Saturday 28 April 2018

कविता-होती थी सुबह तुम्हारे साथ

"कभी होती थी सुबह तुम्हारे साथ
शाम का भी न होता था अहसास
आज जाने किस जहाँ में  है 'मीठी'
पर लगता है 'खुशी' के तुमहो पास

‘खुशी’ के ‘मीठे’ पल जिये हम साथ
दर्द में भी थामे रहे एक दूजे का हाथ
फिर जिंदगी ने सितम एक दिन ढाया
हारी ज़िन्दगी और मौत ने बढ़ाया हाथ

रोती है ‘मीठी’ करके ‘खुशी’ को याद
पल पल करति ‘मीठी’ ‘खुशी’ की बात
क्यों ज़िंदगीने फिर धोखा दिया हमे ऐसे
नही दी खुदा ने उमर भर की मुलाकात

कैसे जिये ज़िन्दगी ‘मीठी’ ‘खुशी’ आज
किसको कैसे समझाये अपने  ये ज़ज़्बात
रोती अश्क बहाती 'मीठी' और 'खुशी'
मौत के बाद भी होता तुम्हारा अहसास


कभी होती थी सुबह तुम्हारे साथ
शाम का भी न होता था अहसास
आज जाने किस जहाँ में  है 'मीठी' 
पर लगता है 'खुशी' के तुमहो पास-२"





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