Tuesday 31 December 2019

शायरी

 जी चाहता है तेरे सीने लग जाऊ मैं
पर ये दूरियां मुझे रोक देती हैं😡😡

चंद अल्फ़ाज़

1-"तुझे याद कर पलकें मेरी भीग जाती हैं
तेरी याद में आँखे नम मेरी हो जाती हैं
पता है 'मीठी' नही करते तुम्हे वो याद
'खुशी' तो आज भी मेरी तुमसे ही आती है"


2-"कितना खूबसूरत था साथ तुम्हारा
कितना खूबसूरत था अहसास तुम्हारा
सोचा न था जीना पड़ेगा मुझे तुम बिन
कितना खूबसूरत था हर ख्वाब तुम्हारा"

😡😡
3-"ज़िन्दगी की रेलगाड़ी में हम इस कदर आगे बढ़ गए
कुछ मिले नए लोग तो कुछ साथी बिछड़ गए"

Monday 30 December 2019

मेरे चंद अल्फाज

1-"बहुत  रह चुकी यहाँ  यु ऐसे ए ज़िन्दगी, अब  खोना  चाहती हूं
बहुत रह चुकी जहाँ में ए मौत, अब तेरी होना चाहती हूँ
सदियों से प्यासी है ये ' मीठी' जिसके लिए अब तलक यहाँ
गंगा मैया 'खुशी' के साथ अब तेरे आँचल में सोना चाहती हूं"


😡🙏🏻😡
2-"कितना अजीब है न 'गंगा का जल'
मरने के बाद ये हमारी अस्थियों को गला देता है
और जीते जी पियो तो औषधिये काम देता है
हाँ माना अब ये अब प्रदूषित बहुत हो चुका है
लेकिन आज भी इसका महत्व कम कहाँ हुआ है"

😡राधे राधे😡


3-"कहते हैं लोग प्यार उससे करो जो तुम्हारे ज़ज़्बात की कद्र करे
पर कमबख्त नसीब ऐसा निकला कि उसने ऐसे से मिलवाया ही नही"


4-"झूठ की इस दुनिया मे बस ये ख़ता कर बैठे
एक फरेबी से हम सच्ची मोहब्बत कर बैठे"


5-"सुबह शाम हर दिन यहाँ हसीं ये रागिनियाँ देखते हैं हम
फिर अगले पल टूटे हुए दिल और हाथो में जाम देखते हैं हम
कसूर किसी का नही होता ए मेरे दोस्तों क्योंकि दस्तूर है ये
बच्चे खिलोने से और बड़े दिलो से खेलते रोज देखते है हम"

दर्द जिगर का फिर बढ़ने लगा है-कविता

धीरे धीरे दर्द फिर जिगर का बढ़ने लगा है

फिर से ये दिल आखिर धड़कने लगा है


है ज़माने में लोग दोहरे मुखोटे पहने हुए

जाने किस फरेबी को अपना बनाने लगा है


जिसको अपना समझा 'मीठी' तुमने जब जब

'खुशी' नही गम उनसे ही तुम्हे मिलने लगा है


किसे सुनाये तू अपने ज़ख्मी दिल की दासतां

तेरे अश्को पर ये जमाना कैसे हसने लगा है


मोहब्बत करने की ख़ता तू फिर करने चली

देख मोहबूब तो बाज़ारो में मिलने लगा है


देख तमाशा तू फिर इस महफ़िल का 'मीठी'

'खुशी' का प्यार आज पैसो से बिकने लगा है


अब रही नही बाते जो पहले करते थे लोग

आज इश्क का व्यापार बहुत बढ़ने लगा है


तू भी लुटा सके तो लूट दे कुछ इस महफ़िल में

अब मोहब्बत का कारोबार ऐसे ही बढ़ने लगा है

😡😡😡😡😡😡😡😡

मेरे कलम से मेरे चंद अल्फ़ाज़

 1-"कितना गुरुर था खुद पर की कितने अपने हैं लोग यहाँ
लेकिन हालातो ने बता दिया कितनी गलतफहमी में थे हम"

2-"अब तो इन रास्तो पर डर लगता है
देख दुनियादारी मेरा तो दम घुटता है"

3-"बहुत भरोसा था तुझपे ऐ ज़िंदगी
पर आखिर तू भी दगा दे ही गयी

4-'फिर ये हसीं सर्द रात आयी
फिर मुझे तेरी याद आयी
तुमने न देखा कभी मुड़कर
मुझे तेरी हर बात याद आयी

5-"दिल ने बहुत चाहा कि रोक लू तुम्हें
दिल ने बहुत चाहा अपना बना लू तुम्हें
पर तुम्हें परवाह कहाँ मेरे ज़ज़्बातों की
दिल ने बहुत चाहा धड़कन में बसा लू तुम्हे"❤❤

Sunday 29 December 2019

ज़िंदगी की मंज़िल-कविता

महलों वाला भी आखिर एक दिन वही (शमशान/कब्रिस्तान) जाता है

सड़क पर रहने वाला बेबस बिखारी भी आखिर एक दिन वही जाता है

रास्ते भले अलग को तेरे ऐ इंसान पर मंज़िल तो आखिर है बस वही

फिर किस बात का गुरुर तुझे और आखिर किस बात पर इतराता है


एक दिन तेरा ये शरीर ही तुझसे  आखिर बेवफाई कर जाता है

ज़िन्दगी भर दौड़ा जिसके लिए आखिर अंत मे क्या तुझे मिल पाता है

ज़िन्दगी थी तो दौड़ता रहा बस दुनिया के पीछे इसे ही मन्ज़िल जानकर

देख क्या समझी तूने मन्ज़िल अपनी पर वक्त किस ओर तुझे ले आता है

ज़िंदगी मुझे ठुकराती रही

वक़्त रोता रहा और ज़िंदगी मुझे ठुकराती रही

ये ज़माना हस्ता रहा 'मीठी' अश्क छिपाती रही


पी कर ग़मो के आँसू 'खुशी' का अहसास जताया

दर्द कितना है इस दिल मे न ये कभी जताती रही


अकेले में बैठ ग़मो से अब दोस्ती सी कर ली मैंने

खुदगर्ज़ इन महफ़िलो से दूर अब मै होती रही


कई मुखोटे पहने मिलते हैं मुझे लोग हर जगह

बस महफ़िल में एक असल चेहरा मैं खोजती रही


कितने हैं चरित्र इंसां के इस जहाँ में ऐ 'मीठी'

'खुशी' तो बस उस इक सच्चरित्र को खोजती रही


वक्त गुज़रता गया और सांसे भी कम होने लगी

दिल थमता गया और धड़कन मुझसे पूछती रही


वक़्त रोता रहा और ज़िंदगी मुझे ठुकराती रही

ये ज़माना हस्ता रहा 'मीठी' अश्क छिपाती रही
😡😡😡😡😡😡😡😡

मेरे चंद अल्फ़ाज़

1-"न अब कोई घर न  मकान  ढूंढते हैं
न जीने का अब कोई समान ढूंढते हैं
कहाँ दफन करू तेरी इन यादों को मैं
बस अब वो जगह और स्थान ढूंढते हैं"

2-"थाम कर हाथ फिर सबने छुड़ाया है
अपना बना फिर गैर मुझे बताया है
हम तो गैरो को अपना बना लेते है
यहाँ अपनो ने ही गैर मुझे ठहराया है"
😡😡😡😡😡😡😡😡😡😡😡😡😡😡😡

3-"गेरो की क्या शिकवा करू मुझे तो अपनो छोड़ा है
दे कर ज़ख़्म हर मोड़ पर सभी ने मुझे तोड़ा है"

😡😡😡😡😡

मेरे दुश्मन को ठंड लग जाये-कविता

सर्दी का फ़िर ऐसा मुकाम आ जाये

ठंडी का फिर ऐसा तूफ़ान आ जाये

सर्दी में बहने लगे नाक मेरे दुश्मन की

ईश्वर करे उसे ऐसा ज़ुकाम आ जाये


छींक का समंदर ऐसे बह जाए

हर कोई उससे अब दूर हो जाये

खुद को बचाये लोग उससे ऐसे

सर्दी में उसको रजाई न मिल पाए


😡😡😡😡😡😡

Saturday 28 December 2019

चंद अल्फ़ाज़

१-"इस कदर खौफज़दा हैं तुझसे ए ज़िन्दगी
की अब दिन के उजाले में भी डर लगता है'

२-"करीब आओ मुझे तुमसे कुछ कहना है
दूर अब इक पल भी तुमसे नही रहना है
गुज़ारू हर शाम तुम्हारी ही बाहों में अब
जुदाई का ये दर्द नही मुझे अब सहना है"

३-"कितना खूबसूरत है ये तुम्हारा अहसास
कितना खूबसूरत है बस  तुम्हारा साथ
नही जिया जाता अब एक पल भी बिना तेरे
सूनी गुज़रती है बिन तुम्हारे अब मेरी हर रात"

Wednesday 25 December 2019

मेरी कलम से-क्रिसमस


मित्रों आज क्रिसमस का बड़ा ही शुभ दिन है, दुनिया भर में करोड़ो लोग आज इस दिन को मना रहे हैं, काफी लोग ऐसे भी है जो ईसाई नही है लेकिन फिर भी इस दिन को बड़ी खुशी के साथ मानते हैं।


  मैंने अक्सर चर्च में ईसाइयो से ज्यादा हिन्दू और सिख लोगो को जाते देखा है, यहाँ तक कि कथा वाचने वाले 'राम' नाम का चोगा ओढे हुए और खुद को कट्टर हिन्दू बोलने वाले पंडितो को भी क्रिसमस/ईस्टर वाले दिन चर्च में प्रभु येशु के सामने नतमस्तक होते देखा है।


 लेकिन मेरे आज के इस लेख का विषय ये नही की कौंन धर्म का व्यक्ति कहाँ जाता है और किसे पूजता है क्योंकि ये सब व्यक्ति की अपनी श्रद्धा और आस्था और अधिकार है और हम किसी को अपनी विचारधारा के अनुसार चलने के लिए बाध्य नही कर सकते।


 लेकिन आज बात है इस खूबसूरत त्योहार की जिसे पूरी दुनिया मना रही है, जो जाती, धर्म, भाषा, सम्प्रदाय, क्षेत्र, वेश-भूषा आदि से परे बस एक काम कर रहा है वो है खुशी बाटने का।


 मित्रों आज के इस व्यस्त जीवन मे कितने लोग हैं जो अपने परिवार, मित्र, रिश्तेदार और जानने वालों को कितना वक्त देते हैं, आज का समय ऐसा है कि हमे अपने पड़ोस वाले का पता नही होता कि कौन रहने आया है, किसके घर मे कौन पैदा हुआ और कौन मर गया, हमारे रिश्तेदारो के बच्चे कब पैदा हो कर जवान हुए और उनकी शादी हो कर वो खुद कब माता-पिता बन गए, हम सब ज़िन्दगी में आज इतने व्यस्त बस खुद में ऐसे हो चुके हैं कि किसी के पास अपने अतिरिक्त्त वक्त ही नही है।


 त्योहार तो एक बहाना होता है उन दूर हो चुके रिश्तों को कम से कम एक दिन तो याद करने का, इतने व्यस्त होने के बाद भी अगर हम थोड़ा समय इस त्योहार के बहाने अपने परिवार, मित्र और रिश्तेदारो के साथ बिताते हैं तो न सिर्फ इससे खुशी मिलती बल्कि रिश्ते गहरे होते हैं और इसके लिए ये जरूरी नही की त्योहार किस धर्म से ताल्लुक रखता है, त्योहार मतलब 'थोड़ा धीमें हो जाओ, जो पीछे बिछड़ चुके हैं उन्हें भी अपने पास आने दो, न इतनी दूर चले जाओ की कोई तुम्हारे पास न आ सके, एक अकेली तन्हा ज़िन्दगी में कुछ पल तो उनके साथ बिताओ जो सच मे सिर्फ तुम्हारे है भले ये बहाना त्योहार का हो या जन्मदिन का या फिर किसी और खुशी के मौके का, खुशी अपनो के साथ मनाने का कोई मौका मत छोड़ो, चलो साथ और खुशी का छोटा ही सही ये पल जीने दो'।


 यही मकसद होता है त्योहार का, साथ ही अगर बात की जाए टॉफी/गोली/चॉकलेट्स की, उपहारों की जो आज के दिन कहा जाता है बच्चों से की सांता आएंगे और ये देंगे, मित्रो आपने अपने बच्चों को तो सबकुछ दिया इसलिए आपमें से बहुत से लोग इसे बेवजह कहते होंगे लेकिन जरा उन अनाथ बच्चों के बारे में सोचे जो सपने में भी ये सब नही ले सकते, कम से कम आज के दिन उन अनाथ बेघर और लाचार बच्चों के सांता तो बन के देखिए क्या खुशी मिलेगी आपको, किसी के आँसू तो पोंछ कर कर देखिए जनाब सारी जाती/धर्म/सम्प्रदाय/भाषा/क्षेत्र इत्यादि में बॉटने वाली बातें बहुत ही छोटी लगने लगेंगी, और ऐसा सिर्फ क्रिसमस पर ही नही जब आपका मन हो करके देखे लेकिन अगर त्योहार पर करते है तो आप उन अनजान लोगों से एक रिश्ता जोड़ लेते हैं और वो है खुशी का, क्योंकि हर कोई चाहता है त्योहार अपनो के के साथ अपनेपन के अहसास के साथ मनाये और जब आप ऐसा करते हैं तो अनजान लोगों से इंसानियत का वो रिश्ता जोड़ लेते हैं जो हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जेन, बोध, पारसी, यहूदी आदि से बहुत बड़ा होता है।


 जब तक मेरी निजी जिंदगी में समस्याएं ज्यादा नही थी मैने अपना समय खासकर क्रिसमस और जन्मदिन जानवरो के कल्याण हेतु कार्य करने वाली संस्थाओं के साथ मनाया क्योंकि मुझे उन बेजुबानों की मदद करने में खुशी जो मिलती थी वो किसी भी धार्मिक जगह पर जाने से नही मिलती थी,  और रही बात खास दिन की तो हर रोज़ या महीने हम किसी के लिये तो कुछ नही कर सकते तो कम से कम साल में एक या दो बार ही सही किसी के लिए कुछ कर सके, और यही असल कारण है त्योहारों का और उन्हें मनाने का, इसलिए किसी की आलोचना से बेहतर है अपना किसी को बेहतर देना।


राधे राधे

Monday 23 December 2019

मेरा लेख-मुझे लिखना पसंद है

हमे लिखने का शौक है इसलिए हम लिखते हैं ऐसा नही है, बल्कि लेखन से हमने मित्रता करने की सोची है, ऐसा इसलिए क्योंकि इसके पास हमारे लिए हमेशा वक़्त होता है, जो दिलमे आये बस लिख डालो, ये न तो कभी ख़फ़ा होता न होने देता और जब मन बहुत दुखी हो इससे अपना हाल ऐ दिल जब चाहे कह दो ये सुनता है, कभी न रूठता है और न पलट कर जवाब देता है, मेरी ज़िंदगी के हर राज़ इसको पता है वो भी राज़ पता है जो मैंने भुला दिए हैं पर कभी मुझे ब्लैकमेल नही करता न दिल तोड़ता।

