Wednesday 25 November 2020

ईश्वर वाणी- 298 ,आत्मा, सूक्ष्म शरीर की यात्रा

 ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यधपि तुमने आत्मा व सूक्ष्म शरीर, जीवात्मा के विषय मे बहुत कुछ सुना होगा, किँतु आज तुम्हें बताता हूँ आत्मा और सूक्ष्म शरीर कब अलग होते हैं और कब और कहाँ एक होते हैं।


हे मनुष्यों जब भी किसी जीव की मृत्यु होती है तब उसकी आत्मा उसके भौतिक देह को त्याग कर सूक्ष्म शरीर के साथ देह त्यागती है, आत्मा का स्थान भौतिक देह में हृदय के समीप होता है और वही से वो सम्पूर्ण भैतिक देह को ऊर्जा दे कर जीवित रखती है, किँतु जब उसका देह त्यागने का समय आ जाता है तब वो ऊर्जा भौतिक देह में भेजना बन्द कर देती है जिससे जीव के अंग कार्य करना बंद कर देते हैं और जीव को मृत घोषित कर दिया जाता है।

हे मनुष्यों जिन जीवों की मृत्यु अपने निर्धारित समय पर होती है उन जीवो की आत्मा अर्थात जीवन ऊर्जा जिसका कोई रूप व आकर नही होता, न ही उसके अंदर भावनाये होती है न दर्द न खुशी व दुःख के भाव होते हैं, यही जीवन ऊर्जा एक देह को त्याग कर नई देह धारण कर लेती है, किँतु उसका सूक्ष्म शरीर जो भले अब जीवन ऊर्जाहीन हो अपनी पुरानी यादों और रिश्तों के मोह, धन दौलत के मोह व अन्य तरह की मोह माया में अब भी फॅसा रहता है और ईश्वर में ध्यान नही लगता, इसलिए उसको उसके कर्मो के अनुसार नरक भोगना पड़ता है।

जो व्यक्ति सत्कर्म करते हैं, ईश्वर में ध्यान लगाते हैं, प्रार्थना व पूजा करते हैं तथा जो मोह माया से दूर रहते हैं भले वो गृहस्थ ही क्यों न हो वही व्यक्ति अपने सूक्ष्म शरीर व उसमे उपस्थित प्राणशक्ति ऊर्जा के साथ स्वर्ग व अन्य ईश्वरीय लोक को प्राप्त होते हैं, यही वो आत्माएं होती है जो फ़िर जब दोबारा मृत्यु लोक में मानव रूप में जन्म लेती है तो कई बार इन्हें कई सांसारिक कार्यो की पूर्ति हेतु विभाजित कर दो भागों में बाट कर भेजा जाता है ताकि सांसारिक कार्यो की वो पूर्ति करें, इन आत्माओ का विशेष आध्यात्मिक अथवा सांसारिक कार्य होता है जिसे करने हेतु ही ये जन्म लेती है, ये कई युगों में ही धरती पर जन्म लेती है, इन्हें ही अंग्रेजी में "twinflame" कहा जाता है अर्थात दो जुड़वा आत्माएं।

हे मनुष्यों जैसे तुमने सुना व देखा होगा यदि तुम किसी मृत परिजन की आत्मा को देखते हो तो वो उसी रूप में दिखती है जैसे उसकी मृत्यु  होती है ऐसा क्यों होता है सोचा है??

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उसका सूक्ष्म शरीर अथवा उसमे विद्यमान जीवन ऊर्जा (यदि समय से पूर्व मृत्यु हुई है तो) अपने अतीत में ही जीती है, और अतीत के मोह के कारण न आत्मा भौतिक देह को त्याग कर आगे बढ़ना चाहती है और न भौतिक देह उससे अलग होना चाहता है इसिलए ये आत्माये पृथ्वी पर घूमती है जिन्हें 'भूत-प्रेत' आदि नाम से लोग जानते हैं।

किंतु यदि प्राणशक्ति ने सूक्ष्म देह का त्याग कर दिया है चाहे मृत व्यक्ति की आखिरी इच्छा पूर्ण करके या अन्य किसी विधि से यदि प्राणशक्ति इस सूक्ष्म देह को त्यागती है तो फिर इस देह को भी कर्मानुसार नरक व ईश्वरीय लोक का सुख प्राप्त होने के बाद दूसरी प्राणऊर्जा धारण कर अन्य जन्म की प्राप्ति होती है, और यही चक्र जीवन-मृत्यु का चलता रहता है।

