Sunday 4 February 2018

फिर एक प्रेम कहानी भाग-5(स्टोरी)


सुबह 11 बजकर 25 मिनट 1932 आसिफ के फोन की घण्टी बजती है आसिफ फ़ोन उठाता और पूछता है कौन?
आवाज़ सुन कर हैरान रह जाता है जब उसे पता चलता है फ़ोन पर संजय है, आखिर इतने साल बाद संजय ने फोन क्यों किया, ये ही सोच रहा था कि संजय ने कहा-
संजय- “आसिफ जल्दी से जल्दी रिया के घर आ जाओ”
आसिफ- “पर क्यों हुआ क्या है”
संजय- “सवाल मत करो आ जाओ, तुम्हारी रिया हमारी रिया”, ये बोल कर संजय फूट फूट के रोने लगता है।
आसिफ- “क्या हुआ रिया को, में अभी आता हूँ ।
 इतना कह कर आसिफ रिया के घर चल देता है।

वहा जा कर पता चलता है रिया नही रही, आसिफ को गहरा धक्का लगता है, इतने में रिया की दोस्त और उसकी अस्सिस्टेंट रितिका जो पिछले 10 साल से रिया के साथ थी, आसिफ को रिया के हाथ का लिखा आखिरी खत थमाती है और कहती है-
रितिका- “ये खत उसने पेरिस में अपनी बीमारी के इलाज के दौरान लिखा था, वो चाहती थी आखिरी बार तुम्हे देख ले, फिर सोचती तुम काम मे व्यस्त होंगे, आखिर कल उसने ये खत मुझे दिया और कहा आज जब तुम उससे आखिरी बार मिलने आओ तब तुम्हे इसे दे दु, जो दे दिया, अपनी टीबी की लाइलाज बीमारी और तड़प तड़प के यू मरने से बेहतर इसने खुद ज़हर खा कर जान दे दी, अब इसे न सिर्फ बीमारी बल्कि अकेलेपन से भी मुक्ति मिल गयी”। इतना कह रितिका वहां से चली गयी।

आसिफ ने खत खोला और पढ़ने लगा जिसमे रिया ने लिखा था “मेरे प्रिये तुम नही जानते तुम मेरे लिए आज भी कितनी    अहमियत रखते हो लेकिन लगता है तुम सब कुछ भूल चुके हो, शायद दुनियादारी और व्यवसाय ने तुम्हे ऐसा बना दिया क्योंकि तुम अब वो नही जिसको मैंने चाहा था। लेकिन जितनी मोहब्बत की है तुमसे मैंने शायदि किसी ने की हो, में तुमसे आज भी उतनी ही मोहब्बत करती हूँ जितनी पहले, पर शायद तुम अब वो नही रहे जिसने कभी मुझे चाहा था।
प्रिये मुझे एक कली से फूल तुमने और तुम्हारे प्यार ने बनाया था” ये अल्फ़ाज़ पड़ कर आसिफ उन दिनों की याद में खो जाता है जब रिया अपना सब कुछ छोड़ कर उसके पास चली आयी थी।

रिया- “आसिफ मैंने वो घर छोड़ दिया है, अब तुम्हे मुझसे कोई अलग नही कर सकता, अब मैं तुम्हारी हूँ आसिफ”,
आसिफ- “ओह रिया तुम नहीं जानती मैं कितना खुश हूं तुम्हें अपने पास आज यू बेफिक्र देख कर तुम्हें अंदाज़ा भी न होगा पर प्रिये अभी हमारी शादी नही हुई है, ऐसे में तुम्हे मैं अपने साथ नही रख सकता, जब तक हमारी शादी नह होती तुम मेरे दूसरे  घर मे रहना, रहोगी न प्रिये”,
रिया-“क्यों नहीं”,
आसिफ- “रिया तुम तो जानती हो मैं तुम्हारे भईया के व्यापार में सहायक था, किँतु जबसे उन्होंने मुझे निकाला है अकेले ही अपना काम सम्भाल रहा हूँ, मेरे बहनोई मेरी सहायता इसमे कर रहे हैं, मेरे जो क्लाइन्ट है वो सभी फ़िलहाल मुस्लिम है, मुझे उनके साथ कि अभी बहुत जरूरत है, ऐसे में उन्हें ये पता लग गया कि मैंने एक हिन्दू लड़की से शादी की है तो वो व्यापारिक रिश्ते तोड़ देंगे और फिर कभी मैं आर्थिक रूप से मजबूत नही हो पाऊंगा, मेरा कैरियर तबाह हो जायेगा”,