बचपन से ही मैंने सिर्फ और सिर्फ अकेलापन ही पाया है, हमेशा भीड़ ने मुझे खुद से जुदा रखा, और इसकी वजह से मैंने खुदमे आत्मविश्वास को बहुत ही कम पाया अथवा वो जाता रहा।

 वक्त के साथ सब कुछ बदल तो गया पर ये समाज और लोग मुझे एहसास करा ही जाते हैं कि जैसे बचपन मे मुझे सबने अकेला छोड़ रखा था वैसे ही आज भी है।

 शायद यही वजह है की मैंने खुद अपने लेखिन और रचनाओं से दोस्ती कर ली है और यही मेरे साथी है, तभी अकेला रहना ही मुझे पसंद है, आखिर इस दोमुंही दुनिया मे जहाँलोंगो ने लाखों नकाब के पीछे अपने असली चेहरे को छुपा रखा है और पल पल नया नक़ाब जो पहनते हैं उनसे रिश्ता रखने से बेहतर है खुद के लेखन से प्यार करे और दोस्ती करे ताकि गलत लोग और रास्ते पर जाने की जगह और दुःख की वजह से बहतर है कि बस लिखने से प्यार हो, इसलिए मुझे लिखना पसंद है ।

मेरे अल्फ़ाज़

1-"कहि इस मासूम से हम मोहब्बत न कर बैठे
दर्द जिगर का कही हम इसे न दे बैठे"

2-"हम तो खुद से ही बगावत कर बैठे
ए ज़िंदगी फिर से मोहब्बत कर बैठे"

3-"आज मोहब्बत नाम नही किसी के होने का
आज मोहब्ब्त नाम नही किसी पर मर मिटने का
अब तो बस फायदे और नुकसान का नाम है ये
क्योंकि आज मोहब्बत नाम नही दिल लगाने का"
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

4- "आज फिर तुम मुझे गले लगा लो
आज फिर तुम मुझे दिलमे बसा लो
आ जाओ बाहों में मेरी ए मेरे हमदम
आज फिर तुम मुझे अपना बना लो"
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

कविता-नादां दिल

"नादां दिल फिर उसी रास्ते पर चलने लगा था
पागल पन देखो ये नादां फिर से करने लगा था
समझने लगा था यहाँ फिर से किसी को ये अपना
नादां दिल देखो फिर से मोहब्बत करने चला था


धड़कन में देखो किसी को फिर बसाने चला था
साँसों में देखो ये फिर किसीको समाने लगा था
अकेले में याद कर कैसे  मुस्कुराता था ये नादां
पागल मन फिर काँटो को फूल समझने लगा था


खुद से रूठ देखो खुद को ही ये मनाने चला था
किसी की ख्वाइशों पर देखो कैसे ये मरने लगा था
अपने ही दर्द से मोहब्बत सी हो गयी थी फिर इसे
 हाय ये नादां दिल देखो फिर क्या करने चला था

भूला सारी रस्मो रिवाज़ खता ये  करने लगा था
चलते चलते फिर कही ये रुकने लगा था
शायद होने लगा था ये धीरे धीरे फिर किसीका
नादां दिल फिर उसी रास्ते पर चलने लगा था"
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Saturday 21 December 2019

चन्द अल्फाज

१-❤ "चलते चलते बहुत थक चुके हैं ए ज़िंदगी
अब बस ठहर मुझे मौत की आगोश में सोने दे"


२-"माँगी थी जिससे ज़िन्दगी मैंने उसीसे मौत मिल गयी
मोहब्बत में देखो क्या खूब ये मुझे सौग़ात मिल गयी
'मीठी-खुशी' समझ जाने क्या उम्मीद करने लगे थे
मैंने तो हसीं सुबह चाही थी पर काली रात मिल गयी"


३-"एक पत्थर को पिघलाने चले थे हम
कितने नादां थे फर मोहब्बत करने चले थे"


४-"जब जब जीने का हौसला करने लगते हैं
ज़िंदगी अपनी बेवफाई का अहसास दिला जाती है"


५-"मेरे आँसुओ को पानी बता हस्ते हैं जो
दुनिया की महफ़िल में कितने सस्ते हैं वो"

६- ❤ "पूछता है नादां दिल धड़कन से क्या होती है जिंदगी
कहती है धड़कन ज़ख़्म खाने का नाम ही है जिंदगी"

७-❤"हम तो बस अपना हाल ए दिल बयां करते हैं
और लोग कहते हैं हम तो कमाल करते हैं"

Friday 20 December 2019

Romantic poem

ना दामन छुड़ा न दूर अब तू जा
थाम कर हाथ मेरा आ करीब आ

बहुत रह चुकी 'मीठी' तन्हा यहाँ
आज पिया मोह्हबत का रस बरसा

'खुशी' तुमसे है अब ए मेरे हमदम
तोड़ कर दिल मेरा न मुझे तू सता

आ हटा दे शर्म का ये पर्दा मेरे हमदम
आज हुई में तेरी तू भी अब मेरा होजा



Wednesday 18 December 2019

टूट कर बिखर जाती हूँ-कविता

हर रोज़ टूट कर बिखर जाती हूँ

हर रोज़ खुद से ही रूठ जाती हूँ

हूँ तन्हा कितनी अब तेरे बगैर मैं

तुम से न ये कभी कह पाती हूँ


सामने तुम्हारे अब नज़रे चुराती हूँ

देखती जो तुम्हे नज़रे झुकाती हूँ

ये हुआ क्या मुझे ए दिल कुछ बता

एक पल भी बिन तेरे न रह पाती हूँ


हाल-के-दिल सखियो को सुनाती हूँ

क्या हुआ है मुझे ये न समझ पाती हूँ

इश्क तो नही हुआ है मुझे ए मेरे रब

मोहब्बत से तो बस खुदको बचाती हूँ


बहते इन आंसुओ को अब छिपाती हूँ

ज़ज़्बात दिलके न उन्हें कह पाती हूँ

काश समझ सके मेरे दिलकी बात वो

अब तो तुम्हारे बिन न मैं जी पाती हूँ

चंद अल्फाज

"भेड़ियों में इंसान ढूंढते हैं

मुर्दे में भी जान ढूंढते है

कितनी बेगैरत है ये दुनियां

फिर भी यहाँ मुक़ाम ढूंढते हैं"


"कहने को तो सब कुछ है पास मेरे
पर तू जो नही तो कुछ भी नही है'


"कैसे मान ले ये दिल की मिट चुका तेरा हर निशाँ जहाँ से
पर जब जब देखा खुद को आयने में नज़र आया तू ही 
मुझे मुझमें"

"काश एक बार मुड़कर तो देख ए ज़िंदगी
तेरे बगैर एक ज़िंदा लाश हूँ मैं ए हमनशीं"

Monday 16 December 2019

तुझे ही देखते हैं-कविता

"रुक रुक  कर मुड़  तुझे ही देखते हैं
करीब  आते  हो तो  मुँह फेर लेते हैं
कहीं जान न लो हमारे दिलकी बात
इसलिए  गमो  में भी मुस्कुरा देते  हैं

दूर  तुझसे  जा  कर  कितना रोते हैं
फिर भी कुछ भी न तुमसे कहते  हैं
तुम  समझते  नही ज़ज़्बात दिल के
फिर भी मोहब्बत तुमसे ही करते हैं

अब तुम बिन  तन्हा से  बस रहते  हैं
तेरी  यादों में  अब यू  खोये  रहते  हैं
तेरी  बिन अब कुछ भी  नही  'मीठी' 
'खुशी' है मेरी तुमसे ही आज कहते हैं"

चन्द अल्फ़ाज़

"रिश्ता ये दोस्ती का बहुत निभा  लिया
हर किसी को अपना बहुत बना  लिया
सबके  दर्द बांटते  बांटते  हम हार गए
इंसां में इन भेडियो को बहुत देख लिया"

"हम तो दोस्ती के खातिर सब कुछ  कर गये
 फिर एक दिन उनके लिए ही बेगैरत  हो गए
हाय ये कैसी ज़ालिम थी दुनिया न जान सके
उनकी मुस्कुराहट के लिए अश्क अपने पी गए "

बहुत थक चुके हम


"चलते चलते बहुत थक चुके  हम
कहते कहते हर बार रुक चुके हम

ढूंढते हैं सुकून ए ज़िंदगी अब यहाँ
अमन से कितना दूर जा चुके हम

बेहतरी की उम्मीद रखते दिन-रात
पर अश्कों में ही है डूब चुके हम

खोजती नई मन्ज़िल 'मीठी' यहाँ
'खुशी' नही ग़मो से घिर चुके हम

मिले काटे और पत्थर ही राहो में
ठोकरे यहाँ बहुत खा चुके हम

हर दिन रोज टूट कर बिखरते हैं
जुड़ने का वो हौसला खो चुके हम

चलते चलते बहुत थक चुके हम
कहते कहते हर बार रुक चुके हम"






Friday 13 December 2019

चंद अल्फ़ाज़

 "हर पल क्यों ये अहसास तुम्हारा है
लगता है जैसे तुमने हमे पुकारा है
पता है हमें मोहब्बत नही तुम्हे हमसे
फिरभी क्यों इस दिलमे नाम तुम्हारा है"🙏🙏🙏🙏

"हे ईश्वर मुझे हर उस चीज़ से दूर रखना जो मुझे आपसे दूर करती है"

मेरे दिलमे रहना धड़कन बन कर
ज़िस्म में रहना रूह बन कर
न मुझे खुद से कभी जुदा करना
सदा रहना मीरा के श्याम बन कर"

"मौसम की तरह वो अब बदलने लगे हैं
रहते थे जो साथ अब अकेले चलने लगे हैं"

"ये शबनमी रात है

मीठी सी कोई बात है
तुम नही पास मेरे
पर तेरा ही अहसास है"

"ज़ख़्म देती रही ज़िंदगी फिर भी तुझे ठुकरा न सके
मिले दर्द इतने फिर भी क्यों दूर तुझसे न जा सके"

"गुज़रा बीता कल बहुत याद आता है
संग तेरे जिया वो पल बहुत याद आता है"

Tuesday 10 December 2019

चंद अल्फ़ाज़

1-"जिनके बिना एक पल भी रहना मुश्किल था

आज महफ़िल उनके बिना ही गुलज़ार लगती है"


2-"खामोश लबों को जो समझ सके, वो यार ढूंढती हूँ

दर्द जिगर का जो समझ सके, वो प्यार ढूंढती हूँ"


3-"आ पास मेरे तेरे लिए कुछ लिख दु मै

दिलके सारे अरमान तुमसे कह दु मैं


बुझा रखा है इश्क का दी'या जो दिलमे

आ करीब मेरे फिर इसे आज जला दु मैं"

🙏🙏🙏🙏🙏🙏


4-"किसी से क्या मोहब्बत करू अब यहाँ

मुझे खुद से ही फुरसत है कहाँ 


मिलते हर रोज़ सेंकडो है मुझे

पर लगता जैसे मेरे कदमो पर ही है ये जहाँ"


5-"आ पास मेरे मुझे कुछ कहने दे

छिपे अरमान दिलके आज बहने दे

बता दु तुम्हे जो दिलकी बात आज

बस मुझे अपनी बाहों में यूह रहने दे"


6-"मुझे मारने के लिए किसी चीज़ की जरूरत नही तुम्हे
इसके लिए तो बस तुम्हारी बेरुखी ही काफी है"

7-"सर्दी  की  धूप हो  तुम, 

कितनी  मासूम हो तुम,

आता है प्यार जिसपे बेइंतहा, 

 सच कहूँ वो महबूब हो तुम🌹🌹"

कविता-उनसे ही

"कभी होती थी सुबह मेरी तुमसे ही

आज कितनी दूर हो चुकी उनसे ही


रहता था कभी उन्ही का इन्जार मुझे

आज बिछड़ चुकी 'मीठी' उनसे ही


दिया दर्द पल पल जिसने महफ़िल में

क्यों है मोहब्बत ए ज़िन्दगी उनसे ही


दिन, महीने, साल गुज़र गए उनके बिन

पर मिलती है 'खुशी' क्यों उनसे ही


तोड़ कर दिल मेरा खेलते रहे वो तो

पर आखिर ज़िंदा थी 'मीठी' उनसे ही


भुला चुके कितनी आसानी से वो' बातें

पर मेरी तो हर शाम होती थी उनसे ही


कैसे कब मौसम की तरह बदल गए वो

मेरी तो हर सांस चलती थी सिर्फ उनसे ही


माँगी थी दुआ जिसके लिए दर-दर मैंने

मिली ज़िन्दगी में ये तन्हाई उनसे ही


उनके हर सितम पर बस मुस्कुराई 'मीठी'

फिर भी मिली क्यों बेवफाई मुझे उनसे ही


टूट कर चाहा था जिसे आंखे बंद करके

खता ये हमारी बता मिली रुस्वाई उनसे ही"
              🙏🙏🙏🙏🙏

मेरी कलम से-ईश्वर



लोग भले ईश्वर को माने या न माने ये उनकी मर्जी है, लेकिन मैंने परमात्मा की शक्ति को पल पल महसूस किया है।

ईश्वर कहते हैं उन्हें तभी हम प्राप्त कर सकते हैं जब हमारा मन बच्चे जैसा हो अर्थात जैसे बच्चे होते हैं मासूम, जैसे उनके दिल और दिमाग मे भिन्नता नही होती, जैसे वो अंदर होते हैं वैसे ही बाहर होते हैं कोई दिखावा व छलावा नही होता उनमे, ठीक वैसा ही मन यदि वयस्क को हो तो परमात्मा उसे जरूर मिलते हैं।


मुझे बहुत लोगो ने बोला कि तुम्हारे अंदर परिपक्वता नही है, बच्चों की तरह हो, कई लोगों ने बेइज़्ज़ती तक कि मेरे इस व्यवहार को ले कर, ज़लील तक किया और लोग छोड़ कर भी चले गए क्योंकि उन्हें लगता था मुझमे परिपक्वता नही है।


परिपक्वता मुझे इसकी परिभाषा समझ नही आई आज तक, क्या कोई इंसान झूठ बोले बात-बात पर, किसी का दिल तोड़े या दुखाये, अपनी जरूरत पर मीठा बने फिर जब किसी को उसकी जरूरत हो तो अनजान बन के चला जाये, फरेब करे, सिर्फ और सिर्फ अपने लिए जिये और दूसरे को कुछ न समझे इत्यादि, पर क्या इसी को परिपक्वता कहते हैं, शायद आज के समय में यही परिपक्तवा की निशानी है और जो ऐसा नहीं है वो या तो मूर्ख है या फिर उसका मन बच्चों जैसा है।

