Friday 29 September 2017

कविता-यादों में रह जायंगे

"एक दिन हम भी एक फ़साना बन जायेगे,
जहाँ की सिर्फ इन तश्वीरों में ही नज़र आयंगे
लोग कुछ मानेंगे अस्तित्व हमारा तो कोई नहीं
कुछ के लिए बस एक गुज़रा ज़माना बन जायँगे

किसी की हकीकत किसी की कल्पना कहलाएंगे
कोई मानेगा वज़ूद हमारा किसी का ख्वाब कहलाएंगे
मानने वाले मानेंगे न मानने वाले नकारेंगे हमे यहाँ
दिन,महीने,सालो साल सब युही बस गुज़रते जायँगे

वो राते वो दिन भी ऐसे ही फिर नज़र आएंगे
भीड़ भरी राहो में 'मीठी' हम न नज़र आयंगे
'ख़ुशी' में झूमेंगी ये दुनिया आज की तरह ही
हम न होंगे बस अपनोंकी यादो में रह जायँगे"

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