Monday 21 August 2017

ईश्वर वाणी-२२०, दशेहरा रावण का मुक्ति दिवस

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्दपि तुम अब तक दशहरा पर्व श्री राम की विजय और अत्याचारी रावण की मृत्यु की ख़ुशी में मानते हो, किंतु जिस बुराई के प्रतीक रावण के अंत की ख़ुशी में ये उत्सव मनाते हो क्या तुम्ने खुद अपने अंदर से इनका अंत किया है, ये न भूलो अपने अंदर के रावण को मारने के लिए कोई बहार से राम नहीं आयेगा अपितु तुम्हे खुद आत्मबल बढ़ाना होगा और अपने अंदर के रावण का अंत करना होगा।

हे मनुष्यों जिस रावण के अंत की ख़ुशी में दशहरा पर्व तुम मनाते हो दरअसल  ये उत्सव उसकेअंत का नही अपितु उसके मुक्ति दिवस का  है, एक  राक्षस योनि से मुक्त हो कर बैकुंठ में स्थान प्राप्त कर श्री हरी के चरणों में स्थान मिलने की ख़ुशी।

एक अत्याचारी आतताई बुराई के प्रतीक अपने समस्त जीवन को बुराई में लगाने बाद भी बैकुंठ में स्थान प्राप्त, साक्षात् श्री हरी के हाथो देह त्यागना ये सब उसके पिछले जन्म के कर्मो से संभव हो सका, और इस प्रकार तमाम बुरे कर्म के बाद भी बैकुंठ में स्थान उसे मिला।

इस प्रकार ये त्यौहार केवल महज़ बुराई का पुतला फूंक दे कर ख़ुशी मनाने का नहीं अपितु अपने अंदर की बुराई का अंत खुद अपने अंदर बैठे राम द्वारा करा कर साथ ही उस रावण के मुक्ति दिवस के मनाने का है ताकि उसकी तरह तुम्हारी आत्मा भी शुद्ध हो कर मोक्ष को प्राप्त हो सके।"

कल्याण हो

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