रिया- “अगर मैं मुस्लिम बन जाऊं तो????”
आसिफ- “अगर तुम मुस्लिम बन जाओ तब तुमसे शादी करू में तो ये मसला हल हो सकता है, लेकिन मैं तुमसे ऐसा बिल्कुल भी नही करने को कहूँगा,
रिया-“ओह आसिफ आखिर हर लड़की को शादी के बाद पति का नाम उपनाम मज़हब जाती स्वीकार करनी ही होती है, क्या हुआ जो मैं शादी से पहले स्वीकार करती हूँ और वैसे भी कुछ साल पहले भारत के एक नामी वकील ने भी तो एक पारसी लड़की से शादी की, हमारी प्रेम कहानी कुछ उनकी जैसी ही तो है, जैसे उस लड़की ने भी तो इस्लाम स्वीकार किया और उन नामी वकील से शादी की, क्या होगा जो मैं भी कर लुंगी"

असीफ-"ओह रिया तुम सच मे बहुत अच्छी हो, नसीब वाला हूँ मैं जो तुम मुझे जीवनसाथी मिली, आई लव यू”।
रिया इस्लाम कबूल करती है और 19 अप्रैल 1921 को इस्लामी रीति से दोनों की शादी होती है, शादी में रिया को 110की मेहर तय होती है पर आसिफ 1000 लाख रुपये उसे अपनी खुशी से देते है।

शादी के बाद ये जोड़ा हनीमून के लिये पेरिस जाता हैं, शादी के एक साल तक रिया और आसिफ पेरिस ही रहते हैं। पेरिस में ही एक नाटक देखते हुये रिया की तबियत खराब हो जाती है, जल्दी जल्दी उसे अस्पताल में भर्ती कराता है जहाँ रिया एक बेटी को जन्म देती है जिसका नाम वो दोनों रेहाना रखते हैं। रेहाना के दो महीने कि होने पर ये जोड़ा वापस भारत लौट आता है।

आसिफ ख़त में आगे पड़ता है “ मुझे उम्मीद है तुम मुझे उस फूल की तरह याद करोगे जिसने बाग से तोड़ कर अपने गमले में सजाया था कभी, न कि उस फूल की तरह जिसने पेड़ से तोड़ कर अपने पैरों तले रौंद डाला था”, ये अल्फ़ाज़ पड़ आसिफ याद करने लगता है जब वो अपनी पत्नी और बेटी के साथ भारत लौटा था रेहाना के जन्म के बाद पहली बार।

रिया- “ऑफ हो आसिफ तुम्हारे पास वक्त ही नही है हमारे लिये, जब से पेरिस से लौटे हो काम ही काम”,
आसिफ- “ओह रिया काम भी तो जरूरी है, तुम जाओ में आता हूँ”।