हे मनुष्यों यदि बात की जाए तो आत्मा का आकार सिर्फ उक्त व्यक्ति के अँगूठे के समान ही होता है, किन्तु यदि वो पशु, पक्षी, पेड़, पौधा है तब भी उसकी आत्मा आकर महज एक अनाज के दाने के बराबर ही होता है किँतु सूक्ष्म शरीर का आकार मृत जीव के जितना ही होता और यही उक्त जीव को एक पारदर्शी वस्त्र के समान ढके रहता है जब तक जीव जीवित है, पाँच तत्वों से ये भौतिक शरीर बनता है, चार तत्वों से सूक्ष्म शरीर किँतु एक तत्व से प्राणऊर्जा अर्थात आत्मा बनती है।"
हे मनुष्यों उम्मीद है तुम्हें निम्न बातें समझ आयी होंगी।
कल्याण हो

Monday 9 November 2020

सम्भलना भूल गए-शायरी

 

"सबको हँसाते-हँसाते हँसना हम भूल गए

ग़मो में ऐसे डूबे की अब रोना हम भूल गए
खुद ही गिरते फ़िर खुद ही उठ खड़े हो जाते
संभालते-संभालते सम्भलना ही हम भूल गए"

मोहब्बत तो सच्ची



"मोहब्बत तो हर बार सच्ची ही की थी मैंने

लोग ही झूठे निकले तो कसूर किसका था"




Saturday 7 November 2020

सैड शायरी



 1-ए ज़िंदगी तू मुझे सता बहुत रही है


पल पल तू मुझे क्यों यु रुला रही है

अब नही रही मोहब्बत तुझे शायद

ज़ख्म दे तू खड़ी बहुत मुस्कुरा रही है


2-"लोग कहते ए ज़िंदगी तुझमे अब वो बात नही है
शायद अब मुझे तुझसे मोहब्बत नही है"


3-"कहने को ज़माने से, अब सिर्फ अपनी कहानी है
टूटा है दिल ये मेरा, और आँखों  सिर्फ पानी है
रोती अश्क बहाती 'मीठी-खुशी' के लिए क्यों
दर्द छिपा मुस्कुरा, क्योंकि यही तेरी ज़िंदगानी है

न दिखा ज़ख्म को अपने, तू तो दर्द की रानी है
 न कर उम्मीद किसीसे, आखिर इश्क की तू दानी है
उठ खड़ी हो 'मीठी-खुशी' के साथ और करके दिखा
है तेरी ही ये जिंदगी, जिसकी सिर्फ तू महारानी है

बढ़ आगे भुला सब, ज़िन्दगी है तेरी न कि ये बेगानी है
आखिर अश्क बहाती तू क्यों, करती फिर ये नादानी है
ये तो ज़माने की रीत है पगली 'मीठी' इश्क में अब
'खुशी' के बदले ,अश्को की लड़ी ही यहाँ सबको बहानी है"

Thursday 5 November 2020

Romantic shayri

 दूर तुम से हम जाये  कैसे

तुम को हम भुलाये कैसे
 रूह में बस गए हो तुम हमारी
 हाल-ए-दिल ये बताये कैसे

Wednesday 4 November 2020

सैड शायरी-खुदसे हार गई मीठी

 आँखों मे नमी और दिलमें दर्द है


ये ज़माना देखो कितना हुआ बेदर्द है


सबसे जीती खुदसे हार गई 'मीठी'


'खुशी' की बात कह झूठे मिले हमदर्द है

सैड शायरों-कब कौन सी बात

 न जाने कब कौन सी बात अधूरी रह जाये

न  जाने  किस रात की  सुबह  न आये

जी लूँ तुझे  जी भर  कर ए मेरी ज़िंदगी

शायद  फ़िर तू  मुझे कभी  मिल  न पाए

Tuesday 3 November 2020

मेरी रचना (सैड शायरी)

 ए ज़िंदगी तू कितनी खूबसूरत ह

तेरे होते न किसी की जरूरत है

मिलते हैं रोज़ मुझे अपनी ज़िंदगी कहने वाले
पर बता है मुझे नियत उनकी कितनी बदसूरत है

सैड शायरी

 "भेड़ियों की भीड़ में ये कारनामा करने चले थे

हथेली पर दिल रख फिर मोहब्बत करने लगे थे"

सैड शायरी

 बहुत धोखा देती है किस्मत तू हमें

पर अब मीठी-खुशी से देगी धोखा

और तू यू बस देखती रह जायेगी

सैड शायरी-क्या जुनून झाया

 लिखते लिखते मोहब्बत की कविता

जाने क्या जुनून झाया तुझपे ए मीठी

खुशी की चाहत में ये क्या खता कर दी

शायरों वाली मोहब्बत फ़िर से कर ली

सैड शायरी

 खता उनकी नही खता तो हमारी है

उन्होंने तो सच कहा एक दिन रुसवा कर देंगे

हमने ही मज़ाक समझा तो कसूर हमारा है

सैड शायरी

 ऐ ज़िन्दगी में फ़िर कही बहक न जाऊँ

इस हालात में फ़िर कुछ कर न जाऊँ
एतबार नही रहा अब तुझपर जरा भी
ए ज़िन्दगी तुझसे अब दूर न हों जाऊँ

