Monday 26 February 2018

ईश्वर वाणी-240, आद्यात्म व आत्मा से संबंधित ज्ञान

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यु तो तुम्हे मैं आध्यात्म से संबंधित ज्ञान तुम्हे दे चुका हूँ, किन्तु आज फिर थोड़ा सा ज्ञान आध्यत्म से सम्बंधित तुम्हें देता हूँ।

हे मनुष्यों आध्यात्म वो नही जो किसी धर्म विशेष के विषय मे बात करे, निम्न पुस्तको को पढ़ने और सुनाने से आध्यात्म की प्राप्ति नही होती, अपितु आध्यात्म एक ऐसा विषय है जिसमे सभी जाति, धर्म, सम्प्रदाय, भाषा, क्षेत्र को समान सम्मान देना शामिल हो।

यदि एक धर्म विशेष को तुम मानते हो उसकी ही धार्मिक पुस्तक पड़ते व विश्वास करते हो, किन्तु आध्यात्म केवल इतना नही अपितु समस्त जगत का ज्ञान इसमे शामिल हैं जो धर्म जाती भाषा क्षेत्र सम्प्रदाय से परे है।

हे मनुष्यों मैं अब तुम्हे अपने विषय मे सक्षीप्त ज्ञान देता हूँ यद्धपि पहले ही तुमहे आत्मा परमात्मा व भौतिक देह के विषय मे बता चुका हूँ किंतु आज फिर संशिप्त में तुम्हे बताता हूँ। परमात्मा अर्थात प+र+म+आ+त+म+आ=परमात्मा
ये दो शब्दों से मिलकर बना है-

परम  और आत्मा अर्थात आत्माओ में परम्, प्रथम, किंतु प्रत्येक शब्द का शाब्दिक  अर्थ इस प्रकार है

- प=प्रथम

र=रचियता

म=में

आ=अनन्त, आदि

त=तत्व

म=मैं

आ=आत्मा

अर्थात समस्त संसार का प्रथम रचियता में हूँ,  आदि अनन्त तत्व में आत्माओं में पहली आत्मा परमात्मा में हूँ।

हे मनुष्यों यद्धपि तुम्हारा भौतिक स्वरूप कभी नही मिटता अपितु स्वरूप बदल जाता है, बिन आत्मा के मिट्टी का ढेर हो जाता है जैसे कुम्हार अपने पुराने मिट्टी के बर्तन को तोड़ देता है ताकि उस मिट्टी से नए बर्तन बनाये वही इस भौतिक देह के साथ होता है।

किन्तु आत्मा कभी नही बदली अपितु वो जैसी है उसी रूप में रहती है अर्थात निराकार रूप में, किंतु सूक्ष्म शरीर अर्थात अतृप्त आत्मा अवश्य अपने भौतिक स्वरूप की भांति ही नज़र आती है किंतु जब मोक्ष पा कर नवजीवन में प्रवेश करती है तब वो अपने असल स्वरूप में होती है जो  निराकार है, आत्मा अपने पिछले समस्त कर्मो के फल प्राप्त कर नवजीवन में प्रवेश करती है।

हे मनुष्यों आज की ईश्वर वाणी में पिछली ईश्वर वाणियों का सार (आध्यत्म व आत्मा से सम्बंधित ज्ञान) तुम्हें दे चुका हूँ, आशा करता हूँ तुम्हें इससे ज्ञान की प्राप्ति हुई होगी।"

कल्याण हो





ईश्वर वाणी-239, सकारात्मक सोच

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों मैं पहले बता चुका हूँ जीवन में प्रार्थना का फल कैसे मिलता है, आज उसी बात को आगे बढ़ाता हुआ तुम्हे कुछ नवीन ज्ञान देता हूँ।

हे मनुष्यों जब तुम किसी भय में होते हो, तुम्हें किसी नकारात्मक शक्ति का भय सताता है, तब तुम मेरा स्मरण करते हो, तब तुम्हारा भय कम हो जाता है, ऐसा इसलिए क्योंकि तब तुम्हारे शरीर से तुम्हारे अंतर्मन से सकारात्मक शक्ति निकलती है, जो तुम्हारे चारो ओर एक घेरा बना लेती है, ये ही सकारात्मक शक्ति है, जो पूर्ण रूप से उस नकारात्मक शक्ति पर हावी हो उसे कमजोर कर देती जिससे तुम्हारा भय कम होता जाता है।

हे मनुष्यों इसी प्रकार जब तुम्हें लगता है किसी ने तुम पर टोना टोटका कर दिया है और उससे बचने के लिए तुम्हे पूर्ण विश्वास के साथ अनेक उपाय सुझाए जाते हैं, जिन्हें पूर्ण विश्वास से करना पड़ता है, ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसा करने से जो सकारात्मक ऊर्जा तुमसे निकलेगी वही उस उपाय को सार्थक बनाती है, और तुम्हे तुम्हारी पीड़ा से मुक्ति दिलाती है।

वही तुम्हारी नकारात्मक सोच इसका उलट असर दिखाती है और तुम्हारे समझ दिक्कत लाती है, इसलिए सदैव सकारात्मक रहो।"


कल्याण हो

कविता-अरमान जागा है

"आज बस जीने का फिर अरमान जागा है
आज  कुछ कहने का फिर अरमान जागा है

सपनो की दुनिया से मुह मोड़ चुके थे हम
आज ख्वाब देखने का फिर अरमान जागा है

सबसे नाता तोड़ दूर कहीं चले गए थे हम
आज सबसे मिलने का फिर अरमान जागा है

सोचा था शायद अब हम यूँही तन्हा रहेंगे
आज खुल कर जीने का फिर अरमान जागा है

डरने लगे थे इन रास्तों पर चलने से हम तो बस
इन रास्तो से मोहब्बत का फिर अरमान जागा है

आज बस जीने का फिर अरमान जागा है
आज  कुछ कहने का फिर अरमान जागा है-२"

ईश्वर वाणी-238, जीवन मे प्रार्थना का प्रभाव

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों में तुम्हे आज प्राथना के विषय मे बताता हूँ, आखिर ऐसा क्या होता है जो लोग कहते हैं कि तुम्हारी प्राथना ईश्वर ने सुन ली, या फिर क्या कारण है जिसके कारण तुम्हारी प्रार्थना नही सुनी गई।

हे मनुष्यों जब तुम सच्चे दिलसे मुझे याद करते हो, साथ ही सच्चे दिलसे बिना की राग द्वेष छल कपट के कोई दुआ मांगते हो, मुझपर पूर्ण श्रद्धा रख कर सच्चे दिलसे मुझे याद कर कोई इच्छा करते हो तो पूर्ण अवश्य होती है।

इसका कारण ये है जब तुम ऐसा करते हो तब तुम्हारे शरीर से तुम्हारी आत्मा जो मेरा ही एक अंश है जो जाग्रत हो कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है, यही सकारात्मक ऊर्जा तुम्हारे चारो ओर घूमती है एवं तुम्हारी जैसी इच्छा होती है उसे पूर्ण करने के हालात बनाती है।

किन्तु जब तुम छल कपट राग द्वेष की भावना से मेरी स्तुति करते हो तब तुम्हारे अंदर से तुम्हारी आत्मा नकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है फलस्वरूप तुम्हारी इच्छा पूर्ण नही होती किंतु यहाँ कुछ व्यक्ति कहेंगे कि मैंने तो कोई छल कपट ईर्ष्या राग द्वेष किसी के साथ नही रखा साथ ही सच्चे दिलसे ईश्वर अर्थात मेरी स्तुति की फिर भी मेरी मनोकामना पूर्ण नही हुई, कोई कहता है मेरी तो होती ही नही मनोकामना पूर्ण।

हे मनुष्यों उन्हें मै बताता हूँ यदि उनकी मनोकामना पूरी नही हुई तो उसकी कुछ वजह हो सकती है जैसे-

1- तुम्हारे अंदर से सकारात्मक ऊर्जा निकली उसे ये पता था जो इच्छा तुम कर रहे हो, निकट भविष्य में उससे तुम्हे भारी हानि हो सकती है, यद्धपि तुम्हे लगता है कि ये ही मेरे लिए महत्वपूर्ण है किंतु भविष्य में ये ही तुम्हे हानि पहुचा सकती है, इसलिए वो उर्जा तुम्हें लाख प्राथना के बाद भी तुम्हारी वो इच्छा पूरी नही करती साथ ही पिछले जन्म के करम भी होते हैं जो व्यक्ति की इच्छाओं को पूरा करने न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

2-कई बार तुम्हारे आस पास मौजूद नकारात्मक ऊर्जा बहुत ज्यादा होती है जिसके कारण तुम्हारे अंदर की सकारात्मक ऊर्जा कमजोर होने के कारण उससे हार जाती है जिससे तुम्हारी इच्छा लाख कोशिश के बाद भी पूर्ण नही होती। ये नकारात्मक ऊर्जा कोई भूत प्रेत नही अपितु तुम्हारे अपने अंदर की निराशा व तुम्हारे आस पास के व्यक्तियों के अंदर व्यापत किसी भी प्रकार की निराशा है, जिसकी शक्ति तुम्हें प्रभावित करती है।

3-निकट भविष्य में तुम्हें इससे भी बेहतर कुछ मिलने वाला होगा तभी तुम्हारी ये इच्छा पूर्ण नही हुई।

4-अभी वो समय नही आया है या किसी चीज़ अथवा जीव जिसकी तुम कामना रखते हो कि सदा तुम्हारे साथ रहे इसके लिए प्रार्थना करते हो किन्तु वो चीज़ या जीव तुमसे सदा के लिए दूर हो जाता है, क्योंकि अब उसका इस स्वरूप में समय पूरा हो चुका है, उसे एक नए स्वरूप की आवश्यकता है साथ ही तुम्हें भी भावनाओं से ऊपर उठ कर मोह त्याग ईश्वर में ध्यान लगाने की आवश्यकता है।