लेकिन जो इस तरह परिपक्व है वो भले इस समाज मे रह ले लेकिन उसे परमात्मा कभी नही मिल सकते और न उसकी आत्मा कभी सन्तुष्ट हो सकती है, वो लोग जो खुद को परिपक्व बता निम्न कार्य करते हैं भले अपने शरीर को सुख पहुचाते हो इससे पर उनकी आत्मा कभी संतुष्ट नही होती और यही वजह है जब वो कभी किसी मुश्किल में होते हैं तब उनकी मदद के लिए ईश्वर न खुद आता है न किसी को भेजता है क्योंकि ईश्वर किसी भी तरह के घमण्ड करने वाले व्यक्ति का हो ही नही सकता इसके लिए निर्मल होना जरूरी है।


मेरे साथ एक बार नही बल्कि कई बार ऐसा हुआ जो मैंने ईश्वर की शक्ति को महसूस किया है। दिल्ली की असुरक्षित सड़को पर अकेले  चलना और घूमना इतना आसान नही है लेकिन मैंने जबसे अकेले इन रास्तों पर चलना शुरू किया तो पल पल महसूस किया कि कोई शक्ति मेरे साथ है जो हमेशा मेरा हाथ थामे रहती है और मेरा इतना ख्याल भी रखती है।


मेरी ग्यारहवीं कक्षा से ले कर स्नातक तक मनोविज्ञान मेरा विषय रहा है, अगर बात की जाए मनोविज्ञान की तो वो ये सब एक तरफ तो नही मानता वही दूसरी तरफ इसका समर्थन भी करता है।


इस ब्रह्माण्ड में सिर्फ वही सच नही जो दिखता है बल्कि सच वो है जो दिखता तो नही पर होता है जैसे 'हवा' और प्रत्येक जीव चाहे अति विशाल हो या सूक्ष्म उसकी 'शक्ति', इसी तरह परमात्मा की शक्ति होती तो है पर भौतिकता पर विश्वास करने वाली इन आंखों से वो दिखती नही, जिस दिन अभोतिक्ता पर भी भरोसा करने लगोगे तब तुम उस परमात्मा को देख सकोगे साथ ही अपने अंदर के उस मासूम बच्चे को जगा के रखोगे, निःस्वार्थ रहोगे तब उस परमात्मा को प्राप्त करोगे।


तुम खुद देखोगे की कोई शक्ति तुम्हे कैसे गलत रास्ते पर जाने से रोकती है, कितनी भी हठ कर लो नादानी में अपनी पर वो तुम्हें वो ऐसी संभालेगी जैसे तुम्हारे माता-पिता बचपन मे तुम्हे संभालते थे ।


ऐसा नही की ये सब हवाई बाते है, ये मेरा अपना खुद का ही अनुभव है, आध्यात्म से जुड़ कर मैंने उसे पाया जो न सिर्फ मेरे बल्कि श्रष्टि की उतपत्ति से पहले था आज भी है और कल भी रहेगा, पल पल वो मेरे साथ चलता है मेरा ध्यान रखता है और सुरक्षित भी रखता है। इसलिए इंसान को आध्यात्म से जुड़ना चाहिए साथ ही थोड़ी सी मासूमियत बच्चों जैसी रखनी चाहिए, दिल प्योर रखे फिर देखना हर इंसान कभी न कभी तो उस 'ईश' को इसी भौतिक देह के साथ प्राप्त कर ही लेगा।


अर्चना मिश्रा

🙏🙏🙏🙏

Tuesday 3 December 2019

उफ्फ ये भोलापन-कविता

"उफ्फ ये भोलापन हाय मासूम ये अदा
देख कर जिसे है दिल मेरा फिदा

काश हो जाऊ फ़ना तुझ पे ए हमनशीं
न रहा जाता है अब तुझ से जुदा

ए ज़िन्दगी तुझे मान लिया मैंने अपना
है दुआ मेरी रहे साथ तू मेरे अब सदा

करू इबाबत तेरी ही सुबह शाम अब
बना चुका हूँ तुझे ही अपना खुदा

तू ही आरज़ू बन अब चुकी है मेरी
न दामन छुड़ा न हो मुझसे अब जुदा"

Love Myself

Sunday 1 December 2019

भारतीये पुरुषों की मानसिकता और धर्म-लेख

"हर शख्स बस यही चाहता है उसे भी किसी का प्यार मिले जिससे उसकी जिंदगी सवर जाये, पर हर किसी को ये नसीब नही होता।

मैंने देखा है इंसान की उम्र चाहे जो भी हो, चाहे तो 17 का हो या 70 साल का उसकी फितरत सिर्फ धोखे की होती है

मैंने एक बात और ज्यादा गौर की है पाश्चात्य देशों की अपेक्षा भारत के पुरूष ज्यादा धोखेबाज और चिरित्रहीन होते हैं तभी भारत को बलात्कारियो का देश कहा जाता है, यहाँ के पुरुष स्त्रियों को सिर्फ एक सेक्स डॉल से ज्यादा कुछ नही समझते हैं, बस जब दिल करा खेल लिए फिर फेंक दिया, उन्हें स्त्रियों के ज़ज़्बातों से मतलब नही।

और फिर जब कोई स्त्री उनसे तेज़ निकल जाए तो उनके ईगो को बड़ी ठेस पहुचती है।

यहाँ के पुरुष भले हिन्दू हिंदू का राग अलापले, अपने धर्म अपनी संस्क्रति को श्रेष्ठ बोले लेकिन सच तो ये है कि अंदर से उन्होंने ही इसको खोकला किया हुआ है तभी आये दिन महिलाओ पर अत्याचार की खबरे सुनने को मिलती है।

मेरे कुछ यूरोपियन मित्र हैं, कुछ महिलाएं तो कुछ पुरुष,  25 साल से ले कर 70 साल की उनकी उम्र है, मैंने देखा चाहे वहा की स्त्रियां हो या पुरुष वो मुझे हिन्दुस्तानियो से ज्यादा सभ्य लगते हैं।

जैसा कि मेरा ऑनलाइन क्लोथिंग का काम है, मुझे कई जगह अपने प्रॉक्टस के ऐड डालने पड़ते हैं, एड में अपना ऑफिशियल कांटेक्ट नंबर भी देना होता है ताकि कस्टमर मुझे कॉन्टैक्ट कर सके प्रोडक्ट के लिए, मैंने देखा है कि कई बार घटिया लोग भी कस्टमर/व्होलेसलेर/मनुफेक्चरर बन कर कांटेक्ट करते हैं और मेरा दिमाग और समय बर्बाद करते हैं।

इससे मुझे भारतीयों की सोच पता चलती है।


वही मेरे यूरोपियन मित्र चाहे महिला हो या पुरुष उन्होंने आज तक कोई ऐसी बात नही की जो घटिया लगी हो मुझे, हमेशा अपनी मर्यादा का ध्यान रख कर उन्होंने मुझसे बात की है और करते है यहाँ तक कि हिन्दुस्तानियो से ज्यादा भावनात्मक जुड़ाव रखते हैं, कभी कभी शर्म आती है खुद पर की इस देश मे पैदा हुए हैं जहाँ के लोग कहते कुछ और करते कुछ।


ऐसा नही ऐसी सोच वाले कम पड़े लिखे और निचले तबके के लोग हैं, बल्कि अमीर पड़े लिखे यहाँ तक कि धर्म की की बात कहने करने वाले सैंकड़ो धार्मिक किताब पढ़ने वाले और धार्मिक कार्य करने वाले लोग भी शामिल हैं।

मुझे घिन आती है इस समाज से, ये भारतीय समाज भरोसे के काबिल ही नही रहा, आम इंसान बन कर रहना बहुत मुश्किल है यहाँ, अगर यहां रहना है वो भी सुरक्षित तो भीड़ से हट कर कुछ करना होगा, अपनी इच्छाओं को मारना होगा तभी एक लड़की अकेले यहाँ खड़ी रह सकती है अन्यथा सभी के लिए वो सिर्फ एक मौका मात्र है।

मेरा तो कहना यही है हर हिंदुस्तानी सोच बदले या हिंदू हिंदू के नारे लगाने बन्द करे क्योंकि जब तब बहन बेटी माता सुरक्षित नही तब तक कोई संस्कृति किसी काम की नही और इसी वजह से हिन्दू धर्म बस मुट्ठी भर ही दुनिया मे रह गया है क्योंकि अपने पतन की वजह ये खुद है।"


परमात्मा भला करे

जय माता दी

जय गुरु जी

Saturday 30 November 2019

फिर से अजनबी बन जाये हम-कविता

"ए काश फिर से अजनबी बन, जाये हम
वो वादे इरादे भी अब भूल ,जाये हम
आ मिटा दे तेरी हर याद , दिलसे अब
मोहब्बत की राहों को भूल जाये हम

न तुम याद आओ न तुम्हे याद, आये हम
न तुम रुलाओ और न तुम्हे ,सताये हम
भुला दे वो हसीं राते जो गुज़ारी, संग तेरे
न हमे तुम दिखो न तुम्हे नज़र आये हम

बन अजनबी राहो से यू गुज़र ,जाय हम
आ फिर ऐसे यू बेफिक्र से बन, जाये हम
न रोको तुम मुझे इन राहो में, कभी फिर
ए काश फिर से अजनबी बन जाये हम"

                   🍸मीठी-खुशी🍸

हमें आग से डर लगता है-कविता

"हमें आग से डर लगता है ए ज़िंदगी
पर तू हमें आग से ही,  खिलाती रही
जितना बचते रहे इस आग,   से हम
उतना ही क्यों तू हमे झुलसाती रही

हमे डर लगता है इस,  तपिश से 
पर तू हमे हर बार ,  जलाती रही
कोशिश की खुद को ,  बचाने की
पर क्यो यूह तू हमे ,  सताती रही

नही चाहिए और ये आग मुझे, ए ज़िंदगी
ज़ख़्म दे हर दफा क्यों तू मुझे, रुलाती रही
कब तक अश्क छिपा मुस्कुराती, रहे 'मीठी'
हर मर्तबा 'खुशी' मुझसे क्यों तू ,चुराती रही"

Tuesday 19 November 2019

"जब खूबसूरती ही बनी शत्रु-कहानी"

"आम्रपाली अपने समय की दुनिया की सबसे खूबसूरत बालिका थी, जो भी उसको देखता तो बस देखता रह जाता।

समय के साथ वो बड़ी हो गयी, शायद उस समय की सबसे खूबसूरत युवती थी वो, हर कोई उससे विवाह करना चाहता था, उसके माता-पिता भी उसके लिए एक योग्य वर तलाशना चाहते थे, किंतु उन्होंने देखा उसको प्राप्त करने की होड़ सी लगी पड़ी है क्या राजा क्या राजकुमार क्या व्यापारी व क्या रंक।

ऐसे में आम्रपाली के माता-पिता सोचने लगे कि किसी एक से विवाह अगर अपनी पुत्री का उन्होंने किया तो समाज मे अराजकता फैल सकती है, युद्ध व महायुद्ध हो सकते हैं, लेकिन फिर क्या करे विवाह तो पुत्री का करना ही है।

अपनी इसी चिंता में डूबे आम्रपाली के माता-पिता ने सभा रखवाई ताकि ये निर्णय हो सके कि आम्रपाली का विवाह बिना किसी परेशानी व अराजकता सम्पन्न हो सके।

सुबह से शाम हो गयी लेकिन सभा मे कोई सही निर्णय न हो पाया, लेकिन फिर नगर, समाज व विश्व समुदाय को ध्यान में रख कर ये फैसला हुआ कि आम्रपाली को 'नगर वधु(वैश्या)' बना दिया जाए जिससे हर कोई उसके साथ जब चाहे समय व्यतीत कर सके,इससे नगर व समाज मे अराजकता भी नही फैलेगी।


इस निर्णय से आम्रपाली के माता पिता को बहुत दुःख हुआ लेकिन सभा के निर्णय के खिलाफ वो नही जा सकते थे, उधर जब ये बात आम्रपाली को पता चली की उसकी खूबसूरती के कारण उसे 'नगर वधु' बना दिया गया है, वो बहुत रोई पर वोभी क्या कर सकती थी।

इस प्रकार आम्रपाली की खूबसूरती ही उसकी शत्रु बनी जिसने उसे 'नगर वधु' बनने का दंश झेला।

Monday 18 November 2019

Beautiful story

"एक बार बोद्ध भिक्षुओं का समूह एक नगर को गया,चूँकि बारिश का मौसम शुरू होने वाला था इसलिए भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों से कहा था कि नगर में जा कर ये समय किसी के घर आश्रय ले कर बिताओ।
बोद्ध भिक्षुओ का ये दल 'आम्रपाली' जो उस समय की सबसे खूबसूरत 'नगर वधु' हुआ करती थी उसके महल में भी पहुच गया, उसने दिल खोल कर उन्हें दान दक्षिना दी, किँतु उनमे से एक भिक्षु को सबसे ज्यादा पसंद करने लगी और बारिश के मौसम में अपने यहाँ ही रहने का अनुरोध करने लगी, ये देख कर अन्य भिक्षु छिड़ गए और वहाँ से चले गए व भगवान बुद्ध के पास जा कर बोले "वो अब नगर वधु के पास रहेगा, वो स्त्री अपने रूप के जाल में अक्सर लोगो को फसा लेती है, एक भिक्षु का क्या एक नगर वधु के यहाँ रुकना उचित है",
भगवान बुद्ध बोले-"पहले उसे यहाँ आने तो दो फिर बताता हूँ",
कुछ देर बाद वो भिक्षु भी वहाँ आ गया और बोला-"प्रभु आपने ही कहा था बारिश का मौसम शुरू होने वाला है इसलिए अपने लिए नगर में किसी के घर आश्रय ढूंढ लो, मुझे वहाँ की सबसे खूबसूरत नगर वधु ने अपने महल में रुकने का निमंत्रण दिया है, बताये क्या मुझे वहाँ रुकना चाहिए?",
भगवान बुद्ध बोले-"तुम्हे क्या लगता है?"
भिक्षु बोला-"जैसा आप कहे"

भगवान बुद्ध बोले-"जाओ और उसके महल में ये बारिश के 4 महीने गुज़ारो",
 आज्ञा पा कर वो शिष्य वहाँ से उस नगर वधु के महल की तरफ चल देता है, जबकि अन्य बोद्ध भिक्षु भगवान बुद्ध के इस निर्णय से नाराज़ होते हैं।

इन चार महीनों में 'आम्रपाली' जो नगर की सबसे खूबसूरत नगर वधु थी, अपनी सुंदरता पर इतना घमण्ड था, सोचती थी किसी भी पुरुष को अपनी तरफ वो पल में खींच सकती है, उसने उस शिष्य पर भी खूब प्रेम रस बरसाए किंतु वो उसे अपनी तरफ आकर्षित करने में असफल रही।

हार कर जब ये 4 माह पूरे हुए तो उस बोद्ध भिक्षु के चरणों मे गिर गयी और अपने व्यवहार के लिए माफी मांफी।
इसके साथ ही उस बोध भिक्षु के साथ उस स्थान पर चली आयी जहां भगवान बुद्ध रहते थे, आम्रपाली ने हाथ जोड़ कर सारा किस्सा कह सुनाया साथ ही भगवान बुद्ध की श्रेष्ठ शिष्याओं में उनकी गिनती हुई भविष्य में।

नोट-इस कहानी से यही सीख मिलती है अगर खुद पर नियंत्रण हो तो बड़े से बड़ा आकर्षण भी मन्ज़िल से हमे डिगा नही सकता, यदि हम सही है तो सामने वाला बुरा इंसान भी सुधर सकता है,
हमेशा कीचड़ में खिले कमल के समान रहना चाहिए, जो कीचड़ में खिलने के बाद भी खुद को पवित्र रखता है और ईश्वर के चरणों मे अर्पित हो कर अपनी शोभा बढ़ाता है।

"हे ईश्वर हमे हर उस चीज़ से दूर रखना जो आपसे हमे दूर करती है"..

