Wednesday 18 December 2019

टूट कर बिखर जाती हूँ-कविता

हर रोज़ टूट कर बिखर जाती हूँ

हर रोज़ खुद से ही रूठ जाती हूँ

हूँ तन्हा कितनी अब तेरे बगैर मैं

तुम से न ये कभी कह पाती हूँ


सामने तुम्हारे अब नज़रे चुराती हूँ

देखती जो तुम्हे नज़रे झुकाती हूँ

ये हुआ क्या मुझे ए दिल कुछ बता

एक पल भी बिन तेरे न रह पाती हूँ


हाल-के-दिल सखियो को सुनाती हूँ

क्या हुआ है मुझे ये न समझ पाती हूँ

इश्क तो नही हुआ है मुझे ए मेरे रब

मोहब्बत से तो बस खुदको बचाती हूँ


बहते इन आंसुओ को अब छिपाती हूँ

ज़ज़्बात दिलके न उन्हें कह पाती हूँ

काश समझ सके मेरे दिलकी बात वो

अब तो तुम्हारे बिन न मैं जी पाती हूँ

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