Tuesday 7 May 2013

वक़्त ठहर सा गया-कविता

बरसों बाद जब उन्हें देखा तो वक़्त ठहर सा गया, बरसों बाद जब उन्हें करीब पाया तो वक़्त रुक  सा गया, ऐसा लगा देख कर उन्हें जैसे बीता वक़्त कभी दूर मुझसे गया ही नहीं, ऐसा लगा पा कर करीब उन्हें जैसे जुदा उनसे हम कभी हुए ही नहीं, कैसे कट गया वो जुदाई का इतना लम्बा अरसा, कैसे कट गया इन फासलों का ये  रास्ता, वक्त के साथ कुछ पता लगा ही नहीं, कैसे कट गया ये जुदाई का आलम, कैसे बीत गया ग़मों का वो मौसम कुछ पता लगा ही नहीं,बरसों बाद जब उन्हें देखा तो वक़्त ठहर सा गया, बरसों बाद जब उन्हें करीब पाया तो वक़्त रुक  सा गया।।



जाते हुए एक दूसरे दूर सोचा ना था हमने की कभी ज़िन्दगी के किसी मोड़ पर फिर हम मिलेंगे, जाते हुए एक दूसरे से दूर सोचा ना था हमने की कभी फिर एक दूसरे को देखेंगे, हुए तो जो जुदा एक दूसरे से इस कदर सोचा ना था की कभी फिर किस राह में हम ऐसे मिलेंगे।

बरसों बाद जब उन्हें देखा तो वक़्त ठहर सा गया, बरसों बाद जब उन्हें करीब पाया तो वक़्त रुक  सा गया।


चलते चलते राह में ऐसे मिले हम, इन सुनसान राहों में ऐसे मिले हम जैसे मिले हो दो अजनबी, जैसे ना मिले हो इससे पहले फिर कभी, पर शुक्र है इन आखों का, पर शुक्र है इन अश्कों का और शुक्र है इस दिल का जिसकी  धडकनों ने हमे फिर पहचान लिया, हो गए हो भले आज अजनबी पर इन अश्कों ने तुम्हे देख कर आज भी अपना मान लिया।


बरसों बाद जब उन्हें देखा तो वक़्त ठहर सा गया, बरसों बाद जब उन्हें करीब पाया तो वक़्त रुक  सा गया।


चले गए थे दूर जो एक दूसरे से हो कर मजबूर, हो कर खफा जो हो गए थे एक दूसरे से इतना दूर, ना चाहा था फिर कभी मिलना इस कदर, ना चाहा था कभी चलते हुए राह में एक दूसरे को पाना इस कदर , न सोचा था चलते हुए राह में मिलेंगे फिर कभी हम यु अजनबी बन कर, न सोचा था कभी देखेंगे एक दुसरे को फिर कभी ऐसे मुड कर, ना सोचा था कभी वक़्त हमे फिर इस मोड़ पर लाएगा, किया था जिसने दूर हमे वो ही हमे मिलाएगा।

 बरसों बाद जब उन्हें देखा तो वक़्त ठहर सा गया, बरसों बाद जब उन्हें करीब पाया तो वक़्त रुक  सा गया, ऐसा लगा देख कर उन्हें जैसे बीता वक़्त कभी दूर मुझसे गया ही नहीं, ऐसा लगा पा कर करीब उन्हें जैसे जुदा उनसे हम कभी हुए ही नहीं, कैसे कट गया वो जुदाई का इतना लम्बा अरसा, कैसे कट गया इन फासलों का ये  रास्ता, वक्त के साथ कुछ पता लगा ही नहीं, कैसे कट गया ये जुदाई का आलम, कैसे बीत गया ग़मों का वो मौसम कुछ पता लगा ही नहीं,

बरसों बाद जब उन्हें देखा तो वक़्त ठहर सा गया, बरसों बाद जब उन्हें करीब पाया तो वक़्त रुक  सा गया।

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