Saturday 30 November 2019

फिर से अजनबी बन जाये हम-कविता

"ए काश फिर से अजनबी बन, जाये हम
वो वादे इरादे भी अब भूल ,जाये हम
आ मिटा दे तेरी हर याद , दिलसे अब
मोहब्बत की राहों को भूल जाये हम

न तुम याद आओ न तुम्हे याद, आये हम
न तुम रुलाओ और न तुम्हे ,सताये हम
भुला दे वो हसीं राते जो गुज़ारी, संग तेरे
न हमे तुम दिखो न तुम्हे नज़र आये हम

बन अजनबी राहो से यू गुज़र ,जाय हम
आ फिर ऐसे यू बेफिक्र से बन, जाये हम
न रोको तुम मुझे इन राहो में, कभी फिर
ए काश फिर से अजनबी बन जाये हम"

                   🍸मीठी-खुशी🍸

हमें आग से डर लगता है-कविता

"हमें आग से डर लगता है ए ज़िंदगी
पर तू हमें आग से ही,  खिलाती रही
जितना बचते रहे इस आग,   से हम
उतना ही क्यों तू हमे झुलसाती रही

हमे डर लगता है इस,  तपिश से 
पर तू हमे हर बार ,  जलाती रही
कोशिश की खुद को ,  बचाने की
पर क्यो यूह तू हमे ,  सताती रही

नही चाहिए और ये आग मुझे, ए ज़िंदगी
ज़ख़्म दे हर दफा क्यों तू मुझे, रुलाती रही
कब तक अश्क छिपा मुस्कुराती, रहे 'मीठी'
हर मर्तबा 'खुशी' मुझसे क्यों तू ,चुराती रही"

Tuesday 19 November 2019

"जब खूबसूरती ही बनी शत्रु-कहानी"

"आम्रपाली अपने समय की दुनिया की सबसे खूबसूरत बालिका थी, जो भी उसको देखता तो बस देखता रह जाता।

समय के साथ वो बड़ी हो गयी, शायद उस समय की सबसे खूबसूरत युवती थी वो, हर कोई उससे विवाह करना चाहता था, उसके माता-पिता भी उसके लिए एक योग्य वर तलाशना चाहते थे, किंतु उन्होंने देखा उसको प्राप्त करने की होड़ सी लगी पड़ी है क्या राजा क्या राजकुमार क्या व्यापारी व क्या रंक।

ऐसे में आम्रपाली के माता-पिता सोचने लगे कि किसी एक से विवाह अगर अपनी पुत्री का उन्होंने किया तो समाज मे अराजकता फैल सकती है, युद्ध व महायुद्ध हो सकते हैं, लेकिन फिर क्या करे विवाह तो पुत्री का करना ही है।

अपनी इसी चिंता में डूबे आम्रपाली के माता-पिता ने सभा रखवाई ताकि ये निर्णय हो सके कि आम्रपाली का विवाह बिना किसी परेशानी व अराजकता सम्पन्न हो सके।

सुबह से शाम हो गयी लेकिन सभा मे कोई सही निर्णय न हो पाया, लेकिन फिर नगर, समाज व विश्व समुदाय को ध्यान में रख कर ये फैसला हुआ कि आम्रपाली को 'नगर वधु(वैश्या)' बना दिया जाए जिससे हर कोई उसके साथ जब चाहे समय व्यतीत कर सके,इससे नगर व समाज मे अराजकता भी नही फैलेगी।


इस निर्णय से आम्रपाली के माता पिता को बहुत दुःख हुआ लेकिन सभा के निर्णय के खिलाफ वो नही जा सकते थे, उधर जब ये बात आम्रपाली को पता चली की उसकी खूबसूरती के कारण उसे 'नगर वधु' बना दिया गया है, वो बहुत रोई पर वोभी क्या कर सकती थी।

इस प्रकार आम्रपाली की खूबसूरती ही उसकी शत्रु बनी जिसने उसे 'नगर वधु' बनने का दंश झेला।

