Saturday 26 August 2017

चार लाइन्स

"पूछता है दिल ये कैसा गम कैसा अवसाद है
मार रहा इंसा ही इंसा को कैसा ये  फसाद  है
नहीं देती सुनाई उस बेगुनाह  की चीख  उन्हें
खुद को इंसा कहने वाले ये कैसा मानववाद है"





Friday 25 August 2017

गीत-चोरी चोरी

चोरी चोरी दिल मेरा वो ले ही गया
चुपके से दिलमे मेरे वो आ ही गया-२

ना ना बहुत की थी हमने उसे
हाँ हाँ ना की थी हमने उसे-२

धीरे धीरे धड़कन मेरी वो बन ही गया
होले होले दिलमे मेरे वो बस ही गया-२

चोरी चोरी.........................

मोहब्बत का नाम सुना कभी
आशकी की बात सुनी थी कही-२
दिल लगाना भला होता है क्या
इसकी खबर ना दी थी कभी-२

सुना था दिल के चोर है लोग बहुत
सुना था यहाँ लोग चितचोर है बहुत-२

सोचा था ,क्या कोई दिल मेरा भी चुराएगा
सोचा था, क्या कोई करीब मेरे भी आयेगा-२

जाने कैसे उसको पता इस दिलका मिल ही गया
तन्हाई में ये गुल अब यहा तो खिल ही गया-२

आँखों में आँखे ना डाली थी उसने
फिर भी दिल दिलसे मिल ही गया-२

चोरी चोरी............................-४

कविता-पिया मिलन की आस

"करती हूँ तुझे याद, है पिया मिलन की आस
करती हूँ तेरी ही बात, है  मिलन की आस

दिन बीते, माह बीते, बीत गए ये सालो साल रे
प्यासे नेना ढूढे तुझको, है पिया मिलन की आस

चुप है दिल पूछती धड़कन, कहाँ गया मेरा हमदम
खामोश निगाहे पुकारे , है पिया मिलन की आस

कहता है मन, क्यों साथ नहीं मेरा दिलबर मेरा सनम
बीत रही ज़िन्दगी तन्हाई में, है पिया मिलन की आस

टूट कर बिखरे ख्वाब जो मेरे, नहीं अब आँखों में कोई
दूर जा कर भी तू दूर नही, है पिया मिलन की आस

है पता मुझे, नहीं तू करीब मेरे न है दिल के पास
है मोहब्बत तुझसे ही बस, है पिया मिलन की आस

करती हूँ तुझे याद, है पिया मिलन की आस
करती हूँ तेरी ही बात, है  मिलन की आस"-२

ईश्वर वाणी-२२१- राधा और कृष्ण एक ही हैं

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों आज मैं तुम्हे राधा और कृष्ण के विषय में सक्षिप्त  जानकारी देता हूँ, राधा और कृष्ण दो अलग अलग देव नहीं अपितु एक ही थे, यद्धपि उनकी देह अलग थी, एक स्त्री और एक पुरुष था, दोनों का जन्म अलग हुआ किंतु  फिर भी अलग हो कर भी एक थे।

राधा और कोई नहीं श्री कृष्ण की शक्ति थी, जैसे संसार की उत्पत्ति के लिए पहले शक्ति का सृजन मैंने किया वैसे ही श्री कृष्ण के जन्म से पहले उनकी सभी लीलाओ को पूर्ण करने हेतु आदि शक्ति माता राधा रानी रूप में अवतरित हुई, भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार की लीलाओ की पूर्ति हेतु सबसे पहले अपनी शक्ति को भेज, ये न भूले बिना शक्ति के संसार में कुछ भी सम्भव नही है, यही शक्ति उनकी लीलाओ का मूल आधार रही है।