Love you Dear Lord...

Sunday 17 November 2019

मेरे दिलकी बात

'मीठी' तो एक कली थी
आस पास दोस्त नाम के कांटे कब उग आए पता ही नही चला,

अक्सर बचाते थे अगर कोई हाथ तोड़ने के लिए आगे बढ़ता,

लेकिन वक्त के साथ वो काँटे झर कर कहीं गिर गए और फूल बन कर 'मीठी' भी बाग में खिल गयी,

फिर बहुतेरे हाथ 'खुशी' की बात कह 'मीठी' तेरी तरफ बढ़ने लगे,

पर गमले में सजाने के लिए नही बल्कि तोड़ कर दिल बहला पैरो तले कुचलने के लिए,

किसी की किस्मत अच्छी थी जिसने इस फूल को तोड़ा और दिल बहला कर पैरो तले कुचल चला गया,

उसके बाद बहुतो ने भी कोशिश की इस फूल को टहनी से तोड़ कुचल देने की,

पर शायद ये फूल अब टहनी से मज़बूती से बंध चुका है,

बढ़ते तो आज भी बहुत हाथ है तोड़ने के लिए इस फूल को लेकिन अब टूटता नही ये आसानी से,
पता है एक दिन टहनी से गिर कर ये मर जायेगा,
पर गम नही, क्योंकि दर्द तब होता है जब कोई ज़िस्म को लाश समझ कुचल कर चले जाते हैं,

भले गमले में सजने के लिए 'मीठी' न बनी हो,
पर टहनी पर ही रह कर यहीं मर जायगी
 लेकिन खुशबू से खेलने वालों के हाथ न आएगी,

वक्त ने ऐसा बना दिया,
 'मीठी' ने भी ख्वाब देखे थे गमले में सज कर किसी का घर महकाने के
पर वक्त ने तन्हाई में भी खुश रहना सिखा दिया।।❤🙏🏻

नोट-ये कोई कविता नही है बस दिलकी आवाज़ है, कृपया इसे साहित्य की भाषा से न जोड़े🙏🏻

Saturday 16 November 2019

कविता-'खुशी' की चाहत में तन्हाई हमे मिली है ज़िन्दगी चाही थी"

'खुशी'  की चाहत में तन्हाई  हमे मिली है
ज़िन्दगी चाही थी  पर  मौत हमे मिली है

'मीठी' बातें बना कर दिलमे आते है लोग
पग-पग उन्ही से बस रुस्वाई हमे मिली है

रोते थे दिन-रात जो 'खुशी' की तलाश में
हर किसीसे दर्द की सौग़ात हमे मिली है

ना चाहा बस वफ़ा के सिवा किसी से कुछ
मंज़िल हर किसी की बेवफाई हमे मिली है

किया जिसने वादा साथ निभाने का 'मीठी'
ठोकर देखो उन्ही से बेबात हमे मिली है

सोचा था तुम्हे भुला देंगे हम भी एक दिन 
पर शहर में बिछी तेरी बिसात हमे मिली है

चलते हैं अकेले इन राहो में ग़मो को छिपा 
दिए तेरे इन ज़ख़्मो से न रिहाई हमे मिली है

मिलते हैं हर मोड़ पर साथी तुम जैसे ही 
आखिर इनमे तेरी ही परछाई हमे मिली है

खुशी'  की चाहत में तन्हाई  हमे मिली है
ज़िन्दगी चाही थी  पर  मौत हमें मिली है-२"

Friday 15 November 2019

कविता-ढूंढने चले थे

" फिर  वही भूल करने चले थे

धुंए  में  ज़िन्दगी ढूंढने चले थे


हकीकत क्या है जानते हैं हम

अंधेरे में रोशनी करने चले थे


है बिखरी पड़ी रुसवाई यहाँ

बेवफा से वफ़ा करने चले थे


दिए धोखे नसीब ने 'मीठी'

'खुशी' की चाहत करने चले थे


है तन्हा कितने इस महफ़िल में

इश्क की तलाश करने चले थे


फिर  वही भूल  करने चले थे

धुंए  में ज़िन्दगी ढूं ढने चले थे-२"


🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Tuesday 12 November 2019

Something different...Horror poetry ..

क्यों फिर से ये बेचेनी होने लगी है

क्यो ये धड़कन फिर बढ़ने लगी है


शायद वो है आस पास मेरे  कहि

चुड़ैलों की आवाज़ फिर आने लगी है


होने लगी सुगबुगाहट नये शिकार की

चुड़ैलों के घर ये बात होने लगी है


फिर बिछाये बिसात शिकार के लिए

इंसानी खून की प्यास बढ़ने लगी है


बनाती नित्य नई कहानी फाँसने शिकार

लोगों से नई कहानी ये गढ़ने लगी है


करती शिकार किसी के 'बेटे-भाई' का

मारकर निर्दोषो को ये खुश होने लगी है


यारों बढ़ने लगी आबादी अब इनकी भी

क्योंकि अब ये हमारे बीच रहने लगी है


क्यों फिर से ये बेचेनी होने लगी है

क्यो ये धड़कन फिर बढ़ने लगी है-२"



So dedicate to all chudail/bhootni, dayan, pishachan.....


Kyonki suna hai fir se delhi me hi ek naya shikaar wo khojne lagi hai...

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Monday 11 November 2019

2 अल्फ़ाज़



"ये जरूरी तो नही जो रबने सब को दिया हमें भी दे
हम तकदीर के मारे है हमे तो रुसवाईयाँ मिलती है"

कौन अपना है-कविता

"दुनिया की महफ़िल में कौन अपना है

जो कहते हैं तुम्हरे है वो तो एक सपना है

साथ तो कुछ दूर तक ही देते हैं लोग यहां

झूठी है जिंदगी मौत से ही वास्ता रखना है


झूठ की दुनिया मे कौनसा रिश्ता अपना है

बेवफाई है साच्छी वफ़ा तो बस सपना है

हँसा कर रुलाना शौक है ज़माने का 'मीठी'

'खुशी' से नही अश्क से ही वास्ता रखना है


फरेबों के बाज़ार में न कोई यहाँ अपना है

इन झूठे किरदारों में मोहब्बत तो सपना है

सम्भल जा 'मीठी' वक्त अभी है पास तेरे

'खुशी' तुझे अब खुदसे ही वास्ता रखना है


दिलों की महफ़िल में न कोई अपना है

इश्क है व्यापार बाकी तो अब सपना है

रुक जा 'मीठी' न कर सौदा फिर दिलका

 दर्द भूला 'खुशी' से  तुझे वास्ता रखना है"


🙏🏻🙏
[11/11 1:26 pm] Macks-Archu: Copyright@meethi-khushi...... Archana Mishra

Sunday 10 November 2019

चन्द अल्फ़ाज़

"हर पल क्यों ये अहसास तुम्हारा है
लगता है जैसे तुमने हमे पुकारा है
पता है हमें मोहब्बत नही तुम्हे हमसे
फिरभी क्यों इस दिलमे नाम तुम्हारा है"🙏🙏🙏🙏
"हे ईश्वर मुझे हर उस चीज़ से दूर रखना जो मुझे आपसे दूर करती है"
मेरे दिलमे रहना धड़कन बन कर
ज़िस्म में रहना रूह बन कर

न मुझे खुद से कभी जुदा करना
सदा रहना मीरा के श्याम बन कर"

क्यों टूट कर हम यू बिखरने लगे हैं-कविता

"क्यों टूट कर हम यू बिखरने लगे हैं
लगता है किसी की यादों में खोने लगे हैं

ये असर शायद मोहब्बत का ही है
लगता है जैसे किसीकेअब होने लगे हैं

खुश रहते हैं अब तो साथ तेरे ही हम
बिन तेरे बस अकेले में हम रोने लगे हैं

ख्याल ज़हन से जाता नही अब 'खुशी' का
'मीठी' बातों से इश्क के बीज बोने लगे हैं

दिल में थे जो छिपे अरमान जुबा आ
रुक-रुक कर बस कुछ यही कहने लगे है

भूल जाये दुनिया दारी सारी आज बस
क्योंकि ऐ हमनशीं अब तेरे हम होने लगे हैं"


🙏🙏🙏🙏

ये कैसा काफिला है-कविता

"ये कैसा काफिला है

छाई खामोशी है

ठंडी है ये राते

कैसी ये मदहोशी है


रूह की पुकार है

लबों पर खामोशी है

ये काफिला है इश्क का

मोहब्बत की मदहोशी है


जुनून है तुझे पाने का

पर तेरी रज़ा पर खामोशी है

है अब हर मौसम रंगीन सनम

तेरे ऐतबार की मदहोशी है"

 शुभ रात्रि🙏🙏

कविता-कहते कहते हम रुकने लगे हैं

"कहते कहते हम रुकने लगे हैं

शायद रास्ते से भटकने लगे हैं

मंज़िल क्या थी हमारी यारो

 इन गलियो में उन्हें ढूंढने लगे हैं


ढूंढते हैं तेरे ही निशाँ यहाँ हम

देख तू बिन तेरे हम रोने लगे हैं

ठुकराया तूने हमे दिल खोलकर

पर दिलसे तेरे ही हम होने लगे हैं


सुना है अब वो बदलने लगे हैं

कहते कुछ करने कुछ और लगे हैं

शायद कसूर उनके मिज़ाज का है

छीन कर चेन कैसे वो सोने लगे हैं


हम तो याद में उनकी जागने लगे हैं

पर अब हमसे दूर वो भागने लगे हैं

है पता हज़ारो है उनके चाहने वाले

फिर भी करीब उनके जाने लगे हैं


वो दूरिया उतनी ही अब बनाने लगे हैं

हर दिन फिर नए बहाने बनाने लगे हैं

मासूम चेहरा दिखा कर फिर रूठते है

इन्ही अदाओ से तो हमे लुभाने लगे हैं"

Sunday 3 November 2019

हिंदू क्या है, सचमुच क्या हिंदू धर्म विश्व का सबसे प्राचीन धर्म है-लेख

आज कल जब देखें लोग ‘हिंदू हिंदू’ का राग अलापते रहते हैं और ऐसा प्रतीत होता है जैसे हिंदू धर्म बस इन्होंने ही बचा रखा, ऐसे लोगो को हिंदू का मतलब बस चंद मन्दिर व मूर्ति पूजा के अतिरिक्त कुछ नज़र नही आता। इन लोगो को नही पता वाकई में हिंदू है क्या??

‘हिन्दू’ शब्द मुस्लिम शाशकों से भारतीयों को मिला, उन्होंने ही यहाँ के लोगों को हिंदु बोलना शुरू किया और आज के समय मे ये इतना प्रचलित हो चुका है कि हर गैर मुस्लिम व गैर मूर्ति पूजक खुद को हिन्दू कहता है।

हिन्दू शब्द का शाब्दिक अर्थ क्या है ये हमने अपने आद्यातमिक लेख विस्तार से लिखा है लेकिन आज इसकी जगह हम बताना चाहेंगे और लोगों गुज़ारिश करेंगे कि थोड़ा अतीत में जाये और इतिहास पर भी गौर फरमाएं।

प्राचीन भारत मे सभी लोग एक ही धर्म के अनुयायी थे वो था मानव धर्म, कुछ लोग कहते हैं ये सनातन धर्म था जो अति प्राचीन है, लेकिन ये सत्य नही है, यदि आप युग व्यवस्था में यकीन करते हैं तब आपको सतयुग में यकीन करना होगा क्योंकि उस समय न कोई मन्दिर होते थे न कोई पुजारी, समाज की व्यवस्था पूरी तरह परमात्मा के अनुसार चल रही थी, उस समय कोई सनातन धर्मी नही थाहाँ मानव धर्म अवश्य था जो प्रेम, सदाचार, दया, शांति, संतुष्टि, सदभाव के साथ ही उस निराकार परमात्मा पर यकीन करती थी साथ ही अपने परिवार पड़ोस आदि को भी ईश्वर तुल्य समझ सभी एक दूसरे के लिए पूजनीय थे तभी वो युग सतयुग था, सतयुग अर्थात सत्य का युग, एक ऐसा युग जहाँ प्रत्येक व्यक्ति एक नवजात शिशु के समान निश्छल था साथ ही उस समय पुरी पृथ्वी अर्थात भूमि यू अलग अलग दीप व महादीप में बटी नही थी, इसलिए ये भी कहना गलत होगा कि ये सब भारत मे था क्योंकि उस समय न कोई देश था न ही कोई राज्य और जीवो को एक दूसरे की भावना और ज़ज़्बातों को पहचानने के लिए भाषा की जरूरत भी नही होती थी, लोग स्वतः ही एक दूसरे के मन की बात समझ जाते थे, इसलिये वो युग सतयुग था और कहते ईश्वर उस समय यहाँ रहते थे, उस समय के व्यक्तियों में उनके सात्विक तत्व जाग्रत रहते थे और उनमें शैतानी तत्व नही थे।

लेकिन समय के साथ व जलवायु परिवर्तन के साथ जैसे जैसे दीप और महदीपो का निर्माण होने लगा उसमे कई मनुष्य व जीव जंतु मारे जाने लगे, और लोग दीपो व महदीपो के निर्मान के अनुसार पूरी दुनिया मे बिखर कर फैल गए, समय के साथ लोगो ने अपने अनुसार अपनी शक्ति के माध्यम से देवी देवताओं की कल्पना कर उनकी उपासना शुरू कर दी, और उनकी जो पीढ़ी तैयार होती गयी वो अपने अंदर ईश्वरीय तत्व को भूल अपने परिजनों द्वारा बताए निम्न देवी देवताओं किहि उपासना करने लगी, लोगों ने कुछ बाते अपने पुस्तको में लिख दी जो दैवीय शक्ति द्वारा कुछ उन्हें बताई गई तो कुछ उनकी कल्पना मात्र थी, हालांकि उनकी भक्ति व शक्ति के आधार पर उस निराकार ईश्वर को मनुष्य की कल्पना हेतु देश, काल और परिस्तिथि के अनुसार जन्म भी लेना हुआ और इस तरह विश्व के प्राचीन धार्मिक ग्रंथों की रचना हुई।

