Friday 31 May 2013

वक्त के हाथों हुए कितने मजबूर हम





वक्त के हाथों हुए कितने मजबूर हम, रहते थे कभी एक दुसरे के दिल में और आज दूर हुए हम, करते थे कितनी मोहब्बत तुमसे कभी हम, लुटाते थे तुम पे अपनी ये ज़िन्दगी भी हम, होती थी ख़ुशी कभी साथ रह कर तेरे संग, आज वक्त के साथ हुए कितने मजबूर हम, थे करीब कभी बेइन्तेहा और आज दूर हुए हम,
वक्त के हाथों हुए कितने मजबूर हम
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"दिल में रहने वाले दूर कभी नहीं जाते हैं


"दिल में रहने वाले दूर कभी नहीं  जाते हैं, जब भी याद उनकी आती है आँसू  बन के चले आते हैं,  होते हैं  दूर भले वो नज़रों से पर दिल  की गहरायी में अक्सर वो ही समाये रहते हैं, जब भी आती है याद उनकी  दिल की गहरायी से निकल कर आँखों से अश्रु बन कर चले आते हैं, होते नहीं जुदा कभी दिल में रहने वाले, मिटते नहीं वो कभी दिल में बसने वाले, हो जाते हैं  वो भले इस दुनिया से विदा लेकिन अपने चाहने वालो की आँखों में  अक्सर आँसू  बन के नज़र आते हैं दिल में रहने वाले ये दिल में बसने वाले...

Thursday 30 May 2013

ईश्वर वाणी-ishwar vaani(main hi hoon) **41**

ईश्वर कहते हैं "इस सम्पूर्ण जगत में केवल एक मैं ही सत्य हूँ बाकी सब असत्य है, मैं ही आदि हूँ और मैं ही अंत हूँ, मैं ही जीवन हूँ और मैं ही मृत्यु हूँ, मैं ही आज हूँ मैं ही कल था और मैं ही आने वाले समय में रहूँगा, मैं ही अतीत हूँ और मैं ही वर्तमान हूँ और मैं ही भूतकाल भी हूँ, मैं ही शून्य हूँ और मैं ही आकर हूँ, मैं ही लौकिक हूँ और मैं ही पारलौकिक हूँ, मैं ही वायु हूँ और मैं ही अग्नि हूँ, मैं ही जल हूँ और मैं ही जीवन हूँ, इस ब्रह्माण्ड की प्रत्येक वश्तु में केवल मैं ही मैं हूँ, प्रत्येक प्राणी में भी मैं ही हूँ, मैं ही आत्मा हूँ और मैं ही परमात्मा हूँ, मैं ही सुख हूँ और मैं ही दुःख हूँ, मैं ही हसी हूँ और अश्रु भी मैं ही हूँ,  इस संसार की गति भी मैं हूँ और गड़ना भी मैं ही हूँ, चेतना भी मैं हूँ और अवचेतना भी मैं ही हूँ , मैं ही आकर हूँ और मैं ही निराकार हूँ, मैं वही हूँ जो प्राणी चाहता है, इसलिए हे मनुष्य आपसी बेर भुला कर तू मुझे जब भी सच्ची आस्था से जिस भी रूप में याद करेगा एवं अगर तेरे कर्म मुझे अपने तक लाने के काबिल हुए तो तेरे ह्रदय के रूप के अनुरूप तू मुझे सदा अपने ही समीप पायेगा, क्योंकि इस धरा का आदि और अनादि मैं ही हूँ, मैं ही स्वर्ग हूँ और मैं ही नरक हूँ, मैं ही तीन लोक हूँ  और मैं ही अथाह अन्तरिक्ष भी हूँ,  इसलिए हे मानव अपने अज्ञान की पट्टी अपने नेत्रों से खोल और मेरी शरण में आ ताकि तेरा कल्याण हो सके और तू मोक्ष को प्राप्त कर जन्म-जन्मान्तरों की पीड़ा से मुक्ति पा सके क्योंकि मैं ही पालनकर्ता हूँ और मैं ही संहारंक हूँ, मैं ही माता हूँ और मैं ही पिता हूँ, मैं ही भ्राता हूँ और मैं ही बहना हूँ, मैं ही मित्रा हूँ औरमैं ही शत्रु भी हूँ, अन्धकार भी मैं हूँ और उजाला भी मैं हूँ, इसलिए हे मनुष्य तू खुद पर अहंकार न कर क्योकि तू कुछ भी नहीं है क्योंकि तुझमे भी मैं ही हूँ, इसलिए अपने अहंकार तो त्याग और मेरी शरण में आ ताकि तेरा कल्याण हो सके" । 

हर शख्स मुझे बेदर्द नज़र आता है,

हर मर्द मुझे नामर्द नज़र आता है, हर शख्स मुझे बेदर्द नज़र आता है, ये ज़माना मुझे शेतान नज़र आता है, हर अपना मुझे बेगाना नज़र आता है, घूरती हुई नज़रों वाला भी हर कोई मुझे हेवान नज़र आता है, नज़ारे झुखा कर चलने वाला भी मुझे जिस्म का अभिलाषी नज़र आता है, कितने धोखे मिले हैं मुझे लोगों से, लगी हैं कितनी ठोकरे बस अपनों से, दिला कर ऐतबार अपनी वफ़ा का बेवफाई मिली है बहुत मुझे ज़माने से, खुद को मर्द कहने वाले, अक्सर अपनी बातों पे डटे रहने का ढोंग करने वाले मुझे फरेबी नज़र आते हैं, अक्सर साथ चलने का वादा करने वाले मुझे बीच राह में छोड़ने वाले नज़र आते हैं, ये मेरी नज़रों का धोखा है शायद या फिर बीते दिनों का दर्द है कही इस दिल में जो  ज़िन्दगी में मुझे हर अपना  दूर नज़र आता  हैं, वासना में डूबा हर शख्स मुझे रावण नज़र आता है, दिल लगा कर छोड़ जाने वाला हर मर्द भी मुझे नामर्द नज़र आता है.. 

ईश्वर वाणी(ishwar vaani) maanav vikratiyaan **40**

ईश्वर कहते हैं हमारे हाथों की जो उंगलियाँ हैं वो पांच प्रकार बुराइयां हैं अर्थात पांच प्रकार की बुराइयों की अर्थात व्याधियों की  प्रतीक हैं जिन्हें मनुष्य को त्याग कर प्रभु भक्ति, सत्कर्म एवं अछे एवं नेतिक आचरण का अनुसरण करते हुए मोक्ष प्राप्ति हेतु अग्रसर रहना चाहिए।

ईश्वर बताते हैं ये पांच प्रकार की बुराइयां मानव में कौन-कौन सी हैं  जिनके वशीभूत हो कर मानव इश्वरिये  कार्यों  की अवहेलना करके सदा दुःख को  प्राप्त  है। प्रभु बताते हैं ये बुराईयाँ हैं 'काम', 'क्रोध', 'लोभ', 'मोह' और अहंकार, प्रभु कहते हैं मनुष्य अपने इश्वरिये उद्देश्यों को  भूल कर इस मृत्यु लोक में केवल अपने शारीरक सुख एवं भोगों में लिप्त हो कर इन पांच तत्वों का गुलाम हो कर इश्वरिये कृपा को खो देता है एवं अपने इस मानव जीवन में दुःख पाता जो की प्रभु ने उसे मोक्ष पाने के लिए दिया है, इनमे लिप्त हो कर मनुष्य फिर सदा जन्म-मरण के चक्र में उलझा रहता है और दुखों को प्राप्त करता रहता है।