हे मनुष्यों जैसे भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप प्रतेयक पुरुष में नारी रुपी तत्व के होने की शिक्षा देता है वैसे ही राधा स्वरुप कृष्ण की लीलाओ उनकी शक्ति उनकी बुद्धि और कर्तव्य परायणता की भी सीख देता है, यदि राधा न होती तो कृष्ण की बाल लीला क्या इतनी याद की जाती, निःस्वार्थ कोमल और पवित्र प्रेम की सीख जो उन्होंने दी क्या तुम्हे आज मिल पाती।

हे मनुष्यों यहाँ कितने ही पुरुष है जो अपनी पत्नी व् प्रेमिकाओं से खुद को अलग न रख कर एक समझते हो, दिखावे के लिए तो सब कह देते है की हम एक ही तो है किंतु इस शब्द का वास्तविक 
अर्थ तो राधा कृष्ण की इस जोड़ी से पता चलता है, राधा के बिना कृष्ण का वज़ूद ही अधूरा है, भले विवाह न हुआ उनका साथ न रहे एक दूसरे के लेकिन फिर भी वो सदा एक ही रहे कारण राधा कृष्ण की शक्ति उनकी इस समस्त लीला में न सिर्फ उनके साथ रही अपितु बैकुंठ में उनके साथ है,बिना शक्ति अर्थात इस राधा के भगवान किसी भी रूप में अपूर्ण ही है, ये शक्ति ही है जो उनको पूर्ण करती है, इसलिये राधा और कृष्ण दो अलग नहीं अपितु एक ही है।

हे मनुष्यों इस प्रकार तुम अपनी पत्नी या प्रेमिका को चाहे कितना कह दो हम तो एक है किंतु वास्तव में शक्ति रुपी राधा तत्व ही समस्त संसार के अंदर समाया है जिसके कारण ही श्रष्टि चल रही है और अनंत काल तक युही चलती रहेगी, हे मनुष्यों इस प्रकार नारी का सम्मान करो, यदि तुम ऐसा नही करते तो तुम्हारे भीतर शक्ति रुपी राधा क्रोधित होती है और तुम्हे कठोर दंड देती है जिसके फलस्वरूप तुम रोगी व् बीमार होते हो अनेक कष्ट पाते हो, इस प्रकार स्त्रियों का सम्मान करो ताकि प्रतेक जीव की देह में विराजित राधा रानी तुम पर प्रसनं हो कर आशीर्वाद दे।"


कल्याण हो

Monday 21 August 2017

ईश्वर वाणी-२२०, दशेहरा रावण का मुक्ति दिवस

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्दपि तुम अब तक दशहरा पर्व श्री राम की विजय और अत्याचारी रावण की मृत्यु की ख़ुशी में मानते हो, किंतु जिस बुराई के प्रतीक रावण के अंत की ख़ुशी में ये उत्सव मनाते हो क्या तुम्ने खुद अपने अंदर से इनका अंत किया है, ये न भूलो अपने अंदर के रावण को मारने के लिए कोई बहार से राम नहीं आयेगा अपितु तुम्हे खुद आत्मबल बढ़ाना होगा और अपने अंदर के रावण का अंत करना होगा।

हे मनुष्यों जिस रावण के अंत की ख़ुशी में दशहरा पर्व तुम मनाते हो दरअसल  ये उत्सव उसकेअंत का नही अपितु उसके मुक्ति दिवस का  है, एक  राक्षस योनि से मुक्त हो कर बैकुंठ में स्थान प्राप्त कर श्री हरी के चरणों में स्थान मिलने की ख़ुशी।

एक अत्याचारी आतताई बुराई के प्रतीक अपने समस्त जीवन को बुराई में लगाने बाद भी बैकुंठ में स्थान प्राप्त, साक्षात् श्री हरी के हाथो देह त्यागना ये सब उसके पिछले जन्म के कर्मो से संभव हो सका, और इस प्रकार तमाम बुरे कर्म के बाद भी बैकुंठ में स्थान उसे मिला।