Monday 18 November 2019

Beautiful story

"एक बार बोद्ध भिक्षुओं का समूह एक नगर को गया,चूँकि बारिश का मौसम शुरू होने वाला था इसलिए भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों से कहा था कि नगर में जा कर ये समय किसी के घर आश्रय ले कर बिताओ।
बोद्ध भिक्षुओ का ये दल 'आम्रपाली' जो उस समय की सबसे खूबसूरत 'नगर वधु' हुआ करती थी उसके महल में भी पहुच गया, उसने दिल खोल कर उन्हें दान दक्षिना दी, किँतु उनमे से एक भिक्षु को सबसे ज्यादा पसंद करने लगी और बारिश के मौसम में अपने यहाँ ही रहने का अनुरोध करने लगी, ये देख कर अन्य भिक्षु छिड़ गए और वहाँ से चले गए व भगवान बुद्ध के पास जा कर बोले "वो अब नगर वधु के पास रहेगा, वो स्त्री अपने रूप के जाल में अक्सर लोगो को फसा लेती है, एक भिक्षु का क्या एक नगर वधु के यहाँ रुकना उचित है",
भगवान बुद्ध बोले-"पहले उसे यहाँ आने तो दो फिर बताता हूँ",
कुछ देर बाद वो भिक्षु भी वहाँ आ गया और बोला-"प्रभु आपने ही कहा था बारिश का मौसम शुरू होने वाला है इसलिए अपने लिए नगर में किसी के घर आश्रय ढूंढ लो, मुझे वहाँ की सबसे खूबसूरत नगर वधु ने अपने महल में रुकने का निमंत्रण दिया है, बताये क्या मुझे वहाँ रुकना चाहिए?",
भगवान बुद्ध बोले-"तुम्हे क्या लगता है?"
भिक्षु बोला-"जैसा आप कहे"

भगवान बुद्ध बोले-"जाओ और उसके महल में ये बारिश के 4 महीने गुज़ारो",
 आज्ञा पा कर वो शिष्य वहाँ से उस नगर वधु के महल की तरफ चल देता है, जबकि अन्य बोद्ध भिक्षु भगवान बुद्ध के इस निर्णय से नाराज़ होते हैं।

इन चार महीनों में 'आम्रपाली' जो नगर की सबसे खूबसूरत नगर वधु थी, अपनी सुंदरता पर इतना घमण्ड था, सोचती थी किसी भी पुरुष को अपनी तरफ वो पल में खींच सकती है, उसने उस शिष्य पर भी खूब प्रेम रस बरसाए किंतु वो उसे अपनी तरफ आकर्षित करने में असफल रही।

हार कर जब ये 4 माह पूरे हुए तो उस बोद्ध भिक्षु के चरणों मे गिर गयी और अपने व्यवहार के लिए माफी मांफी।
इसके साथ ही उस बोध भिक्षु के साथ उस स्थान पर चली आयी जहां भगवान बुद्ध रहते थे, आम्रपाली ने हाथ जोड़ कर सारा किस्सा कह सुनाया साथ ही भगवान बुद्ध की श्रेष्ठ शिष्याओं में उनकी गिनती हुई भविष्य में।

नोट-इस कहानी से यही सीख मिलती है अगर खुद पर नियंत्रण हो तो बड़े से बड़ा आकर्षण भी मन्ज़िल से हमे डिगा नही सकता, यदि हम सही है तो सामने वाला बुरा इंसान भी सुधर सकता है,
हमेशा कीचड़ में खिले कमल के समान रहना चाहिए, जो कीचड़ में खिलने के बाद भी खुद को पवित्र रखता है और ईश्वर के चरणों मे अर्पित हो कर अपनी शोभा बढ़ाता है।

"हे ईश्वर हमे हर उस चीज़ से दूर रखना जो आपसे हमे दूर करती है"..

Love you Dear Lord...

