Friday 29 September 2017

हैप्पी स्वीट दशहरा

"देखो आज फिर रावण दहन का दिन हैआया
हर जगह खुशियो का खुमार है  कैसे ये झाया
लगने लगे हर ओर 'जय श्री राम' के जयकारे
हर किसी ने फिल उल्लास से ये पर्व है मनाया

सुना है हमने रावण तो था प्रतीक एक बुराई का
महाज्ञानी बलशाली बन गया पात्र जगहंसाई का
कर अपहरण माता का उसने अपना काल बुलाया
गवाई सत्ता सारी फिर पूरा परिवार भी मरवाया

पूछे 'मीठी' 'ख़ुशी' से आज ये सवाल हर बार
आज रावण दहन के दिन कितनो ने रावण जलाया
क्या मिटाई बुराई दिलसे अपनी किसी ने यहाँ
कितनी सीताओं की आबरू को तुमने बचाया"




मुक्तक

"इश्क की महफ़िल में सब कुछ गवाया हमने
एक बेवफा मेहबूब पर सब-कुछ लुटाया हमने
मोहब्बत पर कुरबान कर दी ये ज़िन्दगी सारी
उमर भर तन्हाई के सिवा न कुछ पाया हमने"

कविता-यादों में रह जायंगे

"एक दिन हम भी एक फ़साना बन जायेगे,
जहाँ की सिर्फ इन तश्वीरों में ही नज़र आयंगे
लोग कुछ मानेंगे अस्तित्व हमारा तो कोई नहीं
कुछ के लिए बस एक गुज़रा ज़माना बन जायँगे

किसी की हकीकत किसी की कल्पना कहलाएंगे
कोई मानेगा वज़ूद हमारा किसी का ख्वाब कहलाएंगे
मानने वाले मानेंगे न मानने वाले नकारेंगे हमे यहाँ
दिन,महीने,सालो साल सब युही बस गुज़रते जायँगे

वो राते वो दिन भी ऐसे ही फिर नज़र आएंगे
भीड़ भरी राहो में 'मीठी' हम न नज़र आयंगे
'ख़ुशी' में झूमेंगी ये दुनिया आज की तरह ही
हम न होंगे बस अपनोंकी यादो में रह जायँगे"

Wednesday 27 September 2017

कविता-दिल करता है

"तेरी यादो में फिर बहकनेका दिल करता है
तुझे याद कर फिर कुछ लिखने का दिल करता है

तू होती यहाँ तो ज़िन्दगी ही कुछ और होती 'मीठी'
'ख़ुशी' का वो लम्हा फिर बुलाने का दिल करता है

कम ही सही पर तेरा साथ था कितना हसीं 'मीठी'
'ख़ुशी'  का वो अहसास बताने का दिल करता है

वक्त ने किया सितम जो और न साथ जिये हम
सूनी ये ज़िन्दगी तुझे दिखाने का दिल करता है

है मोहब्बत आज भी उतनी ही तुमसे मुझे 'मीठी'
'ख़ुशी' से अपनी आशिकी जताने का दिल करता है

तेरी यादो में फिर बहकनेका दिल करता है
तुझे याद कर फिर कुछ लिखने का दिल करता है-२"

कविता-दिल लोग तोड़ जाते है

"क्यों इश्क में शीशा समझ दिल लोग तोड़ जाते है
करते है वादा वफ़ा का  तन्हा छोड़ जाते है

अश्क छिपा अपने पूछती है 'मीठी' 'ख़ुशी' से ये
क्यों मेरी ही ज़िन्दगी में यु ऐसे ये जोड़ आते है

देते है पल दो पल की मुस्कुराती 'मीठी-ख़ुशी' यहाँ
मिलते है अश्क उमर भर इश्क में ऐसे मोड़ आते हैं

क्यों इश्क में शीशा समझ दिल लोग तोड़ जाते है
करते है वादा वफ़ा का  तन्हा छोड़ जाते है-२"😢



गीत-ऐ ज़िन्दगी

"ऐ ज़िन्दगी ढूढता हूँ तुझे ही हर कही
जाने क्यों मिलती तू मुझे है नही-२

ऐ ज़िन्दगी...............................