Wednesday 29 May 2013

बस इतनी सी खता इस ने दिल की

बस इतनी सी चाहत है इस दिल की थाम कर मेरा हाथ ऐ मेरे दिलबर तू मुझे जन्म-जन्मों का प्यार दे ,ले कर अपने बाहों में मुझे मेरी ज़िन्दगी तार दे ,मिले मुझे इनती मोहब्बत तुझसे ना मिली कभी किसी को किसी से , मिले मुझे इतनी चाहत तुझी से ना मिली कभी किसी को किसी से , मिले मुझे इतनी ख़ुशी तुझिसे ना मिली हो कभी किसी को किसी से ,
    है पता मुझे जिस चीज़ की ख्वाइश है मुझे वो तो नहीं मिलती है अब इस सरज़मीं पे ,वो तो मिलती है मन की कल्पनो में या फिर नज़र आती है बस ख़्वाबों में या फिर  दिखती है  नाट्यशालाओं के किसी किरदार में ,
है पता मुझे की ना तो आज कोई ऐसा मिलेगा हमसफ़र जिसका दिल सिर्फ मुझी को चाहेगा , और ना  नज़र कही वो दिलबर जिसे  सिर्फ मुझसे प्यार होगा , एक  सच्चे  दिल वाला वो आशिक ना कही मुझे मिलेगा , 
दुःख नहीं मुझे की मेरी  ये ज़िन्दगी इस इंतज़ार में गुज़र जायेगी , रंज तो इस बात का है की मेरी बस इतनी सी ख्वाइश अधूरी रह जायेगी ,
    स्वार्थ की बनी इस दुनिया में आज सच्ची चाहत भी बस मतलब की है , फरेब  से बने हर रिश्ते की बात क्या अब मुझे  कहनी है ,

झूठ और धोखे के बीच में एक सच्चे दिलबर को पाने की खता की , जो थाम कर मेरा हाथ जन्म-जन्मों का प्यार दे बस इतनी सी चाहत  की , बेईमानी से बने इन रिश्तों से मैंने ईमान की हसरत की ,बेफवाई को अपनी ख़ुशी समझने वालों से मैंने वफादारी की उम्मीद की, अत्याचार और अन्याय से बनी इस दुनिया से मैंने प्यार और न्याय की आस की,व्याभिचार में लगे लोगों से मैंने एक सच्चे दिलदार को पाने की आस की, बस ये ही खता मैंने अपनी इस ज़िन्दगी में की,

दुःख नहीं मुझे अपनी इन खातों का , रंग तो ये है की मैंने हेवानो में भगवान् को देखने की  खता की, जिस्मों की भूखे इन इंसानों में मैंने एक सच्चे दिलबर की आस की, झूठ से बने इन रिश्तो में मैंने एक सच्चे हमसफ़र की चाहत की, बस ये ही खता मैंने की, बस इतनी सी खता इस ने दिल की 

Friday 17 May 2013

नशा

हर गम से दूर ले जाता है ये नशा, हर दर्द हर ख़ुशी में भी सभी के काम आता है ये नशा, अपने मोहजाल में हर किसी को कभी न कबि फसा ही लेता है ये नशा, ये जरुरी नहीं की सिर्फ कुछ लेने से ही हो जाता है ये नशा, कभी मोहब्बत तो कभी यार के मिलने से भी चढ़  जाता है ये नशा, अनेक है इसकी बाते, जाने कितनी करी हैं इसने करामातें, पर हर करामत के बाद सबके सर चढ़ के बोलता है ये नशा, पहले पहल लगता  है बेहद खराब और  कड़वा, पर  जैसे-जैसे वक्त के साथ आदत पड़ने लगती है, उस कडवाहट में भी मीठी खुशबू आने लगती है, लोग भले ये कहे  दूर ज़िन्दगी से ले जाता है हर तरह का नशा, लेकिन हम क्या बताये तुम्हे यारो हमे तो अपने में ही ज़िन्दगी दिखाता है ये नशा।

Thursday 16 May 2013

ईश्वर वाणी -ishwar vaani (निर्दयी एवं कठोर)**39**


ईश्वर कहते हैं जो मनुष्य निर्दयी एवं कठोर हैं , जो मनुष्य किसी दुसरे प्राणी का दुःख-दर्द नहीं समझते , जो मनुष्य केवल स्वं से ही मतलब रखते हैं ऐसे मनुष्य निश्चित ही पशु के सामान हैं , ईश्वर कहते हैं उन्होंने इस प्रथ्वी पर मनुष्य को एक दुसरे के काम आने, एक दूसरे के दुःख दर्द को बांटने एवं उन्हें दूर करने हेतु भेजा  है ना की स्वं के स्वाथों की पूर्ती हेतु और शारीरिक भोगे को भोगने हेतु, ईश्वर कहते हैं मनुष्य को सम्पूर्ण प्रथ्वी का और प्रकृति द्वारा दी गयी वश्तुओं का ख्याल रखना चाहिए, प्रभु कहते हैं उन्होंने मनुष्य जाती को सम्पूर्ण धरा की देखभाल एवं प्राणियों की सुरक्षा और उन्हें प्रेम देने के लिए भेजा है।

ईश्वर कहते हैं जो मनुष्य ईश्वर द्वारा निर्धारित कार्यों की पूर्ती ना कर केवल अपने स्वार्थ की पूर्ती में लग कर और केवल शारीरिक भोगों में तृप्त रहते हैं ऐसे व्यक्ति सदा जन्म मरण चक्र में फसे रहते हैं था मोक्ष को कभी प्राप्त नहीं होते।

ईश्वर कहते हैं उन्होंने मानव जीवन इसलिए दिया है अर्थात वो किसी भी जीव को मानव जीवन इसलिए देते हैं ताकि प्राणी अपने अनेक जन्मों के पापों का प्रायश्चित कर प्रभु की आज्ञा अनुसार कार्य कर अपने समस्त अवगुणों का त्याग कर सत्कर्म एवं भक्ति करते हुए अपने भोतिक शारीर का त्याग कर अनंत मोक्ष प्राप्त करने का अधिकारी बने, किन्तु जो व्यक्ति ईश्वर द्वारा बताई गयी बातो एवं उनके द्वारा निर्धारित कार्यों की पूर्ती नहीं करते ऐसे व्यक्ति सदा जन्म मरण के मायाजाल में फसे रहते हैं एवं अनंत कष्ट भोगते हैं।



तोड़ कर दिल ये मेरा क्या तुझे मिला ऐ मेरे हमनसिं

तोड़ कर दिल ये मेरा क्या तुझे मिला ऐ मेरे हमनसिं,  तोड़ के वादे वो वफ़ा के बेवफा बन के क्या हासिल तुझे हुआ ऐ मेरे  हमनसिं, मैं तो सिर्फ तेरा था लेकिन करके तनहा मुझे अकेले छोड़ के क्या तुझे मिला ऐ मेरी ज़िन्दगी,

Wednesday 15 May 2013

ये नशा भी क्या चीज़ है यारों

ये नशा भी क्या चीज़ है यारों , हर गम से अनजान है ये,हर हारे हुए की जान है ये ,हर टूटे हुए दिल की शान है ये , 
नशे में डूबा हुआ हर शख्स खुद को सदा जोश में  है पाता , जो नहीं कर सकता वो होश में रह कर वो नशे में डूब कर है कर जाता ,
हर गम-ऐ-ज़िन्दगी के लिए जीने की आस है ये , 
हर भटकते हुए राही की प्यास है ये ,ठोकर लगे हर शख्स के लिए एक नव जीवन की आस है ये ,मझधार में फसे हुए नाविक की आखिरी सांस है ये , दुखो से दूर एक नए खुशहाल जीवन में फिर से लौट आने की इबादत है ये, हर गम हर दर्द से लड़ने की ताकत है ये , 
और क्या बताऊ तुम्हे ऐ मेरे दोस्तों ज़िन्दगी का सबसे हसीं रास्ता है ये, रोते हुए चेहरे पे ख़ुशी पाने का एक आसान सफ़र है ये, 
ज़िन्दगी जीने का गलत ही सही लेकिन मौत को गले लगाने का सबसे सस्ता और बेहतरीन रास्ता है ये, 
 क्योंकि ये नशा भी क्या चीज़ है यारों।

ना जाने क्यों

जाने क्यों लोग किसी को दर्द देते हैं  ,जाने क्यों लोग किसी को गम देते हैं , जाने क्यों लोग किसी की मुस्कराहट छीन लेते हैं ,जाने क्यों लोग ख्वाब दिखा कर ख़ुशी के अक्सर उन्हें तोड़ देते हैं, जाने क्यों लोग कर के  वादे वफ़ा के बेवफाई दिखाते हैं,
 जाने क्यों लोग बना के रिश्ते प्यार के इन्हें अधूरे छोड़ जाते हैं,क्या मिलता है  लोगो को दुःख  पंहुचा कर,क्या मिलता है लोगोको किसी  को    अश्क दे कर, क्या मिलता है लोगो को  ज़ज्बातों से खेल कर , जाने क्या मिलता है लोगो को किसी को रुला कर, जाने क्या मिलता है लोगों को किसी को सता कर , 
जाने क्यों लोग किसी के लबो से हँसी छीन लेते हैं, जाने क्यों लोग किसी का यकीं तोड़ देते हैं , जाने क्यों लोग किसी का दिल तोड़ देते हैं, जाने क्यों लोग किसी को अकेला छोड़ देते  हैं, जाने क्यों लोग किसी को तडपता छोड़ देते हैं , जाने क्यों लोग किसी को तनहा छोड़  देते  हैं, जाने क्यों लोग किसी से ऐसा करते हैं, 
ना जाने क्यों ,ना जाने क्यों। 

http://mystories028.blogspot.in/

http://mystories028.blogspot.in/2013/05/blog-post_15.html

Sunday 12 May 2013

मात्र दिवस-mother's day....



