Saturday 24 February 2018

ईश्वर वाणी-237, धरती का मासिक चक्र



ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों जैसे समस्त जीवों में मैंने समान रूप से स्त्री अर्थात मादा व पुरूष अर्थात नर को बनाया है, प्रत्येक जीव में केवल स्त्री को ही मैंने मातृत्व की शक्ति दी, एक स्त्री ही है जो अपने समुदाय को आगे बढ़ा सकती है, ये उपहार मैंने स्त्री को ही दिया है।

किंतु इस उपहार को केवल वही स्त्री प्राप्त कर सकती है जिसको मासिक आता हो, अर्थात इसके बिना स्त्री मातृत्व के सुख से वंचित रह सकती है, यद्धपि पुरुषों ने स्त्री के इस मासिक चक्र के कारण उसको अशुद्ध घोसित कर तमाम प्रतिबन्ध लगा दिए, किंतु क्या स्त्री सच में उस अवस्था मे अपवित्र होती है इसका उत्तर में पिछली ‘ईश्वर वाणी’ में दे चुका हूँ किंतु आज बताता हूँ धरती के मासिक चक्र की।

चुकी धरती इस आकाशगंगा में एक अकेली स्त्री है, इसलिये इसे भी माँ बनने का सुख मिला, सर्वप्रथम मंगल ग्रह को इसने जन्म दिया तत्पश्चात धरती ने पेड़ पौधे तमाम जीव जन्तु व मनुष्य को जन्म दिया, अपनी गोद मे ये आज हम सबको लिए हुए हैं, देह त्यागने के बाद भी ये अपने आँचल में सबको सुला लेती है।

किंतु धरती को इस मात्रारत्व का सुख यूँही नही मिला है, अन्य स्त्रीयो की भांति इसको भी माँ का सुख मासिक चक्र के द्वारा ही प्राप्त हुआ है, अब तुम पूछोगे धरती और मासिक चक्र, तो तुम्हें बताता हूँ धरती पर जब जीवन नही था, तब अनेक जयवालामुखी इस पर मौजूद थे जिनमें निरन्तर विस्फोट होते रहते थे, उनसे ही निकले लावे व राख से अति सूक्ष्म जीवों की उत्तपत्ति हुई जो जीव व प्राणी जगत की उत्तपत्ति का कारण बने, आज भी धरती पर कही न कही ज्वालामुखी विस्फोट होते हैं जो आज भी पर्यावरण और नये जीवन का कारण बनते हैं, ये ही ज्वालामुखी इस धरती रूपी माँ का मासिक चक्र है, चुकी ये सभी जीवों की माँ है व ब्रमांड में हमारी आकाशगंगा में अकेली स्त्री तृत्व है इसलिए इसका मासिक अन्य स्त्रीयो से अलग है, किंतु तरीका वही है जब धरती अंदर से बहुत गर्म हो जाती है जिसके कारण उसके आस पास की मिट्टी व दीवार पिघल कर गिर जाती है तब ज्वालामुखी में विस्फोट होता है, ऐसा ही कुछ तरीका समस्त स्त्री जाति के मासिक के दौरान होता है।

हे मनुष्यों मैं जानता हूँ कुछ व्यक्ति इस लेख को पढ़ने के बाद कहेंगे कि फला ग्रह पर भी ज्वालामुखी हैं जो फटते रहते हैं तो वो भी मासिक चक्र में है क्या? तो उन्हें में बताना चाहता हूँ जीवनदायिनी ज्वालामुखी का विस्फोट कहा हुआ है, जहाँ जहाँ इसके विस्फोट से जीवन उतपन्न हुआ वहा कह सकते हैं कि वहां या उस ग्रह की धरती अपने चक्र में थी।

हे मनुष्यों जो जन स्त्रीयो को उन दिनों अपवित्र कह अपमानित करते हैं, वो जान ले स्त्री कभी अपवित्र नही होती, यदि उन दिनों वो अपवित्र होती तो सबसे पहला स्थान पृथ्वी का होता जो समस्त जीवों का घर व उनकी माँ है, किंतु जैसे समस्त जीवों को जन्म देने व पालन पोषण के कारण धरती का स्थान सभी ग्रहों में श्रेस्ट है वैसे ही सभी पुरुषों में अर्थात नर में स्त्री अर्थात मादा का स्थान श्रेस्ट व पवित्र है, इसलिए कभी किसी स्त्री का उसके मासिक को लेकर अपमान न करो क्योंकि ये अपमान उसका नही अपितु समस्त पृथ्वी का है, जो अनुचित व पापयुक्त है।

है मनुष्यों अपनी सोच सुधारो व स्त्री का हर समय सम्मान करो, तुम्हारा उद्धार होगा क्योंकि स्त्री खुद में पूर्ण है किंतु पुरूष खुद में पूर्ण नही अतः उसे स्त्री की सदा आवश्यकता है, वो चाह कर भी स्त्री से अलग नही हो सकता क्योंकि स्त्री शक्ति रूप में उसके अंदर है किंतु पुरूष स्त्री में कही नही, इसलिए नारी को सम्मान दो क्योंकि इसका स्थान सर्वश्रेष्ठ है।"

कल्याण है

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