Monday 26 February 2018

ईश्वर वाणी-238, जीवन मे प्रार्थना का प्रभाव

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों में तुम्हे आज प्राथना के विषय मे बताता हूँ, आखिर ऐसा क्या होता है जो लोग कहते हैं कि तुम्हारी प्राथना ईश्वर ने सुन ली, या फिर क्या कारण है जिसके कारण तुम्हारी प्रार्थना नही सुनी गई।

हे मनुष्यों जब तुम सच्चे दिलसे मुझे याद करते हो, साथ ही सच्चे दिलसे बिना की राग द्वेष छल कपट के कोई दुआ मांगते हो, मुझपर पूर्ण श्रद्धा रख कर सच्चे दिलसे मुझे याद कर कोई इच्छा करते हो तो पूर्ण अवश्य होती है।

इसका कारण ये है जब तुम ऐसा करते हो तब तुम्हारे शरीर से तुम्हारी आत्मा जो मेरा ही एक अंश है जो जाग्रत हो कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है, यही सकारात्मक ऊर्जा तुम्हारे चारो ओर घूमती है एवं तुम्हारी जैसी इच्छा होती है उसे पूर्ण करने के हालात बनाती है।

किन्तु जब तुम छल कपट राग द्वेष की भावना से मेरी स्तुति करते हो तब तुम्हारे अंदर से तुम्हारी आत्मा नकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है फलस्वरूप तुम्हारी इच्छा पूर्ण नही होती किंतु यहाँ कुछ व्यक्ति कहेंगे कि मैंने तो कोई छल कपट ईर्ष्या राग द्वेष किसी के साथ नही रखा साथ ही सच्चे दिलसे ईश्वर अर्थात मेरी स्तुति की फिर भी मेरी मनोकामना पूर्ण नही हुई, कोई कहता है मेरी तो होती ही नही मनोकामना पूर्ण।

हे मनुष्यों उन्हें मै बताता हूँ यदि उनकी मनोकामना पूरी नही हुई तो उसकी कुछ वजह हो सकती है जैसे-

1- तुम्हारे अंदर से सकारात्मक ऊर्जा निकली उसे ये पता था जो इच्छा तुम कर रहे हो, निकट भविष्य में उससे तुम्हे भारी हानि हो सकती है, यद्धपि तुम्हे लगता है कि ये ही मेरे लिए महत्वपूर्ण है किंतु भविष्य में ये ही तुम्हे हानि पहुचा सकती है, इसलिए वो उर्जा तुम्हें लाख प्राथना के बाद भी तुम्हारी वो इच्छा पूरी नही करती साथ ही पिछले जन्म के करम भी होते हैं जो व्यक्ति की इच्छाओं को पूरा करने न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

2-कई बार तुम्हारे आस पास मौजूद नकारात्मक ऊर्जा बहुत ज्यादा होती है जिसके कारण तुम्हारे अंदर की सकारात्मक ऊर्जा कमजोर होने के कारण उससे हार जाती है जिससे तुम्हारी इच्छा लाख कोशिश के बाद भी पूर्ण नही होती। ये नकारात्मक ऊर्जा कोई भूत प्रेत नही अपितु तुम्हारे अपने अंदर की निराशा व तुम्हारे आस पास के व्यक्तियों के अंदर व्यापत किसी भी प्रकार की निराशा है, जिसकी शक्ति तुम्हें प्रभावित करती है।

3-निकट भविष्य में तुम्हें इससे भी बेहतर कुछ मिलने वाला होगा तभी तुम्हारी ये इच्छा पूर्ण नही हुई।

4-अभी वो समय नही आया है या किसी चीज़ अथवा जीव जिसकी तुम कामना रखते हो कि सदा तुम्हारे साथ रहे इसके लिए प्रार्थना करते हो किन्तु वो चीज़ या जीव तुमसे सदा के लिए दूर हो जाता है, क्योंकि अब उसका इस स्वरूप में समय पूरा हो चुका है, उसे एक नए स्वरूप की आवश्यकता है साथ ही तुम्हें भी भावनाओं से ऊपर उठ कर मोह त्याग ईश्वर में ध्यान लगाने की आवश्यकता है।


ये निम्न कारण है जो तुम्हारी इच्छा तुम्हारी प्राथना तुम्हारी मन्नत पूरी नही होने देते।

हे मनुष्यों मैं पहले भी बता चुका हूँ मैं तुम सबमे हूँ किन्तु तुम मुझमे नही, तुम्हारी आत्मा मुझ परमात्मा रूपी सागर से निकला एक अंश अर्थात एक बूँद है, तुम्हें मैंने कई अदभुत शक्तियां दी है किन्तु तुम्हारे अंदर विराजित बुराई ने उन्हें  तुमसे दूर रखा है, यदि तुम अपने अंदर की समस्त बुराई को त्यागकर कर मानव कर्म व मानव पथ पर चलते हो तो तुम्हें उन शक्तियों की अनुभूति होगी जो मैंने तुम्हें दी है।

हे मनुष्यों यद्धपि तुम्हे मैंने आज प्रार्थना के विषय में बताया, संछिप्त ज्ञान और तुम्हे देता हूँ, जो व्यक्ति मेरे किसी भी रूप की पूजा करते हैं, उन्हें हानि नही पहुचाना क्योंकि उस समय उन्हें नही पता किन्तु उनके अंतर्मन से सकारात्मक ऊर्जा निकलती है, ये ऊर्जा व्रत-उपवास व प्रार्थना के दौरान अवश्य निकली है, ऐसे में यदि उस व्यक्ति को सताया जाता है भले वो व्यक्ति स्वम् कुछ न कहे या करे किन्तु उससे निरन्तर निकलने वाली ऊर्जा दुष्परिणाम निकट भविष्य में  अपने सताने वाले व्यक्ति को अवश्य देती है, यद्धपि तुमने सुना होगा कि फला का आशीर्वाद से मेरा ये काम हो गया अथवा फला की बद्दुआ से ये काम बिगड़ गया, ये सब निम्न व्यक्तियों से निकलने वाली ऊर्जा के कारण हुआ।

हे मनुष्यों तुमने कई मनुष्य व साधु सन्यासी की कहते सुना होगा कि उन्होने अपने इष्ट के साक्षात दर्शन करे पूजा अथवा प्राथना के दौरान, आज तुम्हें बताता हूँ जो ऐसा सच मे अनुभव करते हैं तो ध्यान व प्राथना में इतने खो जाते हैं कि उनके अवचेतन मन से उनकी आत्मा सम्पर्क कर ब्रह्मांड में विराजित ईश्वर रूपी शक्ति से सम्पर्क साध लेती है, ऐसे मनुष्यों के अंदर सकारात्मक ऊर्जा व उसकी आत्मा के सकारात्मकता के प्रभाव के कारण होता है, जिससे वो अपने इष्ट के दर्शन पाते हैं जिस रूप में उन्हें वो मानते हैं।

इस प्रकार प्राथना का पूरा होना या न होना व्यक्ति के जीवन पर निर्भर करता है।'


कल्याण हो





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