मेरी कविता

 मेरी कविता



देखो टूट कर कैसे बिखर गए हम


कुछ दूर चले देखे कैसे गिर गए हम


मोहब्बत ढूढ़ने चले थे फिरसे यहाँ


सबकुछ लुटा देखो तन्हा हो गए हम



दे खुशी जहाँ को देखो रोते रह गए हम


अश्क पोछते झूठे मुस्कुराते रह गए हम


शायद यही है तकदीर में तेरी ए मीठी


खुशी की चाहत में हर दर्द सह गए हम

ईश्वर वाणी-296 मेरी स्तुति

 ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों तुम अपने मत, पूजा विधि-पद्धति व मेरे नामो को अनेक प्रकार से लेने को ले कर लड़ते रहते हो किंतु तुम जानकर भी नही जानना चाहते कि कोई चाहे किसी भी नाम और पूजा विधि का प्रयोग करे किंतु ये पूजा और इसका पूण्य मुझतक ही पहुँचती है।


प्राचीन खत्म हुई व वर्तमान में जो है अतित्व में संस्कृतिया इनमे मेरी पूजा, स्तुति, आराधना, साधना व मुझे जानने हेतु काफी लंबी चौड़ी पूजा विधि व अनेक धर्मशास्त्र है जिनका अध्ययन सम्भव नही साथ ही यदि उनका ठीक से अध्ययन न किया जाए तो काफी वाक्य असमंजस की स्थिति उतपन्न करते हैं,, ऐसे में धीरे धीरे मानव नास्तिक होने लगा जिसके कारण आवश्यकता हुई एक सरल पूजा विधि, एक धार्मिक ग्रंथ व एक ईश्वर में विश्वास की जो एक है सबका है और इसी कारण प्राचीन संस्कृतियों कमियों को दूर कर नवीन मतो व धर्मों का जन्म हुआ ताकि संसार मे प्यार व भ्रातत्व की भावना के साथ नास्तिक कोई न हो, सबकी मुझमे आस्था हो।"

कल्याण हो

ईश्वर वाणी-295आखिर आकाशीय उल्का पिंड कौन है, कहाँ से आते हैं

 ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों तुमने आकाश में बहते ये अनेक उल्का लिंड अवश्य देखे होंगे, किंतु ये कौन है कहाँ से आते हैं तुमको आज बताता हूँ।


पृथ्वी पर बहने वाली गंगा नदी व उसकी सहायक पवित्र नदियों में विसर्जित अस्थियां ही आकाशीय उल्का पिंड का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, वैतरणी नदी ही गंगा नदी है और इसमें विसर्जित अस्थियां व इसकी सहायक नदियों में विसर्जित अस्थियां ही आकाशीय उल्कापिंड का एक भाग है।

हे मनुष्यों जब धरती की रचना भी नही हुई थी यही उल्का पिंड इस नदी में बहते थे जिनसे अनेक ग्रह नक्षत्रों का निर्माण हुआ, ये सभी प्राचीन अस्थियां ही थी जो सृष्टि निर्माण से पूर्व ये यही बहती रही है गंगा अर्थात वैतरणी के सहारे और लोक परलोक में।"

कल्याण हो

ईश्वर वाणी-294 नवीन व पुरानी आत्मा

 

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यो यद्धपि तुमने नवीन व पुरानी आत्माओ के विषय में सुना होगा, यदि नही सुना तो आज तुम्हे बताता हूँ कि सृष्टि में दो प्रकार की आत्माये होती है जिनमे से कुछ नवीन तो कुछ प्राचीन होती हैं, किँतु ये कोन सी आत्माये होती है जो नवीन अथवा प्राचीन कहलाती हैं ।

हे मनुष्यों जो आत्मा अपना भौतिक शरीर त्याग के जल्दी ही नया भौतिक शरीर ले लेती है वो पुरानी आत्मा कहलाती है, ऐसी आत्मा कई योनियों में जन्म ले चुकी होती है।
वही जो आत्मा अपने कर्मानुसार स्वर्ग अथवा अपने इष्ट देव अथवा अन्य देवलोक में स्थान प्राप्त कर बाद में पुनः जन्म लेती है वो नवीन आत्मा कहलाती है हालांकि उसने पहले भी कई बार जन्म लिया होता है धरती पर लेकिन उसका स्वर्ग अथवा इष्ट देव के लोक अथवा अन्य देवलोक में स्थान प्राप्त कर पुनः जन्म लेना उसके पिछले जन्मों की जन्म संख्या शून्य कर एक नवीन आत्मा बनाता है।
हे मनुष्यों आशा है तुम्हे अब नवीन व प्राचीन आत्मा में भेद पता चल गया होगा।"

कल्याण हो