Sunday 17 December 2017

कविता--इस जहाँ में मैं भी पंख फेलाना चाहती हुँ(आधुनिक परिवेश में नारी की पीड़ा)

"बस जहाँ में मैं भी पंख फेलाना चाहती हुँ
ऐ दुनिया मैं भी तो अब उड़ना चाहती हुँ

बंद कमरे का अँधेरा और कब तक सहु में
मैं भी तो अब ये उजियारा देखना चाहती हूँ

बेगुनाह हो कर भी सदियो से कैद हूँ में यहाँ
तोड़ इन जंजीरो को में अब जीना चाहती हुँ



अस्मत का हवाला दे मुझे गुलाम बनाया
आज यहाँ आज़ादी से साँस लेना चाहती हु

नारी हूँ तो क्या हुआ आखिर निर्जीव नहीं
बोझ नही आखिर में भी आधी आबादी हूँ

बहुत रख लिया कैद मुझे बता तुम हो नारी
है जगत की जननी नारी ये बताना चाहती हूँ

क्यों रहु कैद कितना आखिर अपराध बता
गुड़िया नही मैं माटी की ये जताना चाहती हूँ

है भावनाये मुझमे भी है उमंग ज़िन्दगी की
क्यों रखते हो कैद मुझे आखिर कैसे अपराधी हूँ

बस जहाँ में मैं भी पंख फेलाना चाहती हुँ
ऐ दुनिया मैं भी तो अब उड़ना चाहती हुँ-२"



हिंदी मुक्तक-👍👌👍👌💐💐☺😢☺


Primary



     "दिल तोड़ने वाले बहुत मिले हमें
पर दिल जोड़ने वाला न मिला हमे
   सोचा था कोई तो होगा अपना भी
इश्क में यु मोड़ने वाला न मिला हमें"

"इश्क में बहुत अश्क हमने भी बहाये है
मेहबूब को करीब दिलके हम भी लाये है
कर दी थी जहाँ से बगावत जिसके खातिर
बेवफा दिलबर से ये ज़ख्म हमने भी खाये है"

हिंदी-मुक्तक😢😢👌👌👍👍👍💐💐💐☺



  • "याद में तेरी आज भी अश्क बहाते है
  • तेरे सिवा न इस दिलमे किसी को लाते है
  • है पता हमे तुम तो हो बेवफा दोगे दगा
  • फिर भी तुम पर ही दिल ये हारे जाते है"

  • "है  इक ख्वाइश  हमारी  भी
  • है इक फरमाइश हमारी भी
  • मिले ख्वाबो का वो शहज़ादा
  • है इक आज़माइश हमारी भी"

  • "सूरत से नहीं सीरत से तेरी प्यार किया
  • सब कुछ अपना तुझ पर मैंने वार दिया
  • पर तूने कभी कदर न करी मोहब्बत की
  • तेरे लिए देख आज मैंने त्याग संसार दिया"

  • "एक बेवफा को दिलमे बसा कर रोये बहुत हम
  • उस बेवफा को अपना बना कर रोये बहुत हम
  • सोचते थे कभी पिघलेगा दिल उनका भी
  • यही सोच सबकुछ अपना खोये बहुत हम"

Saturday 16 December 2017

प्रभु येशु गीत-मेरा येशु आया है






"ख़ुशी मनाउ प्रेम गीत गाऊ
आज घर मेरे मेरा येशु आया है

घर को सजाउ मिष्टान लाऊ
भोग बनाऊ, मेरा येशु आया है

अश्को से अपने तेरे चरण में धोऊ
प्रभु ने मुझ पर ये प्रेम बरसाया है

ख़ुशी मनाउ प्रेम गीत गाऊ
आज घर मेरे मेरा येशु आया है

आसन पुष्पो का प्रभु मैं बनाऊ
गीत सुनाऊ, मेरा येशु आया है

मैं झूमूँ नाचूँ गाउँ धूम मचाऊँ
 ख़ुशी का ये अवसर आया है

ख़ुशी मनाउ प्रेम गीत गाऊ
आज घर मेरे मेरा येशु आया है-२"

Friday 15 December 2017

प्रभु गीत-राजाओ का राजा





तू राजाओ का राजा है-२


हम तो है प्रजातेरी

तू तो महाराजा है-२



तुझसे मिली हमको कृपा

तुझसे मिला ये जीवन-२



तेरी ही दया से ऐ प्रभु

पाया है हमने ये तन मन-२



तू है करुणा का सागर

ये जाने जगत में जन जन-२



तेरी ही हर बात सुनु मैं अब

किया है समर्पित तुझपे जीवन



मिले चाहे कांटे या मिले सजा

तू ही है मालिक मेरा मैं हूँ प्रजा
तू राजाओ का राजा है-२




नित करू प्रभु आराधना तेरी

हुआ है दिल में तेरा आगमन



नित जलाऊ दीप करू पूजा

प्रभु रोषित किया है तूने मेरा मन

 तेरी दया रहे सदा मुझ पर
करु पल-पल यही मैं प्राथना


तू राजाओ का राजा है-२


हम तो है प्रजा तेरी


तू तो महाराजा है--४"

