Friday 19 July 2019

मेरी कलम से


"मुझे ये समझ नही आता जो लोग खुद को ईश्वर, अल्लाह, गॉड का परम भक्त कहते हैं वो ईश्वर में भेदभाव कैसे कर सकते है और ईश्वर के भक्त अल्लाह कहने वाले को नीचा दिखाते हैं, गॉड कहने वाले अल्लाह और ईश्वर कहने वाले को नीचा दिखाते हैं।
कोई रामायण पर यकीन करता है वेदों पर करता है तो कुरान और बाइबिल को गलत ठहरता है, मुझे ये बताये क्या किसी वैदिक ग्रंथ में ये लिखा है कि बाइबिल गलत है अथवा कुरान गलत है।
यद्धपि कुरान और बाइबिल में निराकार ईश्वर की उपासना को श्रेष्ठ बताया गया है लेकिन वैदिक वेदों में भी निराकार ईश्वर की उपासना को ही श्रेष्ठ बताया गया है, कई हिन्दू पूजा साधना आराधना में यंत्र का उपयोग होता है ईश्वर के, ये यन्त्र भी तो निराकार ईश को ही दर्शाते हैं।
ये न नही भूलना चाहिए जो नवीन धर्म/मज़हब है (जो मेरी दृष्टि में मज़हब नही सिर्फ एक पंथ निराकार/साकार ईश को मानने वाले, ईश्वर ने एक धर्म बनाया है वो ही मानव धर्म मानव के लिए, बाकी तो पन्थ है उन्हें पाने के लिए जैसे साधनाये 3 तरह की होती है 1-सात्विक, 2-राजसिक, 3-तामसिक, लेकिन तीनो ही तरीके ईश्वर की ओर ले जाते हैं, अपनी अपनी इच्छा और सामर्थ के अनुसार व्यक्ति निम्न भक्ति मार्ग को चुनता है)  सिर्फ प्राचीन ज्ञान का सार मात्र है।
आप लोगो मे बहुत से माता रानी के भक्त होंगे, कई लोग दुर्गा शप्तशती का पाठ करते होंगे लेकिन जो लोग पूरा पाठ नही कर सकते उनके लिए "सिद्ध कुंजिकास्तोत्र" का पाठ करना ही उत्तम व दुर्गा सप्तशती जितना ही फलदायी माना गया है, ठीक वैसे ही प्राचीन वैदिक ग्रंथो व रीति रिवाज़ों के लिए कलियुग में अभाव हेतु नवीन निम्न विचारधाये जन्मी व धीरे धीरे विश्व मे फेल गयी और धीरे धीरे लोग प्राचीन वैदिक बातो को भूल गए और शीघ्र फलदायी ईश्वर की निम्न उपासना व सार को ही सत्य मानने लगे क्योंकि हर कोई शीघ्र परिणाम चाहता है इसलिए।
और ऐसा नही है कि प्राचीन वैदिक ज्ञान केवल भारत का ही सही है क्योंकि ईश्वर ने भारत ने पूरी पृथ्वी बनाई है, इसलिए भारत के वैदिक ज्ञान के साथ पूरे विश्व के प्राचीन ज्ञान को समझना होगा यकीन करना होगा।
साथ ही लोग जो धर्म व ईश्वर अल्लाह गॉड के नाम पे लड़ते हैं वो सब अनाड़ी अथवा मूर्ख अथवा अज्ञानी है क्योंकि जिस व्यक्ति में आध्यात्मिक ज्ञान होगा वो गॉड में अल्लाह ईश्वर में गॉड और अल्लाह में ईश्वर को देखेगा न कि उनकी आलोचना करेगा व धर्मिक पुष्तक व अराधनलयो को नुकसान पहुचायेगा ।
यहाँ एक बात और जानने योग्य है कि जो नवीन पन्थ के अनुयायी है व नवीन धार्मिक पुष्तक है उनकी जो बातें हैं वो उस समय व आज के समय को कुछ हद तक ध्यान में रख कर कुछ नवीन बाते बोली गयी है जो उस स्थान जहाँ ये ग्रंथ लिखे व उतपन्न हुए वहाँ के हालातों को ध्यान में रख कर लिखे गए, इसलिए किसी धार्मिक ग्रंथ की आलोचना व्यर्थ है किँतु उनके सार को देखे जो एक है जो परम् सत्य है जो ईश्वर से जोड़ता है।।"
जय माता दी
Archana Mishra

ईश्वर वानी-276, ईश्वर को जानना



ईश्वर कहते हैं, " यद्धपि तुम मुझे यहाँ वहाँ ढूंढते हो, लेकिन तुम मुझ परमात्मा का एक अंश हो इसलिए मैं तुम्हारे अंदर ही हूँ, तुम केवल भौतिकता को देखते और सत्य मानते हो किंतु जो भौतिक है वो सत्य नही।


ये न भूलो जो भौतिक है भले ये असीम ब्रह्मांड ही सही सब नाशवान है किँतु जो दिखता नही वही सत्य है जैसे तुम्हारी आत्मा दिखती नही किंतु वही सत्य है,
जैसे धरती पर प्राणवान वायु दिखती नही किन्तु उसके बिना जीवन संभव नही जैसे तुम्हारे शरीर की शक्ति दिखती नही किंतु यदि न हो तुम्हारे अंदर तो तुम हिल तक न सकोगे।


