Sunday 17 November 2019

मेरे दिलकी बात

'मीठी' तो एक कली थी
आस पास दोस्त नाम के कांटे कब उग आए पता ही नही चला,

अक्सर बचाते थे अगर कोई हाथ तोड़ने के लिए आगे बढ़ता,

लेकिन वक्त के साथ वो काँटे झर कर कहीं गिर गए और फूल बन कर 'मीठी' भी बाग में खिल गयी,

फिर बहुतेरे हाथ 'खुशी' की बात कह 'मीठी' तेरी तरफ बढ़ने लगे,

पर गमले में सजाने के लिए नही बल्कि तोड़ कर दिल बहला पैरो तले कुचलने के लिए,

किसी की किस्मत अच्छी थी जिसने इस फूल को तोड़ा और दिल बहला कर पैरो तले कुचल चला गया,

उसके बाद बहुतो ने भी कोशिश की इस फूल को टहनी से तोड़ कुचल देने की,

पर शायद ये फूल अब टहनी से मज़बूती से बंध चुका है,

बढ़ते तो आज भी बहुत हाथ है तोड़ने के लिए इस फूल को लेकिन अब टूटता नही ये आसानी से,
पता है एक दिन टहनी से गिर कर ये मर जायेगा,
पर गम नही, क्योंकि दर्द तब होता है जब कोई ज़िस्म को लाश समझ कुचल कर चले जाते हैं,

भले गमले में सजने के लिए 'मीठी' न बनी हो,
पर टहनी पर ही रह कर यहीं मर जायगी
 लेकिन खुशबू से खेलने वालों के हाथ न आएगी,

वक्त ने ऐसा बना दिया,
 'मीठी' ने भी ख्वाब देखे थे गमले में सज कर किसी का घर महकाने के
पर वक्त ने तन्हाई में भी खुश रहना सिखा दिया।।❤🙏🏻

नोट-ये कोई कविता नही है बस दिलकी आवाज़ है, कृपया इसे साहित्य की भाषा से न जोड़े🙏🏻

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