Thursday 16 May 2013

ईश्वर वाणी -ishwar vaani (निर्दयी एवं कठोर)**39**


ईश्वर कहते हैं जो मनुष्य निर्दयी एवं कठोर हैं , जो मनुष्य किसी दुसरे प्राणी का दुःख-दर्द नहीं समझते , जो मनुष्य केवल स्वं से ही मतलब रखते हैं ऐसे मनुष्य निश्चित ही पशु के सामान हैं , ईश्वर कहते हैं उन्होंने इस प्रथ्वी पर मनुष्य को एक दुसरे के काम आने, एक दूसरे के दुःख दर्द को बांटने एवं उन्हें दूर करने हेतु भेजा  है ना की स्वं के स्वाथों की पूर्ती हेतु और शारीरिक भोगे को भोगने हेतु, ईश्वर कहते हैं मनुष्य को सम्पूर्ण प्रथ्वी का और प्रकृति द्वारा दी गयी वश्तुओं का ख्याल रखना चाहिए, प्रभु कहते हैं उन्होंने मनुष्य जाती को सम्पूर्ण धरा की देखभाल एवं प्राणियों की सुरक्षा और उन्हें प्रेम देने के लिए भेजा है।

ईश्वर कहते हैं जो मनुष्य ईश्वर द्वारा निर्धारित कार्यों की पूर्ती ना कर केवल अपने स्वार्थ की पूर्ती में लग कर और केवल शारीरिक भोगों में तृप्त रहते हैं ऐसे व्यक्ति सदा जन्म मरण चक्र में फसे रहते हैं था मोक्ष को कभी प्राप्त नहीं होते।

ईश्वर कहते हैं उन्होंने मानव जीवन इसलिए दिया है अर्थात वो किसी भी जीव को मानव जीवन इसलिए देते हैं ताकि प्राणी अपने अनेक जन्मों के पापों का प्रायश्चित कर प्रभु की आज्ञा अनुसार कार्य कर अपने समस्त अवगुणों का त्याग कर सत्कर्म एवं भक्ति करते हुए अपने भोतिक शारीर का त्याग कर अनंत मोक्ष प्राप्त करने का अधिकारी बने, किन्तु जो व्यक्ति ईश्वर द्वारा बताई गयी बातो एवं उनके द्वारा निर्धारित कार्यों की पूर्ती नहीं करते ऐसे व्यक्ति सदा जन्म मरण के मायाजाल में फसे रहते हैं एवं अनंत कष्ट भोगते हैं।



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