दुनिया में सबसे प्यारी है माँ, जग में सबसे न्यारी है माँ, जो सह कर सब कुछ वारती है हम पे अपना प्यार ऐसी ही नारी को कहते है माँ, देवता भी तरसते हैं जिसके आँचल की छाव के लिए, लिए जन्म ईश्वर ने भी जिसका प्यार पाने के लिए उसी स्त्री को कहते हैं माँ, कभी यशोदा तो कभी देवकी तो कभी केकई भी बनती है ये माँ , देखे हैं अनेक रूप इस माँ के लेकिन हर रूप में बरसाती है केवल प्यार ये माँ , जन्म जन्मों का सुख देती, जीवन को सही दिशा दिखाती, अच्छे बुरे का पाठ  पदाती , जीने के काबिल बनाती और जो है सबसे ज्यादा भाति उस स्त्री को ही कहते हैं माँ, बड़े खुशनसीब होते हैं वो लोग जिनके पास होती है माँ , बड़े नसीब से मिलती है माँ , दुनिया की दौलत से भी ज्यादा, दुनिया में सबसे कीमती होती है माँ , अनमोल होती है माँ और अनमोल होती इसकी ममता , नसीबो से मिलती है माँ और खुशनसीबी से मिलती है इसकी ममता ,दुनिया की सबसे हसीनो में सबसे पहले होती है माँ , प्यार लुटाने वालो में सबसे आगे होती है माँ इसलिए  दुनिया में सबसे प्यारी है माँ।






Friday 10 May 2013

ईश्वर वाणी**38** -हे स्वम पे अभिमान करने वाले व्यक्ति अपने पर अभिमान ना कर...........Ishwar Vaani-38

ईश्वर कहते हैं "हे स्वम पे अभिमान करने वाले व्यक्ति अपने पर अभिमान ना कर, स्वम को ग्यानी और बुध्हीमान समझने वाले व्यक्ति अपने पर अभिमान ना कर, तेरा ज्ञान और तेरी बुध्ही नगण्य है, तेरा रूप और तेरा वैभव भी नगण्य है, हे मनुष्य तू किस पर अभिमान करता है, क्या तू अपनी देह पर अभिमान करता है जो एक दिन मिटटी में मिल जायेगी, एक समय ऐसा आएगा जब तेरे अपने ही तुझे अपने से दूर कर तुझे माटी में मिलाने के लिए शीग्रता करेंगे और तुझे एक पल भी बर्शास्त ना कर सकेंगे, क्या तू उस काया का अभीमान करता है, या फिर तू उस माया और वैभव का अभिमान करता है जिसके कारण तूने अनेक  भोतिक सुख तो भोगे, जिसके कारण तूने अपने देह को तो राहत दी अनेक कष्टों से लेकिन तू अपनी देह के मूल कर्तव्यों को भूल गया, तू भूल गया की तुझे ये देह उस परमेश्वर ने किस उद्देश्य से दी है, तू उसके उद्देश्य को भूल कर भोग-विलास में लीन  हो गया और आज अपने वैभव पर अभिमान करता है, या फिर तू अभिमान करता है अपने ज्ञान का, हे मनुष्य तेरा ज्ञान कितना है, और क्या जानता है तू जो खुद पर अभिमान करता फिरता है, जितना तू खुद को ग्यानी समझेगा मेरी नज़र में तू उतना ही अज्ञानी और मूर्ख होगा, क्यों की एक ग्यानी मनुष्य खुद को  ग्यानी नहीं समझता, एक ग्यानी मनुष्य कभी अपने ज्ञान का अभिमान नहीं करता अपितु अपने ज्ञान का निःस्वार्थ भाव से प्रचार-प्रसार करता है, जो व्यक्ति खुद को ग्यानी न मान कर निःस्वार्थ भाव से प्राणियों के कल्याण हेतु कार्य करता है, जो मनुष्य अपने को ग्यानी  एवं  परम ग्यानी ना समझ कर मेरा स्मरण कर के प्राणियों के कल्याण हेतु ज्ञान का और इश्वारिये उद्देश्यों का प्रचारक बन कर उनका प्रचार-प्रशार करता है वो मनुष्य मेरी दृष्टि में परम ग्यानी है, किन्तु जो मनुष्य अपने ज्ञान का अभिमान करते है मैं उनके ज्ञान को नष्ट कर देता हूँ क्योंकि ज्ञान तो अपार है, ज्ञान की गहराई और उंचाई आज तक संसार में मेरे अतिरिक्त कोई नहीं जानता, जो मनुष्य इसका अभिमान करते हैं मैं उनके लिए ज्ञान का वो समंदर प्रादान करता हूँ जिसे वो कभी पार नहीं कर सकते, इसलिए मेरी दृष्टि में वो सबसे अधिक अज्ञानी होते हैं किन्तु जो अहंकार नहीं करते अपने ज्ञान का और निःस्वार्थ प्रचारक बन कर संसार के प्राणियों को ज्ञान की प्रकाश से रोषित करते हैं मेरी दृष्टि में वो परम ग्यानी है और ऐसे मनुष्यों को मैं स्वम ज्ञान प्रदान कर के अथाह ज्ञान के सागर को पार करा कर अपने में समाहित कर लेता हूँ" ।
       इश्वर कहते हैं  " जो व्यक्ति खुद को श्रेष्ठ समझते हैं, जो व्यक्ति खुद को उच्च समझते हैं एवं दूसरों को नीच समझते हैं, मेरी दृष्टि में वो ही अयोग्य और नीच हैं, भले वो खुद को मनुष्यों में  श्रेष्ठ  समझे किन्तु मेरी दृष्टि में वो सबसे अधिक आयोग और नीच हैं, ईश्वर कहते हैं जो मनुष्यों की दृष्टि में योग्य और उच्च होता है वो मेरी दृष्टि में  नहीं क्योंकि ऐसे मनुष्य अहंकारी और अभिमानी होते हैं किन्तु जो खुद को आयोग और नीच समझ कर सदा प्राणी कल्याण हेतु कार्य करता है एवं स्वम को मेरा दास मान कर मेरी शिक्षा का निःस्वार्थ प्रचार-प्रसार समस्त मानव समूह में करता है वो ही व्यक्ति मेरी दृष्टि में श्रेष्ट एवं योग्य और उच्च है और मेरा अति प्रिये भी । 
    
    इसलिए हे मनुष्यों अपने पे अहंकार ना करो, खुद पे अभिमान ना करो, इस संसार में जो भी तुम्हे दिया गया है वो मेरे द्वारा ही तो दिया गया है, इसलिए हे मनुष्यों अपने कर्तव्यों को जानो, उन्हें याद करो की किस उद्देश्य से तुम्हे इस पृथ्वी पर भेजा  गया है, अपने उद्देश्यों को पूर्ण करो, अभिमान और अहंकार का त्याग करो, अपने  कार्यों  को पूर्ण कर मुझमे ही समां जाओ तुम्हरा कल्याण हो।।"       

