Sunday 13 August 2017

ईश्वर वाणी-२१९, एकेश्वरवाद की स्थापना

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यु तो संसार की सभी प्राचीन सभ्यता मूर्ती पूजक और बहुएश्वेर पर आधारित रही है किंतु समय के साथ लगभग सभी का अंत हो गया और संसार में एकेश्वरवाद की स्थापना हुई।

हे मनुष्यों मैं ये नही कहता की प्राचीन सभ्यता की मान्यता गलत थी और आज एकेश्वरवाद सही अथवा प्राचीन धार्मिक शाश्त्र गलत थे और आज के सही। किंतु उन सभ्यताओ का अंत इसलिये हुआ क्योंकि मनुष्य जाती, सम्प्रदाय, भाषा के आधार के साथ उक्त देवी देवताओ को मानने वाले को नीच और खुद को श्रेष्ट समझते थे, धार्मिक स्थानों को तोड़ कर उक्त राजा की हार का उत्सव मनाते थे, बहुएश्वरवाद में अन्य कुरीतिया जन्म लेती गयी। मनुष्य अब खुद मेरी सत्ता को चुनोती दे खुद को ईश्वर समझने लगा, जो शक्तिशाली था राजा था वो स्वम को ईश्वर कहने लगा, मानव व जीवो का शोषण करने लगा।

हे मनुष्यों संसार में जब जब और जहाँ जहाँ इन कुरीतियो का प्रभाव अत्यधिक बड़ गया और मानव जाती व जीवो का अत्यधिक शोषण होने लगा मैंने ही अपने एक अंश को उस स्थान पर भेज कर एकेश्वरवाद की नीव रखवाई, ताकि एक ही ईश्वर को मानने वाले मनुष्य कोई किसी को किसी भी आधार पर नीचा न समझे, खुद को ईश्वर न समझे, एक ही शक्ति जो सर्वोच्च है उसी की सब आराधना करे, सभी को समान पूजा का अधिकार हो, सभी के धार्मिक शाश्त्र एक ही हो ताकि कोई किसी के धार्मिक शाश्त्र को नुक्सान न पंहुचा सके, संसार में एकता और प्रेम का प्रचार और प्रसार हो सके।

हे मनुष्यों इससे पूर्व जब संसार में बहुएश्वरवाद व् मूर्ती पूजा की प्रथा थी तब मनुष्य अधिक हिंसा प्रधान हो चूका था कारण उस समय के धर्म शास्त्र भी कई लड़ाइयो का वरनन करते थे एवं तमाम देवी-देवताओ की विजय का गुर्गान करते थे, फलस्वरूप उस समय का मनुष्य भी खुद को उनसे प्रेरणा ले कर उन शाश्त्र का सही अर्थ भुला कर निरीहो का दोहन व् शोषण करने लगा और धीरे धीरे खुद को ही भगवान कहने लगा।

इसी झूठी अहं की भावना को दूर करने हेतु ही मैंने देश,काल,परिस्तिथि के अनुसार अपने ही एक अंश को धरती पर भेजा और एकेश्ववाद की नीव रखवाई,  संसार में व्याप्त बुराई के अंत के लिए व् खुद को भगवान समझने की मनुष्य की इस सोच को खत्म करने के लिए देश, काल, परितिथि के अनुसार मेरे ही अंश ने मनुष्य के अनेक अत्याचार सहे, उन्होंने हिंसा का मार्ग नही अपनाया, और धीरे धीरे देश, काल, परिस्तिथि के अनुरूप मनुष्य उनसे जुड़ते गए, इस प्रकार प्राचीन बहुएशरवादि प्राचीन सभ्यता मिटती चली गयी और संसार में एकता और प्रेम की स्थापना हुई। 

हे मनुष्यों किंतु मानव बुद्धि तुम्हारी इस एकेशरवादि प्रथा में भी तुमने अनेक मत ढून्ढ ही लिए जबकि सभी के धर्म शास्त्र एक है किंतु फिर भी अनेक मत बना लिए और एक ही शाश्त्र पर यकीं रखने के बाद भी खुद को श्रेष्ठ और अन्य को नीच बता कर हिंसा करने लगे।

हे मनुष्यों ये न भूलो जिस प्रकार मैंने तुम्हारी प्राचीन सभ्यता का अंत किया था तुम्हारी बुराइयो के कारण यदि तुम फिर वही दोहराओगे तो अब मैं सभी मानव जाती का अंत कर दूंगा, समय है सुधर जाओ और मेरे बताये रास्ते पर चलो उसका अनुसरण करो तथा अनन्त जीवन को प्राप्त करो।"
कल्याण हो

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