Sunday 17 November 2019

मेरे दिलकी बात

'मीठी' तो एक कली थी
आस पास दोस्त नाम के कांटे कब उग आए पता ही नही चला,

अक्सर बचाते थे अगर कोई हाथ तोड़ने के लिए आगे बढ़ता,

लेकिन वक्त के साथ वो काँटे झर कर कहीं गिर गए और फूल बन कर 'मीठी' भी बाग में खिल गयी,

फिर बहुतेरे हाथ 'खुशी' की बात कह 'मीठी' तेरी तरफ बढ़ने लगे,

पर गमले में सजाने के लिए नही बल्कि तोड़ कर दिल बहला पैरो तले कुचलने के लिए,

किसी की किस्मत अच्छी थी जिसने इस फूल को तोड़ा और दिल बहला कर पैरो तले कुचल चला गया,

उसके बाद बहुतो ने भी कोशिश की इस फूल को टहनी से तोड़ कुचल देने की,

पर शायद ये फूल अब टहनी से मज़बूती से बंध चुका है,

बढ़ते तो आज भी बहुत हाथ है तोड़ने के लिए इस फूल को लेकिन अब टूटता नही ये आसानी से,
पता है एक दिन टहनी से गिर कर ये मर जायेगा,
पर गम नही, क्योंकि दर्द तब होता है जब कोई ज़िस्म को लाश समझ कुचल कर चले जाते हैं,

भले गमले में सजने के लिए 'मीठी' न बनी हो,
पर टहनी पर ही रह कर यहीं मर जायगी
 लेकिन खुशबू से खेलने वालों के हाथ न आएगी,

वक्त ने ऐसा बना दिया,
 'मीठी' ने भी ख्वाब देखे थे गमले में सज कर किसी का घर महकाने के
पर वक्त ने तन्हाई में भी खुश रहना सिखा दिया।।❤🙏🏻

नोट-ये कोई कविता नही है बस दिलकी आवाज़ है, कृपया इसे साहित्य की भाषा से न जोड़े🙏🏻

Saturday 16 November 2019

कविता-'खुशी' की चाहत में तन्हाई हमे मिली है ज़िन्दगी चाही थी"

'खुशी'  की चाहत में तन्हाई  हमे मिली है
ज़िन्दगी चाही थी  पर  मौत हमे मिली है

'मीठी' बातें बना कर दिलमे आते है लोग
पग-पग उन्ही से बस रुस्वाई हमे मिली है

रोते थे दिन-रात जो 'खुशी' की तलाश में
हर किसीसे दर्द की सौग़ात हमे मिली है

ना चाहा बस वफ़ा के सिवा किसी से कुछ
मंज़िल हर किसी की बेवफाई हमे मिली है

किया जिसने वादा साथ निभाने का 'मीठी'
ठोकर देखो उन्ही से बेबात हमे मिली है

सोचा था तुम्हे भुला देंगे हम भी एक दिन 
पर शहर में बिछी तेरी बिसात हमे मिली है

चलते हैं अकेले इन राहो में ग़मो को छिपा 
दिए तेरे इन ज़ख़्मो से न रिहाई हमे मिली है

मिलते हैं हर मोड़ पर साथी तुम जैसे ही 
आखिर इनमे तेरी ही परछाई हमे मिली है

खुशी'  की चाहत में तन्हाई  हमे मिली है
ज़िन्दगी चाही थी  पर  मौत हमें मिली है-२"

Friday 15 November 2019

कविता-ढूंढने चले थे

" फिर  वही भूल करने चले थे

धुंए  में  ज़िन्दगी ढूंढने चले थे


हकीकत क्या है जानते हैं हम

अंधेरे में रोशनी करने चले थे


है बिखरी पड़ी रुसवाई यहाँ

बेवफा से वफ़ा करने चले थे


दिए धोखे नसीब ने 'मीठी'

'खुशी' की चाहत करने चले थे


है तन्हा कितने इस महफ़िल में

इश्क की तलाश करने चले थे


फिर  वही भूल  करने चले थे

धुंए  में ज़िन्दगी ढूं ढने चले थे-२"


🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Tuesday 12 November 2019

Something different...Horror poetry ..