अब हिन्दू वादी ये कहे कि संसार का पहला धर्म हिंदू या सनातन था गलत है, हिन्दू धर्म नही बल्कि संस्कृति है, धर्म एक मत पर और एक किताब पर चलता है, संसार मे जितने उसके मानने वाले है सबका एक ही त्योहार होता है, भाषा भी मुख्य वही होती है जिसके वो अनुयायी है, लेकिन यहाँ हिन्दुओ की बात की जाए तो हर एक क्षेत्र में लोगो के रीति रिवाज यहाँ तक कि धार्मिक ग्रंथों में भी अंतर मिल जाता है, आज भी प्राचीन काल की तरह ही उत्तर भारत के लोग खुद को श्रेष्ठ समझते हैं वही दक्षिण भारत के खुद को, भाषा, खानपान, रीति रिवाज आदि के अनुसार पूरा हिंदू समुदाय बिखरा पड़ा है, ऐसा इसलिए क्योंकि हिन्दू धर्म नही संस्क्रति है, इतना भेद सिर्फ संस्कृतियों में ही हो सकता है, पर यहाँ ये बात जरूर महत्वपूर्ण है कि विश्व की लगभग लुप्त हो चुकी संस्कृतियो में ये आज भी अपना अस्तित्व बचाये हुए हैं,  जैसे प्राचीन रोमन सभ्यता व संस्कृति जो अब पूरी तरह खत्म हो चुकी है वही आज भी सनातन संस्कृति अपना वजूद कायम करे हुए हैं, इसका कारण ये भी एक है कि इतनी भिन्नता के बाद भी ये समय के साथ खुद को परिवर्तित करती रही साथ ही प्राचीन तत्वों को भी साथ ले कर चलती रही और आखिर मुस्लिम व विदेशी शाशको ने इसको एक कर एक धर्म बना दिया जिसे आज हम और आप हिंदू कहते हैं।

हम अपने वेदों पर बहुत नाज़ करते हैं और धर्म ग्रंथो पर बहुत नाज़ करते हैं और करना भी चाहिए क्योंकि इसलिए नही की ये ही सत्य है इसकी बात ही सत्य है, इसके अनुसार जो ईश्वर के जन्म व लीलाये हुई वोही सत्य है बल्कि इसलिए नाज़ करना चाहिए क्योंकि विश्व के प्राचीनतम ग्रंथों में ये आज भी जीवित है, संसार के परिवर्तन के बाद भी ये अपना अस्तित्व बचाये हुए हैं इसलिए ये कीमती है, अन्यथा ईश्वर ने मानव कल्पना अनुसार हर उस स्थान पर लीलाये की व धर्म ग्रंथ लिखे गए जहाँ-जहाँ जलवायु परिवर्तन के कारण मनुष्य दीपो और महदीपो की सुनामी में बह कर दुनिया के कोने कोने में फैल गया था।
यहाँ ये भी जानने योग्य बात है कि आदि सतयुग व सतयुग में कोई भी धर्म ग्रंथ वेद पुराण नही लिखे गए थे, इनकी जरूरत तब पड़ी जब सतयुग समाप्ति पर था, जलवायु परिवर्तन जोरो पर हो रहा था, एक ही धरती जब टूट कर अनेक दीपो व महदीपो में बदल रही थी, मनुष्य व जीव मर रहे थे, तब समस्त जीवों की इच्छा शक्ति से उस निराकार ईश्वर द्वारा मार्ग पूछने पर इनकी रचना हुई, और और उस दैवीय निराकार शक्ति को साकार रूप ले कर जीव जाती की रक्षा हेतु आना पड़ा किंतु ये भारत की भूमि में ही हुआ ये गलत धारणा है ये हर उस भूमि में हुआ जहाँ मनुष्य व जीव जीवित बचे और उन्होंने उस परमात्मा से अपनी रक्षा हेतु पुकार लगाई, तभी आप देखना प्राचीन यूरोपीयन ईतिहास वहाँ भी सूर्य पूजा, अग्नि पूजा, पशु पूजा, इंद्रा पूजा आदि होती थी, कई देवी देवताओं की पूजा होती थी, ऐसा संसार के हर दीप समूहों में रहने वाले मनुष्य करते थे, मूर्ति पूजा का विधान पूरी दुनिया मे प्रचलित था, यहां तक कि मुस्लिम देश जो आजके है वहाँ भी मूर्ति पूजा होती थी।
विश्व के कोने कोने में देश, काल और परिस्तिथि अनुसार परमात्मा ने लीलाये की व धर्म ग्रंथो की रचनाएं हुई और सभी सत्य है, इसलिए हिन्दू खुद को सबसे पहली संस्क्रति व प्राचीन व प्रथम धर्म कहना बन्द करे हाँ गर्व जरूर करे क्योंकी वो उस संस्कृति का हिस्सा है जो सदियों से कायम है और हम सबके नेक प्रयासों से कायम रहेगी किंतु साथ ही जो नवीन मतानुयायी है उनका भी सम्मान करें क्योंकि सबका सम्मान करना है यही सनातन सभ्यता व संस्क्रति का एक हिस्सा है।।

Tuesday 29 October 2019

ईश्वर वाणी-280, खुद को खुद से जोड़ने की विद्या ही आध्यात्म है


आध्यात्म एक ऐसा विषय जिसके बारे में हम सभी ने सुना है, बहुत से लोग धार्मिक किताबों को पढ़ना, अपने धार्मिक स्थानों पर भ्रमण करना, अपने रीति-रिवाज़ों को मानना ही आध्यात्म समझते व कहते हैं किंतु आध्यात्म है क्या वास्तव में ये कोई नही बता सकता सिर्फ एक योग्य आध्यत्मिक गुरु के, लेकिन वो गुरु सिर्फ एक ही मत को सर्वश्रेष्ठ व उसका ही अनुसरण करने पर जोर देने वाला नही होना चाहिए, क्योंकि जो व्यक्ति एक ही धर्म, जाती, भाषा, वेश-भूषा रीति-रिवाज़ को ही श्रेष्ठ बताते हुए अन्य की निंदा करते हैं वो कभी आध्यात्मिक हो ही नही सकते क्योंकि आध्यात्म जोड़ता है न कि तोड़ता है।
एक योग्य आध्यात्मिक गुरु ही हमे आत्म मन्थन की विद्या देता है, ये तो सभी ने सुना है कि हर जीव के अंदर ही ईश्वर रहते हैं, अपने अंदर छिपी दिव्य शक्तियों को पहचान कर उनका प्रयोग जगत के कल्याण में करने हेतु यही कार्य है आध्यात्म का जो पहले खुद को खुद से जोड़ता है।

हर जीवात्मा व मनुष्य में अलौकिक शक्तियां होती है जो एक योग्य गुरु के मार्गदर्शन में जाग्रत हो सकती है, जिससे हम मानुष को पता चलेगा कि उसका ये जीवन इस धरती पर क्यो है, उसका उद्देश्य वास्तव में क्या है, वो जो गलत व्यवहार,गलत चाल चलन, झूठ फरेब व्याभिचार आदि गलत कार्य कर रहा था क्या वो इसके लिए आया है।

लेकिन दुविधा इस बात की है कि आखिर ऐसा गुरु कहाँ ढूंढे, गुरु वो नही जो कोई धार्मिक पुस्तक का पाठ अथवा कथा सुनादे या रटे रटाये मन्त्र बड़बड़ा दे अथवा 4/6 प्रवचन सुनादे, एक सही गुरु इन सबसे ऊपर तुम्हे तुम्हारे समुचित व्यक्त्वि व आने वाले जीवन का साथ ही वर्तमान जीवन को सवार सकता है, और इसके लिए जरूरत है पहले खुद को जानना, खुद के अंदर छिपी शक्तियों को जानना,अपने उद्देश्यों को जानना।

यदि किसी को ऐसा योग्य व्यक्ति गुरु के रूप में नही मिला है तब भी वो एक योग्य गुरु बना सकता है और वो है उसके अपने इष्ट देव जिन पर उसकी आस्था है, व्यक्ति को उन्हें ही गुरु की उपाधि दे कर प्रार्थना करनी चाहिए कि मुझे वो ज्ञान दे जो परम् सत्य है, मुझे मेरी शक्तियों का बोध कराए, मेरे जीवन मे उद्देश्य बताये, मेरे यहाँ होने का कारण बताए, मुझे मुझसे मिलाएं साथ ही उस परम को हर स्थान पर महसूस करे, निःसंदेह एक समय बाद जब तुम्हारा तपोबल बड़ जागेगा और तुम्हारे इस जन्म व पिछले जन्म के पाप जैसे जैसे कम होते जाएंगे तुम्हें आध्यात्म का बोध होता जाएगा क्योंकि तुम खुदको खुदसे ढूंढ लोगे जोकि न किसी सत्संग न प्रवचन और न धार्मिक पुस्तक से हासिल कर सकते हो।

जय माता दी
जय गुरु जी

ईश्वर वाणी-279,जीवन मे आध्यात्म की आवश्यकता

ईश्वर वाणी
हर जीव के अंदर ईश्वर विद्यमान है, किंतु मनुष्य ऐसा एक मात्र जीव है इसमें ईश्वर के साथ शैतान भी विधमान है, मनुष्य को अपने भीतर के राक्षश अथवा शैतान को जाग्रत करने की आवश्यकता नही होती क्योंकि ये तो उसके जन्म के साथ उमर बढ़ने पर खुद ब खुद जाग्रत होने लगता है जबकि उसके अंदर का ईश्वर जो केवल शेशवस्था तक रहता है किंतु शैतानी अथवा राक्षशी तत्व उम्र के साथ और भी अधिक बढ़ता जाता है।

आखिर क्या है इंसानी शैतानी तत्व अथवा राक्षश?? झूठ, फरेब, धोखा, निंदा, व्यभिचार, खून, रक्तपात, धूम्रपान, मदिरापान, मांसाहार, अपनी मर्यादा का उल्लंघन, ईश्वरीय व्यवस्था का उलंघन, भौतिक सुखों में लिप्त रहना, दुसरो को दुखी देख कर खुश होना, सदा अपनी बड़ाई करना, दुसरो को नीचा दिखाना, सदा भौतिक वादी बने रहना, धर्मिक व्यक्ति अथवा धार्मिक स्थान को नुकसान पहुचना, किसी भी धार्मिक ग्रंथ अथवा पुस्तक को नुकसान पहुचाना, इंसान का इंसान से भेदभाव का व्यवहार करना, किसी को बेवजह दुख देना इत्यादि लक्षण है जो इंसान में समय के साथ विकसित खुद ब खुद होते जाते हैं और इस तरह उनके अंदर का ईश्वर उनके शैतानी स्वरूप के समक्ष दब कर रह जाता है।

किंतु आद्यात्म एक एक रास्ता है जिस पर चल कर मनुष्य अपने अंदर के शैतान को मारता है और अपने अंदर के ईश्वर को जगाता जो समय के साथ व्यक्ति की बुराई के आगे मन की गहराई में कही दब कर रह जाते है।

एक योग्य गुरु जो खुद आध्यात्म में पारंगत हो वोही किसी व्यक्ति को उस ओर ले सकता है जो उसका न सिर्फ ये जीवन अपितु अनन्त जीवन सवारने की काबिलियत रखता है, आध्यात्म एक लड़ाई है खुद की खुद से, अर्थात अपनी ही बुराइयों की अपनी ही अच्छाइयों से और इसमें जीत एक योग्य गुरु के मार्गदर्शन में ही मिल सकती है।

लेकिन केवल सत्संग करने वाला, एक धर्म अथवा मत को सर्वश्रेष्ठ कहने वाला, एकेश्वरवाद का अनुशरण कर केवल अपने ही ईस्ट को श्रेष्ठ बता अन्य को नीचा बताने वाला, निंदा करने वाला, केवल रटे रटाये कुछ धार्मिक पुस्तकों के पाठ कहने वाला कभी आध्यात्म से जुड़ा नही हो सकता अपितु भ्रमित करने वाला जरूर हो सकता है।

 इसलिए योग्य श्रेष्ठ गुरु को ही ढूंढो और अपने अंदर के राक्षस को मार कर अपने अंदर के ईश्वर को जगाओ ताकि कलियुग भी उत्तम सतयुग के समान बन सके।

कल्याण हो

Wednesday 9 October 2019

ईश्वर वाणी-278 वास्तविक पूँजी



ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों यद्धपि तुम इन भौतिक वस्तुओं के पीछे भागते हो, इस भौतिक काया को ही सत्य मानते हो, और इसलिए तुम उस वस्तु को ठुकरा देते हो जो बहुमूल्य है और वो है नेकी।

यद्धपि तुम में से बहुत से व्यक्ति कहेंगे कि हम इतना दान पुण्य करते हैं तो यही तो नेकी है, लेकिन हे मनुष्यों मेरी दृष्टि में ये ही सिर्फ नेकी नही है, सबसे बड़ी नेकी तो वो है जब तुम अपने अहंकार का त्याग कर सबको समान समझो, इन भौतिक वस्तुओं का मोह न कर केवल अपने व्यवहार और वाणी पर संयम रख कोई ऐसी बात न करो जिससे किसी निरीह, दुःखी, , गरीब, बेसहारा अथवा पिछड़ा व्यक्ति और दुःखी हो, 
  हे मनुष्यों तुम तो कह कर बहुत कुछ चले जाते हो, तुम अपने भौतिक संसाधनों व भौतिक वस्तुओं के घमंड में आ कर और उक्त व्यक्ति भी दुःखी हो कर आगे की ज़िंदगी जी ही लेता है लेकिन तुम जो बहुमूल्य वस्तु को अपने व्यवहार और वाणी के माध्यम से खोते हो वो तुम नही जानते।
  श्मशान अथवा कब्रिस्तान ऐसी जगह है जो इस भौतिक देह की एक मात्र मंज़िल है, भले तुमने जीते जी बहुत पैसा कमाया और अपनी स्तिथि वाले लोगों को ही मित्र व संबंधी बनाया, लेकिन जब इस भौतिक शरीर की वास्तविक मंज़िल आयी तो तो कौन तुम्हारे साथ आया,  आये तो तुम उसी मरघट पर जहाँ एक भिखारी भी आया जब उसकी भौतिक देह की मंज़िल आयी, एक संत भी आया जो उम्र भर मेरी आराधना करता रहा, राजा और ज़मीदार भी आया जो उमर भर भौतिक संसाधनों का सुख भोगते रहे, और यहाँ तुम भी आये जब तुम्हारे भैतिक देह अपनी वास्तविक मंज़िल की तलाश में चली।

