Tuesday 3 November 2020

ईश्वर वाणी-296 मेरी स्तुति

 ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों तुम अपने मत, पूजा विधि-पद्धति व मेरे नामो को अनेक प्रकार से लेने को ले कर लड़ते रहते हो किंतु तुम जानकर भी नही जानना चाहते कि कोई चाहे किसी भी नाम और पूजा विधि का प्रयोग करे किंतु ये पूजा और इसका पूण्य मुझतक ही पहुँचती है।


प्राचीन खत्म हुई व वर्तमान में जो है अतित्व में संस्कृतिया इनमे मेरी पूजा, स्तुति, आराधना, साधना व मुझे जानने हेतु काफी लंबी चौड़ी पूजा विधि व अनेक धर्मशास्त्र है जिनका अध्ययन सम्भव नही साथ ही यदि उनका ठीक से अध्ययन न किया जाए तो काफी वाक्य असमंजस की स्थिति उतपन्न करते हैं,, ऐसे में धीरे धीरे मानव नास्तिक होने लगा जिसके कारण आवश्यकता हुई एक सरल पूजा विधि, एक धार्मिक ग्रंथ व एक ईश्वर में विश्वास की जो एक है सबका है और इसी कारण प्राचीन संस्कृतियों कमियों को दूर कर नवीन मतो व धर्मों का जन्म हुआ ताकि संसार मे प्यार व भ्रातत्व की भावना के साथ नास्तिक कोई न हो, सबकी मुझमे आस्था हो।"

कल्याण हो

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