क्यों फिर से ये बेचेनी होने लगी है

क्यो ये धड़कन फिर बढ़ने लगी है


शायद वो है आस पास मेरे  कहि

चुड़ैलों की आवाज़ फिर आने लगी है


होने लगी सुगबुगाहट नये शिकार की

चुड़ैलों के घर ये बात होने लगी है


फिर बिछाये बिसात शिकार के लिए

इंसानी खून की प्यास बढ़ने लगी है


बनाती नित्य नई कहानी फाँसने शिकार

लोगों से नई कहानी ये गढ़ने लगी है


करती शिकार किसी के 'बेटे-भाई' का

मारकर निर्दोषो को ये खुश होने लगी है


यारों बढ़ने लगी आबादी अब इनकी भी

क्योंकि अब ये हमारे बीच रहने लगी है


क्यों फिर से ये बेचेनी होने लगी है

क्यो ये धड़कन फिर बढ़ने लगी है-२"



So dedicate to all chudail/bhootni, dayan, pishachan.....


Kyonki suna hai fir se delhi me hi ek naya shikaar wo khojne lagi hai...

☠💀☠💀☠💀☠💀☠💀

Monday 11 November 2019

2 अल्फ़ाज़



"ये जरूरी तो नही जो रबने सब को दिया हमें भी दे
हम तकदीर के मारे है हमे तो रुसवाईयाँ मिलती है"

कौन अपना है-कविता

"दुनिया की महफ़िल में कौन अपना है

जो कहते हैं तुम्हरे है वो तो एक सपना है

साथ तो कुछ दूर तक ही देते हैं लोग यहां

झूठी है जिंदगी मौत से ही वास्ता रखना है


झूठ की दुनिया मे कौनसा रिश्ता अपना है

बेवफाई है साच्छी वफ़ा तो बस सपना है

हँसा कर रुलाना शौक है ज़माने का 'मीठी'

'खुशी' से नही अश्क से ही वास्ता रखना है


फरेबों के बाज़ार में न कोई यहाँ अपना है

इन झूठे किरदारों में मोहब्बत तो सपना है

सम्भल जा 'मीठी' वक्त अभी है पास तेरे

'खुशी' तुझे अब खुदसे ही वास्ता रखना है


दिलों की महफ़िल में न कोई अपना है

इश्क है व्यापार बाकी तो अब सपना है

रुक जा 'मीठी' न कर सौदा फिर दिलका

 दर्द भूला 'खुशी' से  तुझे वास्ता रखना है"


🙏🏻🙏
[11/11 1:26 pm] Macks-Archu: Copyright@meethi-khushi...... Archana Mishra

Sunday 10 November 2019

चन्द अल्फ़ाज़

"हर पल क्यों ये अहसास तुम्हारा है
लगता है जैसे तुमने हमे पुकारा है
पता है हमें मोहब्बत नही तुम्हे हमसे
फिरभी क्यों इस दिलमे नाम तुम्हारा है"🙏🙏🙏🙏
"हे ईश्वर मुझे हर उस चीज़ से दूर रखना जो मुझे आपसे दूर करती है"
मेरे दिलमे रहना धड़कन बन कर
ज़िस्म में रहना रूह बन कर

न मुझे खुद से कभी जुदा करना
सदा रहना मीरा के श्याम बन कर"