ये निम्न कारण है जो तुम्हारी इच्छा तुम्हारी प्राथना तुम्हारी मन्नत पूरी नही होने देते।

हे मनुष्यों मैं पहले भी बता चुका हूँ मैं तुम सबमे हूँ किन्तु तुम मुझमे नही, तुम्हारी आत्मा मुझ परमात्मा रूपी सागर से निकला एक अंश अर्थात एक बूँद है, तुम्हें मैंने कई अदभुत शक्तियां दी है किन्तु तुम्हारे अंदर विराजित बुराई ने उन्हें  तुमसे दूर रखा है, यदि तुम अपने अंदर की समस्त बुराई को त्यागकर कर मानव कर्म व मानव पथ पर चलते हो तो तुम्हें उन शक्तियों की अनुभूति होगी जो मैंने तुम्हें दी है।

हे मनुष्यों यद्धपि तुम्हे मैंने आज प्रार्थना के विषय में बताया, संछिप्त ज्ञान और तुम्हे देता हूँ, जो व्यक्ति मेरे किसी भी रूप की पूजा करते हैं, उन्हें हानि नही पहुचाना क्योंकि उस समय उन्हें नही पता किन्तु उनके अंतर्मन से सकारात्मक ऊर्जा निकलती है, ये ऊर्जा व्रत-उपवास व प्रार्थना के दौरान अवश्य निकली है, ऐसे में यदि उस व्यक्ति को सताया जाता है भले वो व्यक्ति स्वम् कुछ न कहे या करे किन्तु उससे निरन्तर निकलने वाली ऊर्जा दुष्परिणाम निकट भविष्य में  अपने सताने वाले व्यक्ति को अवश्य देती है, यद्धपि तुमने सुना होगा कि फला का आशीर्वाद से मेरा ये काम हो गया अथवा फला की बद्दुआ से ये काम बिगड़ गया, ये सब निम्न व्यक्तियों से निकलने वाली ऊर्जा के कारण हुआ।

हे मनुष्यों तुमने कई मनुष्य व साधु सन्यासी की कहते सुना होगा कि उन्होने अपने इष्ट के साक्षात दर्शन करे पूजा अथवा प्राथना के दौरान, आज तुम्हें बताता हूँ जो ऐसा सच मे अनुभव करते हैं तो ध्यान व प्राथना में इतने खो जाते हैं कि उनके अवचेतन मन से उनकी आत्मा सम्पर्क कर ब्रह्मांड में विराजित ईश्वर रूपी शक्ति से सम्पर्क साध लेती है, ऐसे मनुष्यों के अंदर सकारात्मक ऊर्जा व उसकी आत्मा के सकारात्मकता के प्रभाव के कारण होता है, जिससे वो अपने इष्ट के दर्शन पाते हैं जिस रूप में उन्हें वो मानते हैं।

इस प्रकार प्राथना का पूरा होना या न होना व्यक्ति के जीवन पर निर्भर करता है।'


कल्याण हो





Saturday 24 February 2018

ईश्वर वाणी-237, धरती का मासिक चक्र



ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों जैसे समस्त जीवों में मैंने समान रूप से स्त्री अर्थात मादा व पुरूष अर्थात नर को बनाया है, प्रत्येक जीव में केवल स्त्री को ही मैंने मातृत्व की शक्ति दी, एक स्त्री ही है जो अपने समुदाय को आगे बढ़ा सकती है, ये उपहार मैंने स्त्री को ही दिया है।

किंतु इस उपहार को केवल वही स्त्री प्राप्त कर सकती है जिसको मासिक आता हो, अर्थात इसके बिना स्त्री मातृत्व के सुख से वंचित रह सकती है, यद्धपि पुरुषों ने स्त्री के इस मासिक चक्र के कारण उसको अशुद्ध घोसित कर तमाम प्रतिबन्ध लगा दिए, किंतु क्या स्त्री सच में उस अवस्था मे अपवित्र होती है इसका उत्तर में पिछली ‘ईश्वर वाणी’ में दे चुका हूँ किंतु आज बताता हूँ धरती के मासिक चक्र की।

चुकी धरती इस आकाशगंगा में एक अकेली स्त्री है, इसलिये इसे भी माँ बनने का सुख मिला, सर्वप्रथम मंगल ग्रह को इसने जन्म दिया तत्पश्चात धरती ने पेड़ पौधे तमाम जीव जन्तु व मनुष्य को जन्म दिया, अपनी गोद मे ये आज हम सबको लिए हुए हैं, देह त्यागने के बाद भी ये अपने आँचल में सबको सुला लेती है।

किंतु धरती को इस मात्रारत्व का सुख यूँही नही मिला है, अन्य स्त्रीयो की भांति इसको भी माँ का सुख मासिक चक्र के द्वारा ही प्राप्त हुआ है, अब तुम पूछोगे धरती और मासिक चक्र, तो तुम्हें बताता हूँ धरती पर जब जीवन नही था, तब अनेक जयवालामुखी इस पर मौजूद थे जिनमें निरन्तर विस्फोट होते रहते थे, उनसे ही निकले लावे व राख से अति सूक्ष्म जीवों की उत्तपत्ति हुई जो जीव व प्राणी जगत की उत्तपत्ति का कारण बने, आज भी धरती पर कही न कही ज्वालामुखी विस्फोट होते हैं जो आज भी पर्यावरण और नये जीवन का कारण बनते हैं, ये ही ज्वालामुखी इस धरती रूपी माँ का मासिक चक्र है, चुकी ये सभी जीवों की माँ है व ब्रमांड में हमारी आकाशगंगा में अकेली स्त्री तृत्व है इसलिए इसका मासिक अन्य स्त्रीयो से अलग है, किंतु तरीका वही है जब धरती अंदर से बहुत गर्म हो जाती है जिसके कारण उसके आस पास की मिट्टी व दीवार पिघल कर गिर जाती है तब ज्वालामुखी में विस्फोट होता है, ऐसा ही कुछ तरीका समस्त स्त्री जाति के मासिक के दौरान होता है।

हे मनुष्यों मैं जानता हूँ कुछ व्यक्ति इस लेख को पढ़ने के बाद कहेंगे कि फला ग्रह पर भी ज्वालामुखी हैं जो फटते रहते हैं तो वो भी मासिक चक्र में है क्या? तो उन्हें में बताना चाहता हूँ जीवनदायिनी ज्वालामुखी का विस्फोट कहा हुआ है, जहाँ जहाँ इसके विस्फोट से जीवन उतपन्न हुआ वहा कह सकते हैं कि वहां या उस ग्रह की धरती अपने चक्र में थी।

हे मनुष्यों जो जन स्त्रीयो को उन दिनों अपवित्र कह अपमानित करते हैं, वो जान ले स्त्री कभी अपवित्र नही होती, यदि उन दिनों वो अपवित्र होती तो सबसे पहला स्थान पृथ्वी का होता जो समस्त जीवों का घर व उनकी माँ है, किंतु जैसे समस्त जीवों को जन्म देने व पालन पोषण के कारण धरती का स्थान सभी ग्रहों में श्रेस्ट है वैसे ही सभी पुरुषों में अर्थात नर में स्त्री अर्थात मादा का स्थान श्रेस्ट व पवित्र है, इसलिए कभी किसी स्त्री का उसके मासिक को लेकर अपमान न करो क्योंकि ये अपमान उसका नही अपितु समस्त पृथ्वी का है, जो अनुचित व पापयुक्त है।

है मनुष्यों अपनी सोच सुधारो व स्त्री का हर समय सम्मान करो, तुम्हारा उद्धार होगा क्योंकि स्त्री खुद में पूर्ण है किंतु पुरूष खुद में पूर्ण नही अतः उसे स्त्री की सदा आवश्यकता है, वो चाह कर भी स्त्री से अलग नही हो सकता क्योंकि स्त्री शक्ति रूप में उसके अंदर है किंतु पुरूष स्त्री में कही नही, इसलिए नारी को सम्मान दो क्योंकि इसका स्थान सर्वश्रेष्ठ है।"

कल्याण है

Friday 23 February 2018

ईश्वर वाणी-२३६, ईश्वर वाणी



ईश्वर कहते है, “हे मनुष्यों यु तो तुम सदियों से किसी न किसी धार्मिक व्यवस्था से जुड़े हो, सदियों से जुड़े होने के कारण व पीढ़ी दर पीढ़ी उसी का अनुसरण करने के कारण केवल उस व्यवस्था को ही सत्य मानते हो जिसका तुम अनुसरण करते आये हो, बाकी अथवा अन्य जन द्वारा मान्य धार्मिक व्यवस्था को या तुम अस्वीकार करते हो अथवा अपने से कम आंक कर अवहेलना करते हो, जो उचित नही क्योंकि ऐसा करने से तुम मेरी अनेक बातें व मेरे विषय मे पूर्ण रूप से व अधिक से अधिक जानने से वंचित रह जाते हो।

इश्लिये मेरी वाणी जिसे ‘ईश्वरवाणी’ नाम दिया, ये वो वाणी हैं जो किसी धर्म विशेष को बढ़ावा नही देती और न ही किसी धर्म ग्रंथ विशेष को, अपितु दुनिया के जितने भी अति प्राचीन व आधुनिक धर्म ग्रंथ हैं ये उनका सार है साथ ही उनकी सही प्रकार से व्याख्या, इससे पहले जो व्याख्या तुमने पड़ी उससे मानव का मानव का ही बेर पड़ा व समझा, कही मूर्ति पूजा का विरोध तो कहीं समर्थन, अब इससे एक असमंजस की स्थिति आ गयी कि मूरती पूजा करे या नही, कौन से धर्म शास्त्र पर भरोसा करें क्योंकि सब खुद को ही श्रेस्ट बताते हैं।

