Tuesday 19 August 2014

हर किसी से अंजान हूँ मैं

कितनी नादान हूँ मैं, हर किसी से अंजान हूँ मैं,  

रूज टूट कर बिखरती हूँ मैं, लुटाती हूँ हर कही ज़िंदगी अपनी मैं,

  समझती हूँ हर किसी को अपना मैं, वार्ती हूँ अपनी खुशी सभी पर मैं, 

देती हूँ प्यार  सभी को मैं, फिर भी दुनिया के लिए के बेज़ुबान खिलोना हूँ मैं, 

 ये माना दुनिया के दाँव पेंच से  दूर हूँ मैं, शायद इसलिए आज इतनी मज़बूर हूँ मैं,

 अकेली और तन्हा इन रास्ते पे खड़ी हूँ मैं, सच ही तो है कितनी नादान हूँ मैं, 

हर किसी से अंजान हूँ मैं, हर किसी से अंजान हूँ मैं.......

Monday 18 August 2014

अकेलापन मुझे लगता है

भीड़ में चलते हुए भी कभी कभी क्यों अकेलापन मुझे लगता है 

 हैं सभी साथ मेरे फिर क्यों सूनापन ये  दिल को मेरे सालता है 


बैठ अकेले   मैं सोचती हूँ मैं आखिर मेरी वफाओ के बाद भी 


 क्यों हर शख्स   मुझे अपनी ज़िन्दगी से निकलता है,


ये माना सौ कमिया है मुझमे पर क्या वो पूर्ण है 

जो हर बात पे मेरी कमिया ही हर बार निकलता है,


जो बुला के अपने पास मुझे बीच मझधार में छोड़ जाता है 

अपना कह जो किसी और को दिल में बसाता है 


शायद ये ही दुनिया की रीत है, शायद ये ही कलियुग की प्रीत है 

भुला के प्यार और वफ़ा किसी और को अपना बनाते हैं,


प्यार में खुद को भुला देने वाले उमर भर बस तनहा और अकेले रह जाते हैं,

ये ही वज़ह है शायद  क्यों अकेलापन मुझे लगता है

 हैं सभी साथ मेरे फिर क्यों सूनापन ये  दिल को मेरे सालता है 

 हैं सभी साथ मेरे फिर क्यों सूनापन ये  दिल को मेरे सालता है 

Monday 11 August 2014

दूर हो कर भी पास .....तुम हो

"दूर हो कर भी पास .....तुम हो,
मेरी ज़िंदगी का अहसास .....तुम हो,
दिन के उजाले में .....तुम हो,
रातो के अंधेरो में .....तुम हो,
मेरी तो हर बात में तुम हो,
हम तो टूट के कब के बिखर जाते,
जो अगर तुम ना हमे मिल पाते,
मेरी ज़िंदगी की मंज़िल भी तुम हो रास्ता भी तुम हो,
मेरी दिल की धड़कन में तुम हो,
मेरी हर साँस में तुम हो,
तुम्हे क्या बताए ए मेरे हमनशीं मेरी तो जीने की वज़ह तुम ही तो हो ....."

Friday 8 August 2014

किस्मत भी बदल सकती है ऐसे बुलंद होसलों से.....

रोशनी हो नही सकती बुझे हुए चिरागों से, 
ज़िंदगी उजड़ नही सकती बुलंद इरादों से, 
यू तो आसान है सब कुछ खो हार मान कर बैठ जाना, 
जो खो कर अपना सब कुछ फिर से खड़ा हो जाए ज़िंदगी जीने के  लिए, 
किस्मत भी बदल सकती है ऐसे  बुलंद होसलों से.....

Wednesday 6 August 2014

दिल में अभी यादे है बाकी तुम्हारी

"रब से बड़  कर थी दोस्ती तुम्हारी,
मोहब्बत से बड़ कर थी दोस्ती तुम्हारी,
देखा नही रब को मैने कही,
मिले थे जो तुम मुझे,
रब को था पाया मैंने  दोस्ती में तुम्हारी ,
वक्त का फेर है ये शायद,
कभी मिला कर दो अजनाबियो को दोस्त बनाता है,
और कभी दोस्त से  जुदा कर अजनबी बना देता है,
आज तुम नही हो पास हमारे कोई गम नही,
ज़िंदगी जीने के लिए इस दिल में अभी यादे है बाकी तुम्हारी"

क्या इसी के लिये ही दोस्ती तुमने हमसे की थी

तुम थे तभी तो महकती थी मेरी ये जिन्दगी 

तुम थे तभी तो थी इसमे हर खुशी 

क्यो बेवफा आशिक की तरह तुम भी बेवफा निकले

 तुमसे हमे ये उम्मी तो न थी 

भुला  के अपने वादे वफा के दूर एक दिन तुम हमसे चल दिये 

क्या इसी के लिये ही दोस्ती तुमने हमसे की थी