Tuesday 7 May 2013

वक़्त ठहर सा गया-कविता

बरसों बाद जब उन्हें देखा तो वक़्त ठहर सा गया, बरसों बाद जब उन्हें करीब पाया तो वक़्त रुक  सा गया, ऐसा लगा देख कर उन्हें जैसे बीता वक़्त कभी दूर मुझसे गया ही नहीं, ऐसा लगा पा कर करीब उन्हें जैसे जुदा उनसे हम कभी हुए ही नहीं, कैसे कट गया वो जुदाई का इतना लम्बा अरसा, कैसे कट गया इन फासलों का ये  रास्ता, वक्त के साथ कुछ पता लगा ही नहीं, कैसे कट गया ये जुदाई का आलम, कैसे बीत गया ग़मों का वो मौसम कुछ पता लगा ही नहीं,बरसों बाद जब उन्हें देखा तो वक़्त ठहर सा गया, बरसों बाद जब उन्हें करीब पाया तो वक़्त रुक  सा गया।।



जाते हुए एक दूसरे दूर सोचा ना था हमने की कभी ज़िन्दगी के किसी मोड़ पर फिर हम मिलेंगे, जाते हुए एक दूसरे से दूर सोचा ना था हमने की कभी फिर एक दूसरे को देखेंगे, हुए तो जो जुदा एक दूसरे से इस कदर सोचा ना था की कभी फिर किस राह में हम ऐसे मिलेंगे।

बरसों बाद जब उन्हें देखा तो वक़्त ठहर सा गया, बरसों बाद जब उन्हें करीब पाया तो वक़्त रुक  सा गया।


चलते चलते राह में ऐसे मिले हम, इन सुनसान राहों में ऐसे मिले हम जैसे मिले हो दो अजनबी, जैसे ना मिले हो इससे पहले फिर कभी, पर शुक्र है इन आखों का, पर शुक्र है इन अश्कों का और शुक्र है इस दिल का जिसकी  धडकनों ने हमे फिर पहचान लिया, हो गए हो भले आज अजनबी पर इन अश्कों ने तुम्हे देख कर आज भी अपना मान लिया।


बरसों बाद जब उन्हें देखा तो वक़्त ठहर सा गया, बरसों बाद जब उन्हें करीब पाया तो वक़्त रुक  सा गया।


चले गए थे दूर जो एक दूसरे से हो कर मजबूर, हो कर खफा जो हो गए थे एक दूसरे से इतना दूर, ना चाहा था फिर कभी मिलना इस कदर, ना चाहा था कभी चलते हुए राह में एक दूसरे को पाना इस कदर , न सोचा था चलते हुए राह में मिलेंगे फिर कभी हम यु अजनबी बन कर, न सोचा था कभी देखेंगे एक दुसरे को फिर कभी ऐसे मुड कर, ना सोचा था कभी वक़्त हमे फिर इस मोड़ पर लाएगा, किया था जिसने दूर हमे वो ही हमे मिलाएगा।

 बरसों बाद जब उन्हें देखा तो वक़्त ठहर सा गया, बरसों बाद जब उन्हें करीब पाया तो वक़्त रुक  सा गया, ऐसा लगा देख कर उन्हें जैसे बीता वक़्त कभी दूर मुझसे गया ही नहीं, ऐसा लगा पा कर करीब उन्हें जैसे जुदा उनसे हम कभी हुए ही नहीं, कैसे कट गया वो जुदाई का इतना लम्बा अरसा, कैसे कट गया इन फासलों का ये  रास्ता, वक्त के साथ कुछ पता लगा ही नहीं, कैसे कट गया ये जुदाई का आलम, कैसे बीत गया ग़मों का वो मौसम कुछ पता लगा ही नहीं,

बरसों बाद जब उन्हें देखा तो वक़्त ठहर सा गया, बरसों बाद जब उन्हें करीब पाया तो वक़्त रुक  सा गया।

Monday 6 May 2013

ज़िम्मेदार कौन आर्टिकल ..

१६ दिसंबर दामिनी सामूहिक बलात्कार के बाद ऐसा लगने लगा था की शायद अब महिलाओ की स्तिथि देश और देश की राजधानी दिल्ली में कुछ सुधर जायगी, पर आज भी आये दिन देश और दिल्ली में  होने वाली  बलात्कार की घटनाओ ने  इस देश की महिलाओ के दिल में अपनी सुरक्षा को ले कर  न सिर्फ डर  पैदा किया है बल्कि ऐसी वारदातों ने  भारत का नाम पूरी दुनिया में बदनाम कर दिया है। हिन्दुस्तान जहाँ की ये कहावत पूरे विश्व में प्रचलित थी """""''यत्र नरियस्थे पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता"  अर्थात जहाँ  नारियों की पूजा होती है वह साक्षात देवता विराजित होते हैं और इसलिए हमारे देश में नारियों को सदा ही पूजनीय माना जाता रहा है कही दुर्गा के रूप में तो कही पारवती के रूप में, घर की बेटी, बहु और पत्नी को भी साक्षात लक्ष्मी का रूप मन जाता रहा है, अब सवाल ये उठता है की जिस देश की परंपरा और सभ्यता पूरी दुनिया में सबसे आदर्श मानी जाती थी आज किस दिशा में जा रही है, ऐसे सभ्य और परंपरा वाले देश में आज नारी एक भोग की वस्तु बन कर रह गयी है। आज आलम ये है की घर, बाहर, अपने पराये सब से उसे डर  कर रहना पड़  रहा है की कब कौन बदल जाए, किसके मन में हवस का राक्षश जाग जाए, आज दफ्तर से ले कर घर और घर से ले कर रास्ते भर तक न जाने कितनी  गन्दी नज़रों का वो सामना करती है  और अनेक छेड़ छाड़  को सहती है  और इसके साथ ही अनेक कठिनाइयों को सामना करते हुए उन्हें हर वक़्त ये  डर उन्हें  सताता रहता है की कही उनके साथ कुछ गलत न हो जाये। और इस प्रकार महिलाये /लडकिया आज केवल स्कूल कॉलेज जाने वाली और नौकरी करने वाली ही नहीं अपितु छोटी छोटी बच्चीया भी इस डर के माहोल में जीने को मजबूर हैं वो भी उस देश में में जहाँ नारी को सबसे अधिक मान और सम्मान  और  प्रतिष्टा प्राप्त  है और जहाँ ना जाने कितनी ही महान, विद्वान् और ताज्स्विनी महिलाओं का जन्म हुआ है और जिन्होंने इस देश का ना सिर्फ नाम रोशन किया है अपितु  देश के इतिहास में भी अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित कराया है एवं देश के इतिहास हो भी अमर बना दिया है ।