Tuesday 12 December 2017

प्रभु येशु गीत




"मेरे प्रभु ,तेरे जैसा कोई नही

हे येशु ,तेरे जैसा कोई नही

ये सूरज, चाँद, सितारे
ये दिन, रात और हसीं नज़ारे

देखे है हमने बहुत
पर मेरे येशु जैसा कोई नही
मेरे प्रभु तेरे जैसा कोई नही

मेरे प्रभु , तेरे जैसा कोई नही
हे येशु, तेरे जैसा कोई नही

पापियो को भी तूने माफ़ किया
हर किसी का तूने इंसाफ़ किया

कितनो को ये वरदान दिया
मृतको को भी जीवन दान दिया

मेरे येशु तू करुणा का सागर
तू ही है प्रभु प्रेम की गागर

मेरे मालिक, तुमसा यहाँ कोई नही
मेरे प्रभु ,तेरे जैसा कोई नही
हे येशु ,तेरे जैसा कोई नही

मेरी हर फरियाद सुनता है तू
पल पल मुझे याद करता है तू

तुमने सिखाया हमे प्रेम का पाठ
दुनिया के लिये त्यागे अपने प्राण


मेरे प्रभु ,तेरे जैसा कोई नही
हे येशु ,तेरे जैसा कोई नही

तू सादा तेरा जीवन भी सादा
नही तोड़ी तूने कोई मर्यादा

जब जब जिसने तुझको पुकारा
तुम बने सदा प्रभु उनका सहारा

आगे तुम्हारे वो शैतान भी हारा
फिरता रहा वो फिर मारा-मारा

मेरे प्रभु ,तेरे जैसा कोई नही
हे येशु ,तेरे जैसा कोई नही-४"

Sunday 10 December 2017

कविता-शादी

"सुना है दिलो से घरों को जोड़ती है शादी
सुना है एक गैर को अपनों से जोड़ती है शादी

फिर क्यों टूट रहा रिश्तों का विश्वाश यहाँ
अब केवल दो दिलो को ही जोड़ती है शादी

मनाते है जश्न टूटते रिश्तों का उस दिन खूब
जब दो अजनबियों को एक कराती है शादी

मात-पित, भाई-बहन, सखा-सहोदर होते खुश
गैर से रिश्ता जोड़ जब अपने की करते है शादी

नही जुड़ता कोई जब इस टूटे हुए नए रिश्ते से
ये जीवन अभिशाप बता कर दी जाती है शादी

नए नाते ऐसे मिले पुराने हुये यहाँ अब माटी
नए से नाता जोड़ पुरानो से मिली आज़ादी


खून के रिश्तों की खूब करते आज बर्बादी
अकेले नही अब हम दो है सदा करके शादी

अब बढेगा संसार मेरा आँगन गाये गीत
प्रिय-प्रीतम संग रहेंगे बढेगी फिर आबादी

टूट कर बिखर जाये चाहे खून के आँसु रोये
छोड़ कर खून के रिश्ते हमने तो की है शादी

पूछे मीठी -ख़ुशी से क्या है मोल अपनों का
दिलो को जोड़ क्यों अपनों को तोड़ती है शादी

ज़िन्दगी का हसीं पल लगने लगता है कड़वा यूँ
आखिर इन रिश्तों को किस और मोड़ती है शादी
सुना है दिलो से घरों को जोड़ती है शादी
सुना है एक गैर को अपनो से जोड़ती है शादी-२"

Wednesday 6 December 2017

कविता--तेरी याद दिन रात मुझे रुलाती है



"'मीठी' सी तेरी याद दिन रात मुझे रुलाती है
तेरी हर बात 'ख़ुशी की मुझे बहुत सातती है

तुम छोड़ गए तनहा इस महफ़िल में मुझे
फिर भी धड़कन तुमको ही बस बुलाती है


कहते है सब तुम नही अब जहाँ में कही
इन अश्को मे तुम्हारी ही सूरत नज़र आती है

कैसे मान लू जग की बात की तुम नही हो
हवाओ में खुशबू तुम्हारी मुझे महकाती है

रहते हो मेरी साँसों में तुम ज़िन्दगी बनकर
ज़िन्दगी लम्हा लम्हा मुझे ये बतलाती है

ज़िन्दगी के हसीन वो पल जो साथ जिये हम
'मीठी' 'ख़ुशी' को पल पल पुकारे जाती है

वो गीत प्रेम के साथ गुनगुनाते थे कभी हम
तेरी याद में अकेली बैठी 'मीठी' गाये जाती है

आँखों का पलक सा रिश्ता था हमारा कभी
बेवफा निकली साँसे बुझ गयी दिये से बाती है

तड़पती हूँ हर पल यहाँ पुकारा तुझे करती हूँ
'ख़ुशी' के बिना 'मीठी' अधूरी बस कहलाती है


'मीठी' सी तेरी याद दिन रात मुझे रुलाती है
तेरी हर बात 'ख़ुशी की मुझे बहुत सातती है-२"


Monday 20 November 2017

ईश्वर वाणी-२२६, अज़र अमर भौतिक देह


ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्दपि तुमने ये अवश्य सूना होगा की ये देह
पंच भौतिक तत्वों से बनी है और अंत में इन्ही में मिलकर समाप्त हो जाती
है अर्थात उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है किंतु उसका सूश्म शरीर अर्थात
आत्मा सदा विचरण करती रहती है जब तक उसे कोई नई देह नहीं मिल जाती।