किंतु यदि तुम ‘ईश्वर वाणी’ लेख को पढ़ते हो अथवा ध्यान से सुनते हो तो इस असमंजस की स्थिति से बाहर निकल सकते हो, इससे तुम्हे ज्ञात होगा कि कौनसा धर्म शास्त्र तुम्हारे लिए उचित व कौन माध्यम अर्थात मूर्ति पूजा या निराकार ईश की पूजा तुम्हारे लिये उचित है।

में अपनी अनेक ‘ईश्वर वाणियों’ में तुम्हें इस विषय में पहले ही बता चुका हूँ, हे मनुष्यों यदि तुम्हारे पास समय की कमी व असमंजसता है कि कौनसा धर्म अपनाउं व किस मेरे रूप की पूजा करू व कौनसे धर्म शास्त्र को सत्य समझू तो तुम अब इससे बाहर निकला, तुम ‘ईश्वर वाणी’ लेख को केवल पड़ो अथवा सुनो व उसी पर यकीं करो, यदि तुम ऐसा करते हो तो तुम्हें संसार के अनेक प्राचीन व आधुनिक धर्म ग्रंथो के सार की पूर्ण जानकारी मिलेगी जो किसी एक मत पर चलने वालों को नही मिलती, उन्हें सीमित ही ज्ञान मिलता है जिससे वो संकुचित सोच के कारण मुझमें ही भेद करने लगते हैं, किन्तु मेरी वाणी को पढ़ने वाले उसका अनुसरण करने वाले ऐसा नही करते, साथ ही मेरे द्वारा बताई ‘ईश्वर वाणी’ में तुम धर्म शास्त्र से बाहर के भी आध्यात्मिक ज्ञान को भी प्राप्त करते हो।
एक सम्पूर्ण मानव बनने के लिए केवल मानव देह का मिलना, धर्म के आधार पर जाती, भाषा, क्षेत्र के आधार पर लड़ना उचित नही क्योंकि ये तो पाश्विक प्रवत्ति है, एक जानवर ही अपने क्षेत्र में दूसरे को बर्दाश्त नही करता, अपनी जैसी बोली बोलने वाले कमजोर का वध व ताकतवर से भय खाता है, यही प्रवत्ति मानव ने अपनाई है तो भला मानव इनसे श्रेस्ट कैसे? मानव को मानव बनने के लिए मानवीय गुणों का पालन करना होगा, उसका अनुसरण करना होगा, तब जा कर वो मानव बनेगा अन्यथा मानव रूप में वो भी अन्य पशुओं के समान ही एक पशु है।

हे मनुष्यों इश्लिये तुमसे कहता हूँ ‘ईश्वर वाणी’ लेख पड़ो व सुनो व औरो को भी सुनाओ ताकि तुम जान सको मानव क्या है, कैसे बना जाए, कैसे मेरा प्रिय बना जाए, कौन सा मार्ग जो तुम्हे मुझ तक पहुचाये वो अपनाया जाये, ‘ईश्वर वाणी’ लेख खुद मेरे द्वारा बताई वाणी व बातें हैं, जो जगत व जीवों के कल्याण हेतु मैंने तुम्हें बताई हैं, इसलिए इन्हें यू न व्यर्थ समझना अपितु इसका पालन कर श्रेस्ट जीवन पाना, क्योंकि ये मेरी वाणी हैं, और में परमेश्वर हूँ।

कल्याण हो

Sunday 18 February 2018

ईश्वर वाणी-235- ईश्वर का धर्म



ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों यद्धपि तुम मुझे अपनी अपनी मान्यता, भाषा, क्षेत्र व समय के अनुसार अनेक नामों से पुकारते हो। सदा उसी मेरे नाम को तुम सत्य समझते हो जिस नाम पर तुम्हे मेरा विश्वास है, उसी रूप को सत्य समझते हो जिसपर तुम्हें विश्वास है, किन्तु जिस मेरे नाम पर तुम्हें विश्वास नही, मेरे जिस रूप पर तुम आस्था नही रखते वो असत्य भी तो नही।

जैसे ‘विश्वास’ शब्द को कोई ‘भरोसा’ कोई ‘ऐतबार’ कोई ‘यकीं’ कहता है किँतु अपने अपने शब्द पर तो सबकी आस्था वही दूसरों के शब्दों पर नही जबकि सभी का अर्थ एक ही है।

इसी प्रकार तुम मुझे चाहे जिस रूप में जिस नाम से पुकारो, पर मुझे पुकारो तथा गलत कर्मो से भय खाओ।
हे मनुष्यों यदि मैं तुम्हारी मान्यता अनुसार अलग होता तो तुम्हारी तरह मैं भी भृमित हो कर ईश्वर, अल्लाह, गॉड, भगवान, सद्गुरु सब मिलकर आपस में लड़ रहे होते, अपने अपने धर्म, जाती, भाषा, क्षेत्र, सम्प्रदाय को ले कर लड़ रहे होते, सन्सार में अनेक स्वर्ग व ईश्वरीय धाम होते। हर स्वर्ग हर धाम हर एक अलग जाती, धर्म, सम्प्रदाय, भाषा, क्षेत्र के व्यक्ति का अलग होता, और जैसे तुम इस भौतिक देह से आपस में लड़ते हो वैसे ही सूक्ष्म शरीर में भी लड़ते, और अपने अपने स्थान को श्रेस्ट बता लड़ते रहते।

किंतु ऐसा नही है, ये भेद भाव तुमने खुद बनाया है मैंने नही, क्योंकि मैं एक ही हूँ, देश काल परिस्थिति के अनुरूप ही मैं जगत में अपने अंश को भेजता हूँ मानव व जीव जगत के कल्याण हेतु तथा तुम्हें मानवता का पाठ पढ़ा एकजुट करने के लिये।

किंतु तुम मनुष्य अपनी तूच सोच के कारण मेरे उद्देश्यों को गलत दिशा में मोड़ कर मानव व जीव जगत का नुकसान व उन्हें हानि पहुंचाते हो, अपने भेद भाव के कारण मुझमे भी भेद करते हो, ये भूल जाते हो श्रष्टि और समस्त जीवों को जन्म देने वाला, समस्त आत्माओ का ईश्वर मैं परमेश्वर परमात्मा हूँ,  मैं एक हूँ, तुम व समस्त ब्रह्मांड मुझमे ही विराजित हैं, किन्तु अज्ञानता के कारण जो तुम मानवता का नाश करते हो तो निश्चय ही मेरे क्रोध के भागी बनते हो क्योंकि मेरा कोई धर्म नही जाती नही भाषा नही क्षेत्र नही अपितु हर स्थान पर हूँ क्योंकि सब कुछ मेरा ही तो है आखिर मैं ही इकलौता सृष्टि का मालिक जो हूँ।“

कल्याण हो








सद्गुरु श्री अर्चना जी की ईश्वर वाणिया

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Saturday 17 February 2018

ईश्वर वाणी-234, एकेस्वर अर्थात एक ही ईश्वर



ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों मैं आज तुम्हें बताता हूँ कि समस्त संसार व जीवो व समस्त बब्रह्माण्ड का मालिक मैं ही हूँ, मेरा कोई रूप व आकर नही, में ही समस्त आत्माओ का स्वामी होने कारण परमात्मा हूँ।
हे मनुष्यों यद्धपि बहुत से लोग मुझे साकार व बहुत से निराकार रूप में मानते हैं, किंतु अब बहुत से लोग मुझे निराकार रूप में मानने लगे हैं, ऐसा इसलियें क्योंकि वो अपनी प्राचीन सभ्यता जो कि मूर्ति पूजा के रूप में विकसित थी उसे त्याग चुके हैं और आज एकेस्वर के पथ पर चल पड़े हैं।

हे मनुष्यों सन्सार में एकेस्वर का होना आज के समय में बहुत ही आवश्यक हो चुका था, प्राचीन काल मे जब मूर्ति हर स्थान पर चलन में थी तब मनुष्य केवल खुद जिस देवी/देवता पर यकीं रखता था उन्हें ही श्रेस्ट कहता व खुद को ही श्रेस्ट मान सभी को नीचा समझता था जिसके कारण लोग आपस में बेर भाव रखते थे, इसलिए संसार को एकजुट करने के लिये एकेस्वर की स्थापना बहुत ही आवश्यक हो गयी।

संसार मे अनेक समुदाय थे, कई जाती व उपजातियां थी जो अलग अलग रूप में मूर्ति पूजा करते थे, व खुद को व खुद जिसकी उपासना करते वही उनकी दृष्टि में श्रेस्ट होते, वो अक्सर कमजोरसमुदाय व जाती पर आक्रमण करते थे तथा जो जीत जाता वो हारे हुए के मंदिर व आराधनालय को नष्ट करते व जबरन अपनी परंपरा व अपने देवी देवता की उपासना उन पर धोपते, जिससे सन्सार में अराजकता बढ़ती गयी तथा एक ही ईश्वर की धारणा को बल मिला जिसने समस्त संसार को  एक सूत्र में बाँध कर सभी को एक समान मानव बता एक ही धर्म मानव धर्म की मानसिकता को बल दिया, इस प्रकार जो छोटे छोटे राज्य कमजोर राज्यो पर हमला कर वाह के मंदिर तुड़वा साथ ही अपने अनुसार पूजा पद्धति को बढ़ावा देने की सोच पर रोक लगाई।