क्यों टूट कर हम यू बिखरने लगे हैं-कविता

"क्यों टूट कर हम यू बिखरने लगे हैं
लगता है किसी की यादों में खोने लगे हैं

ये असर शायद मोहब्बत का ही है
लगता है जैसे किसीकेअब होने लगे हैं

खुश रहते हैं अब तो साथ तेरे ही हम
बिन तेरे बस अकेले में हम रोने लगे हैं

ख्याल ज़हन से जाता नही अब 'खुशी' का
'मीठी' बातों से इश्क के बीज बोने लगे हैं

दिल में थे जो छिपे अरमान जुबा आ
रुक-रुक कर बस कुछ यही कहने लगे है

भूल जाये दुनिया दारी सारी आज बस
क्योंकि ऐ हमनशीं अब तेरे हम होने लगे हैं"


🙏🙏🙏🙏

ये कैसा काफिला है-कविता

"ये कैसा काफिला है

छाई खामोशी है

ठंडी है ये राते

कैसी ये मदहोशी है


रूह की पुकार है

लबों पर खामोशी है

ये काफिला है इश्क का

मोहब्बत की मदहोशी है


जुनून है तुझे पाने का

पर तेरी रज़ा पर खामोशी है

है अब हर मौसम रंगीन सनम

तेरे ऐतबार की मदहोशी है"

 शुभ रात्रि🙏🙏

कविता-कहते कहते हम रुकने लगे हैं

"कहते कहते हम रुकने लगे हैं

शायद रास्ते से भटकने लगे हैं

मंज़िल क्या थी हमारी यारो

 इन गलियो में उन्हें ढूंढने लगे हैं


ढूंढते हैं तेरे ही निशाँ यहाँ हम

देख तू बिन तेरे हम रोने लगे हैं

ठुकराया तूने हमे दिल खोलकर

पर दिलसे तेरे ही हम होने लगे हैं


सुना है अब वो बदलने लगे हैं

कहते कुछ करने कुछ और लगे हैं

शायद कसूर उनके मिज़ाज का है

छीन कर चेन कैसे वो सोने लगे हैं


हम तो याद में उनकी जागने लगे हैं

पर अब हमसे दूर वो भागने लगे हैं

है पता हज़ारो है उनके चाहने वाले

फिर भी करीब उनके जाने लगे हैं


वो दूरिया उतनी ही अब बनाने लगे हैं

हर दिन फिर नए बहाने बनाने लगे हैं

मासूम चेहरा दिखा कर फिर रूठते है

इन्ही अदाओ से तो हमे लुभाने लगे हैं"

Sunday 3 November 2019

हिंदू क्या है, सचमुच क्या हिंदू धर्म विश्व का सबसे प्राचीन धर्म है-लेख

आज कल जब देखें लोग ‘हिंदू हिंदू’ का राग अलापते रहते हैं और ऐसा प्रतीत होता है जैसे हिंदू धर्म बस इन्होंने ही बचा रखा, ऐसे लोगो को हिंदू का मतलब बस चंद मन्दिर व मूर्ति पूजा के अतिरिक्त कुछ नज़र नही आता। इन लोगो को नही पता वाकई में हिंदू है क्या??

‘हिन्दू’ शब्द मुस्लिम शाशकों से भारतीयों को मिला, उन्होंने ही यहाँ के लोगों को हिंदु बोलना शुरू किया और आज के समय मे ये इतना प्रचलित हो चुका है कि हर गैर मुस्लिम व गैर मूर्ति पूजक खुद को हिन्दू कहता है।

हिन्दू शब्द का शाब्दिक अर्थ क्या है ये हमने अपने आद्यातमिक लेख विस्तार से लिखा है लेकिन आज इसकी जगह हम बताना चाहेंगे और लोगों गुज़ारिश करेंगे कि थोड़ा अतीत में जाये और इतिहास पर भी गौर फरमाएं।