बहारो में ढूंढता हूँ  तुझे,
 फिज़ाओ में खोजता हूँ तुझे

तू रहती कहाँ है आ बता दे मुझे
दिल से दिल का पता दे मुझे

ऐ ज़िन्दगी............................

तू मिलेगी कभी ये यकी है मुझे
दिल देगी कभी हाँ तू भी मुझे-२

चाहूँगा तुझको ही हर घडी ओ 'ख़ुशी'
'मीठी' सी होगी मेरी वो 'हमनशि'

छिपी है कही इन नज़ारो में वो कहीं
होगी वो हज़ारो में है मुझे ये यकी-२


ऐ ज़िन्दगी ढूढता हूँ तुझे ही हर कही
जाने क्यों मिलती तू मुझे है नही-२"








कविता-प्यार नही मिला

"सबकुछ मिला हमे बस इक यार नही मिला
इश्क की सजी महफ़िल में इक प्यार नही मिला

जो बना अपनी ज़िन्दगी दिलमे बसा ले मुझे
बस ज़िन्दगी में ऐसा इक दिलदार नही मिला

खोजती रही आँखे मेरी हर गली चौबारे पर
मोहब्बत का हसीं वो इक संसार नही मिला

मिले लोग मुझे भी दिल के सौदागर कुछ यहाँ
पर ख्वाबो के इश्क का इक बाजार नही मिला

सबकुछ मिला हमे बस इक यार नही मिला
इश्क की सजी महफ़िल में इक प्यार नही मिल-2😭😭"

Monday 18 September 2017

चन्द अल्फ़ाज़

For Bossy
"मेरी ज़िन्दगी मेरी दुनिया है तू
मेरी 'मीठी' मेरी हर 'ख़ुशी' है तू
तुझे और क्या कहु दिलकी बात
मेरा हर लम्हा मेरी बंदगी है तू"
Love you bossy

"मेरी ज़िन्दगी का एक अहसास हो तुम
दूर हो कर भी रहते कितने पास हो तुम
है लोग अपना मुझे कहने वाले बहुत यहाँ
पर इस महफ़िल में सबसे ख़ास हो तुम"

Monday 11 September 2017

ईश्वर वाणी-223-सृष्टि का कुंभार

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि मैं ही सृष्टि निर्माता हूँ, मैं ही कल आज और कल हूँ, मैं आदि हूँ अनंत हूँ,
मैं एक हूँ और मैं ही अनेक हूँ, तुम मुझे एक मैं भी प्राप्त कर सकते हो और अनेक में भी क्योकि मैं ही अनेको में अनेक और एक में एक हूँ अर्थात तुम मुझे एकेश्वर के रूप में भी पाते हो और अनेक ईश्वर के रूप में भी।

हे मनुष्यों मैं ही सृष्टि का कुंभार हूँ, मैंने ही सबसे पहले शक्ति रुपी चाक का निर्माण किया जिससे समस्त ब्रह्माण्ड एवं समस्त जीव जन्तु जन्मे, उस शक्ति रुपी चाक को चलाने वाला वो कुंभार मैं ही हूँ, मेरी कृपा दृष्टी से तुम सबके अंदर समस्त ब्रमांड व् समस्त जीवो के अंदर वो चाक है तथा उसको चलाने वाला मैं ही हूँ, बिना उस चाक के संसार में कुछ भी संभव नही है, शक्ति रुपी चाक पर ही समस्त श्रष्टि चल रही है है और उसको चलाने वाला मैं ही उसका कुंभार हूँ।