इस प्रकार समस्त संसार आज पहले की अपेक्षा श्रेस्ट बना है किँतु अब फिरसे पुरानी मानसिकता सर उठाने लगी है जो वही कर रही है जो पहले लोग करते थे, किंतु यदि इस मानसिकता पर रोक नही लगी तो फिर एक नए धर्म का उदय होगा अथवा मानव जाति का विनाश, इसलिए ये तुम्हें सोचना है कि तुम क्या चाहते हों साथ किस दिशा में समाज को ले जाना चाहते हों”

कल्याण हो

ईश्वर वाणी-233, ईश्वर का स्वरूप साकार अथवा निराकार

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि तुम्हें मैं पहले ही मेरे साकार अथवा निराकार रूप के विषय मे बता चुका हूँ किंतु आज फिर से तुम्हें बताता हूँ मेरे साकार और निराकार रूप के विषय में।

हे मनुष्यों जो व्यक्ति तुमसे कहे कि ईश्वर के निराकार रूप को मानो, मूर्ति पूजा का त्याग करो, उस परमेश्वर को याद करो वो तुम्हें अपने द्वारा बताए ईश्वर को श्रेष्ठ बता कर कहेगा ये ही सत्य है बाकी असत्य इसलिए इस ईश्वर की पूजा करो, मंदिर और आराधनालय मत जाओ केवल इस स्थान जाओ जहाँ इस नाम का ईश्वर है।

हे मनुष्यों जो तुमसे कहे कि मूर्ति पूजा त्यागो, उस ईश्वर की पूजा करो जिसके विषय मे तुम्हे बताता हूँ, तो मनुष्यों उनसे कहना पहले तुम तो मूर्ति पूजा त्यागो अर्थात वो खुद मूर्ति पूजा करता है किसी न किसी रूप में।

कोई घर मे विशेष धार्मिक स्थान की पूजा करता है, घर पर भी वो उस स्थान पर ही मुख करके पूजा करता है जहाँ वो धार्मिक स्थान है, साथ ही कोई मूर्ति पूजा का मंदिर का विरोध करता है किँतु खुद किसी न किसी रूप में मेरी आराधना करता है, क्या तुमने कोई गिरजाघर देखा है जिसमे माता मरियम और येशु की तश्वीर या मूर्ति न हो, तो मूर्ति पूजा का विरोध करने वाले खुद मूर्ति या तश्वीर की ही आराधना करते हैं किंतु अन्य तश्वीर या मूर्ति पूजको के वो घोर विरोधी हैं, ऐसे व्यक्ति घोर पाखण्डी होते है।

हे मनुष्यो जो व्यक्ति मुझे निराकार कह पूजने की बात कहते हैं सत्य तो ये है वो खुद मूर्ति पूजक है साथ ही आधे अधूरे ज्ञान के मालिक हैं।
हे मनुष्यों मैं तुम्हें बताता हूँ यद्धपि तुम किसी भी मंदिर या आराधनालय जाओ किंतु उस मूर्ति के समक्ष उसे सत्य न मान कर उस आत्मा को सत्य मान कर पूजा करो जो परमेश्वर ने कभी इसी रूप में अपने ही एक अंश को धरती पर भेजा था, किंतु मनुष्यों ने अब उसके प्रतीक के रूप में ये मूर्ति बनाई है, अर्थात उस मूर्ति नही अपितु उस आत्मा की पूजा करो उस मूर्ति या चित्र के समक्ष जो कभी ऐसे ही रूप में धरती पर मौजूद थी और लोगों के दुख दर्द दूर करती थी।

इस प्रकार मूर्ति पूजा कोई दोष नही, यद्धपि मेरा कोई रूप नही आकर नही किंतु तुम मेरे उस रूप पर यकीं नही कर सकते।

एक विशाल सागर हूँ मैं, मुझमे से किसी ने एक कलस जल निकाल लिया और लोगों से कहा केवल यही जल स्वच्छ है, लोगों ने जल पिया किंतु समय के साथ इस जल में कुछ गन्दगी आ गयी, तभी फिर किसी ने एक थाल में जल भर लिया और कहने लगा कि यही जल स्वच्छ और स्वस्थवर्धक है, और लोगों ने पिया किंतु फिर कुछ मिलावट हुई उस जल में तो फिर किसी ने कटोरी किसी ने ग्लास किसी ने मटके से जल निकाला और लोंगो को पीने को दिया ये कह कर की ये जल स्वस्थ व अच्छा है, किन्तु समय के साथ सभी बर्तन के जल दूसित हो गए कारण दूसित मन दूसित हाथों से तुमने इसका सेवन शुरू कर दिया जिससे सभी जल खराब हो गए किन्तु मैं सागर रूपी जल अभी भी शुद्ध हूँ पहले कि भांति।

भाव ये है में ईश्वर रूपी जल हूँ और जिन मतो को तुम मानते हो जानते हो चाहे मूर्ति पूजक हो अथवा खुद को इनसे अलग कहने वाले, उन सबके बर्तन में रखा जल दूसित हो गया है क्योंकि इन्होंने गन्दे हाथ उसमे डाल दिये अर्थात मेरे द्वारा बताई गई सीख को गलत दिशा दे लोगो को भृमित कर मानव को मानव का शत्रु बना दिया जिससे ये जल दूसित हो गया। साथ ही अपने बर्तन में रखे जल को श्रेष्ठ व दूसरे के जल को दूषित कहा।

इस प्रकार सभी बर्तनों का जल दूसित हो गया, अर्थात जिस भी मान्यता पर यकीन करते हो चाहे साकार ईश की हो या निराकार ईश की तुमने अपने कटु व्यवहार से सबको दूसित कर दिया है किंतु शुद्ध तुम कर सकते हो, यदि किसी को नीच या कम न बता कर सभी रूप में विराजित मेरे अंशो की पूजा व सम्मान कर उचित स्थान प्रदान करो।
यदि तुम साकार निराकार की अवधारणा त्याग सभी रूप में केवल मुझे ही देखो, मुझे ही महसूस करो तो धीरे धीरे ये जल शुद्ध हो जाएगा और तुम मेरे प्रिय बनोगे"

कल्याण हो

Sunday 11 February 2018

ईश्वर वाणी-232 , ईश्वर के शरीर के अंग

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यूँ तो पहले भी तुम्हें मैं बता चुका हूँ आकाशीय दिव्य सागर और तैरते ग्रह नक्षत्रों के विषय में।

हे मनुष्यों इस समस्त ब्रह्मांड का निर्माण एक विशाल अंडे के विश्वोट व उसके निरन्तर विस्फोटों से हुआ। उसी में से जो तरल पदार्थ निकला उसी से श्रिष्टि में में विशाल सागर व पृथ्वी पर सागर, नदियां, हिमकुण्ड व धरती के नीचे पानी का विशाल भंडार बना।

जैसे ब्रह्माण्ड का कोई छोर नही, ये अनन्त है, ठीक वही मेरा एक रूप है जिसे तुम अपनी इन भौतिक आंखों से देखते हो। ब्रह्माण्ड के समुचित ग्रह नक्षत्र तारे मेरे ही शरीर के अंग है, जैसे तुम्हारे शरीर मे रक्त निरन्तर बहता रहता है जो तुम्हे जीवित रखता है वैसे ही ब्रह्मांड के वो निरन्तर बहने वाले छोटे बड़े पत्थर हैं जो किसी ग्रह से नही निकलते किन्तु निरन्तर आकाश में घूमते रहते हैं।
जैसे तुम्हारे शरीर मे कोई कमी आ जाती है जिससे रक्त दूसित हो जाता है साथ ही दूसित रक्त शरीर के निम्न भाग को बुरी तरह प्रभावित करता है वैसे ही जब आकाश के इन पत्थरों में कोई खराबी आ जाती तभी किसी ग्रह नक्षत्र से टकरा कर उसको नुकसान पहुँचाते हैं।
हे मनुष्यों इसलिये ये न भूलो की मैं ही आदि अंनत अविनाशी ईश्वर हूँ , हालांकि में निराकार हूँ किंतु जैसे तुम किसी जीव की मृत्यु के पश्चात उसकी आत्मा के अस्तित्व को अस्वीकार करते हों क्योंकि उसकी भौतिक देह मिट चुकी है और तुम केवल भौतिक देह से ही उसे जानते पहचानते व जीवित समझते हो।
वैसे ही तुम मेरे निराकार रूप को नही मानोगे, इसलिए आकाशीय दिव्य रूप को मैंने धारण किया, समस्त ग्रह नक्षत्रों को अपना अंग बनाया ताकि जब तुम आकाश को देखो तो मेरा अस्तित्व याद करो साथ ही अपने कर्तव्य जो तुम्हें मैंने करने को दिये"।

कल्याण हो


सद्गुरु श्री अर्चना जी की ईश्वर वाणिया

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Saturday 10 February 2018

ईश्वर वाणी-231, मानव जाति व मनुष्य धर्म



Sat, Feb 10, 2018 at 10:58 PM


ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों मैने जैसे संसार में जीव जंतुओं की जाती
बनाई जैसे-शेर, भालू, गाये, बकरी, मछली, चिड़िया इत्यादि उसी के अनुरूप
मैंने मानव जाति बनाई।
किंतु मानव को मैंने ज्ञान व बुद्धि अन्य जीवों से अधिक दी ताकि समूची
पृथ्वी और जीवो पर वो राज कर सके, उसकी कुशलता पूर्वक शाशन कला को ही
मैंने मानवीय धर्म की संज्ञा दी।
किन्तु मनुष्य ने अपने इस अधिकार का दुरुपयोग शुरू किया, उसे मैंने यहाँ
राज करने भेजा था, जैसे एक राजा एक पिता की तरह अपनी प्रजा का ख्याल रखता
है, उनकी आवश्यकता को पूरा करता है, वैसे ही मनुष्य अन्य जीवों पर शाशन
अवश्य करे किंतु जंग में जीते हुए क्रूर शाशक की तरह जो गुलामो को अनेक
कष्ट पहुचाते है उनकी भाति न हो कर जैसे एक पिता अपने बालकों के ध्यान
रखता है वैसे।
एक पिता अपने अबोध बालकों के स्वामी ही होता है, उसके बिन बालक का जीवन
कितना कष्टदायक होगा ये तो तुम्हें पता है।
हे  मनुष्यों ठीक उसी प्रकार मैंने तुम्हें इन जीवों सहायता व इनका ध्यान
रखने हेतु भेजा था, ये नहीं भूलना चाहिए कि एक राजा भी प्रजा का ही सेवक
होता है, यदि वो ऐसा करने में असफल होता है तो प्रजा को अधिकार है दूसरा
राजा गद्दी पर बैठाय।