हे मनुष्यों यद्धपि देश, काल, परिस्थिति के अनुरूप मेरे ही अंशो ने धरतीपर जन्म लिया और मानवता की पुनः नीव रखी जब जब मानवता का ह्रास का हुआ।


यद्धपि मेरे ही अंशो द्वारा तुम्हें निम्न ज्ञान दिया हो किंतु प्राचीन ज्ञान का सार मात्र है ये नवीन ज्ञान किंतु यदि तुम मेरे और अपने विषय मे और अधिक जानना चाहते हो तो आध्यात्म के साथ साथ सम्पूर्ण विश्व के समस्त नवीन व प्राचीन घ्यान व धार्मिक पुस्तकों को का अध्ययन करो व विश्वास करो न कि सिर्फ उस एक पुष्तक का जिसके तुम अनुयायी हो क्योंकि मैं इतना छोटा नही कि अपनी बातें सिर्फ एक दो तीन पुष्टको में सिमट के रह जाऊ ।


हे मनुष्यों इस तरह तुम कुछ हद तक मेरे विषय मे जान सकते हो, ये न भूलो संसार का कोई भी ज्ञान असत्य नही और न ही नवीन न ही प्राचीन।।"


कल्याण हो


Archana Mishra

ईश्वर वाणी-275,जीवन मृत्यु की सच्चाई.

ईश्वर वाणी-जीवन मृत्यु की सच्चाई..                               ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि तुमने मृत्यु लोक के विषय मे सुना होगा, अधिकतर मनुष्य इस धरती को ही मृत्यु लोक समझते हैं, किंतु आज तुम्हे कुछ विशेष बात बताता हूँ, मृत्यु कई प्रकार की व मृत्यु लोक भी कई प्रकार के होते हैं।

यद्धपि मनुष्य समझते हैं पृथ्वी ही मृत्यु लोक है किँतु पृथ्वी ही नही अपितु समस्त ब्रह्मांड ही भौतिक काया का मृत्यु लोक है, क्या तुम सोच सकते हो ब्रह्मांड के किसी छोर पर जा कर तुम अमर हो सकते हो अपनी भौतिक काया के साथ अथवा कोई ग्रह नक्षत्र तुमने ढूंढ लिया है जिसपे रह कर तुम अमर हो सकते हो यद्धपि तुम ब्रह्मांड की गहराई व अनेक ग्रह नक्षत्र पर भ्रमड भले कर लो किंतु अमर कही नही और एक दिन मृत्यु तुमको आनी ही आनी है,
इसलिए तुम इस धरती को ही नही अपितु पूरे ब्रह्मांड को ही इस भोतिकता के लिए मृत्यु लोक समझो क्योकि जी दिखता है वो भौतिक ही है और जो नही दिखता वो अभौतिक है, जो भौतिक है वो नाशवान अवश्य है।
हे मनुष्यों तुम्हे मैंने अनेक प्रकार की मृत्यु के विषय मे ऊपर बताया, प्रथम प्रकार की मृत्यु तो तो तुम्हे ऊपर पता चल ही गयी, किंतु संछिप्त में अन्य मृत्यु के बारे में बताता हूँ 
यद्धपि कर्मानुसार हर जीवात्मा जन्म लेती है, साथ ही अनेक कर्म अनुसार हर जीवात्मा स्वर्ग, नरक व ईश्वसरिये लोक को प्राप्त करती है भौतिक देह के नष्ट होने अथवा त्यागने के बाद,
किँतु हर जीवात्मा जब भी कोई नया जीवन लेती है तो उसको अपना निम्न स्थान त्यागना होता है, इस प्रकार उसके पुराने कर्मो के अनुसार उसका समयफल पूर्ण हुआ और इस तरह नए भौतिक जीवन व अन्य लोक में किसी और स्थान की प्राप्ति हेतु तुम्हे जाना पड़ा तब तुम्हारी इस अवस्था मे पहली अवस्था का तुम्हारे द्वारा त्यागना ही तुम्हारी मृत्यु हुई, इस तरह भौतिक देह के त्यागने के बाद भी तुम मृत्यु को भोगते रहते हो, जन्म लेते रहते हो और मृत्यु प्राप्त करते रहते हो।

हे मनुष्यों ये पूर्ण सत्य है कि इस भौतिक संसार से परे एक पारलौकिक संसार है, ये इतना विशाल है कि तुम कल्पना तक नही कर सकते, तुम्हारी भौतिक काया के त्यागने के बाद तुम इसमे प्रवेश करते हो व नया जीवन पाते हो लेकिन हर जीवन से पहले मृत्यु आवश्यक है ठीक वैसे ही जैसे किसी पद की प्राप्ति हेतु पुराना पद त्यागना पड़ता है वैसे ही नए जीवन मे आने से पहले पुराने को छोड़ना पड़ता है, यही सच्चाई है संछिप्त में जीवन और मृत्यु की, उम्मीद है तुम्हे समझ आयी होगी।"

कल्याण हो

Archana Mishra