Thursday 14 March 2019

ईश्वर वाणी-269, नरक जिसे जीवित रहते भी देखा जा सकता है


ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों यद्दपि तुमने निम्न धार्मिक पुष्तक, धर्म शास्त्र व ज्ञानी व्यक्तियों द्वारा तुमने  स्वर्ग व नरक का वर्णन सुना होगा, किन्तु आज तुम्हे बताता हूँ स्वर्ग व परमधाम प्राप्त करने से पूर्व नरक जो हर पापी जीवात्मा को सहना ही पड़ता है, हालांकि उस यातना के बाद भी बचा हुआ दंड जीवात्मा को नए जीवन मे दुख और सुख रोग व अन्य शारीरिक या मानसिक विकार के रूप में भोगना पड़ता है किंतु इससे पूर्व भी हर पापी जीवात्मा नरक अवश्य भोगती है और उस नरक को तुम भी अपनी इन्ही आंखों से देख सकते हो।

हे मनुष्यों जैसे आत्मा बिना शरीर सिर्फ एक मिट्टी के पुतले के समान है, किन्तु आत्मा को तुम नही देख सकते केवल इस पुतले को ही देखते हो, वैसे ही नरक को तुम अपनी आँखों से देख तो सकते हो लेकिन वहाँ दण्ड पाने वाली आत्माओ को नही देख सकते।
 हे मनुष्यों ये तो तुम जानते ही हो पृथ्वी ही इस ब्रह्मांड में एकमात्र ऐसा ग्रह है जहाँ जीवन है, किंतु क्या तुमने सोचा है फिर इस ब्रह्मांड में अनन्त ग्रह नक्षत्र व आकाशगंगाओ की आवश्यकता ही क्यों है, किंतु आज तुमको बताता हूँ सच सच जो तुम ये ग्रह नक्षत्र व आकाशगंगाये तुम देखते हो ये सब ही उस नरक का द्वार है जहाँ प्रत्येक जीवात्मा प्रवेश करती है और यातना सहती है, तभी तुमने देखा और सुना होगा कोई ग्रह बहुत गर्म तो कोई बहुत ठंडा तो कोई अन्य तरह के गैस व तेज़ वायु वेग से भरा हुआ है, कही निरंतर ज्वालामुखी फटते रहते हैं जिनसे भयानक लावा नदी व महासागर के रूप में बहता रहता है तो कही तपती रेत है तो कही अत्यंत गर्म क्षेत्र जो पल भर में इस भैतिक देह को पिघला दे।
हे मनुष्यों तुम्हारा सूक्ष शरीर जिसे तुम आत्मा कहते हो वो कर्म के अनुसार इन क्षेत्रों में विचरण करती है,  काले व गहरे गड्ढे (black wholes) जहाँ सूर्य की रोशनी तक नही जाती तो कही इतनी रोशनी की आंखे तक चौंधिया जाए, तुमने वैतरणी नदी का नाम अवश्य सुना होगा जो आकाश में बहती है, जिस पर से हर जीवात्मा को जाना ही पड़ता है, पापी जीवात्मा को ये भयानक पीड़ा देने वाली और पुण्यात्मा को आनन्द देने वाली होती है, ये नदी हड्डियों के दोनों तरफ के किनारो से भरी होती है, जिसे मनुष्य अपनी आधुनिक तकनीक से देख सकता है, आकाश में विचरण करने वाले ये अनन्त उल्का पिंड उसी नदी के सहारे और किनारे बहने वाली वो हड्डियां है, इसे इस प्रकार समझ तुम समझ सकते हो ‘जैसे कोई अति प्राचीन शव को तुम देखते हो तो वो तुम्हे पत्थर की आकृति ही लगता है’, ठीक वैसे ही आकाश में बहने वाले ये अनन्त उल्का पिंड भी ऐसे ही उसी का रूप है।

हे मनुष्यो संसार मे वो सत्य नही जो तुम देखते हो, बल्कि जो तुम नही देख पाते वही सत्य है, आत्मा एक सत्य है, व कर्म अनुसार दंड व सुख को प्राप्त करती है किंतु तुम केवल भौतिक देह को देखते हो, आत्मा के कष्ट व सुख को नही देख पाते, ऐसा इसलिए क्योंकि तुम इसे ही सत्य मानते व समझते हो।
हे मनुष्यों ईसी प्रकार जैसे नरक तुम अपनी इन आँखों से आधुनिक तकनीक के माध्यम से देख सकते हो वैसे ही इन सबके बाद मेरे परमधाम व स्वर्ग का रास्ता नज़र आता है किंतु उसे तुम आध्यात्मिक शक्ति से ही देख सकते हो।

हे मनुष्यों यद्दपि तुमने ब्लैक होल के विषय मे सुना है वैसे वाइट होल है जिससे हो कर जीवात्मा मुझ तक अथवा स्वर्ग तक जाती है।

हे मनुष्यों य न भूलो की में आत्माओ का महासागर हूँ, श्रष्टि का पहला तत्व हूँ, मै ही शुरुआत व अंत हूँ, जिसे तुम शुरुआत व अंत कहते हो वो तो मात्र वैसी ही प्रक्रिया है जैसे तुम रोज रात को सोते और सुबह उठ कर पूरे दिन नित्य कार्य कर के पुनः सो जाते हो और पुनः फिर प्रातः उठ कर निम्न कार्य करते हो, और ये जीवन चक्र चलाते हो।

हे मनुष्यों यद्दपि ये तुम सबके लिए कठिन है किँतु निरन्तर अभ्यास व प्रयास  से ये सम्भव है, यदि इस ज्ञान को तुम दैनिक जीवन मे उतार सके तो निश्चित ही अनन्त दुखो से मुक्त हो कर परम् सुख को प्राप्त होंगे।

कल्याण हो