प्राचीन भारत मे सभी लोग एक ही धर्म के अनुयायी थे वो था मानव धर्म, कुछ लोग कहते हैं ये सनातन धर्म था जो अति प्राचीन है, लेकिन ये सत्य नही है, यदि आप युग व्यवस्था में यकीन करते हैं तब आपको सतयुग में यकीन करना होगा क्योंकि उस समय न कोई मन्दिर होते थे न कोई पुजारी, समाज की व्यवस्था पूरी तरह परमात्मा के अनुसार चल रही थी, उस समय कोई सनातन धर्मी नही थाहाँ मानव धर्म अवश्य था जो प्रेम, सदाचार, दया, शांति, संतुष्टि, सदभाव के साथ ही उस निराकार परमात्मा पर यकीन करती थी साथ ही अपने परिवार पड़ोस आदि को भी ईश्वर तुल्य समझ सभी एक दूसरे के लिए पूजनीय थे तभी वो युग सतयुग था, सतयुग अर्थात सत्य का युग, एक ऐसा युग जहाँ प्रत्येक व्यक्ति एक नवजात शिशु के समान निश्छल था साथ ही उस समय पुरी पृथ्वी अर्थात भूमि यू अलग अलग दीप व महादीप में बटी नही थी, इसलिए ये भी कहना गलत होगा कि ये सब भारत मे था क्योंकि उस समय न कोई देश था न ही कोई राज्य और जीवो को एक दूसरे की भावना और ज़ज़्बातों को पहचानने के लिए भाषा की जरूरत भी नही होती थी, लोग स्वतः ही एक दूसरे के मन की बात समझ जाते थे, इसलिये वो युग सतयुग था और कहते ईश्वर उस समय यहाँ रहते थे, उस समय के व्यक्तियों में उनके सात्विक तत्व जाग्रत रहते थे और उनमें शैतानी तत्व नही थे।

लेकिन समय के साथ व जलवायु परिवर्तन के साथ जैसे जैसे दीप और महदीपो का निर्माण होने लगा उसमे कई मनुष्य व जीव जंतु मारे जाने लगे, और लोग दीपो व महदीपो के निर्मान के अनुसार पूरी दुनिया मे बिखर कर फैल गए, समय के साथ लोगो ने अपने अनुसार अपनी शक्ति के माध्यम से देवी देवताओं की कल्पना कर उनकी उपासना शुरू कर दी, और उनकी जो पीढ़ी तैयार होती गयी वो अपने अंदर ईश्वरीय तत्व को भूल अपने परिजनों द्वारा बताए निम्न देवी देवताओं किहि उपासना करने लगी, लोगों ने कुछ बाते अपने पुस्तको में लिख दी जो दैवीय शक्ति द्वारा कुछ उन्हें बताई गई तो कुछ उनकी कल्पना मात्र थी, हालांकि उनकी भक्ति व शक्ति के आधार पर उस निराकार ईश्वर को मनुष्य की कल्पना हेतु देश, काल और परिस्तिथि के अनुसार जन्म भी लेना हुआ और इस तरह विश्व के प्राचीन धार्मिक ग्रंथों की रचना हुई।

अब हिन्दू वादी ये कहे कि संसार का पहला धर्म हिंदू या सनातन था गलत है, हिन्दू धर्म नही बल्कि संस्कृति है, धर्म एक मत पर और एक किताब पर चलता है, संसार मे जितने उसके मानने वाले है सबका एक ही त्योहार होता है, भाषा भी मुख्य वही होती है जिसके वो अनुयायी है, लेकिन यहाँ हिन्दुओ की बात की जाए तो हर एक क्षेत्र में लोगो के रीति रिवाज यहाँ तक कि धार्मिक ग्रंथों में भी अंतर मिल जाता है, आज भी प्राचीन काल की तरह ही उत्तर भारत के लोग खुद को श्रेष्ठ समझते हैं वही दक्षिण भारत के खुद को, भाषा, खानपान, रीति रिवाज आदि के अनुसार पूरा हिंदू समुदाय बिखरा पड़ा है, ऐसा इसलिए क्योंकि हिन्दू धर्म नही संस्क्रति है, इतना भेद सिर्फ संस्कृतियों में ही हो सकता है, पर यहाँ ये बात जरूर महत्वपूर्ण है कि विश्व की लगभग लुप्त हो चुकी संस्कृतियो में ये आज भी अपना अस्तित्व बचाये हुए हैं,  जैसे प्राचीन रोमन सभ्यता व संस्कृति जो अब पूरी तरह खत्म हो चुकी है वही आज भी सनातन संस्कृति अपना वजूद कायम करे हुए हैं, इसका कारण ये भी एक है कि इतनी भिन्नता के बाद भी ये समय के साथ खुद को परिवर्तित करती रही साथ ही प्राचीन तत्वों को भी साथ ले कर चलती रही और आखिर मुस्लिम व विदेशी शाशको ने इसको एक कर एक धर्म बना दिया जिसे आज हम और आप हिंदू कहते हैं।