हे मनुष्यों आज तुम्हें बताता हूँ मैं की किसी भी जीव की मृत्यु के
पश्चात भी उसकी आत्मा अर्थात सूक्ष्म शरीर के साथ उसका भौतिक शरीर भी इस
भौतिक जगत में विराजित रहता है, जैसे:- 'एक कुंभार मिटटी से कोई पात्र
(बर्तन) बनाता है जिसकी उसे आवश्यकता है, फिर उसमे अपनी आवश्यकता अनुसार
कोई वस्तु रखता है, किंतु समय के साथ वो पात्र पुराना हो जाता है, कही से
दरार तो कही से टूटने लगता है, अब कुंभार सोचता है क्यों ना इसका पुनः
निर्माण करू और अब इस मिटटी से दूसरा पात्र बनाऊ, अथवा कभी कभी कुंभार
आवश्यकता  बदलने पर फिरसे उस मिटटी के पात्र को नष्ट कर उसमिट्टी से नए
बर्तन बनाता है फिर अपनी आवश्यकता के अनुसार वस्तुओ को रखता है।'

हे मनुष्यों वैसे ही ये भौतिक काया है, यद्दपि तुम जिसे कहते हो की ये
देह नष्ट हो कर पंच तत्व (आकाश, वायु, अग्नि, जल, मिटटी) में विलीन हो
गयी किंतु ऐसा नही है, अपितु ये काया ब्रह्माण्ड में घूमती रहती है बिलकुल उस कुंभार के बर्तन की बिखरी मिटटी की भाति जिसने अपनी अवश्यक्ता के अनुसार पुराना पात्र नष्ट कर दिया अथवा पुराना एवं जर्जर होने के कारण कुंभार को वो नष्ट करना पड़ा ताकि फिरसे उस मिटटी से नया पात्र बना सके और आवश्यकता अनुसार उसमे सामग्री रख सके।

हे मनुष्यों ये काया भी अपने पंच तत्वों के साथ ब्रह्माण्ड में विचरण करती रहती है बिलकुल कुंभार के उस बर्तन की बिखरी हुई मिटटी की भाति जिसे अपने पुनः निर्माण की जल्द ही उम्मीद होती है कुंभार से।

हे मनुष्यों इस समस्त श्रष्टि का कुंभार मैं ही हूँ, मैंने ही समस्त ब्रह्मांड, जीव, जंतु, ग्रह, नक्षत्रो का निर्माण किया है, मैं ही उन्हें उनके कार्य पूर्ण कर नष्ट करता हूँ, जीवो की देह भी उस मिटटी के बर्तन की तरह है और आत्मा वो वस्तु है जो उस बर्तन में रखी जाती है।

हे मनुष्यों तुम्हारे कर्म अनुसार फिर उसी कुम्हार की मिटटी जेसे ही तुम्हारी देह इन पंच तत्वों से बनाई जाती है और आत्मा रुपी वस्तु उसमे रखी जाती है।

हे मनुष्योंओ समस्त ब्रह्मांड में ये पंच तत्व उपलब्ध है जिनसे ये समस्त जीवो की भौतिक देह बनती है, ये किसी काया के नष्ट होने के पश्चात पुनः ब्रह्मांड में पहले की ही भाति विचरण करने लगती है और निश्चित समय के बाद पुनः आकर देह धारण कर आत्मा रुपी वस्तु को अपने में समा कर कर्म करने मृत्यु लोक में पुनः जन्म लेती है, ऐसा ही आदि काल से होता आ रहा है और अनंत काल तक होता रहेगा।


भाव यही है जैसे आत्मा अज़र अमर है वैसे ही भौतिक देह भी अज़र अमर है बस उसका रूप परिवर्तित होता रहता है समय समय पर जो आवश्यक भी है, अतः भौतिक देह के मिटने पर जीवो के अंत का शोक न करे क्योकि आत्मा की तरह वो भौतिक शरीर भी जीवित है, यही श्रष्टि का नियम है जिसे मैंने बनाया है और मैं ईश्वर हूँ।"


कल्याण हो

Saturday 18 November 2017

कविता-तुम मुझमे रहते हो

"में तुझमें और तुम मुझमे रहते हो
दूर जा कर भी क्यों पास होते हो

क्या ये जादू किया है तुमने सनम
पल-पल सजन मेरे दिलमे रहते हो

खुद को किया दूर तुमसे जितना भी
 करीब उतना ही हर बार होते हो

पूछती है'मीठी'क्या इश्क है तुमसे
हर 'ख़ुशी' में हमदम तुम्ही होते हो

ख्वाब कहु तुम्हें या तुम हो हकीकत
दिल की धड़कन में तुम धड़कते हो

किया तुमने हमे खुद से दूर जब भी
छिप छिप के सनम तब तुम्ही रोते हो

पहचान लेते हो अश्क मेरी आखो के
भीगी इन पलको को तुम पोछ देते हो

कैसे कहु तुम्हें तुम हो जुदा मुझसे
तुम्ही तो दो ज़िस्म एक जान कहते हो

में तुझमें और तुम मुझमे रहते हो
दूर जा कर भी क्यों पास होते हो-२"

Wednesday 15 November 2017

मुक्तक

देखो फिर वही रात हो गयी,
अंखियो की पलको से बात हो गयी
मीठे सपनो में वो आने लगे धीरे धीरे
पिया से मेरी आज मुलाकात हो गयी