  ऐसे में तुम्हारी आत्मा पूछेगी की आखिर मैं उमर भर किसका घमंड करता रहा जो मेरा था ही नहीं, ये भौतिक संसाधन जिनके लिए ये ज़िन्दगी गुज़र दी आज मेरे घर वाले और सम्बन्धी इसका उपभोग कर रहे हैं, ये भौतिक देह इसका घमंड था ये आज बेबस इस भूमि में पड़ी हुई है, और मेरे साथ क्या है??  मैंने जो अपनी वाणी और कर्मो से दूसरों का दिल दुखाया उनके आँसू और बददुआ है, मेरे जाने अनजाने में किये मेरे कर्म मेरे साथ है, अगली यात्रा मेरी कैसी होगी अब मुझे नही पता लेकिन अच्छा व्यवहार रखा होता मैंने और भौतिकता का घमंड नही किया होता तो आज मैं उस सुख से वंचित न होता जो इस भौतिक देह को त्याग कर प्राप्त होता है, साथ ही श्रेष्ठ जीवन व परम् सुख से वंचित न होता।
हे मनुष्यों ये न भूलो ये भौतिक जीवन बहुत ही छोटा है, ये तुम्हारे विद्यालय की उस परीक्षा के समान है जिसको उत्तीर्ण करने पर तुम अगली कक्षा में प्रवेश करते हो, और यदि एक ही कक्षा में बार बार अनुतीर्ण होते हो तो परीक्षा से व कक्षा से बाहर निकाल दिए जाते हो, और यदि उत्तीर्ण भी होते हैं परीक्षा में तो तुम्हारे नंबर निश्चय करते हैं कि अगली कक्षा में क्या स्थान होगा।

  यही जीवन-मृत्यु की यात्रा है, इसलिए जैसे विद्यालय की परीक्षा की तैयारी तुम करते हो वैसे ही अपने भौतिक स्वरूप,भौतिक संसाधन,भौतिक संबंधों का मोह न कर केवल मेरा मोह करो,घमंड करना है तो मेरे स्वरूप का करो,ताकि तुम अपनी अगली यात्रा को बेहतर कर उस सुख को प्राप्त कर सको जो परम है और यही आत्मा की वास्तविक पूँजी है न कि ये भौतिकता।“

कल्याण हो

Thursday 3 October 2019

आज की देशभक्ति-एक लेख


आजकल भारत पाकिस्तान का मसला मीडिया पर खूब छाया हुआ है, इस साल 14 फरबरी 2019 में जब हमारे वीर सेनिको पर आतंकवादियों ने हमला कर मौत की नींद सुला दिया था तब भारत के लोगों में यकायक देश भक्ति देखने को मिली, ठीक वैसा ही मैंने महसूस किया जैसे 16 दिसम्बर 2012 को निर्भया गैंगरेप के बाद अचानक लोगों का ज़मीर जाग उठा था कि अब ये और नही, लेकिन हुआ क्या?? हालत आज भी वैसे ही है जैसे पहले थे, वही हाल मैंने ऐसे देश भक्तो का देखा।
भारत हो या पाकिस्तान जब भी इन देशों में बात एक दूसरे की आती है तो हर तरफ देशभक्ति देखने को मिलती जैसे सिर्फ इसी नामसे लोगो का ज़मीर जागता है बाकी तो सोता रहता है, इसी का फायदा हमारे राजनीतिक लोग 70 साल से फायदा लेते आये हैं और कोई शक नही लेते रहेंगे, लेकिन आज बात राजनीतिक लोगो की नही हमारे देशभक्त लोगो की है और जो भारत-पाकिस्तान दोनों के नागरिकों के लिए बराबर है।
मेरी एक मित्र है पाकिस्तानी, जब 14 फरबरी 2019 को आतंकियों द्वारा वीर सेनिको को शहीद कर दिया तो मेरी एक हिंदुस्तानी मित्र ने कहा कि किसी पाकिस्तानी से कोई रिश्ता नही रखना है, अपने पाकिस्तानी मित्र का फोन नंबर ब्लॉक कर दो, मैंने उसको कहा कि मुझे ये पता ही मुझे क्या करना है और किसी की सलाह नही चाहिये, करने वाले गलत काम तो दूसरे है इसमें सभी को एक सी नज़रो से नही देखना चाहिए, इस पे मेरी भारतीय मित्र ने मुझे गद्दार बोल कर ब्लॉक कर दिया व्हाट्सएप पर, फिर 28 फरबरी 2019 को मेरे बड़े भाई की अचानक मौत हो गयी, मैंने अपनी इसी हिंदुस्तानी मित्र को फ़ोन करके बताया,मेरे घर पर मेरे अतिरिक्त कोई नही था, माता-पिता और छोटा भाई अस्पताल में थे बड़े भाई साहब के पास, तब मेरी इस हिंदुस्तानी हिन्दू मित्र जिसका नाम "रजनी मुंद्रा" है इसने कहा कि अब पता चला?? मुझे हैरानी हुई ये सुन कर और मतलब क्या था इस शब्द का आप खुद सोच सकते हैं, ये वही महिला है जिसके परिवार ने इसका साथ नही दिया था जब इसको उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी क्योंकि इसने घर वालो के खिलाफ जा कर आशीष मुंद्रा से शादी की थी, और वो शख्स भी शादी के बाद इसको टॉर्चर करता था, मेरे भाई ने कहा था जिसकी मौत हुई कि मैं उसको अपने घर ले आऊंगा क्योंकि वो मेरी बहन है अगर उसके ससुराल वालो ने टॉर्चर जारी रखा तो, साथही जब वो माँ बनी एक लड़के की तब भी मेरे माता पिता ने उसके माता बन कर सारी रस्मे निभाई जबकि उसके सगे माता पिता आये तक नही।
मुझे याद है जब मेरी उससे दोस्ती हुई थी तब उसके पास खाने को भी नही होता था,न ठीक से पहनने को कपड़े थे, और हमारे पास सब कुछ था, बावजूद इसके सिर्फ इंसानियत के आधार पर बिना भौतिक वस्तुओं को तवज़्ज़ो देते हुए उससे दोस्ती निभाई, लेकिन आखिर में उसके शब्दो ने दिल पर उस बम से भी ज्यादा घाव दिए जिसमे बेगुनाह लोग मर जाते हैं।
वही मेरी पाकिस्तान की मित्र जिन्होंने सुबह से मेरा साथ दिया जबसे भाई की हालत नाजुक की खबर उन्हें दी, फिर भाई साहब की मौत की खबर उन्हें दी,उन्होंने ही मुझे बताया कि सफेद कपड़े बिछा के रखो आँगन में, घर की साफ सफाई कर लोगो बैठने शोंक दिखाने की जगह बनाओ, फिर मैंने वही किया, मुझे घर पर कोई कुछ बताने वाला नही था कि क्या करना है लेकिन पाकिस्तानी मित्र मुझे फ़ोन पर सब बताती रही साथ ही हौसला देती रही।
इसके साथ ही मैंने अपने सभी मित्रों को ये खबर दी और वक्त के साथ समझ आया न तो दोस्त होते हैं दुनिया मे न दोस्ती, सब मतलब के लोग हैं, और जो खुद को देशभक्त कहते हैं दरअसल ये देश के तो क्या इंसानियत के दुश्मन है, मैंने महसूस किया कि जो लोग सेनिको की सहादत पर हाय तौबा मचाते है वो कितना डोनेट करते हैं किसी सैनिक के परिवार को उसकी सहादत पर?? क्या किसी शहीद सैनिक के बच्चे की पढ़ाई का खर्चा उठाया है इन्होंने जो बात करते हैं देश भक्ति की।
देश केवल सीमाओं से नही लोगो से बनता है अन्यथा ये सिर्फ एक ज़मीन का टुकड़ा है, कितने लोग हैं जो खुद को देश भक्त कहते हैं और जब किसी को मुश्किल में देखते हैं तब चाहे कितने ही व्यस्त क्यो न हो मदद के लिए दौड़ पड़ते हैं, कहते हैं लोग की देश पहले है और बाकी सब बाद में, लेकिन मेरा सवाल है बिना इंसानों के कौन सा देश होता है, जब तुम इंसान की और अपने देश मे रहने वालों की कद्र नही करोगे, उनके दुख सुख में काम नही आओगे तो कैसा देश कैसी देधभक्ति, असल मे खुद को देशभक्त कहने वाले सब के सब गद्दार है देश के और इंसानियत के।
आज जब भी कोई मुझे देशभक्ति की बात कहता है तो हँसी आती है, मन बस यही सवाल करता है कि देशभक्ति है कहाँ??एक कवि की कविता में ही देशभक्ति है, एक लेखक की कहानी में ही देशभक्ति है, सिर्फ किस्से कहानियों में देशभक्ति है, कल्पना में देशभक्ति है, बाकी तो लोग खुद को ही धोखा देते हैं देशभक्त बोल कर, क्योंकि देश सिर्फ एक ज़मीन का टुकड़ा नही है, देश बना है मुझसे तुमसे हम सबसे, और अगर तुम मेरे काम नही आ सकते, मेरे आंसू नही पोछ सकते तो तुम सब देशद्रोही हो अथवा देश नही सिर्फ उस जमीन के टुकड़े के भूखे हो जहाँ भारतीय सभ्यता जो प्रेम पर आधारित थी इसका जन्म हुआ था
जय भारत
Archana Mishra

Sunday 4 August 2019

मेरी कलम से

"**कहने को तो यहाँ बहुत मेरे हमसाये है
कहते हैं बड़ी किस्मत तुम्हें हम पाए है
पर जब मुड़ कर देखते हैं ए ज़िन्दगी तुझे
दोस्त की जगह यहाँ दुश्मन ही हम पाए है**"


"+*+*दोस्त तो होता है वो जो दोस्ती के लिए कुछ कर गुज़र जाए,
जो गिर जाए एक तो दूजा संभाले उसे या खुद गिर जाए
बस खुद को दोस्त कहने से नही कोई दोस्त हो जाता यहाँ
दोस्त वो है जिसके आने से ज़िन्दगी के हर रिश्ते बदल जाये*+*+"

मेरी कलम से "दोस्ती"

 

           सुना है दोस्ती बहुत खूबसूरत रिश्ता है, ये वो रिश्ता है जिसे इंसान खुद बनाता है क्योंकि कुछ रिश्ते हर मनुष्य को जन्म के साथ मिलते हैं लेकिन दोस्ती ही ऐसा रिश्ता है जिसे इंसान खुद बनाता है, चूँकि इंसान एक सामाजिक प्राणी है इसलिए दोस्ती का रिश्ता बनाना हर किसी के लिए आवश्यक है।

कहते हैं जब अपने साथ छोड़ देते हैं तब दोस्त काम आते हैं, लेकिन आधुनिक समय मे क्या ये बात सत्य है, मुझे लगता है नही, समय के साथ दोस्ती के मायने भी बदल गए हैं, आज दोस्त कृष्ण सुदामा अथवा कर्ण दुर्योधन जैसे नही रहे जो अपने मित्र के लिए किसी भी हद तक जा सके, मित्रता चाहे पुरुषो की की पुरुषो से हो अथवा महिला की महिला से अथवा पुरुष व महिला की, आज मित्रता केवल स्वार्थ पर निर्भर है, आज दोस्ती व्यक्ति उसी से करता है जिससे उसको कोई लाभ मिलता है ये लाभ कैसा भी हो सकता है जैसे-पैसों का, ताकत का, अपना रुतबा दिखाने का इत्यादि इत्यादि।
आज के लोग बात बात में 'मेरे दोस्त'  'मेरे भाई' 'मेरी बहन' जैसे शब्द का उपयोग तो कर देते हैं पर सच मे उस रिश्ते की अहमियत भी पता है, जाहिर सी बात है नही क्योंकि हमें किसी रिश्ते की गहराई से मतलब नही मतलब तो है सिर्फ अपने स्वार्थ से।

अगर मैं अपनी ही बात करु तो कुछ महीने पहले मुझे ये गलतफहमी थी कि मेरे काफी अच्छे मित्र हैं जो मेरे दुःख-सुख में मेरे साथ रहते हैं, यद्धपि मैंने उनके साथ मित्रता काफी अच्छे से निभाई, और अगर मेरे मन मे उनके लिए सच बोलू तो बोरियत हुई भी तो मेरे भाइयों ने मेरी माँ ने रिश्तों की अहमियत का हवाला देते हुए दोस्ती निभवाई लेकिन जब मेरे मित्रों की बारी आई कि वो दोस्ती निभाये तो सब पीछे हट गए।

खेर मुझे तो ईश्वर ने आध्यात्मिकता से जोड़ा हुआ है, इसलिए कोई शिकवा नही किसी से क्योंकि ये सब माया है, सब माया के जाल में फसे है, सब सिर्फ इस भोतिकता को ही सच मानते हैं और इसी के अनुसार व्यवहार करते हैं, ये दुनिया भी कर्मप्रधान ही है इसलिए सब अपना कर्म करते हैं चाहै अच्छा हो या बुरा।

लेकिन ज़िन्दगी के अनुभव और कर्म प्रधान इस समाज को देख के मैंने जाना है इस दुनिया मे कोई भी रिश्ता सच्चा नही है, सब रिश्ते नाते झूठे है और आपकी कामयाबी के साथ ही खड़े हैं, अगर कही भी आप असफल होते हैं तो जो खुद को कितना अज़ीज़ बोले, करीबी लोग ही ऐसे आपसे दूर जाते हैं जैसे जहाज डूबता है तो चूहे भागते हैं पहले वैसे ही।

अगर बात की जाए एक सच्चे मित्र की जो हर पल आपके साथ चलता है तो वो है सिर्फ ईश्वर, वो कल भी था वो आज भी है और कलभी रहेगा जबकि न ये इंसानी रिश्ते पहले थे आज भी कब पीछे छूट जाए कुछ पता नही और आने वाले वक्त में तो होंगे ही नही,इसलिए मुझे अब किसी इंसान की मित्रता में कोई रुचि नही रही, सभी रिश्ते सिर्फ और सिर्फ स्वार्थ की डोर से बंधे है।।