किन्तु यहाँ ये निरीह बेजुबान जीव ऐसा नही कर सकते, ये एक अबोध बालक की
तरह है जो अनेक अत्याचार अपना कहने वालों के सहता है पर उनके खिलाफ कुछ
नहि कर सकता क्योंकी न उसे अधिकारों की जानकारी है न ही प्रक्रिया
फलस्वरूप नियति मान उमर भर ये सहता रहता है।

हे मनुष्यों मै तुमसे कहता हूँ अब भी सुधर जाओ और जिस कार्य के लिए
तुम्हें मैंने यहाँ का आधिपत्य दिया है उसका पालन करो, जो जाती धर्म
तुमने बनाये हैं उनपर नही अपितु जो मैंने विरासत में तुम्हें दिए हैं
उनका अनुसरण करो।"

कल्याण हो








सद्गुरु श्री अर्चना जी की ईश्वर वाणिया

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ईश्वर वाणी-230 मासिक चक्र

ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यों आज तुम्हें मैं महिलाओं में होने वाले मासिक के विषय मे बताता हूँ, सदियों से विभिन्न सम्प्रदाय में ये धारणा है कि महिलाएं उन दिनों अशुद्ध होती है, उनके साथ अछूतो की भांति व्यवहार किया जाता है किंतु ईश्वर की दृष्टि में क्या वाकई एक स्त्री उन दिनों अशुद्ध होती है इसलिए किसी पूजा पाठ धार्मिक अनुष्ठान में शामिल नही हो सकती, व्रत उपवास नही कर सकती, धार्मिक स्थान नही जा सकती, धार्मिक पुष्तक नही पड़ सकती।

हे मनुष्यों एक स्त्री उन दिनों ऐसा नही कर सकती किंतु इसलिए नही की वो अपवित्र या अशुद्ध है, अपितु एक स्त्री खुद इतनी सक्षम है कि एक नया जीवन धरती पर ला सकती है।
अर्थात एक स्त्री जब मासिक चक्र में होती है तब वो समस्त देवो सहित ईश्वर की भी पूजनीय होती है, उसका स्थान सबसे श्रेष्ठ होता है। जैसे एक राजा राजगद्दी पर रहते हुये एक दरबान के आगे नही झुक कर नमस्कार कर सकता न ही वो दरबान की नौकरी का आवेदन कर सकता है, किंतु इसका अभिप्राय ये नही की राजा अशुद्ध या अपवित्र है जो वो ऐसा नही कर सकता।
ठीक हर स्त्री भी उन दिनों इतनी ही पवित्र होती है, जगत जननी जगदम्बा स्वरूप जगत जननी स्त्री होती है, यदि स्त्री को मासिक चक्र न हो तो सृष्टि में जीवन ही सम्भव नही है, एक स्त्री खुद में पूर्ण होती है किंतु पुरूष कभी खुद में पूर्ण नही। एक स्त्री हर पुरुष में शक्ति रूप में विराजित है किंतु पुरुष स्त्री में शामिल नही है।ठीक स्त्री बिना पुरुष के एक संतान को एक जीवन की धरती पर ला सकती है उदाहरण-माता कुंती, माता मरियम, इन्होंने बिना किसी पुरूष के एक जीवन को धरती पर जन्म दिया, इसलिए एक स्त्री को ही जगत जननी कहा जाता है, संसार में मेरे स्वरूप को छोड़कर कोई ऐसा पुरूष नही जिसने बिना नारी के किसी नवजीवन को जन्म दिया हो।
हे मनुष्यों ऐसा नही केवल मनुष्यों की स्त्री ही पूजनीय है अपितु संसार मे जितने भी प्राणी है उनकी आधी संख्या नारी की है और सभी पूजनीय है।
हे मनुष्यों कुछ धूर्त, कुटिल, कपटी, नारी विरोधी व्यक्तियों ने नारी को दोयम, नीच, दबाने, शोषण करने हेतु साथ ही पुरूष को अधिक प्रधनता दे उनको अधिक महत्व देने हेतु ये भरम फैला दिया कि नारी उन दिनों अपवित्र अशुद्ध होती है, एक माता का रक्त जो एक नया जीवन प्रदान करता हो वो अशुद्ध वो नारी अपवित्र कभी नही हो सकती अपितु वो तो मुझसे भी पूजनीय होती है, अपनी ज़िंदगी को खतरे में डाल एक जीवन को वो संसार मे लाती है, ऐसा साहस तो मुझमें भी नही।

हे मनुष्यों नारी को सम्मान दो न कि उसे अपवित्र बता उसका अपमान करो, यदि तुम ऐसा करते हों, उसके मासिक चक्र के दैरान उसके साथ अछूता अपवित्र जैसा व्यवहार करते हो तो निश्चय ही मेरे क्रोध के भागी बनते हो।"
कल्याण हो

Sunday 4 February 2018

फिर एक प्रेम कहानी भाग-5(स्टोरी)


सुबह 11 बजकर 25 मिनट 1932 आसिफ के फोन की घण्टी बजती है आसिफ फ़ोन उठाता और पूछता है कौन?
आवाज़ सुन कर हैरान रह जाता है जब उसे पता चलता है फ़ोन पर संजय है, आखिर इतने साल बाद संजय ने फोन क्यों किया, ये ही सोच रहा था कि संजय ने कहा-
संजय- “आसिफ जल्दी से जल्दी रिया के घर आ जाओ”
आसिफ- “पर क्यों हुआ क्या है”
संजय- “सवाल मत करो आ जाओ, तुम्हारी रिया हमारी रिया”, ये बोल कर संजय फूट फूट के रोने लगता है।
आसिफ- “क्या हुआ रिया को, में अभी आता हूँ ।
 इतना कह कर आसिफ रिया के घर चल देता है।

वहा जा कर पता चलता है रिया नही रही, आसिफ को गहरा धक्का लगता है, इतने में रिया की दोस्त और उसकी अस्सिस्टेंट रितिका जो पिछले 10 साल से रिया के साथ थी, आसिफ को रिया के हाथ का लिखा आखिरी खत थमाती है और कहती है-
रितिका- “ये खत उसने पेरिस में अपनी बीमारी के इलाज के दौरान लिखा था, वो चाहती थी आखिरी बार तुम्हे देख ले, फिर सोचती तुम काम मे व्यस्त होंगे, आखिर कल उसने ये खत मुझे दिया और कहा आज जब तुम उससे आखिरी बार मिलने आओ तब तुम्हे इसे दे दु, जो दे दिया, अपनी टीबी की लाइलाज बीमारी और तड़प तड़प के यू मरने से बेहतर इसने खुद ज़हर खा कर जान दे दी, अब इसे न सिर्फ बीमारी बल्कि अकेलेपन से भी मुक्ति मिल गयी”। इतना कह रितिका वहां से चली गयी।

आसिफ ने खत खोला और पढ़ने लगा जिसमे रिया ने लिखा था “मेरे प्रिये तुम नही जानते तुम मेरे लिए आज भी कितनी    अहमियत रखते हो लेकिन लगता है तुम सब कुछ भूल चुके हो, शायद दुनियादारी और व्यवसाय ने तुम्हे ऐसा बना दिया क्योंकि तुम अब वो नही जिसको मैंने चाहा था। लेकिन जितनी मोहब्बत की है तुमसे मैंने शायदि किसी ने की हो, में तुमसे आज भी उतनी ही मोहब्बत करती हूँ जितनी पहले, पर शायद तुम अब वो नही रहे जिसने कभी मुझे चाहा था।
प्रिये मुझे एक कली से फूल तुमने और तुम्हारे प्यार ने बनाया था” ये अल्फ़ाज़ पड़ कर आसिफ उन दिनों की याद में खो जाता है जब रिया अपना सब कुछ छोड़ कर उसके पास चली आयी थी।

रिया- “आसिफ मैंने वो घर छोड़ दिया है, अब तुम्हे मुझसे कोई अलग नही कर सकता, अब मैं तुम्हारी हूँ आसिफ”,
आसिफ- “ओह रिया तुम नहीं जानती मैं कितना खुश हूं तुम्हें अपने पास आज यू बेफिक्र देख कर तुम्हें अंदाज़ा भी न होगा पर प्रिये अभी हमारी शादी नही हुई है, ऐसे में तुम्हे मैं अपने साथ नही रख सकता, जब तक हमारी शादी नह होती तुम मेरे दूसरे  घर मे रहना, रहोगी न प्रिये”,
रिया-“क्यों नहीं”,
आसिफ- “रिया तुम तो जानती हो मैं तुम्हारे भईया के व्यापार में सहायक था, किँतु जबसे उन्होंने मुझे निकाला है अकेले ही अपना काम सम्भाल रहा हूँ, मेरे बहनोई मेरी सहायता इसमे कर रहे हैं, मेरे जो क्लाइन्ट है वो सभी फ़िलहाल मुस्लिम है, मुझे उनके साथ कि अभी बहुत जरूरत है, ऐसे में उन्हें ये पता लग गया कि मैंने एक हिन्दू लड़की से शादी की है तो वो व्यापारिक रिश्ते तोड़ देंगे और फिर कभी मैं आर्थिक रूप से मजबूत नही हो पाऊंगा, मेरा कैरियर तबाह हो जायेगा”,