Saturday 11 November 2017

वो मज़बूर हैं और हम (एक सच्ची कहानी)

नोट-ये कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है जो भारत के ही किसी जंगल में घटी थी, कहाँनी के अनुरूप कुछ परिवर्तन अवश्य यहाँ किये गए है किंतु इससे कहानी के मूल तत्व में कोई परिवर्तन नही हुआ है साथ ही ये सोचने पर मज़बूर करता है मासाहारी जानवर मज़बूर है मासाहार और जीव की हत्या के लिये क्योंकि उनके पास कोई और विकल्प नही है लेकिन इंसान जो केवल जीभ के स्वाद के लिए किसी की हत्या करता है उसे क्या सचमुच इंसान कहना चाहिये, सोचिये और सम्भव हो तो कहानी पड़ने के बाद अपने कमेंट जरूरलिखे।




Sat, Nov 11, 2017 at 4:31 PM


दो दिन शिकार की तलाश करने पर भी तगड़ा सिंह तेंदुए को कोई शिकार नहीं
मिला, वही भूख से बेचारे तगड़ा सिंह की जान निकली जा रही थी, वो सोच रहा
था जंगल के सभी जानवर कहाँ है, क्या सभी को मुझ जैसे ही किसी मासाहारी
जानवर ने खा लिया या इंसानी शिकारियों के हाथो सब मारे गए, इससे पहले तो
ऐसा ना था, जब भी भूख लगती कोई ना कोई जानवर भोजन हेतु मिल ही जाता था
किंतु आज दो दिन से कोई नही मिला।

इसी विचार में बेचारा तगड़ा सिंह तेंदुआ नदी तट की और चल पड़ा, नदी के पास
एक पेड़ की शाखा के नीचे वो जो देखता है उसकी आखो में चमक आ जाती है, वो
देखता है नीनू बंदरिया अपने नन्हे से बच्चे जुगनू के साथ खेल रही है, खेल
में इतनी वो खोई है की भूखे तेंदुए की आहट तक उसने नही सुनी, तगड़ा सिंह
कुछ पल उन्हें देखता है फिर नीनू बंदरिया पर हमला कर देता है, नीनू
बंदरिया सम्भल नहीं पाती इस अचानक हुए हमले से और अपने नन्हे से बच्चे
जुगनू के सामने ही तड़प तड़प के मर जाती है।

अपने शिकार को हासिल कर तगड़ा सिंह तेंदुआ बड़ा हर्षित होता है और सोचता है
अब दो दिन बाद भर पेट भोजन करूँगा, ये सोच कर वो बंदरिया के शव को अपने
दांतो से दबा कर अपनी गुफा की ओर घसीट कर ले जाने लगता है, किंतु कुछ छड़
बाद वो जब पीछे मुड़ कर देखता है तो अवाक रह जाता है क्योंकि उस बंदरिया
का नन्हा सा बच्चा डरा सहमा अभी भी अपनी माँ के साथ ही चल रहा होता है,
तेंदुआ जहाँ और जिस और भी जाता है बच्चा वही उसी तरफ चलने लगता है, वो
मासूम अपनी माँ को नही छोड़ता ये जानकार भी जिसने उसकी माँ की हत्या की
उसके सामने वो नन्ही सी जान तो कुछ भी नही।

इस घटना के बाद तगड़ा सिंह आत्म ग्लानि में डूब जाता है, अपने शिकार को
वही रख सोचता है "हे ईश्वर ये कैसी विडंबना है, मेरी भूख की आग के कारण इस
मासूम नन्ही सी जान को आज अनाथ होना पड़ा, मैं तो मज़बूर हूँ, मासाहार ही
केवल एक भोजन है मेरा, प्रकति ने मुझे ऐसा ही बनाया है, जाने कितनो की
मैं जान ले चुका हूँ,कितने ही बच्चों को मैं अनाथ कर चुका हूँ, पर मेरी
रचना ही ऐसी हुई है की अपनी भावनाओ को नियंत्रित करना पड़ता है अन्यथा हम
मासाहारी जीव नहीं जी सकते, हे परमेश्वर इस अपराध के लिए मुझे माफ़ कर और
इस नन्ही सी जान की रक्षा करने की शक्ति मुझे दे"।

इतना विचार कर ह्रदय में तगड़ा सिंह तेंदुआ अपनी भूख को दरकिनार कर अपने
शिकार को एक तरफ रख नन्हे जुगनू बन्दर के पास जा कर उसे दुलारने लगता है
और ह्रदय में ही विचार करता है "आज से मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा
तुम्हारी माँ बन कर तुम निश्चिन्त रहो नन्हे बच्चे", इसके बाद तेंदुआ उस
नन्हे से बन्दर से खेलने और उसका दिल बहलाने लगता है साथ ही उसे अपनी
गुफा में साथ ले जाता है।"

Thursday 9 November 2017

गीत-हाँ सुन

सुन धीरे से ये धुन हाँ सुन
मेरी पायल कहती है क्या सुन
सुन धीरे से ये धुन हाँ सुन-२

