग भलाई और नेक कर्मो के मार्ग पे चल मेरे प्रिये बनो में तुम्हें शांति व अनन्त जीवन दूँगा।"

कल्याण हो

ईश्वर वाणी-248, एकेशरवाद की भावना

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि मेरी आज्ञा से ही मेरे अंश मुझसे निकल कर देश काल परिस्थिति के अनुरूप अवतरित हुए व मानव व प्राणी जाती के कल्याण हेतु कार्य कर मानव को भी इसके लिए प्रेरित किया, किन्तु समय के अनुरूप जैसे जैसे मानव जाति की संख्या अधिक होने लगी, वो धीरे धीरे अपने पुराने समुदाय से दूर जा कर रहने लगा। उसने अपनी अपनी सहूलियत के और आवश्यकता के अनुरूप मुझे अनेक नाम दे दिए व मन ही मन मेरी अनेक रूप में छवि बनाता रहा, और उसकी उसी निष्ठा से प्रसन्न हो कर मैंने अपने अंशो को वहाँ अवतरित होने का आदेश दिया जहाँ उनकी अति आवश्यकता थी।

किंतु मानव जाति ने समय के अनुरूप मुझे भी अनेक रूपो में बाट कर आपस मे लड़ने लगे व न सिर्फ एक दूसरे को अपितु एक दूसरे की धार्मिक पुस्तक व आराधनालय को भी हानिपहुँचाने लगे, ऐसे में आवश्यकता हुई निराकार व  एकेशरवाद की, एकहि धार्मिक पुस्तक की जिस पर सभी यकीन कर सके व समान सम्मान उसे दे सके ताकि खुद को और खुद के ईश्वर व उनकी धार्मिक पुस्तक को श्रेष्ट मानने की धारणा का अंत हो कर समाज मे एकता व अखण्डता कायम हो सके।
किन्तु समय के साथ मनुष्य ने यहाँ भी भेद भाव ढूंढ ही लिया साथ ही जो एकेशरवाद में यकीन नही करता उसको नीच व दोयम दर्जा दिया गया। जबकि एकेशरवाद की मूल भावना व उद्देश्य उसने भुला फिर से मानव को मानव का दुश्मन बता वही कर्म शुरू कर दिए जो पहले करता था आराधनालय को हानि, धार्मिक पुस्तक को हानि, मानव जाती को हानि।

मानव भूल गया एकेशरवाद के मूल सिद्धांत, यदि मानव को एकेशरवाद की प्रेरणा दे कर प्रेरित नही किया जाता तो आज शायद मानव सभ्यता ही खत्म हो जाती, किंतु एकेशरवाद की आड़ में असामाजिक तत्व जो मानवता को हानि पहुचा रहे है और उसे धर्म के आधार पर उचित बता रहे है तो उन्हें में बताता  हूँ वो शैतान से प्रेरित है, वो मेरे नही शैतान के अनुयायी है, तथा उनसे दूरी बना कर मेरी दी गयी मानवता की शिक्षा का अनुसरण करो क्योंकी मै ईश्वर हूँ।"

कल्याण हो