रिया- “अगर मैं मुस्लिम बन जाऊं तो????”
आसिफ- “अगर तुम मुस्लिम बन जाओ तब तुमसे शादी करू में तो ये मसला हल हो सकता है, लेकिन मैं तुमसे ऐसा बिल्कुल भी नही करने को कहूँगा,
रिया-“ओह आसिफ आखिर हर लड़की को शादी के बाद पति का नाम उपनाम मज़हब जाती स्वीकार करनी ही होती है, क्या हुआ जो मैं शादी से पहले स्वीकार करती हूँ और वैसे भी कुछ साल पहले भारत के एक नामी वकील ने भी तो एक पारसी लड़की से शादी की, हमारी प्रेम कहानी कुछ उनकी जैसी ही तो है, जैसे उस लड़की ने भी तो इस्लाम स्वीकार किया और उन नामी वकील से शादी की, क्या होगा जो मैं भी कर लुंगी"

असीफ-"ओह रिया तुम सच मे बहुत अच्छी हो, नसीब वाला हूँ मैं जो तुम मुझे जीवनसाथी मिली, आई लव यू”।
रिया इस्लाम कबूल करती है और 19 अप्रैल 1921 को इस्लामी रीति से दोनों की शादी होती है, शादी में रिया को 110की मेहर तय होती है पर आसिफ 1000 लाख रुपये उसे अपनी खुशी से देते है।

शादी के बाद ये जोड़ा हनीमून के लिये पेरिस जाता हैं, शादी के एक साल तक रिया और आसिफ पेरिस ही रहते हैं। पेरिस में ही एक नाटक देखते हुये रिया की तबियत खराब हो जाती है, जल्दी जल्दी उसे अस्पताल में भर्ती कराता है जहाँ रिया एक बेटी को जन्म देती है जिसका नाम वो दोनों रेहाना रखते हैं। रेहाना के दो महीने कि होने पर ये जोड़ा वापस भारत लौट आता है।

आसिफ ख़त में आगे पड़ता है “ मुझे उम्मीद है तुम मुझे उस फूल की तरह याद करोगे जिसने बाग से तोड़ कर अपने गमले में सजाया था कभी, न कि उस फूल की तरह जिसने पेड़ से तोड़ कर अपने पैरों तले रौंद डाला था”, ये अल्फ़ाज़ पड़ आसिफ याद करने लगता है जब वो अपनी पत्नी और बेटी के साथ भारत लौटा था रेहाना के जन्म के बाद पहली बार।

रिया- “ऑफ हो आसिफ तुम्हारे पास वक्त ही नही है हमारे लिये, जब से पेरिस से लौटे हो काम ही काम”,
आसिफ- “ओह रिया काम भी तो जरूरी है, तुम जाओ में आता हूँ”।

दिन यू ही बीत रहे थे, आसिफ रिया को केवल बिज़नेस पार्टनर्स अथवा उनकी पार्टी में ही साथ ले जाता, पर रिया के साथ सिर्फ रिया के लिये वो नही जाता था।
एक रोज़ रिया बहुत ही बन ठन के आसिफ के ऑफ़स गयी, आसिफ मीटिंग में व्यस्त था,  वो उसके मीटिंग रूम में जा कर उसके पास जा कर टेबल पर बैठ गयी और पैर हिलाने लगी पर आसिफ ने उस पर कोई ध्यान नही दिया, रिया भी कुछ नही बोली केवल मीटिंग खत्म होने का इंतज़ार करती रही, जैसे ही मीटिंग खत्म हुई आसिफ बोला-
आसिफ- “ये क्या है रिया, क्या चाहती हो”
रिया- “तुम्हारे साथ अकेले घूमने”
और आसिफ रिया के साथ गाड़ी में घूमने चल देता है, पर शायद ये आखिरी दिन था जब वो दोनों केवल एक दूसरे के लिए बाहर अकेले घूमने गए।

वक्त के साथ आसिफ व्यापार में इतना व्यस्त हुए की उन्हें ये भी याद न रहता कि उनकी एक बेटी और पत्नी भी घर मे है, बेटी अब स्कूल भी जाने लगी है आसिफ को पता ही था, धीरे धीरे उनके रिश्ते में दूरी आने लगी, उम्र फासला भी साफ नजर आने लगा, बस दोनों को जिसने जोड़े रखा था वो थी एक दूजे से बेइंतहा मोहब्बत, लेकिन इज़हार करने वाला साथी साथ न था।

रिया गम मिटाने के लिये शराब और सिगरेट पीने लगी, और धीरे धीरे उसकी तबियत खराब होने लगी, लेकिन आसिफ को इसकी कोई चिंता नही थी।
एक रोज़ इसी हालात में वो संजय के घर चली गयी, संजय हैरान हुआ बहन को इस हालत में देख कर, इलाज के लिए वो उसे पेरिस ले गया, जहाँ जाँच में लाइलाज बीमारी टीबी के बारे में डॉक्टर ने बताया। रिया धीरे धीरे मौत की ओर बढ़ रही थी, संजय ने आसिफ को रिया की बीमारी के विषय मे बताने की इच्छा की लेकिन रिया ने मना कर दिया और भारत अपने घर ले चलने की इच्छा जताई, संजय उसे भारत मे उसके पति आसिफ  घर ले आया साथ ही रिया की ज़िद के कारण उसने आसिफ को रिया की इस जानलेवा बीमारी को भी नही बताया और चुपचाप अपने घर चला गया लेकिन आसिफ के घर अकेलेपन और तन्हाई के साथ कुछ दिनों बाद अंतिम सांस ली।

खत पूरा पड़ने के उपरांत रिया को गले लगा कर आसिफ बहुत रोया, मुस्लिम रीति अनुसार रिया को दफना दिया गया। साथ ही चूँकि आसिफ रिया के साथ अब नही रहता था, एक ही शहर में रहते हुए दोनों एक दूसरे से अलग रहते थे, अपने व्यपार को संभालते संभालते कब आसिफ का घर बिखर गया इसका अहसास रिया के जाने के बाद उन्हें हुआ। आसिफ को ये भी नही पता था कब रिया संजय से मिली और पेरिस इलाज़ के लिए गयी और कब वापस लौटी साथ ही संजय और उसकी पत्नी रिया का हाल जानने उसके घर आते थे। अपने मज़हबी कार्यो और व्यवसाय को शिखर तक पहुचाते पहुचाते कब उनका रिश्ता ज़मीदोज़ हो गया ये बहुत देर में पता चला।

तभी घर की घण्टी बजती है, एक नौकर दरवाज़ा खोलता है, आसिफ पूछता है कौन आया है?
नौकर- “साहब रेहाना मेम साहब अपने शौहर के साथ आई हैं” ये कह नौकर वहाँ से चला जाता है।
आसिफ रेहाना से कहता है “आखिर दिल की कर ही ली, जाओ तुमसे मेरा कोई सम्बन्ध नही”
रेहाना-“क्या सचमुच पापा, जरा नज़र मिला कर तो कहिये प्लीज ये”
आसिफ उसके करीब जाता है और गले लगा लेता है।




फिर एक प्रेम कहानी पार्ट-4(स्टोरी)

शाम को खाने की टेबल पर आसिफ अली साहब रिया से फिर मिलते है, हालांकि वहा
पर संजय और उसकी पत्नी भी मौजूद होते हैं।

उसी रात 8 बजे
संजय अपनी पत्नी और आसिफ साहब बाहर घूमने जाते है, लेकिन अपनी तबियत कुछ
खराब का बहाना कर जल्दी घर लौट आते हैं साथ ही संजय और उसकी पत्नी मीना
को एन्जॉय करने को कहते हैं।
रिया ड्रयिंग रूम में किताब पढ़ रही है, तभी आसिफ अली घर मे प्रवेश करते
हैं। उन्हें देख रिया कहती है-

रिया- “काफी जल्दी घूम आये बाहर से, भईया भाभी कहाँ हैं”
आसिफ- “वो अभी एन्जॉय कर रहे हैं पर में तुम्हारे लिए वापस आ गया”
रिया- “ओह रियली”
आसिफ- “यस”
रिया- “पर क्यों”
आसिफ- “रिया तुम बहुत खूबसूरत हो, मैंने तुम जैसी लड़की अपनी ज़िंदगी मे
नही देखी, तुम लाजवाब हो, और लड़कियों से अलग हो”
रिया-“थैंक्स”

इतने में संजय और मीना भी घर लौट आते हैं, पर आसिफ को रिया के पास
ड्राईंग रूम में बैठे देख टोकते की तुम यहाँ क्या कर रहे हो, तुम्हारी
तबियत खराब थी तुम्हे अपने कमरे में आराम करना चाहिए।
इस पर रिया कहती है- रिया-“में ही अकेले बोर हो रही थी, आसिफ साहब अपने
कमरे में ही जा रहे थे पर मैंने ही उन्हें रोक लिया अपने पास”।