खन खन खनकती मेरी चूड़िया
सुन क्या कहती है
तू भी तो आज सुन हाँ-२

मेरी बिंदिया दमकती है
क्या कहती है
इसकी भी तो सुन हाँ सुन-२

लबो की लाली है निराली
पुकारे तुझको ही हरदम
सुन इसकी भी तो सुन
ऐ हमदम इसकी भी तू सुन

ये कजरा ये गज़रा बुलाये तुझको
ऐ मेरे दिलबर सुन इनकी जरा सुन

सुन धीरे से ये धुन हाँ सुन-२

धड़कन मेरी दिलसे मिलकर
कुछ कहती है
आ कर पास मेरे बात इसकी
धीरे से तू भी आज सुन हाँ सुन

सुन धीरे से ये धुन हाँ सुन-२

मेरी साँसों में मेरे जज़्बातों में

इन इरादों में रहता है जो
सुन इनकी येही धुन 
तू भी तो आज सुन


प्यार में घायल है आज ये 'मीठी'

पुकार 'ख़ुशी' की जानेमन तू सुन


सुन धीरे से ये धुन हाँ सुन
मेरी पायल कहती है क्या सुन
सुन धीरे से ये धुन हाँ सुन--४

Wednesday 8 November 2017

कविता-पास हो कर भी


पास हो कर भी कितना दूर है मेरा दिलबर मेरा सनम
मोहब्बत की सज़ा मिल रही है हमे हर पल हर कदम

नदिया के दो किनारे हुये हम,एक पर रहते हो तुम
दूसरे से तुम्हे हम देखते हैं ,करीब हो कर भी दूर है हम


इश्क की आग में जल रहे मोहब्बत करने वाले
आग की भेट कभी चढ़ रहे तुम, और मर रहे हम

कभी अपने कहने वाले होते थे कितने यहाँ
अब छोड़ तनहा हमे सब चले गये कहाँ

इंसानो की इस दिवार में कितने आशिक चिने
इश्क की आवाज़ को सदियो से वो कर रहे हैं बंद

मोहब्बत पर तो है बस मज़हब का पाबन्द
आशिक की लाशो को रोज़ गिनने लोग आते है

मोहब्बत करने वालो से लोग हमदर्दी दिखाते है
हुये जो सितम ये सबको सुनाये जाते है

देख 'मीठी' कैसे इश्क पर लोग पहरा लागए बैठे है
आशिकों के गम में 'ख़ुशी' अपनी छिपाये बैठे है

वादा कर और ना सहेगी 'मीठी' मोहब्बत में ये सितम
'खुशी' के लिये अब मर मिटेंगे ऐ ज़िन्दगी अब हम


पास हो कर भी कितना दूर है मेरा दिलबर मेरा सनम
मोहब्बत की सज़ा मिल रही है हमे हर पल हर कदम-२

ईश्वर वाणी-२२५, आत्माये धरती से ऊपर रहती है


ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यों यद्धपि तुम ये सब जानते हो की आत्मा जब देह त्याग जाती है तब भी इस संसार में उसका अस्तित्व रहता है, आत्मा एक ऊर्जा एक शक्ति के रूप में उस वक्त तक अपने इस सूक्ष्म शरीर में रहती है जब तक उसे दूसरी देह अथवा मोक्ष न मिल जाये।

हे मनुष्यो ये तुमने सुना होगा की आत्मा कभी ज़मीन पर नही चलती अर्थात भूमि से कुछ ऊपर ही रहती है, जिससे पता चलता है जीवित और मृत प्राणी का अर्थात कभी कभी मृत प्राणी बिलकुल जीवित जैसा ही रूप धारण कर अपने निम्न उद्देश्यों की पूर्ती हेतु जीवित व्यक्तियो में आ जाते है ऐसे में ये देख कर उन्हें पहचाना जा सकता है की उनके पाँव भूमि से टकराते है या नही, कभी कभी आत्माये इतना मामूली अंतर रखती है ज़मीन से अपनी ऊचाई का की आँखों से देखने पर पता ही नही चलता, ऐसे में रेत अथवा रेतीली भूमि पर उनके पैरो के चिन्नो से पता चल सकता है की फला व्यक्ति जीवित है या मृत, जीवित व्यक्ति के पेरो के निशान भूमि पर बन जायंगे किन्तु मृत व्यक्ति के निशाँ उस रेत या रेती भूमि पर नही बनेंगे, यदि रेतीली भूमि या रेत न मिले तो गीली मिटटी से भी ये प्रयोग कर उक्त व्यक्ति के विषय में जाना जा सकता है।

हे मनुष्यो यद्दपि साधारण आत्मा ही नही मेरे द्वारा भेजे दूत (मेरे ही अंश जो भौतिक देह प्राप्त कर जन्म लेते है अपने भौतिक माता पिता द्वारा)जब वह देह त्याग चुके होते है वह भी पृथ्वी भ्रमण के दौरान भूमि से कुछ ऊपर ही रहते है, इसका एक कारण ये ही है धरती सहित सभी गृह, नक्षस्त्र, ब्राह्मण सब भौतिक है इसलिए नाशवान है किन्तु ये आत्मा परमात्मा अर्थात मुझसे निकलने के कारण अमर है, आत्मा ही प्रत्येक जीवन का आदि तत्व है किंतु ये नाशवान नहीं है यद्दपि भौतिक देह के सभी अंग मानव देख सकता है, छू सकता है किंतु आत्मा जो प्रत्येक जीव का आदि और प्रमुख अंग है इसे ना तो भौतिक में कहाँ स्थित है ये देखा जा सकता और ना ही छुआ जा सकता किंतु इसके बिना भौतिक देह मिटटी की काया एक बेज़ान वस्तु के अतिरिक्त कुछ भी नही है।