हम अपने वेदों पर बहुत नाज़ करते हैं और धर्म ग्रंथो पर बहुत नाज़ करते हैं और करना भी चाहिए क्योंकि इसलिए नही की ये ही सत्य है इसकी बात ही सत्य है, इसके अनुसार जो ईश्वर के जन्म व लीलाये हुई वोही सत्य है बल्कि इसलिए नाज़ करना चाहिए क्योंकि विश्व के प्राचीनतम ग्रंथों में ये आज भी जीवित है, संसार के परिवर्तन के बाद भी ये अपना अस्तित्व बचाये हुए हैं इसलिए ये कीमती है, अन्यथा ईश्वर ने मानव कल्पना अनुसार हर उस स्थान पर लीलाये की व धर्म ग्रंथ लिखे गए जहाँ-जहाँ जलवायु परिवर्तन के कारण मनुष्य दीपो और महदीपो की सुनामी में बह कर दुनिया के कोने कोने में फैल गया था।
यहाँ ये भी जानने योग्य बात है कि आदि सतयुग व सतयुग में कोई भी धर्म ग्रंथ वेद पुराण नही लिखे गए थे, इनकी जरूरत तब पड़ी जब सतयुग समाप्ति पर था, जलवायु परिवर्तन जोरो पर हो रहा था, एक ही धरती जब टूट कर अनेक दीपो व महदीपो में बदल रही थी, मनुष्य व जीव मर रहे थे, तब समस्त जीवों की इच्छा शक्ति से उस निराकार ईश्वर द्वारा मार्ग पूछने पर इनकी रचना हुई, और और उस दैवीय निराकार शक्ति को साकार रूप ले कर जीव जाती की रक्षा हेतु आना पड़ा किंतु ये भारत की भूमि में ही हुआ ये गलत धारणा है ये हर उस भूमि में हुआ जहाँ मनुष्य व जीव जीवित बचे और उन्होंने उस परमात्मा से अपनी रक्षा हेतु पुकार लगाई, तभी आप देखना प्राचीन यूरोपीयन ईतिहास वहाँ भी सूर्य पूजा, अग्नि पूजा, पशु पूजा, इंद्रा पूजा आदि होती थी, कई देवी देवताओं की पूजा होती थी, ऐसा संसार के हर दीप समूहों में रहने वाले मनुष्य करते थे, मूर्ति पूजा का विधान पूरी दुनिया मे प्रचलित था, यहां तक कि मुस्लिम देश जो आजके है वहाँ भी मूर्ति पूजा होती थी।
विश्व के कोने कोने में देश, काल और परिस्तिथि अनुसार परमात्मा ने लीलाये की व धर्म ग्रंथो की रचनाएं हुई और सभी सत्य है, इसलिए हिन्दू खुद को सबसे पहली संस्क्रति व प्राचीन व प्रथम धर्म कहना बन्द करे हाँ गर्व जरूर करे क्योंकी वो उस संस्कृति का हिस्सा है जो सदियों से कायम है और हम सबके नेक प्रयासों से कायम रहेगी किंतु साथ ही जो नवीन मतानुयायी है उनका भी सम्मान करें क्योंकि सबका सम्मान करना है यही सनातन सभ्यता व संस्क्रति का एक हिस्सा है।।