हे मनुष्यों अनेक मान्यताओ के अनुसार सृष्टि के निर्माता, पालन करता व् विध्वंकर्ता अलग हो सकते है, निम्न नाम तुमने उन्हें दिए, पवित्र शाश्त्रो में उनके विषय में पड़ा, किंतु समस्त लीलाओ का जनक व् और विध्वंशकर्ता मैं ही हूँ, मेरी अनुमति और इच्छा के बिना कुछ सम्भव नही है, दुनिया के समस्त पवित्र शाश्त्रो में वरणित अनेक इश्वरिये रूप मेरे ही अंश है जिन्हें तुम विभिन्न नामो से जानते हो, किंतु जब तुम सबमे मेरे नाम व् पवित्र शाश्त्रो व् धार्मिक मान्यताओ को ले कर अराजकता फैलने लगी तब मैंने ही अपने ही एक अंश को धरती पर भेज एकेश्वरवाद की नीव रखी ताकि एक ही ईश्वर में सबकी आस्था हो, पूजा विधि एक हो, धर्म शाश्त्र एक हो ताकि मानव जाती एक हो, किंतु मानव जाती ने इसमें भी भेद ढून्ढ निकाल मेरी व्यवस्था को चुनोती दी है।

हे मनुष्यों ये न भूलो तुम सबका और तुम्हारे चलाने वाले का कुंभार मैं ही हूँ, मैं ही जिसके कारण ये सृष्टि बनी और मैं ही हूँ जिसकी झाया में तुम सब फले फूले और मैं ही तुम्हारा अंत कर दूँगा, यदि तुम मेरी बनाई व्यवस्था में अवरोध ऐसे ही करते गए तो निश्चित ही मैं तुम्हे दंड दूँगा जिसके उत्तरदायी तुम स्वम होंगे, इसलिये सुधर जाओ और मेरे बताये मार्ग पर चल मोक्ष प्राप्ति की और अग्रसर हो।"

कल्याण हो

Sunday 3 September 2017

मुक्तक, कविता, गीत

1-                शायरी

"अगर तुझसे वफ़ा का वादा मैंने न किया होता
तो तेरी तरह मेरा भी आज एक घर बसा होता

तू तो निकली बेवफा कर के किसी और से सगाई
तेरी बेवफा मोहब्बत पर भी वफ़ा की रीत निभाई"

2-                   कविता



"तू आ पास मेरे ये जहाँ तेरे नाम मैं कर दूँ
तू है 'ख़ुशी' मेरी आज जान तेरे नाम में कर दूँ

'मीठी' लगती है हर शाम और सुबह मुझे अब
अपनी 'ख़ुशी' का हर अरमान तेरे नाम में कर दूँ

जीने की वजह बन गए हो तुम मेरी इस कदर
तू आ पास मेरे ये पहचान तेरे में नाम कर दूँ"

3-     गीत-तुमसे है

" तुमसे है हर 'ख़ुशी' मेरी
तुम ही तो हो ज़िन्दगी मेरी-२

'मीठी' ज़िन्दगी का ये अरमां
'ख़ुशी' का हर वो लम्हा
ऐ मेरी हमदम तुम्ही तो हो
तुम ही जीने की वजह मेरी-2

तुमसे है......................

करता हूँ इबादत तेरी
तू ही है हमनशीं मेरी

दूर तुझसे न रह पाउँगा
बिन तेरे मैं मर जाऊँगा
छोड़ न जाना तुम कभी
तुम ही हो 'मीठी ख़ुशी' मेरी-2

रुठोगी जो तुम मुझसे मैं मनाऊंगा
है वादा दूर तुमसे नही में जाऊंगा

मौत भी जुदा नहीं कर पायेगी हमें
तेरे लिए मौत से भी लड़ जाऊंगा-2

है सदा 'मीठी' 'ख़ुशी' की
ये कहता है ज़माना सारा

तुम ही तो अब  बंदगी मेरी
तुम ही तो हो ज़िन्दगी मेरी-2

तुमसे है हर ख़ुशी मेरी
तुम ही तो हो ज़िन्दगी मेरी-4"