हे मनुष्यों यद्दपि तुम सोचोगे की कुछ असमान्य गतिविधिया जिन्हें कहा जाता है की अलौकिक शक्तिया करती  कही जाती है, वस्तुए अचानक गायब हो जाना फिल मिल जाना या किसी की देह में किसी भूत आदि प्रवेश हो जाना, तब तो आत्मा इन वस्तुओं को छूती है जोकि भौतिक और नाशवान है फिर धरती पर उनके निशाँ का ना मिलना अर्थात पृत्वी से कुछ ऊँचा उनका होना सिर्फ इसलिये की वो भौतिक है इसलिये इस पर उनके कदम नही पड़ते सही जान नहीं पड़ता।

हे मनुष्यों तुम्हे उसका ही उत्तर बताता हूँ, यद्दपि आत्मा चाहे वो भूत प्रेत योनि में भटक रही है होती है किंतु वो तुम्हे बिना छुये तुम्हारे मस्तिक को भ्रमित कर देती जिससे तुम्हें कभी किसी वस्तु के अपने स्थान से गायब होने का अहसास होता है, साथ ही तुम्हे बताता हूँ आत्मा जब खुद भी भौतिक देह के साथ जन्म लेती है तब भी वह पृथ्वी से नही छिलती अपितु ये देह पृथ्वी को छूती है और यही कारण है जब आत्मा किसी की देह पर भूत बन कर कब्ज़ा करती है तब भी धरती से नही छिलती, छिलता केवल भौतिक शरीर है यद्दपि आत्मा भौतिक शरीर में उस अंग से उसके शरीर में प्रवेश करती है जो आत्मा द्वारा छुये नही जा सकते किंतु  वहा से भूत बनने वाली आत्मा पहले से रहने वाली आत्मा पर कब्ज़ा कर लेती है।

हे मनुष्यों ये आत्माये समस्त ब्रह्मांड की आदि शक्तियो में से एक है और जीवन का प्रमुख तत्व है, बिना आत्मा के सृष्टि के किसी भी जीव के जीवन की कल्पना सम्भव नही है।

उम्मीद है तुम्हे आत्मा की विषय में एक नवीन ज्ञान की प्राप्ति हुई होगी


कल्याण हो"

Saturday 4 November 2017

कविता-तुम हो

"दिल की गहराई में तुम हो
इस तन्हाई में तुम हो

तुम्हें क्या कहु ऐ हमनसिं
मेरे इश्क की सच्चाई में तुम हो

मैं हूँ पागल इश्क में तेरे
मोहब्बत में हरजाई तुम हो

मैंने तो निभाई प्रीत वफ़ा की
आशिकी की बेवफाई में तुम हो

किया ऐतबार हर मोड़ मैंने तेरा
 मोहब्बत की जगहँसाई में तुम हो

मैंने तो नाम कर दी 'मीठी' हर 'ख़ुशी'
पर इस ज़िंदगी की रुलाई में तुम हो

पुकारता है दिल तुझे आज भी
बेवफा है तू मेरी वफाई में तुम हो

दिल की गहराई में तुम हो
इस तन्हाई में तुम हो-३"





Sunday 22 October 2017

कविता-है कुछ मुझे कहना

"आज तुमसे है कुछ मुझे कहना
दिलकी गहराई में सनम तुम्ही रहना-२

ना जाना दूर कभी यु मुझसे मेरे दिलबर
बन कर मेरी ज़िन्दगी सनम तुम्ही रहना

तुम्ही हो मेरी बन्दगी ऐ मेरे हमनशीं
तुम्ही तो हो मेरी खुशियो का गहना

मैं हूँ एक नदिया की धारा तुम सागर मेरे
जनम जनम तक साथ तेरे है मुझको बहना

तुमसे ही जोड़ा दिलका एक ये रिश्ता मैंने
इन धड़कनो में सनम तुम्ही अब बस रहना

बहुत रह चुके अकेले इन तन्हाइयो में हम
दर्द जुदाई का और नहीं हमे अब सहना

आ जाओ बाहों में 'मीठी' तुम्हे पुकारे
'ख़ुशी' की साँसों में तुमही  पिया रहना


आज तुमसे है कुछ मुझे कहना
दिलकी गहराई में सनम तुम्ही रहना-२"



Thursday 12 October 2017

जब तुम मेरे साथ थे

"ज़िन्दगी का वो वक्त कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे
हर एक वो लम्हा कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे

ज़िन्दगी लगती थी खूबसूरत मुझे साथ तुम्हारे 'मीठी'
'ख़ुशी' का वो पल कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे

वादे इरादे वही है आज भी वफ़ा के अपने 'ख़ुशी' पर
वो मौसम कितना हँसी था जब तुम मेरे साथ थे

ख्वाब देखा था 'मीठी-ख़ुशी' साथ उमर भर का
वो साथ भी कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे

दुनिया से छिपाये मेरे अश्क तुम कैसे भाप थे लेते 
'ख़ुशी' का प्यार कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे

'मीठी' लगने लगी थी मुझे ज़िन्दगी की ये कड़वाई
दिलका अहसास कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे

वक्त का है सितम तभी न तुम हो बेवफा न है हम
मिलन का आभास कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे

ज़िन्दगी का वो वक्त कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे
हर एक वो लम्हा कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे-२"

Tuesday 10 October 2017

कविता-ऐ ज़िन्दगी

"ऐ ज़िन्दगी थोडा रुक, वक्त तो दे मुझे
  यु न तू ऎसे, अपनों से जुदा कर मुझे

  माना नहीं मैं रहा काबिल जहाँ के 
अपनो के ये अश्क तो पोछने दे मुझे

रह जायेंगी यादें मेरी इस महफ़िल में
थोडा इस महफ़िलमें और रहने दे मुझे

ये माना दर्द से तड़प रहा हूँ कितना में
अधूरा हूँ 'मीठी' बिन तेरे, कहने दे मुझे

पल पल करीब आ रही मौत 'ख़ुशी' के
दर्द आज 'मीठी-ख़ुशी' से सहने दे मुझे

हाँ माना भुला देंगे ये अपने मुझे कल
अपनों कीही मोहब्बत में बहने दे मुझे


ऐ ज़िन्दगी थोडा रुक, वक्त तो दे मुझे
  यु न तू ऎसे, अपनों से जुदा कर मुझे-2"

मुक्तक

Macks Archu
"उनकी याद में हम आज भी  ये अश्क बहाते है
ढूँढ़ते हैे हर जगह बस उन्हें ही  ना कही पाते है
किसी को क्या कहु मैं दोष तो नसीब का हैं मेरे
मीठी को ख़ुशी से दूर मौत के ये पैगाम ले जाते है"

Wednesday 4 October 2017

ईश्वर वाणी-२२४-धार्मिक ग्रन्थ

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्दपि तुम मुझ पर आस्था रखते हो, मेरी आराधना करते हो, अपने ही अनुकूल धार्मिक शास्त्र पड़ते और विश्वास करते हो, किंतु यदि तुम केवल उसी एक धार्मिक शास्त्र को सही मानते हो जिस पर तुम और तुम्हारा समुदाय यकीं करता है बाकी की अवहेलना करते हो तो तुम मेरे क्रोध के भागी बनते हो।

मेरे द्वारा रचित किसी भी धार्मिक ग्रन्थ में ये उल्लेख नही है की किसी भी धार्मिक शास्त्र का अपमान करो और सिर्फ जिस पर तुम्हारा और तुम्हारे समुदाय का विश्वास हो केवल उसी को सत्य और मेरी वाणी मान सबका अनादर करो।

हे मनुष्यों देश/काल/परिस्तिथि और भाषा के अनुरूप ही ये धार्मिक शास्त्र रचे गए है, जहाँ जहाँ जिस बात की आवश्यकता हुई वहा वहां उसी के अनुरूप इनकी रचना की गयी ताकि भटके हुए मानव को एक सही पथ मिल सके और उसके समुचित मानव चरित्र का विकास हो सके, मानव अपने जन्म की इश्वरिये वजह जान सके और मेरे द्वारा बताये मार्ग पर चल प्राणी जाती के कल्याण हेतु कार्य कर मोक्ष की और अग्रसर हो सके।

हे मनुष्यों इसलिये केवल तुम्हारा ये मानना की केवल मेरा ही धर्म शास्त्र श्रेष्ट सही और ईश्वर की और से है गलत है, मेरी तरफ से तो सभी धार्मिक शास्त्र है किंतु तुमने अपने अनुसार बदलाव कर मेरी बातो को अपने अनुसार लिख दिया है और उन्ही पर विश्वास कर मानव ने मानव को ही शत्रु बना अपने समुदाय के अनुरूप ही राज्यो/राष्ट्रों का निर्माण कर लिया है किंतु शान्ति तुमने वहा भी नही पायी है क्योंकि तुमने अपनी ही जाती को शत्रु बना लिया है और मेरे धारमिक शास्त्रो की अवहेलना कर केवल अपने समुदाय में मान्य धर्म शास्त्र पर यकीं किया।

हे मनुष्यों तुमने मेरी निंदा की, मेरी लिखी बातो (विश्व के सभी धर्म शास्त्र) पर अविश्वाश कर केवल एक ही धर्म शास्त्र पर यकीं कर सभी को दुत्कार कर मेरा अपमान किया, हे मनुष्यों तुम्हे क्या लगता है मैं इतना तुच्झ हूँ जो केवल एक दो तीन चार पुस्तको में आ जाऊँगा, मेरी बाते इतनी निम्न होंगी जो गिने चुने शास्त्रो में ही सिमट कर रह जाएंगी।

हे मनुष्यों ये न भूलो जगत को जन्म देने वाला, नष्ट करने वाला, जीवो को जन्म और नष्ट करने वाला, अतीत वर्तमान भविष्य बनाने वाला, दुःख सुख देने वाला, ब्रमांड चलाने वाला तुम सबका स्वामी मैं ही हूँ, तो क्या मेरी बाते इतनी तुच्छ होंगी जो गिनी चुनी किताबो में आ जायँगी।

