Monday 26 February 2018

कविता-अरमान जागा है

"आज बस जीने का फिर अरमान जागा है
आज  कुछ कहने का फिर अरमान जागा है

सपनो की दुनिया से मुह मोड़ चुके थे हम
आज ख्वाब देखने का फिर अरमान जागा है

सबसे नाता तोड़ दूर कहीं चले गए थे हम
आज सबसे मिलने का फिर अरमान जागा है

सोचा था शायद अब हम यूँही तन्हा रहेंगे
आज खुल कर जीने का फिर अरमान जागा है

डरने लगे थे इन रास्तों पर चलने से हम तो बस
इन रास्तो से मोहब्बत का फिर अरमान जागा है

आज बस जीने का फिर अरमान जागा है
आज  कुछ कहने का फिर अरमान जागा है-२"

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