      अब सवाल उठता है की उस देश में  ऐसी सोच आज के भारतवाशियों में कहाँ से आ रही है। क्यों दिनों दिन  महिलाओं के प्रति  अपराधिक मामले बड़ते जा रहे हैं, जिस देश की सभ्यता और संस्कृति इंतनी महान रही हो उस देश में आज ऐसे दुराचारी कहाँ से पैदा हो रहे हैं, कहाँ से उनमे ऐसा राक्षस पैदा हो रहा है, सच तो ये है ऐसा राक्षश पैदा करने वाले भी हम लोग ही है, आज हमारा बदलता समाज ही इसके लिए ज़िम्मेदार हैं, माता-पिता ही इसके लिए सबसे पहले ज़िम्मेदार है। प्राचीन काल में जहाँ लोग बेटी के पैदा होने के लिए भी मन्नते मानते थे उन्हें पुत्री रत्न  के नाम से पुकारा जाता था इसके साथ उनकी परवरिश में अवं पारिवारिक प्रेम में कोई भेद भाव नहीं रखा जाता था आज स्तिथि इसके एक दम अलग है।  
      आज लोग लड़कियों के लिए तो कहते हैं कपडे ढंग के पहनो और समय पर आओ जाओ, ये मत करो वो मत करो, तुम लड़की हो तुम ये नहीं कर सकती तुम वह नहीं जा सकती, तुम्हे माँ और घर के काम काज में हाथ बटाना  चाहिए, तुम्हे ये करना चाहिए वो नहीं, इसे दोस्ती रखो उसे नहीं, इसे बात करो उसे नहीं  वगेरा वगेरा और अनेक प्रकार की बंदिशे  उनपे लगायी जाती है ।  लेकिन माता-पिता अपने बेटों को ऐसी कोई रोक टोक नहीं करते की समय पर घर आओ-जाओ, ये मत करो वो मत करो, यहाँ मत  जाओ वह मत जाओ, थोडा अपनी बहन और माँ के काम में भी हाथ बटा लो, इसे बात मत करो, ऐसे मत बोलो उसके साथ मत घूमो  इत्यादि  बल्कि लोग अपने बेटों को ऐसी छूट देते हैं जैसे अपराध और गलतिया  तो केवल लड़कियां ही करती है और लड़के तो हमेशा सही काम करते है। मैंने बचपन में अपनी माँ के मुह से सुना था की लड़कियों को हमेशा दबा के रखना चाहिए क्यों की उनके कदम  बहकते  देर नहीं लगती ये सुन कर मुझे बड़ा बुरा लगता था  और छोटी सी उम्र से ही मैंने इसका विरोध करना शुरू कर दिया, अब मेरे घर वाले और  रिश्तेदार मुझे ताने मरते थे यहाँ तक की मुझपे तरह तरह के ज़ुल्म किये गए और वज़ह बस इतनी सी थी की मैंने अपने घर में अपने भाइयों जितना ही हक़ माँगा और बदले में मुझे ज़िल्लत मिली, मुझे मेरी सहेलियन के सामने पड़ोसियों के सामने नीचा दिखया गया, ज़लील किया गया और गलती की मैंने  की  बस हक़ माँगा बराबरी का, हर वो चीज़ मांगी जो भाइयों को दी जाती थी, मैंने घर के काम में माँ की भी कोई मदद नहीं की क्यों की मुझसे ऐसे करने  को इसलिए  कहा जाता  था  क्योंकि  मैं एक लड़की हूँ और ये ही बात मुझे बुरी लगती थी की मैं घर का काम करू क्योंकी मैं एक लड़की हूँ यानि की भेद भाव के साथ मुझ पर ये जबरदस्ती है की मैं ही घर का काम करू  क्यों की मैं एक लड़की हूँ, मैं सोचती थी जब  लडकियां बाहर नौकरी कर सकती है और लड़कों के बराबर कमा सकती है तो लड़के घर का काम कर के माँ और बहन की मदद क्यों नहीं कर सकते, इसके साथ ही मैंने अपने घर वालो, रिश्तेदार, पड़ोसियों और जाननेवालों के मुह से एक और जूमला सुना की बेटा  तो चाहे कुछ भी करे कभी उसका कुछ नहीं बिगड़ता, बिगड़ता तो लड़कियों का है इसके साथ ही  मैंने सुना की लोग अपने बेटों की तुलना राज महाराजा या फिर बादशाहों से करते हैं की हमारा  बेटा  कुछ भी करे वो तो बादशाह है , वो तो कुछ भी कर सकता है पर  लोग अपनी अपनी लड़कियों को संभाल कर रखे, जब भी मैं ये सुनती तो सोचती की इसका क्या मतलब है, इसका मतलब है की  बेटा अगर किसी लड़की के साथ बलात्कार भी करे तो सही क्यों की वो लड़का है , घर और मोहल्ले जा बादशाह है और लड़की दासी  या फिर   बांदी  या फिर उससे भी नीचे और  फिर ऐसा कुकृत्य करने वाले का क्या बिगड़ा  और अगर कुछ बिगड़ा है किसी का तो वो लड़की है और लड़के ने ऐसा इसलिए किया क्यों की घर वालों ने  लड़की को  परदे में नहीं रखा या फिर लड़कों के मुताबिक़ नही रखा  और इसलिए लड़के को ये इजाज़त मिल गयी की वो उसके साथ ऐसा करे। 


         ऐसी ही ना जाने कितनी ही बाते मैंने अपने बचपन में देखि और झेली हैं पर मैं उन लड़कियों  में से नहीं थी जो चुपचाप अपने साथ हो रहे अपने घर वालों के इस भेद भाव पूर्ण व्यवहार को सहती, मैं सोचती अगर ऐसा करने वाले बादशा है तो  लड़कियों को भी  कुछ भी करने का अधिकार होना चाहिए, और एक ही माँ बाप से पैदा हुआ दो बच्चे सिर्फ लिंग की वज़ह से एक बादशा बना और एक बांदी  तो ऐसे माता-पिता मेरी नज़र में  श्रेष्ट माता-पिता नहीं हैं, माता-पिता को चाहिए की वो अपने सभी बच्चो को बेहतर और आदर्श सीख दे न  की एक को उद्दंडी और एक को बांदी बना के रखे, और मैंने अपनी  इस धारणा के कारण  अपने परिवार में विरोध किया पर अफ़सोस मेरे साथ कोई और लड़की खड़ी  न हुई  न कोई  चचेरी, ममेरी बहन और न कोई सहेली,क्यों की उनकी सबकी समझ ये ही थी की वो लड़की है इसलिए उन्हें ये सब तो सहना ही है, पर मैं ये सोचती की अगर हम आज विरोध नहीं करेंगे तो कल जब हम खुद एक बेटी की माँ बनेगी तो हम भी अपने बच्चियों के साथ ऐसा ही व्यवहार करेंगी, मैं कहती नहीं मैं ऐसी माँ बिलकुल नहीं बनुगी और इसलिए मैं खुद अपने साथ हो रहे इस भेद भाव का विरोध करुँगी जो मैंने किया और आज भी कर रही हूँ । मैं ये भी सोचती की अगर हमारे माँ-बाप और हमारे घर वाले ही हमारी क़द्र नहीं करेंगे और हमारे साथ ऐसे भेद भाव रखेंगे तो ये समाज हमे क्या इज्ज़त देगा, अगर हमारे जन्म देने वाले ही हमारे साथ दॊयम दर्जे का वयवहार करेंगे तो ये समाज हमारे साथ कैसे प्रथम दर्जे का व्यवहार कर हमे इज्ज़त देगा और इसलिए अपनी छोटी सी उम्र से ही मैंने अपने घर वालो के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया, अपने साथ हो रहे इस भेद भाव के विरोध में।।  ,
        सच तो ये है की आज जो देश में महिलाओ की जो स्तिथि है इसके लिए जिम्मेदार हमारे बुजुर्ग यानी  की हमारे माता-पिता और घर के अन्य सदस्य हमारे पडोशी और रिश्तेदार हमारे दोस्त और जानकार भी है  जो हमेशा से ही बेटो को तरजीह देते रहे हैं और बेटियों को हेय दृष्टि से देखते रहे हैं, आपने देखा ही होगा की अगर किसी के घर में बेटी पैदा हो तो उसके घर में मातम का सा माहोल हो जाता है चाहे वो परिवार कितना ही संपन्न और आधुनिक क्यों न हो, अगर बेटी प्रथम संतान हो तो लोग कहने  लगते हैं कोई बात नहीं अगली संतान बेटा ही होगी जैसे बेटी पैदा करके कोई विश्व युद्ध हार गए हो और जब लड़का होगा तब जा कर वो ये युद्ध जीतेंगे , फिर वो लोग दिलासा भी देते हैं ये कह कर " प्रथम संतान भी लगभग बेटा  सामान ही है", यानी  की अगर किसी के घर में बेटी हुई है तो बेटे  के लिए दुसरे बच्चे की प्लानिंग में माँ-बाप लग जाए  लेकिन अगर बेटा  हुआ तो न तो कोई रिश्तेदार या फिर पडोशी ये कहता नज़र आएगा की कोई बात नहीं अगली  संतान आपकी बेटी ही होगी और न माँ-बाप ही अपनी अगली संतान की प्लानिंग में कोई जल्दबाजी करेंगे और कई तो अब अगला बच्चा चाहेंगे भी नहीं क्योंकि अगर बेटी हो गयी तो जाने क्या हो जाएगा शायद समाज में उनका सर शर्म से झुक जाएगा या फिर वो कोई युद्ध हार जायंगे ।  पर इसके साथ अपनी इस हालत की ज़िम्मेदार कुछ हद तक लडकिय भी रही हैं क्यों की मैंने देखा है लड़की चाहे छोटे शहर की हो या फिर बड़े शहर की वो अपने साथ हो रहे अपने ही घर पर अपने लोगो द्वारा किये गए भेद भाव को चुपचाप सहती रहती है और उसका विरोध  नहीं करती,  मैंने देखा है की किसी किसी परिवार में बेटों का जन्दीन बड़े जोरदार तरीके से मनाया जाता है और बेटियों का तो याद भी नहीं रखते कारण अलग अलग बताते है पर सच तो ये है की वो लड़कियों को हेय द्रिस्थी से देखते है तभी ऐसा करते हैं  और लडकिया भी चुपचाप सब सह लेती हैं और अपना मुह तक नहीं खोलती, बचपन से ही उसे ये कह कर चूल्हा चौक में आज भी झोंक दिया जाता है की उसे किसी और के घर जाना है इसकी ट्रेनिंग  उसे यहाँ बचपन से दी जा रही है, जुबान बंद रख कर चुपचाप सब सहती रहे क्यों की ससुराल में भी सब सहना है, बस बचपन से ही उसे अपने अधिकारों की अपेक्षा बस सहना ही सिखाया जाता है  और मर्दों से कम है वो और उनपे आश्रित है वो ये उसे सीखाय जाता है, इसके साथ ही लडकिया इसे अपना नसीब समझ कर सहती जाती हैं पर कभी कोई लड़की इसके विरोध में नहीं आती और इसके कारण शादी से पहले अपने मायेके में और शादी के बाद ससुसाल में शोषित होती रहती है इसके साथ ही समाज में भी उसका बलात्कार, छेड -छाड़  और अनेक तरीके से शोषण किया जाता है क्यों की बचपन से उसने बस ये ही सीखा है सहना और मर्द ने सीखा है करना की वो कुछ  भी करे उसका क्या बिगड़ेगा, सच तो ये है की अगर आज की लड़कियों को समाज में इज्ज़त और मान सम्मान चाहिए तो खुद खड़े होना पड़ेगा और सबसे पहले अपने घर में बराबरी का हक़ मांगना होगा , अपने परिवार में अपने परिवार के अन्य मर्दों के सामान ही  हर छेत्र में  बराबरी का हक़ लेना होगा चाहे उसके लिए कितना ही विरोध सहना पड़े ,और  इसके साथ ही  उन्हें अपने घर वालों को कहना होगा की अगर लड़के कुछ भी करे तो उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा तो वो भी कुछ भी कर सकती है और माँ बाप अपनी बेटी के बारे में भी सोच बदले और बेटों के बारे में भी ताकि ये लिंग भेद जल्द ही समाप्त हो और महिलाओं के प्रति हो रहे अपराध कुछ हद तक रुक सके।  इसके शुरुआत घर से आज से और अभी से ही करनी होगी तभी  महिलाए अपना खोया हुआ मान सम्मान वापस प्राप्त कर  पयंगी अन्यथा उनका शोषण ऐसे ही जारी रहेगा।