Archana Mishra

Friday 19 July 2019

मेरी कलम से


"मुझे ये समझ नही आता जो लोग खुद को ईश्वर, अल्लाह, गॉड का परम भक्त कहते हैं वो ईश्वर में भेदभाव कैसे कर सकते है और ईश्वर के भक्त अल्लाह कहने वाले को नीचा दिखाते हैं, गॉड कहने वाले अल्लाह और ईश्वर कहने वाले को नीचा दिखाते हैं।
कोई रामायण पर यकीन करता है वेदों पर करता है तो कुरान और बाइबिल को गलत ठहरता है, मुझे ये बताये क्या किसी वैदिक ग्रंथ में ये लिखा है कि बाइबिल गलत है अथवा कुरान गलत है।
यद्धपि कुरान और बाइबिल में निराकार ईश्वर की उपासना को श्रेष्ठ बताया गया है लेकिन वैदिक वेदों में भी निराकार ईश्वर की उपासना को ही श्रेष्ठ बताया गया है, कई हिन्दू पूजा साधना आराधना में यंत्र का उपयोग होता है ईश्वर के, ये यन्त्र भी तो निराकार ईश को ही दर्शाते हैं।
ये न नही भूलना चाहिए जो नवीन धर्म/मज़हब है (जो मेरी दृष्टि में मज़हब नही सिर्फ एक पंथ निराकार/साकार ईश को मानने वाले, ईश्वर ने एक धर्म बनाया है वो ही मानव धर्म मानव के लिए, बाकी तो पन्थ है उन्हें पाने के लिए जैसे साधनाये 3 तरह की होती है 1-सात्विक, 2-राजसिक, 3-तामसिक, लेकिन तीनो ही तरीके ईश्वर की ओर ले जाते हैं, अपनी अपनी इच्छा और सामर्थ के अनुसार व्यक्ति निम्न भक्ति मार्ग को चुनता है)  सिर्फ प्राचीन ज्ञान का सार मात्र है।
आप लोगो मे बहुत से माता रानी के भक्त होंगे, कई लोग दुर्गा शप्तशती का पाठ करते होंगे लेकिन जो लोग पूरा पाठ नही कर सकते उनके लिए "सिद्ध कुंजिकास्तोत्र" का पाठ करना ही उत्तम व दुर्गा सप्तशती जितना ही फलदायी माना गया है, ठीक वैसे ही प्राचीन वैदिक ग्रंथो व रीति रिवाज़ों के लिए कलियुग में अभाव हेतु नवीन निम्न विचारधाये जन्मी व धीरे धीरे विश्व मे फेल गयी और धीरे धीरे लोग प्राचीन वैदिक बातो को भूल गए और शीघ्र फलदायी ईश्वर की निम्न उपासना व सार को ही सत्य मानने लगे क्योंकि हर कोई शीघ्र परिणाम चाहता है इसलिए।
और ऐसा नही है कि प्राचीन वैदिक ज्ञान केवल भारत का ही सही है क्योंकि ईश्वर ने भारत ने पूरी पृथ्वी बनाई है, इसलिए भारत के वैदिक ज्ञान के साथ पूरे विश्व के प्राचीन ज्ञान को समझना होगा यकीन करना होगा।
साथ ही लोग जो धर्म व ईश्वर अल्लाह गॉड के नाम पे लड़ते हैं वो सब अनाड़ी अथवा मूर्ख अथवा अज्ञानी है क्योंकि जिस व्यक्ति में आध्यात्मिक ज्ञान होगा वो गॉड में अल्लाह ईश्वर में गॉड और अल्लाह में ईश्वर को देखेगा न कि उनकी आलोचना करेगा व धर्मिक पुष्तक व अराधनलयो को नुकसान पहुचायेगा ।
यहाँ एक बात और जानने योग्य है कि जो नवीन पन्थ के अनुयायी है व नवीन धार्मिक पुष्तक है उनकी जो बातें हैं वो उस समय व आज के समय को कुछ हद तक ध्यान में रख कर कुछ नवीन बाते बोली गयी है जो उस स्थान जहाँ ये ग्रंथ लिखे व उतपन्न हुए वहाँ के हालातों को ध्यान में रख कर लिखे गए, इसलिए किसी धार्मिक ग्रंथ की आलोचना व्यर्थ है किँतु उनके सार को देखे जो एक है जो परम् सत्य है जो ईश्वर से जोड़ता है।।"
जय माता दी
Archana Mishra

ईश्वर वानी-276, ईश्वर को जानना



ईश्वर कहते हैं, " यद्धपि तुम मुझे यहाँ वहाँ ढूंढते हो, लेकिन तुम मुझ परमात्मा का एक अंश हो इसलिए मैं तुम्हारे अंदर ही हूँ, तुम केवल भौतिकता को देखते और सत्य मानते हो किंतु जो भौतिक है वो सत्य नही।


ये न भूलो जो भौतिक है भले ये असीम ब्रह्मांड ही सही सब नाशवान है किँतु जो दिखता नही वही सत्य है जैसे तुम्हारी आत्मा दिखती नही किंतु वही सत्य है,
जैसे धरती पर प्राणवान वायु दिखती नही किन्तु उसके बिना जीवन संभव नही जैसे तुम्हारे शरीर की शक्ति दिखती नही किंतु यदि न हो तुम्हारे अंदर तो तुम हिल तक न सकोगे।


हे मनुष्यों यद्धपि देश, काल, परिस्थिति के अनुरूप मेरे ही अंशो ने धरतीपर जन्म लिया और मानवता की पुनः नीव रखी जब जब मानवता का ह्रास का हुआ।


यद्धपि मेरे ही अंशो द्वारा तुम्हें निम्न ज्ञान दिया हो किंतु प्राचीन ज्ञान का सार मात्र है ये नवीन ज्ञान किंतु यदि तुम मेरे और अपने विषय मे और अधिक जानना चाहते हो तो आध्यात्म के साथ साथ सम्पूर्ण विश्व के समस्त नवीन व प्राचीन घ्यान व धार्मिक पुस्तकों को का अध्ययन करो व विश्वास करो न कि सिर्फ उस एक पुष्तक का जिसके तुम अनुयायी हो क्योंकि मैं इतना छोटा नही कि अपनी बातें सिर्फ एक दो तीन पुष्टको में सिमट के रह जाऊ ।


हे मनुष्यों इस तरह तुम कुछ हद तक मेरे विषय मे जान सकते हो, ये न भूलो संसार का कोई भी ज्ञान असत्य नही और न ही नवीन न ही प्राचीन।।"


कल्याण हो


Archana Mishra

ईश्वर वाणी-275,जीवन मृत्यु की सच्चाई.

ईश्वर वाणी-जीवन मृत्यु की सच्चाई..                               ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि तुमने मृत्यु लोक के विषय मे सुना होगा, अधिकतर मनुष्य इस धरती को ही मृत्यु लोक समझते हैं, किंतु आज तुम्हे कुछ विशेष बात बताता हूँ, मृत्यु कई प्रकार की व मृत्यु लोक भी कई प्रकार के होते हैं।

यद्धपि मनुष्य समझते हैं पृथ्वी ही मृत्यु लोक है किँतु पृथ्वी ही नही अपितु समस्त ब्रह्मांड ही भौतिक काया का मृत्यु लोक है, क्या तुम सोच सकते हो ब्रह्मांड के किसी छोर पर जा कर तुम अमर हो सकते हो अपनी भौतिक काया के साथ अथवा कोई ग्रह नक्षत्र तुमने ढूंढ लिया है जिसपे रह कर तुम अमर हो सकते हो यद्धपि तुम ब्रह्मांड की गहराई व अनेक ग्रह नक्षत्र पर भ्रमड भले कर लो किंतु अमर कही नही और एक दिन मृत्यु तुमको आनी ही आनी है,
इसलिए तुम इस धरती को ही नही अपितु पूरे ब्रह्मांड को ही इस भोतिकता के लिए मृत्यु लोक समझो क्योकि जी दिखता है वो भौतिक ही है और जो नही दिखता वो अभौतिक है, जो भौतिक है वो नाशवान अवश्य है।
हे मनुष्यों तुम्हे मैंने अनेक प्रकार की मृत्यु के विषय मे ऊपर बताया, प्रथम प्रकार की मृत्यु तो तो तुम्हे ऊपर पता चल ही गयी, किंतु संछिप्त में अन्य मृत्यु के बारे में बताता हूँ 
यद्धपि कर्मानुसार हर जीवात्मा जन्म लेती है, साथ ही अनेक कर्म अनुसार हर जीवात्मा स्वर्ग, नरक व ईश्वसरिये लोक को प्राप्त करती है भौतिक देह के नष्ट होने अथवा त्यागने के बाद,
किँतु हर जीवात्मा जब भी कोई नया जीवन लेती है तो उसको अपना निम्न स्थान त्यागना होता है, इस प्रकार उसके पुराने कर्मो के अनुसार उसका समयफल पूर्ण हुआ और इस तरह नए भौतिक जीवन व अन्य लोक में किसी और स्थान की प्राप्ति हेतु तुम्हे जाना पड़ा तब तुम्हारी इस अवस्था मे पहली अवस्था का तुम्हारे द्वारा त्यागना ही तुम्हारी मृत्यु हुई, इस तरह भौतिक देह के त्यागने के बाद भी तुम मृत्यु को भोगते रहते हो, जन्म लेते रहते हो और मृत्यु प्राप्त करते रहते हो।

हे मनुष्यों ये पूर्ण सत्य है कि इस भौतिक संसार से परे एक पारलौकिक संसार है, ये इतना विशाल है कि तुम कल्पना तक नही कर सकते, तुम्हारी भौतिक काया के त्यागने के बाद तुम इसमे प्रवेश करते हो व नया जीवन पाते हो लेकिन हर जीवन से पहले मृत्यु आवश्यक है ठीक वैसे ही जैसे किसी पद की प्राप्ति हेतु पुराना पद त्यागना पड़ता है वैसे ही नए जीवन मे आने से पहले पुराने को छोड़ना पड़ता है, यही सच्चाई है संछिप्त में जीवन और मृत्यु की, उम्मीद है तुम्हे समझ आयी होगी।"

कल्याण हो

Archana Mishra

Friday 31 May 2019

ईश्वर वाणी-274, आखिर क्यों स्त्रीया हनुमान जी की पूजा नही कर सकती व खास दिनों में निम्न नियमो का पालन करना चाहिए


ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि ये एक अपवाद का विषय रहा है कि स्त्रियां निम्न धार्मिक स्थल पर नही जा सकती अथवा निम्न मेरे स्वरूप का पूजन नही कर सकती, किँतु आज कुछ तथ्य व सत्य तुम्हें बताता हूँ।

यद्धपि मृत्यु लोक में कुछ धार्मिक स्थान ऐसे हैं जहाँ स्त्रियों का जाना मना है व निम्न रूपो में स्त्री द्वारा मेरी स्तुति मना है, यद्धपि कुछ ऐसे नियम मनुष्य द्वारा स्त्री को नीचा दिखाने व पुरुष सत्ता को श्रेष्ठ व उच्च दिखाने के लिए बनाई गई है, किंतु कुछ कथाएं अति प्राचीन सत्य कथाएं है जिनमे स्त्रियों को निम्न धर्मिके स्थल व मेरे ही निम्न रूपमे पूजा के लिए मनाही है लेकिन ऐसा स्त्रियों को नीचा व दोयम दिखाने व पुरुष को श्रेष्ठ दिखाने के लिए नही अपितु स्त्री के अति उच्च व सम्मान के भाव के कारण है।

हे मनुष्यों में आदि तत्व परमात्मा हूँ अर्थात परम+आत्मा। आत्मा एक स्त्री तत्व है, ये ऐसा तत्व है जिसके बिना में भी अपूर्ण हूँ, आत्मा अर्थात शक्ति अथवा जीवन, मुझे परम में यदि आत्मा रूपी शक्ति ना हो तो मैं भी परमात्मा अर्थात प्रथम इस श्रष्टि का व आत्माओ का महासागर कैसे बन सकता हूँ, बिन आत्मा के मैं भी अपूर्ण हूँ जैसे भू लोक के किसी भी जीव की देह बिन आत्मा के कुछ भी नही अपितु मिट्टी के पुतले के समान है।

हे मनुष्यों ये न भूलो की तुम सबके भौतिक स्वरूप व तुम्हारी आत्मा के रूप में प्रत्येक पुरुष के अंदर स्त्री तत्व विधमान है, यदि वो स्त्री तत्व हटा दिया जाए तो पुरुश का अस्तित्व ही भू लोक से मिट जायेगा, इसलिए स्त्री का जो स्थान है वो श्रष्टि में सबसे उच्च है।
यद्धपि मनुष्यों आत्मा जब भौतिक देह में नही होती तब उसे न पुरुष कहते हैं न स्त्री व अन्य जीव जंतु, किंतु आत्मा निराकार स्वरूप में हो कर भी एक शक्ति व ऊर्जा है, यही ऊर्जा व शक्ति रूपी तत्व ही स्त्री तत्व है जो मुझ परम् के साथ जुड़ कर परमात्मा कहलाता है व जीव के साथ जुड़ कर जीवात्मा कहलाता है।

हे मनुष्यों आज तुम्हे बताता हूँ कि हनुमानजी व निम्न धार्मिक स्थल पर स्त्री पूजा क्यों नही कर सकती अपितु पुरुष ही पूजन कर सकते हैं।
आत्मा खुद एक शक्ति व ऊर्जा है, वो खुद भी एक स्त्री तत्व है, जब एक स्त्री तत्व भौतिक स्वरूप में भी स्त्री तत्व में आ जाती है तब वो खुद इतनी पूजनीय हो जाती है कि देवता जो मेरे ही निम्न रूपो से उतपन्न हुए है उसकी पूजा स्वीकार नही कर सकते अपितु वो खुद उस शक्ति की उपासना करते हैं तो ऐसे में वो अपने से उच्च पद प्राप्त व्यक्ति की पूजा कैसे ले सकते हैं, इसको इस तरह समझ सकते हो जैसे तुम कही नॉकरी करते हो और तुम्हारा मालिक अथवा तुमसे उच्च पद प्राप्त व्यक्ति से क्या तुम आदेश दे कर कोई कार्य करा सकते हो, नही न, तो ऐसे में जब जीवात्मा स्त्री शरीर मे होती है तब वो खुद अति पूजनीय होती है जिसके समक्ष मेरे निम्न रूप तक नतमस्तक है, तभी हनुमानजी प्रत्येक स्त्री को "माता" पुकारते हैं क्योंकि "माता" का स्थान संसार मे सबसे ऊँचा है तभी स्त्रियां हनुमानजी की पूजा नही करती किँतु हनुमानजी माता स्वरूप में स्त्रियों की रक्षा अवश्य करते हैं, तभी कहा जाता है भगवान राम व माता सीता की उपासना जो करता है उसकी रक्षा भगवान हनुमान करते हैं।

हे मनुष्यों किँतु अब तुम सोचोगे की यदि स्त्री इतनी पूजनीय है तो उसको पूजन की आवश्यकता ही क्या है, तो तुमको मैं बताता हूँ मेरे जिन स्वरूप की स्त्री पूजा करती है तो केवल मेरे उस रूप के लिए वो केवल एक जीवात्मा है और मेरे परमात्मा स्वरूप की स्त्री पूजा कर सकती है अथवा करती है जिसका उसको फल प्राप्त होता है किँतु माह के कुछ विशेष दिन समस्त स्त्रियों के लिए निषेध है पूजा के लिए, इसलिए नही की मैं स्त्रियों को नीचा व दोयम दिखा कर पुरुषसत्ता को बढ़ावा दे रहा हूँ अपितु इसलिए निषेध है क्योंकि स्त्री उन दिनों में अति श्रेष्ठ व उच्च हो जाती है, और अपने से उच्च व श्रेष्ठ की पूजा स्वीकार्य नही होती क्योंकि वो तो खुद मेरी पूजनीय होती है, अर्थात जो मे्रे से भी उच्च पद पर आसीन है उसकी पूजा मैं अर्थात परमात्मा भी नही लेता।

हे मनुष्यों संसार मे समस्त रूपों में स्त्री का स्वरूप ही आती श्रेष्ठ है तभी उसको जगत जननी भी कहा जाता है, किँतु मूर्ख पुरुषों द्वारा एक भ्राति फैलाई गई है कि रजस्वला स्त्री अशुद्ध होती है, इससे दूर रहो, पुरुषों व खुद स्त्रियों द्वारा उसका अपमान किया जाता है जोकि पूरी तरह अनुचित है।
पृथ्वी भी एक स्त्री है, जो कि रजस्वला होती है, ये तब रजस्वला होती है जब जवालामुखी फटता है, हालांकि उस प्रकिया के दौरान जो भी उसके सम्पर्क में आता है उसका सर्वनाश हो जाता है किँतु बाद में उसमे ही जीवन पनपता है व जीवनयोपगी वातावरण व भोज्य सामग्री खेती आदि हेतु भूमि का निर्माण होता है।
हे मनुष्यों क्या तुम उस ज्वालामुखी विस्फोट को धरती का अपवित्र होना कह सकते हो??नही??
 