इसके बाद आसिफ अली सभी को शुभ रात्रि कह अपने कमरे में सोने चले जाते हैं।

अगली सुबह नाश्ते के लिए सभी 8:30 सभी टेबल पर मिलते हैं और शिमला घूमने
की बात करते हैं, नाश्ते के बाद सभी तय्यार हो कर घूमने चले जाते हैं।
काफी स्थानों पर वो घूमते हैं और शाम के समय वापस लौटने लगते किन्तू रिया
शॉपिंग की बात कह कर थोड़ी देर में घर आने की बात कह कर अपने भाई संजय को
घर जाने को कहती है, संजय घर जाने लगता है लेकिन तभी आसिफ उनसे कहता है-
आसिफ- “संजय मेरे एक दोस्त ने बताया था वो यही रह रहा है आज कल, अभी शाम
के 5 ही बज रहे हैं तो मैं उससे मिल कर थोड़ी देर में घर पहुचता हू तुम
जाओ तब तक”
संजय- “कोन सा दोस्त तुमने नही कभी बताया कि शिमला में कोई दोस्त भी है
तुम्हारा, चलो में भी चलता हूँ तुम्हारे साथ, मैं  भी मिल लूंगा उससे”
आसिफ अली- “जैसे तुमने रिया के बारे में नही बताया वैसे ही मैंने उस
दोस्त के बारे में नही बताया, और उसका घर मुझे ठीक से नही पता कि कहाँ
है, तो ढूंढना होगा,तुम घर जाओ तक गए होंगे, मैं भी जल्दी ही लौटता हूँ”।

ये कह कर आसिफ वहाँ से चल देता है, और वहाँ पहुँच जाता है जहाँ रिया
खरदारी कर रही होती है, रिया को खरीदारी करा शाम 6 बजे घर लौटते समय वो
रिया से कहता है-
आसिफ- “रिया मुझे तुम बहुत पसंद हो, में तुम्हें चाहने लगा हूँ, तुमसे
शादी करना चाहता हूँ, हालांकि हमारी उमर, मज़हब सब अलग और बहुत फर्क है पर
इश्क ये सब नही देखता, में नही जानता तुम मेरे बारे में क्या सोचती हो,
पर सचमुच मैं तुम्हे चाहने लगा हूँ और पूरी ज़िन्दगी तुम्हारे साथ बिताना
चाहता हूँ”।

रिया उसकी बात ध्यान से सुन रही होती है, एक जगह रुक आसिफ को गले लगा कहती है-
रिया- “मुझे भी तुमसे मोहब्बत है, तुम भईया से हमारी शादी की बात करो,
तुम्हारे अच्छे दोस्त हैं वो, उम्मीद है जरूर मान जायँगे”
फिर दोनों घर पहुचते है, दोनों को साथ जब संजय देखता है तो आखो से सवालो
की वर्षा कर रहा हो, आसिफ उसके दिलकी बात समझ जाता है और कहता है-
आसिफ-“हम बस अभी अभी घर मे आते आते मिले हैं”
संजय- “कोई नही आसिफ, मैंने कुछ कहा, बस अंधेरा हो गया था इसलिए तुम
दोनों केलिए चिंतित था।“

अगली शाम रात्रि भोज की टेबल पर
इधर उधर की और देश के कई मसलों की बातचीत उन दोनों के बीच हुई, तभी मौका
देख आसिफ ने संजय से कहा-
आसिफ- “संजय तुम अंतरजातीय विवाह के बारे में क्या राये रखते हो”
संजय- “मुझे लगता है देश को एक करने के लिए ये एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है।
आसिफ- “और अन्तरधर्मीय विवाह के बारे में क्या राय है”
संजय- “इससे भी देश मे एकता और अखंडता आयेगी, ये तो होना ही चाहिये”।

मौका और जवाब सुन कर आसिफ की हिम्मत बड़ी और उसने संजय से कहा-
आसिफ- “में तुम्हारी बहन रिया से शादी करना चाहता हूँ, हम दोनों ही एक
दूसरे को चाहने लगे हैं, वादा करता हूँ उसे हमेशा खुश रखूंगा”

किँतु उसकी बात सुन कर संजय को बहुत गुस्सा आ जाता है और तुरंत ही घर छोड़
कर जाने को कहता है, आसिफ उसे बहुत समझाने का प्रयास करता ह किँतु संजय
नही मानता और अंततः आसिफ को वहाँ से जाना ही पड़ता है।
आसिफ के जाने के बाद संजय अपनी बहन रिया को बुला कर कहता है कि कभी भी वो
आसिफ से नही मिलेगी, साथ ही व्यापार की सारी साझेदारी आसिफ के साथ कि
खत्म करने का फैसला करता है।

संजय को लगता है अगर उसने अब रिया को अकेले हॉस्टल में छोड़ा तो जरूर वो
आसिफ से मिलेगी, इसलिए वो उसकी पढ़ाई बीच मे ही रुकवा कर दिल्ली ले आता
है।
किँतु दिल्ली आ कर भी रिया और आसिफ की प्रेम कहानी का अंत नही होता, और
चुपके चुपके दोनों मिलते रहते हैं।
आसिफ रिया से कहता है,
 आसिफ- “तुम अभी 17 साल की हो, कानून तुम्हे एक साल और संजय के साथ रहना
पड़ेगा, 18 साल की होने पर में तुमसे शादी कर लूँगा, संजय तब कुछ भी नही
कर पायेगा, तब तक इस रिश्ते को छिपाना होगा”।
रिया भी उसकी बात से सहमत होती है।
किँतु एक दिन डाइनिंग टेबल के पास खड़े हो कर आसिफ का लिखा खत पड़ रही होती
है तभी संजय आ जाता है और कहता है-
संजय- “ये जरूर उस आसिफ का खत होगा, तुम अब भी उससे मिलती हो, मैं उस पर
मुकदमा दर्ज कराऊंगा, ये खत मुझे दो”
ये कह कर वो खत छीनने की कोशिश करते हैं पर रिया ऐसा नही करने देती, वो
रिया से खत छीनने के लिए दौड़ते है पर रिया टेबल के गोल गोल चक्कर लगा
उन्हें थका देती और खत की बोल बना खा जाती है।
नाराज संजय अदालत से ये परमिसन ले आते है कि जब तक रिया 18 साल की नही
होती तब तक किसी बाहरी आदमी से वो मिल नही सकती, किँतु बावजूद इसके वो
आसिफ से मिलती रहती है।
20 फरबरी 1921 को उसके 18 साल की होने पर उसके जन्मदिन पर संजय एक बहुत
बड़ी पार्टी का आयोजन करता है, रिया इसके लिए संजय को शुक्रिया भईया कहती
है।

21 फरबरी 1921 की सुबह 7 बजे डाइनिंग टेबल पर एक खत संजय को मिलता है
जिसमे लिखा होता है-
“आपने मेरे लिये इतना कुछ किया इसका शुक्रिया पर में आसिफ के बगैर नही रह
सकती, इसलिए सदा के लिए उसके पास जा रही हूँ, हो सके तो माफ कर देना,
आपकी छोटी बहन रिया”।

इसके बाद आसिफ के फ़ोन की घण्टी बजती है और वो अतीत की याद से बाहर आता है
और फ़ोन उठाता है-
आसिफ- “हेलो कौन”
फ़ोन के दूसरी तरफ से आवाज़ आती है “पापा मैं रेहाना आपकी बेटी, पापा मैंने
रोमित से शादी कर ली है”।

ये सुन आसिफ फ़ोन काट देता है और अतीत की बातों को याद करता है।

फिर एक प्रेम कहानी पार्ट-३(स्टोरी)


पार्ट-३
अगले दिन आसिफ अली संजय के साथ रिया के कॉलेज जाते है, संजय जब प्रिन्सिपल से रिया के बारे में पूछते है तो वो बताती है कि वो तो गार्डन में घुड़सवारी के लिए गयी है। ये सुन दोनों गार्डन की तरफ चल देते है।
गार्डन पहुँच कर देखते हैं एक लड़की बहुत अच्छी घुड़सवारी कर रही है, उन्हें देख कर उनके पास आती है और संजय को देख घोड़े से उतर संजय के गले लग जाती है। और उनके बीच वार्तालाप शुरू होती है-
रिया-“भइया आप, व्हाट अ सरप्राइज, लाइक इट”
संजय-“यस माय स्वीट यंगर सिस्टर”

रिया-“ये कोन है आपके साथ जेंटलमैन”
संजय-“मेरे बिज़नेस पार्टनर और मेरे करीब दोस्त मिस्टर-आसिफ अली साहब”
रिया-“आपसे मिलकर खुशी हुई”
आसिफ-“मुझे भी”

आसिफ अली रिया की खूबसूरती पर पहली नज़र में ही फिदा हो जाते हैं जबकि उनकी आयु रिया से 20 वर्ष अधिक की होती है।

संजय-“रिया अपना सामान पैक कर लो हम लोग जब तक शिमला में है तब तक हम सब साथ रहेंगे, हमने तुम्हारे कॉलेज के प्रिंसिपल और होस्टल की वॉर्डन से बात कर ली है”।

रिया-“अव्व थैंक यू भईया, अब कुछ दिन तो यहाँ की कैद से आज़ाद मिलेगी”।

फिर एक प्रेम कहानी पार्ट-२(स्टोरी)

पार्ट-२
(सन-1920)आसिफ अली के घर पर शाम 4 बजे फ़ोन की घंटी बजती है, आसिफ साहब फ़ोन उठाते हैं “हेलो आसिफ अली स्पीकिंग”
फ़ोन के दूसरे तरफ से आवाज़ आती है “आसिफ साहब में संजय बोल रहा हूँ तुम्हरा बिज़नेस पार्टनर”

आसिफ-“हाँ बोलो में सुन रहा हूं”
संजय- “आसिफ हम इस बार शिमला जा रहे हैं, सुना है काफी बर्फबारी हुई है वहा, क्या तुम भी हमारे साथ चलना पसन्द करोगे, मेरा एक पुराना घर भी है वहा तो रुकने की भी दिक्कत नही होगी”।

आसिफ-“नही संजय तुम जाओ एन्जॉय करो मुझे यहाँ दिल्ली में बहुत काम है, माफ करो चाह कर भी नही चल सकता”।