धन्यवाद 
  अर्चु 


   

मेरे आस पास सिर्फ तुम ही तो हो हे परमेश्वर बस तुम ही तुम हो।


मेरी भावना भी  तुम हो, मेरी मनोकामना भी  तुम हो, मेरा अतीत भी तुम हो, मेरा आज भी तुम हो, मेरा कल भी  तुम हो, मेरी सुबह भी तुम हो, मेरी शाम भी तुम हो, मेरा दिन भी तुम हो, मेरी  रात भी तुम हो, मेरी हर बात भी तुम हो, मेरे ज़ज्बात भी तुम हो,मेरी सच्चाई भी तुम हो, मेरा सपना भी तुम हो, मेरी कल्पना भी तुम हो, मेरी हकीकत भी तुम हो, मेरा दर्द भी तुम हो, मेरी ख़ुशी भी तुम हो, मेरी आस भी तुम हो, मेरी प्यास भी तुम हो, मेरे अश्क भी तुम हो, मेरी मुश्कान भी तुम हो, तनहा मेरी ज़िन्दगी की तन्हाई भी तुम हो, मेरी हर बदनसीबी में साथ हमेशा भी तुम हो, मेरी जिंदगी की शुरुआत से ले कर आखिरी पल तक साथ भी तुम हो, रहे हमेशा साथ मेरे तुम, वक़्त और हालत में के थपेड़ों में यु संभालते रहे तुम, 
आज मेरी इस सूनी पड़ी अकेली तनहा  दर्द  भरी ज़िन्दगी में एक ख़ुशी का अहसास भी तुम हो, देखा है मैंने  जब  भी जिधर पाया है तुम्हे  हर तरफ , आज जाते हुए अकेले इस दुनिया से मैंने किसी को नहीं  बस तुम्हे ही करीब पाया है, हर तरफ जहाँ सूनापन और तनहाइयों को साया है वही मैंने तुम्हे आज भी अपने नज़दीक  पाया है ,
 क्यों की मेरी मोहब्बत  भी तुम हो, मेरी चाहत भी तुम हो, मेरी पहचान भी तुम हो, मेरी जान भी तुम हो,मेरी भावना भी तुम हो, मेरी मनोकंमना भी प्रभु सिर्फ तुम ही तो हो, मेरे आस पास सिर्फ तुम ही तो हो हे परमेश्वर बस तुम ही तुम हो। 
 i love you very much dear Jesus...

Saturday 4 May 2013

क्यों कोई हस्ता है..

क्यों कोई हस्ता है किसी को रुला कर, क्यों कोई जीता है किसी को सता कर, क्या जिंदगी की रीत इसी को कहते हैं, क्या जीना इसी को कहते हैं जो खुश होता है कोई किसी को दर्द पहुचा कर।

Wednesday 1 May 2013

ईश्वर वाणी-37, Ishwar Vaani-37**जो मनुष्य पूजा-पाठ के नाम पर मुझे बलि देते हैं मैं उनकी बलि स्वीकार नहीं करता**




प्रभु कहते हैं जो मनुष्य पूजा-पाठ के नाम पर मुझे बलि देते हैं मैं उनकी बलि स्वीकार नहीं करता, ऐसे लोग मेरा नाम ले कर केवल अपने जीभ के स्वाद हेतु ऐसा घ्रणित कार्य करते हैं, इश्वर कहते हैं ऐसे मनुष्यों की चाहिए की मेरे नाम की अपेक्षा किसी कसाई के पास जा कर अपनी भूख शांत करने हेतु मासाहार को खा कर अपने स्वाद को पाये। 


       प्रभु कहते हैं मैं केवल उन्ही से प्रसन्न होता हूँ जो मेरे बताये गए मार्ग पर चल कर उनका अनुसरण करते हैं, केवल वही मेरे प्रिये होते हैं जो मेरे वचनों का पालन करते हैं, किन्तु जो मनुष्य मुझे पसंन करने के नाम पर किसी निर्दोष की बलि देता है मैं उससे प्रसन्न होने की अपेक्षा क्र्धित होता हूँ क्यों को वो मेरे नाम पर एक निर्दोष की हत्या कर रहे होते हैं जबकि जीवन लेना और देना ये दोनों प्रक्रिया केवल मेरे ही अधिकार शेत्र में है,  प्रभु कहते हैं मुष्य को केवल वो ही बस्तुये अपने भोजन में ग्रहण करनी चाहिए अवं मुहे अर्पित करनी चाहिए जिन्हें मैंने सब के लिए खुद उचित ठेराया है, उन समस्त खाने लायक वस्तुओं को मेरा प्रसाद मान कर मनुष्य को केवल वो ही ग्रहण करना चाहिए और अगर मुझे अर्पित करना है तो वो ही मुझे केवल अर्पित करना चाहिये… 



प्रभु कहते हैं हमे अपने जीवन में किसी भी प्रकार की चिंता न रख कर बस प्रभु का ध्यान करते हुए अपने नित्य कर्म करते रहना चाहिए अवं अपने कर्मो के फल की चिंता उनपे छोड़ देनी चाहिए, ऐसा करने से निश्चित ही मनुष्य का कल्याण होगा । 



ईश्वर वाणी 

ईश्वर वाणी -36, Ishwar Vaani-36 **प्रभु कहते हैं निश्चित रूप से प्रत्येक शादी के काबिल लड़के और लड़की को शादी के बंधन में बंध जाना चाहिए **