यदि धरती रजस्वला होने पर अशुद्ध व अपवित्र नही तो बाकी स्त्रियां क्यों अपवित्र हुई। हाँ ये सत्य है उस अवस्था मे स्त्री के शरीर से ऐसी ऊर्जा आवश्यक निकलती है जिसके ताप को सहना हर किसी बस में नही तभी ये नियम बनाये गए कि स्त्री पेड़ पौधों मे जल न दे क्योंकि वो सूख सकते हैं, वो स्त्री का ताप शायद न सह सकें, रसोई में भोजन इसलिए नही बनाने की अनुमति है कि स्त्री खुद अभी पूर्ण स्त्री ताप पर है ऐसे में अग्नि का ताप स्त्री को हानि पहुँचा सकता है अथवा स्त्री के शरीर को बाद में नुकसान न हो कोई इसलिए अग्नि के पास जाने की मनाही है, जैसे ज्वालामुखी विस्फोट हुआ और वही कोई आग लगाने का प्रयास करे अथवा लगा दे तब क्या अनिष्ट होगा, इसीलिए खट्टी वस्तुओं के सेवन की मनाही है क्योंकि स्त्री खुद शक्ति स्वरूप में होती है और जैसे भगवती दुर्गा को उनकी पूजा में खट्टा नही देते तो साक्षात शक्ति स्वरूपनी स्त्रीको भी इसके सेवन से बचना चाहिए।

हे मनुष्यों संसार के श्रेष्ठ जन्मों में से श्रेष्ठ जन्म स्त्री का है, स्त्री पूजनीय है, वो संसार के प्रत्येक जीव व समस्त ब्रह्मांड में है, उसके बिना कुछ सम्भव नही, जो स्त्रियों को गाली देते व अपमानित करते है, उनके साथ निन्म गलत कार्य करते हैं, वो निश्चित ही नरक की अग्नि में अनन्त वर्षो तक जलते हैं।

हे मनुष्यों ये न भूलो की स्त्री इतनी पवन व पूजनीय है तभी मेरे निम्न स्वरूप उससे पूजा नही लेते अपितु खुद उसकी पूजा करते हैं, और रजस्वला होने पर मेरे कोई भी स्वरूप उसकी पूजा नही लेते क्योंकि वो खुद अति पूजनीय है, उसका तपोबल इतना अधिक बढ़ जाता है जिसका सामना न मैं न मेरा कोई स्वरूप कर सकता है इसलिए स्त्री को उस समय केवल शांत हो कर विश्राम करना चाहिए।

हे मनुष्यों आशा है स्त्रियों व पूजा से सम्बंधित आशंका तुम्हारे हृदय से निकल गयी होगी और तुम्हे नवीन ज्ञान की प्राप्ति के साथ नारी जाति के प्रति सम्मान का भाव जागा होगा।"

कल्याण हो

Wednesday 22 May 2019

ईश्वर वाणी- 273 सब कुछ पहले ही लिखा जा चुका है


ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि तुम भले मुझे और मेरा अस्त्तित्व नकार दो, तुम भले अपने कर्मो को ही श्रेष्ठ कहो किंतु जो भी तुम करते हो सोचते हो, जो भी अच्छा या बुरा तुम्हारे साथ होता है वो सब पहले ही श्रष्टि निर्माण के समय ही लिखा जा चुका है।

प्रत्येक जीव आत्मा कितने समय तक अपने भौतिक रूप में रहेगी, कितने समय सूक्ष्म शरीर मे रहेगी कितने समय स्वर्ग भोगेगी अथवा निम्न नरको में निवास करेगी, किसके कर्म क्या होंगे और उनको क्या दंड मिलेगा ये सब लिखा जा चुका है और सब कुछ उसके ही अनुसार हो रहा है।

निम्न धार्मिक ग्रंथो की कथाओं को देखो उनमे जो लिखा था वो जैसे सत्य हुआ, मेरे निम्न रूपो में मेरे अंशो का आगमन व उनका जीवन व देह त्याग कर मुझमे फिर मिलन, जैसे उनका तय था व तय है वैसे ही तुम्हारा तय है।

इसलिए शोक न कर और मेरी शरण मे आ,मैं तेरे आँसू पोंछउँगा, तेरे दुख को कम करूँगा, तू मुझमे विश्वाश रख, यद्धपि तुझे बहकाने वाले तेरे पास ही है, तुझे मुझसे दूर करने वाले तेरे पास ही है, तू इसको अपनी एक परीक्षा मान और मुझमे विश्वास पैदा कर, मै तुझे वो सब दूँगा जो इस संसार मे भी उपलब्ध नही है, तू बस सांसारिक बातों और रिश्तों के मोह से दूर होकर मेरी शरण मे आ, तेरा वास्तविक संसार और परिवार तो मैं हूँ, तू मेरी सुन और नेकी कर, भले तेरे प्रारब्ध में बुरा लिखा हो लेकिन तू नेकी कर निश्चय ही तू मुझे पायेगा और असीम सुख को प्राप्त करेगा।"

कल्याण हो

Sunday 5 May 2019

पुरुषवादी सोच और स्त्री

अभी कुछ दिन पहले एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें एक उम्र दराज़ महिला कम कपड़े पहने हुए युवतियों के लिए बोल रही थी कि इनका बलात्कार होना चाहिए क्योंकि इन्होंने ऐसे कपड़े पहने हैं साथ ही वहाँ मौजूद युवकों को भी उनका रेप करने के लिए उकसा रही है।
अब इसको क्या कहे एक छोटी और विछिप्त सोच या पुरुषवादी सोच जो हर स्त्री को बचपन से ही विरासत में मिली है, बचपन से ही हर लड़की को (कुछ उच्च वर्ग/उच्च मध्य वर्ग को छोड़कर) उसके घर वाले खासकर माँ व अन्य महिलाएं यही बोलती हैं कि ऐसे कपड़े मत पहनो, इतने बजे तक रात को बाहर न रहो, ये न करो वो न करो, तमाम तरह की बंदिशें बचपन से ही लगा दी जाती हैं और बंदिशें आगे की पीढ़ी को एक के बाद एक फिर अवतरित होती जाती है।
ऐसा सिर्फ और सिर्फ पुरुषवादी सोच के कारण है, महिलाएं ही अपने बेटों की बोलती है तुम लड़के हो तुम कुछ भी करो तुम्हारा कुछ नही बिगडेंगा वही लड़कियों पर बंदिशें । ऐसा इसलिए क्योंई कि सदियों पहले ही ऐसा माहौल दे दिया गया है कि पुरुष अगर किसी महिला/युवती/बालिका का रेप करे तो पुरुष का कुछ नही जाएगा वो पवित्र रहेगा लेकिन स्त्री चुकी उसकी पवित्रता उसके निज़ी अंगों में ही है उसकी गलती न होने पर भी उसका ही सब कुछ जाता है, एक बलात्कारी पुरुष या एसिड अटैक किसी लड़की पर करने वाला पुरुष उसकी शादी बड़ी आसानी से हो जाती है लेकिन जिसके साथ ऐसा होता है उसका हाथ थामने वाला कोई नही होता कारण पुरुषवादी सोच।
सदियों पहले हिंदू धर्म मे 'कन्यादान' रूपी कुरीति बनी जिसका आज तक पालन हो रहा है, 'कन्यादान' मतलब कन्या का दान जो विवाह में होता है अनिवार्य जो लड़की के घरवाले करते हैं, लेकिन कन्या का दान ही क्यों पुरुषदान क्यो नही होता, आखिर शादी तो दोनों की ही होती है, अथवा कन्या यानी लड़की कोई वस्तु अथवा पशु है जिसका दान किया जाता है।
मैंने कई धार्मिक धारावाहिक देखे जिनमे स्त्रीया पुरुषों को स्वामी कहती हैं (पति को), स्वामी मतलब मालिक, फिर स्त्री की स्थिति क्या हुई यदि पुरुष स्वामी है तो, पुरुष स्त्री को स्वामिनी नही कहते किंतु स्त्री पति को स्वामी कहती है, तभी पुरुष चाहे जितनी भी शादी कर ले मान्य है किंतु स्त्री के मन में ख्याल भी परपुरुष का न आये।

28 फरबरी 2019 को मेरे सबसे बड़े भाई की अचानक मौत हो गई, मेरी माँ दिन रात उसके लिए आँसू बहाती है, मुझे पता है उसकी जगज अगर मेरी मौत होती तो अब तक सबकी ज़िन्दगी पहले की तरह नॉर्मल हो चुकी होती पर चूँकि भाई की मृत्यु हुई है इसलिए मा का कष्ट अधिक बड़ा है ।

ये बात युही नही कहि मैंने, बरसो पहले मेरे भाई के दोस्त की बहन की एक हादसे में मौत हुई थी, तब मेरी माँ ने कहा था "किस्मत वालो की बेटी मरती है", और भाई की मौत के बाद भी यही कहा "बेटी तो किस्मत वालो की मरती है, बेटा बदनसीब का का मरता है, हमारा मरा भी तो बेटा", इसको क्या कहेंगे पिछड़ी वही पुरुषवादी सोच जो मेरी माँ को उनकी माँ से पीढ़ी दर पीढ़ी मिलती रही है।

किसी से मुझे कोई शिकायत नही है क्योंकि हम किसी की सोच नही बदल सकते लेकिन खुद को बदल सकते हैं, मेरी अपनी कोई बेटी होती तो उसको वो सब मिलता जिसके लिए मुझे रोका टोका गया, अपमानित किया गया, मुझे एहसास कराया गया चूँकि मै एक लड़की हूँ ये ही मेरा एक अपराध है, लेकिन मेरी अपनी बेटी होती तो ऐसा उसके साथ मैंने कभी न किया होता।
खेर मुझे लगता है आज की पीढ़ी को पुराने पुरुषवादी और नारी विरोधी हर रिवाज़ को तोड़ना चाहिए, साथ ही हर स्त्री को अपने अधिकारों के प्रति आवाज़ उठानी चाहिए, इसके साथ ही जो स्त्री को स्त्री से ही जो ईर्ष्या का भाव है चाहे मा-बेटी, सास-बहू या सहेली इस भाव को खत्म करना चाहिए क्योंकि नारी नारी की यही शत्रुता पुरुसगवादी सोच को बढ़ावा देती है।


Sunday 28 April 2019

ईश्वर वाणी-272, सूक्ष्म देह का महत्व


ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि तुमने  आत्मा व सूक्ष्म शरीर के विषय मे अवश्य सुना होगा, किंतु ये नही पता होगा कि आखिर ये सूक्ष्म शरीर व आत्मा तुम्हारे भौतिक शरीर मे रहती कहाँ है??किंतु आज तुम्हे इसके विषय मे बताता हूँ।
तुम्हारी भौतिक देह के ऊपर एक पारदर्शी परत होती है जो तुम्हारी भौतिक देह को ढक कर रखती है, तथा तुम्हारी आत्मा इस पारदर्शी देह को पार कर तुम्हारे मष्तिष्क व वायु स्थान में रहती है, आत्मा का अपना कोई रूप व आकर नही होता, वो तो वायु व ऊर्जा है, जैसे न वायु दिखती है न ऊर्जा किंतु इनके बिना तुम जीवित नही रह सकते, संसार की कोई भी मशीन इसको नही पकड़ सकती किँतु इस तथ्य को ठुकराना ही मिथ्या है।
जब प्राणी की आत्मा उसकी देह छोड़ कर जाती है तब आत्मा के साथ व्यक्ति का सूक्ष्म शरीर भी आत्मा के साथ भौतिक देह का त्याग कर देता है, आत्मा भौतिक देह से निकल कर और सूक्ष्म देह में निवास करती है जब तक कि उसका उसकी इच्छा से अथवा परमात्मा अर्थात मेरी इच्छा से इस जीवनकाल का समय पूरा नही होता।
यद्धपि जैसे संसार के कई सूक्ष्म जीव जिन्हें व्यक्ति आपनी भौतिक आँखों से नही देख सकते, तथा उन्हें देखने के लिए निम्न यन्त्र की आवश्यकता होती है वैसे ही ,मृत व्यक्ति के सूक्ष्म शरीर को देखने के लिए आध्यात्म अथवा उस व्यक्ति की खुद की इच्छा होना आवश्यक है अन्यथा सूक्ष्म शरीर को देखना असम्भव है,
हे मनुष्यों यद्दपि तुमने सुना होगा जिन लोगो को मृत व्यक्तियों के दर्शन हुए है हकीकत में उन्हें वो उसी कपड़े में दिखाई दिए जो मौत के समय पहने थे, इसका कारण भी यही है व्यक्ति के उपरी हिस्से में उपस्थित उसके सूक्ष्म शरीर मे उन्हें कपड़ो के सूक्ष्म कण आ गए जो व्यक्ति ने मौत के वक्त पहने थे तभी जिन्होंने मृत परिजन व जानकर को देखने का दावा किया है वो उन्हें उन्ही कपड़े पहने दिखे जो म्रत्यु के समय पहने थे।
संसार की प्रत्येक वस्तु की तरह ये भौतिक शरीर भी निम्न अणुओ की देन है, और सूक्ष्म शरीर उन अणुओ की रक्षा करता है किंतु मृत्यु के उपरांत उसको भी इसे छोडना होता है तभी ये भौतिक देह अपने पतन की और अग्रसर होती है।"

कल्याण हो