इस प्रकार ये त्यौहार केवल महज़ बुराई का पुतला फूंक दे कर ख़ुशी मनाने का नहीं अपितु अपने अंदर की बुराई का अंत खुद अपने अंदर बैठे राम द्वारा करा कर साथ ही उस रावण के मुक्ति दिवस के मनाने का है ताकि उसकी तरह तुम्हारी आत्मा भी शुद्ध हो कर मोक्ष को प्राप्त हो सके।"

कल्याण हो

Sunday 13 August 2017

ईश्वर वाणी-२१९, एकेश्वरवाद की स्थापना

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यु तो संसार की सभी प्राचीन सभ्यता मूर्ती पूजक और बहुएश्वेर पर आधारित रही है किंतु समय के साथ लगभग सभी का अंत हो गया और संसार में एकेश्वरवाद की स्थापना हुई।

हे मनुष्यों मैं ये नही कहता की प्राचीन सभ्यता की मान्यता गलत थी और आज एकेश्वरवाद सही अथवा प्राचीन धार्मिक शाश्त्र गलत थे और आज के सही। किंतु उन सभ्यताओ का अंत इसलिये हुआ क्योंकि मनुष्य जाती, सम्प्रदाय, भाषा के आधार के साथ उक्त देवी देवताओ को मानने वाले को नीच और खुद को श्रेष्ट समझते थे, धार्मिक स्थानों को तोड़ कर उक्त राजा की हार का उत्सव मनाते थे, बहुएश्वरवाद में अन्य कुरीतिया जन्म लेती गयी। मनुष्य अब खुद मेरी सत्ता को चुनोती दे खुद को ईश्वर समझने लगा, जो शक्तिशाली था राजा था वो स्वम को ईश्वर कहने लगा, मानव व जीवो का शोषण करने लगा।

हे मनुष्यों संसार में जब जब और जहाँ जहाँ इन कुरीतियो का प्रभाव अत्यधिक बड़ गया और मानव जाती व जीवो का अत्यधिक शोषण होने लगा मैंने ही अपने एक अंश को उस स्थान पर भेज कर एकेश्वरवाद की नीव रखवाई, ताकि एक ही ईश्वर को मानने वाले मनुष्य कोई किसी को किसी भी आधार पर नीचा न समझे, खुद को ईश्वर न समझे, एक ही शक्ति जो सर्वोच्च है उसी की सब आराधना करे, सभी को समान पूजा का अधिकार हो, सभी के धार्मिक शाश्त्र एक ही हो ताकि कोई किसी के धार्मिक शाश्त्र को नुक्सान न पंहुचा सके, संसार में एकता और प्रेम का प्रचार और प्रसार हो सके।

हे मनुष्यों इससे पूर्व जब संसार में बहुएश्वरवाद व् मूर्ती पूजा की प्रथा थी तब मनुष्य अधिक हिंसा प्रधान हो चूका था कारण उस समय के धर्म शास्त्र भी कई लड़ाइयो का वरनन करते थे एवं तमाम देवी-देवताओ की विजय का गुर्गान करते थे, फलस्वरूप उस समय का मनुष्य भी खुद को उनसे प्रेरणा ले कर उन शाश्त्र का सही अर्थ भुला कर निरीहो का दोहन व् शोषण करने लगा और धीरे धीरे खुद को ही भगवान कहने लगा।

इसी झूठी अहं की भावना को दूर करने हेतु ही मैंने देश,काल,परिस्तिथि के अनुसार अपने ही एक अंश को धरती पर भेजा और एकेश्ववाद की नीव रखवाई,  संसार में व्याप्त बुराई के अंत के लिए व् खुद को भगवान समझने की मनुष्य की इस सोच को खत्म करने के लिए देश, काल, परितिथि के अनुसार मेरे ही अंश ने मनुष्य के अनेक अत्याचार सहे, उन्होंने हिंसा का मार्ग नही अपनाया, और धीरे धीरे देश, काल, परिस्तिथि के अनुरूप मनुष्य उनसे जुड़ते गए, इस प्रकार प्राचीन बहुएशरवादि प्राचीन सभ्यता मिटती चली गयी और संसार में एकता और प्रेम की स्थापना हुई। 