प्रभु कहते हैं निश्चित रूप से प्रत्येक शादी के काबिल लड़के और लड़की को शादी के बंधन में बंध  जाना चाहिए क्योंकि  ऐसा प्रकृति और नेतिकता के अनुसार उचित है, प्रभु कहते हैं की उन्होंने निश्चित ही किसी उद्देश्य से हर एक को इस दुनिया में भेजा  है और निश्चित ही हर एक के लिए कोई न कोई जीवनसाथी चुना  है किन्तु यदि किसी को उसका अभी तक कोई हमसफ़र नहीं मिला है तो वो निराश न हों क्यों की ऐसे मनुष्यों को यकीनन  प्रभु ने किसी ख़ास कार्य के लिए ही चुना है, प्रभु कहते हैं यदि आप विवाह करना चाहते हैं और आपको अभी तक कोई नहीं मिला है तो निराश न हो प्रभु का नाम लेते हुए सत्कर्म करते जाए आपका निश्चित ही कल्याण होगा । किन्तु प्रभु कहते हैं जो व्यक्ति विवाह  नहीं करना चाहते ऐसे व्यक्तियों को किसी भी प्रकार से विवाह के लिए विवश नहीं करना चाहिए, प्रभु कहते हैं की एक विवाहित मनुष्य में विवाह  के बाद परिवर्तन आ जाता है, उसे उससे अधिक उसके जीवन साथी  के साथ से ज्यादा जाना जाता है किन्तु एक अविवाहित के जीवन में ऐसा मोड़ नहीं आता की लोग उसे उसकी जगह किसी और की वज़ह से या किसी और के साथ होने की वज़ह से  जाने, प्रभु कहते है विवाहित  स्त्री विवाह के बाद सुहागिन कहलाती है और यदि उसके पति की मर्त्यु हो जाए तो लोग उसे विधवा के नाम से बुलाते  हैं किन्तु एक अविवाहित स्त्री सदेव एक जैसी ही रहती है न तो लोग उसे कभी सुहागिन बुलाते हैं और न ही उसके पति की मृत्यु के पश्चात विधवा, ऐसे ही पुरुष शादी के बाद विवाहित कहलाता है और यदि उसकी पत्नी की मृत्यु हो जाए तो विधुर, कुल मिलाकर स्त्री-पुरुष के जीवन में विवाह के बाद उनके जीवन में ही नहीं उनके जान्ने में भी और एक दुसरे के साथ से ही  अनेक परिवर्तन आ जाते हैं किन्तु एक अविवाहित व्यक्ति सदेव एक जैसा ही रहता है। 

     प्रभु कहते हैं जिस मनुष्य में अपनी कामेच्छा को काबू में रखने की द्रिड इच्छाशक्ति है केवल वे ही व्यक्ति विवाह न करे और जिन मनुष्यों में अपने कामेछाशक्ति को काबू में रखने दम नहीं है उन्हें विवाह कर व्याभिचारी होने से बचना चाहिए, प्रभु कहते  हैं एक पुरुष को विवाह के पश्चात उसके अपने जीवन और अपने शरीर परा उसका अधिकार नहीं रह जाता, ये अधिकार उसकी पत्नी को मिल जाता है और ठीक उसी प्रकार एक स्त्री को भी विवाह के पश्चात उसके जीवन एवं उसके शरीर पर उसका अधिकार न हो कर उसके पति का पूर्ण अधिकार होता है, इस प्रकार एक विवाहित व्यक्ति पूर्ण रूप से अपने जीवनसाथी पर समर्पित हो कर सुखद वैवाहिक जीवन प्राप्त करता है। 



प्रभु कहते हैं एक अविवाहित और नेतिक पथ पर चलने वाला व्यक्ति बड़ी ही आसानी से प्रभु को प्राप्त कर सकता है, क्यों की ऐसे व्यक्ति बड़ी ही सहजता से प्रभु में ध्यान लगा लेते हैं किन्तु विवाहित व्यक्ति इतनी आसानी से प्रभु में ध्यान नहीं लगा पाते और इस प्रकार वो प्रभु को नहीं प् सकते किन्तु उनके अपने सत्कर्म उन्हें प्रभु का प्रिये अवश्य बना देते है, इसलिए प्रभु कहते है सदेव सत्कर्म करो और मेरे द्वारा बताये गए पथ पर चल कर मेरी बातों का अनुसरण करो और मोक्ष को प्राप्त हो। 





ईश्वर वाणी -35, ishwar Vaani-35 **स्वर्ग और नरक **



नमस्कार दोस्तों आज फिर हम हाज़िर हैं ईश्वर वाणी में ईश्वर द्वारा दिए गए ज्ञान के विषय में आपको जानकारी देने , दोस्तों हमारे मन में कुछ सवाल फिर जाग्रत हुए और उन्हें हमने प्रभु से पूछा, और प्रभु ने उन सवालों का जवाब हमे बड़े है अच्छे तरीके से दिया दोस्तों आप अब सोचने लगे होंगे की हमने क्या सवाल करे थे प्रभु से, तो आपका समय अब न लेते हुए हम आपको बता रहे है की क्या हमने प्रभु से पूछा और उनका क्या जवाब उन्होंने हमे दिय। 


प्रश्न-१- हमने पूछा प्रभु से "भगवंत हमे बताये की स्वर्ग और नरक क्या है? हम मरने के बाद कहा जाते हैं, कुछ लोग कहते हैं की यही स्वर्ग और यही नरक है बताये प्रभु क्या सत्य है"?

उत्तर-२* प्रभु बोले " सर्ग वो स्थान है जहाँ कोई दुःख नहीं, हर तरफ ख़ुशी और आत्म संतुष्टि है, कही भी किसी प्रकार का कोई बेर भाव नहीं है, कोई भेद भाव नहीं है, किसी भी प्रकार की न तो सीमा है और न दीवार है, जहाँ केवल आत्मिक शान्ति  और ख़ुशी है, जहाँ कोई दर्द नहीं जहाँ कोई दुःख अथवा पीड़ा नहीं वो ही स्वर्ग है"।




"प्रभु कहते है नरक के विषय में की जहाँ दुःख है, दर्द है, न शान्ति है, ना प्रेम  है, जहाँ  अनेक प्रकार की दीवारे हैं, जहाँ  अनेक   तरह के भेद भाव हैं, जहाँ न सम्मान है और न अपनापन है, जहाँ स्वार्थ सिध्ही है  वो ही स्थान  नरक है"।


प्रभु कहते हैं " जो मनुष्य अपने जीवन काल में अनेक पीड़ा झेल कर भी बुराई के मार्ग पर नहीं चलता अपितु सत्य के मार्ग पर चलता रहता है निश्चित ही अपने भोतिक शरीर को त्यागने के पश्चात वो स्वर्ग का भागी होता है, जो मनुष्य काम क्रोध लोभ, मोह और अहंकार का त्याग कर , अपने देश और विभिन्न प्रकार की मानव द्वारा बनायीं गयी सीमाओं को त्याग कर सम्पूर्ण श्रृष्टि को अपना घर और समस्त प्राणियों को अपना बंधू समझ कर सदेव उनके हित और उनके प्रति दयालु हो कर कार्य करता है, जो स्वाम के अपने दुखों से जितना विचलित नहीं होता किन्तु यदि और किसी और प्राणी को किसी दुःख में देख ले तो खुद से ज्यादा विचलित हो जाए और उन्हें उनके दुःख को दूर करने हेतु कार्य करे अथवा कोशिश भी करे तो ऐसे मनुष्य निश्चित ही ईश्वर के अति प्रिये होते हैं और उन्हें जितना कष्ट ही मानव रुपी भोतिक शरीर में भले उठाना पड़े किन्तु शरीर त्याग के बाद स्वर्ग के पात्र बनते हैं, किन्तु इसके साथ ही प्रभु कहते हैं की केवल वे ही स्वर्ग के पात्र बनते हैं मनुष्य जो इस प्रकार के कार्य तो करते हैं किन्तु साथ में वो ये भी अपने मन में सोचते हैं की इश्वर सब देख रहा है और उनके इस कार्य का उचित फल उन्हें अवश्य मिलेगा,

         प्रभु कहते हैं जो स्वर्ग में आया है निश्य ही उससे असीम सुख की प्राप्ति होगी किन्तु जब उसके पुण्य पूर्ण होंगे तब उसे फिर से धरती पर भेज दिया जायगा, निश्चित ही उसे मानव रूप ही मिलेगा ताकि वो फिर से इस प्रकार सत्कर्म करे  जिससे उसे मोक्ष की प्राप्ति हो। 