दिन यू ही बीत रहे थे, आसिफ रिया को केवल बिज़नेस पार्टनर्स अथवा उनकी पार्टी में ही साथ ले जाता, पर रिया के साथ सिर्फ रिया के लिये वो नही जाता था।
एक रोज़ रिया बहुत ही बन ठन के आसिफ के ऑफ़स गयी, आसिफ मीटिंग में व्यस्त था,  वो उसके मीटिंग रूम में जा कर उसके पास जा कर टेबल पर बैठ गयी और पैर हिलाने लगी पर आसिफ ने उस पर कोई ध्यान नही दिया, रिया भी कुछ नही बोली केवल मीटिंग खत्म होने का इंतज़ार करती रही, जैसे ही मीटिंग खत्म हुई आसिफ बोला-
आसिफ- “ये क्या है रिया, क्या चाहती हो”
रिया- “तुम्हारे साथ अकेले घूमने”
और आसिफ रिया के साथ गाड़ी में घूमने चल देता है, पर शायद ये आखिरी दिन था जब वो दोनों केवल एक दूसरे के लिए बाहर अकेले घूमने गए।

वक्त के साथ आसिफ व्यापार में इतना व्यस्त हुए की उन्हें ये भी याद न रहता कि उनकी एक बेटी और पत्नी भी घर मे है, बेटी अब स्कूल भी जाने लगी है आसिफ को पता ही था, धीरे धीरे उनके रिश्ते में दूरी आने लगी, उम्र फासला भी साफ नजर आने लगा, बस दोनों को जिसने जोड़े रखा था वो थी एक दूजे से बेइंतहा मोहब्बत, लेकिन इज़हार करने वाला साथी साथ न था।

रिया गम मिटाने के लिये शराब और सिगरेट पीने लगी, और धीरे धीरे उसकी तबियत खराब होने लगी, लेकिन आसिफ को इसकी कोई चिंता नही थी।
एक रोज़ इसी हालात में वो संजय के घर चली गयी, संजय हैरान हुआ बहन को इस हालत में देख कर, इलाज के लिए वो उसे पेरिस ले गया, जहाँ जाँच में लाइलाज बीमारी टीबी के बारे में डॉक्टर ने बताया। रिया धीरे धीरे मौत की ओर बढ़ रही थी, संजय ने आसिफ को रिया की बीमारी के विषय मे बताने की इच्छा की लेकिन रिया ने मना कर दिया और भारत अपने घर ले चलने की इच्छा जताई, संजय उसे भारत मे उसके पति आसिफ  घर ले आया साथ ही रिया की ज़िद के कारण उसने आसिफ को रिया की इस जानलेवा बीमारी को भी नही बताया और चुपचाप अपने घर चला गया लेकिन आसिफ के घर अकेलेपन और तन्हाई के साथ कुछ दिनों बाद अंतिम सांस ली।

खत पूरा पड़ने के उपरांत रिया को गले लगा कर आसिफ बहुत रोया, मुस्लिम रीति अनुसार रिया को दफना दिया गया। साथ ही चूँकि आसिफ रिया के साथ अब नही रहता था, एक ही शहर में रहते हुए दोनों एक दूसरे से अलग रहते थे, अपने व्यपार को संभालते संभालते कब आसिफ का घर बिखर गया इसका अहसास रिया के जाने के बाद उन्हें हुआ। आसिफ को ये भी नही पता था कब रिया संजय से मिली और पेरिस इलाज़ के लिए गयी और कब वापस लौटी साथ ही संजय और उसकी पत्नी रिया का हाल जानने उसके घर आते थे। अपने मज़हबी कार्यो और व्यवसाय को शिखर तक पहुचाते पहुचाते कब उनका रिश्ता ज़मीदोज़ हो गया ये बहुत देर में पता चला।

तभी घर की घण्टी बजती है, एक नौकर दरवाज़ा खोलता है, आसिफ पूछता है कौन आया है?
नौकर- “साहब रेहाना मेम साहब अपने शौहर के साथ आई हैं” ये कह नौकर वहाँ से चला जाता है।
आसिफ रेहाना से कहता है “आखिर दिल की कर ही ली, जाओ तुमसे मेरा कोई सम्बन्ध नही”
रेहाना-“क्या सचमुच पापा, जरा नज़र मिला कर तो कहिये प्लीज ये”
आसिफ उसके करीब जाता है और गले लगा लेता है।




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