हे मनुष्यों किंतु मानव बुद्धि तुम्हारी इस एकेशरवादि प्रथा में भी तुमने अनेक मत ढून्ढ ही लिए जबकि सभी के धर्म शास्त्र एक है किंतु फिर भी अनेक मत बना लिए और एक ही शाश्त्र पर यकीं रखने के बाद भी खुद को श्रेष्ठ और अन्य को नीच बता कर हिंसा करने लगे।

हे मनुष्यों ये न भूलो जिस प्रकार मैंने तुम्हारी प्राचीन सभ्यता का अंत किया था तुम्हारी बुराइयो के कारण यदि तुम फिर वही दोहराओगे तो अब मैं सभी मानव जाती का अंत कर दूंगा, समय है सुधर जाओ और मेरे बताये रास्ते पर चलो उसका अनुसरण करो तथा अनन्त जीवन को प्राप्त करो।"
कल्याण हो

Saturday 5 August 2017

प्रभु गीत


"तेरा ही नाम लू सदा, तुझको ही में पुकारू
दिलमे आओ प्रभु, पल पल तुम्हे पुकारू-२

कोई कहे ईश्वर तुम्हे कोई अल्लाह तुम्हे पुकारें
कोई कहे गुरु तुम्हे कोई मसीह तुम्हे पुकारे
मैं अज्ञानी क्या कहूँ, आज तुही मुझे बता रे-२

बिखरी हुई ज़िन्दगी मेरी, टूट चूका विश्वास है
आजा बन कर ईश्वर तू या अल्लाह बन सवारे

हर दिन लेता नाम तेरा फिर क्यों ठोकर खाता
तेरी करता रोज़ आराधना तेरी ही आरती गाता
फिर क्यों मेरे मालिक मैं हर दिन धोखा पाता-२

सच्चा तेरा नाम है माना मेरा विश्वास अधूरा
दिलमे आकर आज कर दो इसे तुम ही पूरा

कोई कहे ईश्वर जिसे कोई कहे अल्लाह उसे
मैं बालक नादाँ न जानू कितने है तेरे नाम हुये-२

जाने कितने नामो को याद रखु कैसे इन्हें संभालू
किन किन नामो से मेरे मालिक तुमको मैं पुकारू-२



तेरा ही नाम लू सदा, तुझको ही में पुकारू
दिलमे आओ प्रभु, पल पल तुम्हे पुकारू-२"


गीत-मोहब्बत मैंने भी की है

"ज़िन्दगी की एक बस खता ये मैंने की है
एक बेवफा से मोहब्बत मैंने भी की है-२

लुटाई थी हर खशी उसे अपना समझ कर
भुला गया मुझे वो एक सपना समझ कर

चाहा था उसको ये ज़िन्दगी समझ कर
दिल में बसाया था धड़कन समझ कर

ज़िन्दगी की एक बस.....................

ना सोचा ना समझा था मोहब्बत में मैंने
एक बेवफा से आशिकी मैंने की है

तोड़ गया दिल मेरा वो शीशा समझ कर
छोड़ गया तनहा मुझे हर मोड़ पर

ज़िन्दगी से अपनी एक बस शिकायत यही है
क्यों उस बेवफा से मैंने मोहब्बत हाँ की है

लबो से छीनी उसने मुस्कान मेरे
छीनी हर ख़ुशी उसने ज़िन्दगी से मेरे

मोहब्बत में झूठे ख्वाब दिखाता था
मोहब्बत के झूठे वादे निभाता था

अश्को की अपनी आज ये कहानी लिखी है
उनकी बेवफाई की बस ये बयानी लिखी है
क्या क्या कहु क्या मैं छिपाउ अब किसीसे
टूटे दिल की दास्ताँ अपनी जुबानी लिखी है

ज़िन्दगी की एक बस खता ये मैंने की है
एक बेवफा से मोहब्बत मैंने भी की है-४"