प्रभु कहते हैं जो मानव बिना किसी फल की आशा करे सत्कर्म  यानि की इश्वरिये मार्ग पर चल करा सदेव उचित व्यवहार के साथ उचित कार्य करते हैं चाहे उन्हें कितना भी कष्ट क्यों न भोगना पड़े किन्तु घबराते नहीं है और ईश्वर  पे  पूर्ण आस्था रख कर बिना स्वार्थ के अथवा ये भाव रखे बिना की भगवन उन्हें देख रहा है अवं उन्हें उसके कार्यों के कारण निश्य ही स्वर्ग अथवा उचित फल मिलेगा बिना ऐसी भावना के जो कार्य करते हैं उन्हें ईश्वररीये लोक की प्राप्ति होती है, अर्थात जिस रूप में और जिस नाम से मनुष्य उनकी पूजा करता है अवं अपने भोतिक स्वरुप में वो जिस पर आस्था रखता है ऐसे मनुष्य को शरीर त्यागने के पश्चात अपने आराध्य के लोक में स्थान प्राप्त होता है, प्रभु कहते हैं की ऐसा नहीं है की जितने नामों से लोगों ने उन्हें बाँट रखा है उतने ही लोक संसार में विराजित है और न ही जितने लोग आपस में अपने प्रकार के भेद भाव के कारण बनते हैं उतने ही स्वर्ग इस ब्रह्माण्ड में मौजूद है, प्रभु कहते हैं की स्वर्ग और ईस्वर का लोक ब्रह्माण्ड में केवल एक ही है किन्तु जैसी भावना जिसकी रहती है अपने भोतिक शरीर को त्यागते समय उसके सुक्ष शरीर यानि की अभोतिक शरीर जो की आत्मा है उसे उसी रूप में स्वर्ग अवं प्रभु लोक के दर्शन होते हैं अवं वैसा ही स्वर्ग अवं प्रभु लोक उसे प्राप्त होता है। 

             प्रभु कहते हैं जो मनुष्य नास्तिक होते हैं किन्तु जो सदा सत्कर्म करते रहते हैं अपने भोतिक रूप में यधपि ऐसे मनुष्य आजीवन प्रभु का नाम भी न लेते हो किन्तु केवल सत्कर्म निह्सार्थ भाव से करते रहे हो, ऐसे मनुष्य भी प्रभु लोक में प्रवेश के अधिकारी होते हैं, प्रभु कहते हैं ऐसे मनुष्यों को मैं अपने निराकार स्वरुप में खुद ही विलीन कर उन्हें मोक्ष प्रदान करता हॊन। 





किन्तु प्रभु नरक के विषय में कहते हैं "जो प्राणी केवल अपने स्वार्थ के वश में, अहंकारी हो कर अपने सम्पूर्ण जीवन को केवल अपने भोतिक सुखों में लगाये रखता है अवं दुसरे निर्दोष प्राणियों का अहित अपने स्वार्थ सिध्ही हेतु करता रहता है, उसे निश्चित है नरक की प्राप्ति होती है, प्रभु कहते हैं नरक वो स्थान है जहाँ केवल उसे दंड के स्वरुप कष्ट और विभिन्न प्रकार की यातनाये दी जायंगी ऐसा इसलिए होगा क्यों की उसके जीवन काल में उसने कई निर्दोष प्राणियों के भी ऐसी ही यातनाये दी थी अपने स्वार्थ की खातिर,

    प्रभु कहते हैं एक तरफ स्वर्ग और प्रभु का लोक ऐसे दुष्ट व्यक्तियों को नज़र आएगा और दूसरी और नरक जहाँ वो अपने कर्मोनुसार दंड प् रहे होंगे, उन्हें दिखाई देगा की जिन प्राणियों ने उनके द्वारा दुःख पाया अपने जीवन काल में अब वो सुख पा रहे हैं और एक वो हैं जिन्होंने अपने जीवन काल में सभी सुख भोगे आज उससे कई गुना ज्यादा कष्ट पा रहे हैं, प्रभु कहते हैं ऐसे मनुष्य अपने दंड भोगे के पश्चात फिर से अपने कर्मो के प्रायश्चित हेतु फिरसे जन्म लेते हैं और यदि वो इसके पश्चात नेक और भले कर्म बिना किसी स्वार्थ और आशा के करते हैं तो इस जन्म के बाद मोक्ष के पात्र बनते हैं, 


     "प्रभु कहते हैं की जो लोग स्वर्ग में रहते है वो लोग नरक की यातना झेल रही आत्माओ को भली प्रकार देखते रहते हैं, ईश्वर कहते हैं ऐसा इसलिए  द्वारा निश्चित किया गया है क्यों जब स्वर्ग का समय पूर्ण करने के पश्चात वो फिर से जन्म ले तो अहंकारी और व्याभिचारी न बन जाए और अपने जन्म के उद्देश्यों से न भटक जाए, इसलिए स्वर्ग की यातना को वो सदेव किसी न किसी रूप में याद रख कर वो अपने जीवन को सदा नेक और सत्कर्मो को सौंप दे और शरीर त्यागने के पश्चात मोक्ष को पाये"। 



प्रश्न-२* हमने पूछा प्रभु से "भगवंत क्या भोतिक शरीर के साथ भी स्वर्ग अवं नरक की अनुभूति हमे हो सकती है"? कृपया मार्गदर्शन करे। 

उत्तर-२* प्रभु बोले" जिस मनुष्य के मन में आत्म संतुष्टि है, जिस मनुष्य में "और" की भावना नहीं है, जिसे जितना मिल गया उतने में ही प्रसन्न रहने का गुण है, जो व्याभिचार से दूर, भेद भाव और झूठी सीमाओं से दूर सदेव नेतिकता का पालन करने वाला, झूठा और धोकेभाजो का न साथ देने वाला और न समभंद रखने वाला और इसके साथ ही जो मनुष्य प्रभु वचनों का पालन करता है, उसे इसी भोतिक स्वरुप में स्वर्ग की अनुभूति होती है, ऐसे मनुष्यों को दुःख में दुःख की अनुभूति नहीं होती और ख़ुशी में ख़ुशी की", प्रभु कहते है " जिसे ख़ुशी में कोई ख़ुशी न महसूस और और दुःख में कोई दुःख न दिखाई दे, जो हर मौसम में और हर परिश्तिथि में एक जैसा रहे ऐसे मनुष्य को अपने भोतिक शरीर में ही स्वर्ग जैसा सुख प्राप्त होता है"। 



प्रभु भोतिक जीवन में  नरक के विषय में कहते है " जिस मनुष्य में "और " की भावना है, जो मनुष्य सदेव लालच में रह कर अधिक और अधिक अपने शारीरिक सुख की वस्तुओं को पाने में लगा रहता है उसे इसी शरीर में नरक की अनुभूति हो जाती है, प्रभु कहते है उसके आत्म संतुष्ट न होने की भावना ही उसका सबसे बड़ा कष्ट बनता है जो उसके इस जीवन को नाराकिये बना देता है"। 




प्रभु कहते हैं की मैं मनुष्य को पहले ही बड़ा देता हूँ की उसे नरक का रास्ता चुनना है या मुझे अथवा स्वर्ग को प्राप्त करने का रास्ता चुनना है, यधपि जन्म से पूर्व सभी आत्माए ये ही कहती है की उन्हें तो प्रभु को पाने का मार्ग चाहिए किन्तु इस शरीर को प् कर वो अपने कर्तव्यों को भूल जाते हैं, ऐसे में मैं उन्हें विभिन प्रकार के कष्ट अवं अनेक परीक्षाओ के माध्हय्म से उन्हें उनके उद्देश्य याद दिलाने का प्रयत्न करता हूँ, इसके पश्चात जो प्राणी अपने को और अपने कर्तव्यों की जान जाते हैं उन्हें स्वर्ग जैसा अनुभव यही प्राप्त हो जाता है और शरीर त्यागने के बाद भी उन्हें असीम सुख की प्राप्ति होती है किन्तु जो जान नहीं पाते उन्हें नाराकिये कष्ट यही झेलने पड़ते हैं इसके साथ भोतिक शरीर त्यागने के पश्चात भी उन्हें नरक की प्राप्ति के पश्चात अनेक कास्ट दंड के रूप में झेलने पड़ते है।




अर्चना मिश्र