संजय-“अर्रे यार काम तो चलता ही रहता है, कुछ वक्त अपने लिए भी निकालो, देखो तुम्हारी भाभी भी ज़िद कर रही है बोल रही है आसिफ भइया को साथ नही लाये तो वो भी नही जायँगी, यार प्लीज चलो न, मेरी छुट्टिया क्यों बिगाड़ रहे हो”।

आसिफ-“ठीक है ठीक है चलता हूँ पर एक महीने से ज्यादा नही रुकूँगा वहाँ”।

संजय-“ओके गुड फाइन एंड थैंक यू दोस्त, कल ही निकलते हैं, तुम पैकिंग कर लेना हम तुम्हे पिकअप कर लेंगे”।

अगले दिन वो लोग शिमला के लिए निकल पड़ते हैं और उसके अगले दिन शिमला पहुच जाते हैं, आसिफ अली संजय के साथ उसके ही घर में रुकते हैं।
अगली सुबह संजय-“आसिफ मेरी छोटी बहन रिया यहां के एक कॉलेज में पड़ती है, होस्टल में रहती है, सोच रहा हूं जब तक हम यहाँ है उसे भी यही कुछ दिन के लिए बुला लू, साथ मे वो भी एन्जॉय कर लेगी साथ ही जो शिकायत रहती है उसे की भईया उसे टाइम नही देते वो शिकायत भी दूर हो जाएगी”।

आसिफ-“बिल्कुल सही आईडिया है, पर तुमने बताया नही की तुम्हारी कोई छोटी बहन भी है और इतनी दूर रहती है”।

संजय-“हाँ रिया के बारे में मैंने कम ही लोगो को बताया है, सच तो ये है वो मेरी सौतेली बहन है पर में उससे सगी बहन जैसा ही प्यार करता हू, वो नही जानती की में उसका सौतेला भाई हूँ, मम्मी पापा के बाद अब हम दिनों का एक दूसरे के  सिवा कोई नहीं”।

आसिफ अली-“आई अंडरस्टैंड एंड ब्लेस”

फिर एक प्रेम कहानी (स्टोरी)-पार्ट-१



रेहाना- “पापा मुझे रोमित से मोहब्बत है, में उसी से शादी करना चाहती हूँ, वो बिल्कुल मेरे जैसा है, हम पहली बार पेरिस में मिले थे और पहली ही नज़र में हमे प्यार हो गया।“

आसिफ अली- “रेहाना खबरदार जो उस काफ़िर से शादी की , मेरे रहते में तुम्हे उससे शादी की इजाज़त नही दे सकता, हिंदुस्तान में करोड़ो मुस्लिम है उनमें से किसी को क्यों नही चुन लेती”।

रेहाना- “पर पापा में उससे प्यार करती हूँ,  और वो भी तो एक हिंदुस्तानी है, बहुत बड़ा कारोबार है उसका भारत से ले कर यूरोप तक”।

आसिफ अली- “मैं कुछ नही सुनना चाहता, तुम उस हिन्दू से शादी नही कर सकती और अगर की तो मेरा तुम्हरा रिश्ता खत्म”।

रेहाना- “पापा आप ये कैसे कह सकते हैं, आपने भी तो मोहब्बत की थी मेरी माँ से, आपने भी तो एक हिंदू लड़की से शादी की थी जबकि करोड़ो मुस्लिम लडकिया यहाँ भारत में थी और कितनी ही आप पर मिटती थी लेकिन आपने अपना दिल मेरी माँ को दिया उनसे शादी की आखिर क्यों पापा”।

आसिफ अली- “हाँ मैने तुम्हारी माँ से शादी की पर जब वो मुसलमान बन गयी तब”।

रेहाना- “अगर वो मुसलमान नही बनती तो आप उनसे शादी नही करते?? अफसोस पापा पर मैं रोमित के अलावा किसी से शादी नही कर सकती, मुझे फर्क नही पड़ता कि उसका मज़हब क्या है”। ये कह कर रेहाना वहाँ से चली जाती है, आसिफ अली अकेले अपने कमरे में रह जाता है और अतीत के पलों में खो जाता है

Saturday 3 February 2018

कविता

"ना कर और सितम ऐ ज़िन्दगी
छोड़ देंगे साथ तेरा भी एक दिन"

"दिल का सौदा दिल दे कर किया
एक बेवफा से प्यार हमने था किया

जंजीरे तोड़ दी सारी ज़माने की
हद से ज्यादा तुझसे ही प्यार किया

भुला दी रस्मे जहाँ की सारी हमने
दिल दे कर दिलसे तुझसे प्यार किया

हरजाई है वो पता था मुझे भी ये
इश्क में वफ़ा का गुनाह हमने किया

दिल का सौदा दिल दे कर किया
एक बेवफा से प्यार हमने था किया-२"

"हो अजनबी पर अपने से लगते हो
हो ख्वाब में मगर सच्चे से लगते हो
सपनो से निकल दिलमे आओ तुम
क्यों ऐसे यु मनमे बसने से लगते हो"



एक सच्ची कहानी-दयाशीलता

 (मित्रों ये कहानी मैंने किसी पाकिस्तानी से सुनी थी जो भारत के लोगों का व्यवहार और दया भाव के बारे में इस कहनी के माध्यम से बता रहा था, ये sachhi कहानी मुझे भी बहुत अच्छी लगी इसलिए यहाँ पोस्ट की, उम्मीद है आपको भी आयेगी और गर्व महसूस करेंगे कि आप भारतीय है) दो अच्छे परिवार की मुस्लिम बहने ईराक घूमने गयी। वहाँ एक 12 साल का लड़का उनके पास आया जो t shirt बेच रहा था, उनसे बोला “मैडम प्लीज ये टी शर्ट ले लीजिए, सिर्फ 2000 में 5 टी शर्ट।“ वो लड़का इराकी में बोल रहा था, उन दोनों बहनों में एक को इराकी आती थी, उस लड़की ने टी शर्ट लेने से मना कर दिया, वो लड़का उदास हो गया फिर बोला “ मैडम प्लीज ले लीजिये”। उन लड़कियों ने फिर आपस मे विचार किया कि चलो ले ही लेते हैं, कपड़ा इतना बुरा भी नही है, फिर उस लड़के से कहती है “2000 तो बहुत ज्यादा है 1500 में दो तो हम ले लेंगे”। ये सुन लड़का कहता है “मैडम इतने में तो मेरा भी पूरा नही होगा, कोई मुनाफा भी नही होगा, पर आपको में 1700 में ये दे दूंगा”, लड़किया आपस मे फिर विचार करती है और आखिर 1700 में ले लेती है टी शर्ट। टी शर्ट बेचने के बाद लड़का बहुत खुश होता है और कहता है अब घर मे खाने की व्यवस्था इस पैसे से हो जायेगी। ये देख लड़कियां कहती है शायद ये दिन की पहली बोनी हुई है तुम्हारी, तो लड़का कहता है “मैडम जी पूरे दिन की नही इस पूरे हफ्ते की ये पहली बोनी है”। ये सुन दोनों बहनें स्तब्ध रह जाती है, वो उससे उसके पिता के बारे में पूछती है तो लड़का कहता है “3, 4 आदमी काले कपड़े में उसके घर आये उसके पिता को आवाज़ लगाई तो उसकी माँ गोदी में उसकी छोटी बहन को ले कर निकली एवंम वो भी अपने पिता का हाथ पकड़ कर निकला इतने में ही उन आदमियों ने पिता के माथे पर बंदूक रखी और गोली चला दी उन्ही के सामने और पिता ने उन्ही के सामने ही प्राण त्याग दिए, तभी से में अपना अपनी बहन और माँ का ये काम कर पेट पालता हूँ।“ ये सुन उन बहनो की आंख से आँसू बहने लगते हैं, वो उस लड़के को वही कुछ देर रुकने को बोलती है और तुरन्त अपने होटल जाती है, वहाँ उनके पास जो भी खाने पीने का सामान होता है सब ले कर बांध देती और वापस उस लड़के के पास आ कर उसे दे देती है, पहले तो लड़का नही लेता पर उन लड़कियों के जोर देने पर ले लेता है और कहता है “या अल्लाह तूने तो पूरे एक हफ्ते के भोजन की व्यवस्था कर दी तेरा शुक्रिया”। लड़के को इतना खुश देख कर वो जाने लगती है तो वो लड़का कहता है “आपकी वजह से आज बहुत दिन बाद मेरे घर मे चूल्हा जलेगा, में अल्लाह से दुआ करूँगा की आपकी सभी दुआ पूरी हो।“ उस छोटे से लड़के के मुख से ये सुन कर वो मुस्कुरा देती हैं और वहाँ से चली जाती हैं।

Thursday 1 February 2018

कविता-ज़िन्दगी की राहों में हमराही बहुत है

"ज़िन्दगी की राहों में हमराही बहुत है
इश्क की महफ़िल में धोखे बहुत है

मोहब्बत में कितने रंग बदलते है लोग
बेवफाई के यहाँ तो ये मौके बहुत है

दूर तलक चलने की बात कहते है जो
अक्सर मझधार में वो छोड़ते बहुत है

दिल तोड़ समझते है बड़ा काम किया
साथियों में जो होती वाहवाही बहुत है

सोचते है रुसवाई दे कर जग जीत गए
एक दिन जग में होती जगहँसाई बहुत है

इश्क खेल समझ कर दिलोसे खेलते हैं
मिलती उन्हें भी फिर रुसवाई बहुत है

मन्ज़िल तक साथ निभाये जो साथी मेरा
पर इस राह में छोड़ने वाले ये राही बहुत है

टूट कर बिखर चुके होते हम कभी यु ऐसे
बस खुदको यु संभाले और रोके बहुत है

ज़िन्दगी की राहों में हमराही बहुत है
इश्क की महफ़िल में धोखे बहुत है-२"