हे मनुष्यों विश्व के सभी ग्रन्थ व् धार्मिक शास्त्र मेरे रूप और मेरी बातो का एक सारांश मात्र भी नही है किंतु तुम केवल गिनी चुनी पुष्टको पर भरोसा कर मेरा अपमान करते हो, यदि मेरे विषय में थोडा सा भी जानना है तो विश्व के सभी धर्म शास्त्र पर भरोसा करो, सबको सम्मान दो तभी कुछ हद तक मुझे प्राप्त कर सकते हो।"

कल्याण हो

Friday 29 September 2017

हैप्पी स्वीट दशहरा

"देखो आज फिर रावण दहन का दिन हैआया
हर जगह खुशियो का खुमार है  कैसे ये झाया
लगने लगे हर ओर 'जय श्री राम' के जयकारे
हर किसी ने फिल उल्लास से ये पर्व है मनाया

सुना है हमने रावण तो था प्रतीक एक बुराई का
महाज्ञानी बलशाली बन गया पात्र जगहंसाई का
कर अपहरण माता का उसने अपना काल बुलाया
गवाई सत्ता सारी फिर पूरा परिवार भी मरवाया

पूछे 'मीठी' 'ख़ुशी' से आज ये सवाल हर बार
आज रावण दहन के दिन कितनो ने रावण जलाया
क्या मिटाई बुराई दिलसे अपनी किसी ने यहाँ
कितनी सीताओं की आबरू को तुमने बचाया"




मुक्तक

"इश्क की महफ़िल में सब कुछ गवाया हमने
एक बेवफा मेहबूब पर सब-कुछ लुटाया हमने
मोहब्बत पर कुरबान कर दी ये ज़िन्दगी सारी
उमर भर तन्हाई के सिवा न कुछ पाया हमने"

कविता-यादों में रह जायंगे

"एक दिन हम भी एक फ़साना बन जायेगे,
जहाँ की सिर्फ इन तश्वीरों में ही नज़र आयंगे
लोग कुछ मानेंगे अस्तित्व हमारा तो कोई नहीं
कुछ के लिए बस एक गुज़रा ज़माना बन जायँगे

किसी की हकीकत किसी की कल्पना कहलाएंगे
कोई मानेगा वज़ूद हमारा किसी का ख्वाब कहलाएंगे
मानने वाले मानेंगे न मानने वाले नकारेंगे हमे यहाँ
दिन,महीने,सालो साल सब युही बस गुज़रते जायँगे

वो राते वो दिन भी ऐसे ही फिर नज़र आएंगे
भीड़ भरी राहो में 'मीठी' हम न नज़र आयंगे
'ख़ुशी' में झूमेंगी ये दुनिया आज की तरह ही
हम न होंगे बस अपनोंकी यादो में रह जायँगे"

Wednesday 27 September 2017

कविता-दिल करता है

"तेरी यादो में फिर बहकनेका दिल करता है
तुझे याद कर फिर कुछ लिखने का दिल करता है

तू होती यहाँ तो ज़िन्दगी ही कुछ और होती 'मीठी'
'ख़ुशी' का वो लम्हा फिर बुलाने का दिल करता है

कम ही सही पर तेरा साथ था कितना हसीं 'मीठी'
'ख़ुशी'  का वो अहसास बताने का दिल करता है

वक्त ने किया सितम जो और न साथ जिये हम
सूनी ये ज़िन्दगी तुझे दिखाने का दिल करता है

है मोहब्बत आज भी उतनी ही तुमसे मुझे 'मीठी'
'ख़ुशी' से अपनी आशिकी जताने का दिल करता है

तेरी यादो में फिर बहकनेका दिल करता है
तुझे याद कर फिर कुछ लिखने का दिल करता है-२"

कविता-दिल लोग तोड़ जाते है

"क्यों इश्क में शीशा समझ दिल लोग तोड़ जाते है
करते है वादा वफ़ा का  तन्हा छोड़ जाते है

अश्क छिपा अपने पूछती है 'मीठी' 'ख़ुशी' से ये
क्यों मेरी ही ज़िन्दगी में यु ऐसे ये जोड़ आते है

देते है पल दो पल की मुस्कुराती 'मीठी-ख़ुशी' यहाँ
मिलते है अश्क उमर भर इश्क में ऐसे मोड़ आते हैं

क्यों इश्क में शीशा समझ दिल लोग तोड़ जाते है
करते है वादा वफ़ा का  तन्हा छोड़ जाते है-२"😢



गीत-ऐ ज़िन्दगी

"ऐ ज़िन्दगी ढूढता हूँ तुझे ही हर कही
जाने क्यों मिलती तू मुझे है नही-२

ऐ ज़िन्दगी...............................

बहारो में ढूंढता हूँ  तुझे,
 फिज़ाओ में खोजता हूँ तुझे

तू रहती कहाँ है आ बता दे मुझे
दिल से दिल का पता दे मुझे

ऐ ज़िन्दगी............................

तू मिलेगी कभी ये यकी है मुझे
दिल देगी कभी हाँ तू भी मुझे-२

चाहूँगा तुझको ही हर घडी ओ 'ख़ुशी'
'मीठी' सी होगी मेरी वो 'हमनशि'

छिपी है कही इन नज़ारो में वो कहीं
होगी वो हज़ारो में है मुझे ये यकी-२


ऐ ज़िन्दगी ढूढता हूँ तुझे ही हर कही
जाने क्यों मिलती तू मुझे है नही-२"