Saturday 17 February 2018

ईश्वर वाणी-234, एकेस्वर अर्थात एक ही ईश्वर



ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों मैं आज तुम्हें बताता हूँ कि समस्त संसार व जीवो व समस्त बब्रह्माण्ड का मालिक मैं ही हूँ, मेरा कोई रूप व आकर नही, में ही समस्त आत्माओ का स्वामी होने कारण परमात्मा हूँ।
हे मनुष्यों यद्धपि बहुत से लोग मुझे साकार व बहुत से निराकार रूप में मानते हैं, किंतु अब बहुत से लोग मुझे निराकार रूप में मानने लगे हैं, ऐसा इसलियें क्योंकि वो अपनी प्राचीन सभ्यता जो कि मूर्ति पूजा के रूप में विकसित थी उसे त्याग चुके हैं और आज एकेस्वर के पथ पर चल पड़े हैं।

हे मनुष्यों सन्सार में एकेस्वर का होना आज के समय में बहुत ही आवश्यक हो चुका था, प्राचीन काल मे जब मूर्ति हर स्थान पर चलन में थी तब मनुष्य केवल खुद जिस देवी/देवता पर यकीं रखता था उन्हें ही श्रेस्ट कहता व खुद को ही श्रेस्ट मान सभी को नीचा समझता था जिसके कारण लोग आपस में बेर भाव रखते थे, इसलिए संसार को एकजुट करने के लिये एकेस्वर की स्थापना बहुत ही आवश्यक हो गयी।

संसार मे अनेक समुदाय थे, कई जाती व उपजातियां थी जो अलग अलग रूप में मूर्ति पूजा करते थे, व खुद को व खुद जिसकी उपासना करते वही उनकी दृष्टि में श्रेस्ट होते, वो अक्सर कमजोरसमुदाय व जाती पर आक्रमण करते थे तथा जो जीत जाता वो हारे हुए के मंदिर व आराधनालय को नष्ट करते व जबरन अपनी परंपरा व अपने देवी देवता की उपासना उन पर धोपते, जिससे सन्सार में अराजकता बढ़ती गयी तथा एक ही ईश्वर की धारणा को बल मिला जिसने समस्त संसार को  एक सूत्र में बाँध कर सभी को एक समान मानव बता एक ही धर्म मानव धर्म की मानसिकता को बल दिया, इस प्रकार जो छोटे छोटे राज्य कमजोर राज्यो पर हमला कर वाह के मंदिर तुड़वा साथ ही अपने अनुसार पूजा पद्धति को बढ़ावा देने की सोच पर रोक लगाई।

इस प्रकार समस्त संसार आज पहले की अपेक्षा श्रेस्ट बना है किँतु अब फिरसे पुरानी मानसिकता सर उठाने लगी है जो वही कर रही है जो पहले लोग करते थे, किंतु यदि इस मानसिकता पर रोक नही लगी तो फिर एक नए धर्म का उदय होगा अथवा मानव जाति का विनाश, इसलिए ये तुम्हें सोचना है कि तुम क्या चाहते हों साथ किस दिशा में समाज को ले जाना चाहते हों”

कल्याण हो

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