Friday 1 September 2017

ईश्वर वाणी-२२२, असली प्रसाद

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि तुम मेरे आराधनालय व् पूजाघर में अनेक धन संपत्ति व् भोज्य वस्तुए भेट करते हो, किंतु यदि तुम मुझे केवल प्रसन्न करने के उद्देश्य से ऐसा करते हो तो मैं तुम्हे बताता हूँ मैं इससे प्रसनन नहीं होता, मुझे प्रसन्न करने के लिए धुप, दीप, पुष्प, फल व् मिष्ठान आदि समर्पित करने की आवश्यकता नही अपितु तुम्हारी सच्ची आस्था ही काफी है।

हे मनुष्यों यदि तुम मुझे प्रसनन करने हेतु आराधनालय या पूजाघर में फल मिष्ठान आदि स्वादिष्ट व्यंजन ले कर जाते हो, यद्दपि तुम्हारी आस्था व् प्रेम है तुम्हारा मेरी ओर इसलिये तुम ये भेट करना चाहते हो किंतु यदि वहा बहुत भीड़ है और तुम्हारा नंबर बहुत पीछे है किंतु तुम देखते हो कोई गरीब भूखा मनुष्य या कोई भूखा पशु या पक्षी तुम्हारे समक्ष है तो तुम क्या करोगे, क्या उस भूख से व्याकुल जीव की सहायता हेतु मुझे भेट में दिए जाने वाले निम्न व्यंजन उस को दे दोगे या अपनी बारी आने की आराधनालय में प्रतीक्षा करोगे ताकि पहले मुझे वो व्यंजन दे कर उसे प्रसाद रूप में सबको बाट सको।

हे मनुष्यों यदि तुम अपनी बारी की प्रतीक्षा में उस भूख से व्याकुल जीव की सहायता नहीं करते और अपनी बारी आने पर पहले मुझे वो व्यंजन अर्पित करते हो ताकि प्रसाद बना सबको उसे खिला सको और मुझे प्रसन्न कर सको तो तुम्हे बताता हूँ तुम मुझे प्रसन्न नही अपितु क्रोधित करते हो, मैं ही गरीब, भूख से व्याकुल मनुष्य व् वो जीव बनके तुम्हारे पास आया क्योंकि आराधनालय में तुम सबसे पीछे खड़े थे, तुम्हारा नंबर न आने को था पर मैं तुमसे तुम्हारे हाथो से ये व्यंजन लेना चाहता था, इसलिये पूजाघर व् आराधनालय से निकल तुम्हारे सामने इस रूप में आया ताकि इसे खा कर अपनी भूख मिटा सकूँ और तुम्हारे व्यंजन को प्रसाद बना सकूँ,किंतु हे मनुष्य तू साक्षात उपस्तिथित भगवान को न पहचान सिर्फ एक मूर्ती में मुझे ढूंढता है और भोग लगाता है, बता तुझसे प्रसन्न में कैसे होयू।

हे मनुष्यों मैं कभी भी किसी भी रूप में तुम्हारे सामने आ सकता हूँ अथवा अपने ही अंश को तुम्हारे पास भेज सकता हूँ, किंतु तुम्हे सचेत रहना है,  मैं कही भी और किसी भी रूप में आ सकता हूँ, इसलिये मुझे प्रसन्न करना है तो मूर्ती के पीछे मत भागो अपितु जिसे तुम्हारी आवश्यकता है उसकी सहायता पहले करो किंतु समय निकाल कर आराधनालय व् पूजाघर अवश्य जाओ और भोग भी अवश्य लगाओ किंतु ये भोग प्रसाद तभी बनेगा जब तुम किसी जरुरतमंड की सहायता में कटौती न कर मुझे ये अर्पित करोगे तभी तुम्हे इसका अनूकूल फल प्राप्त होगा।"

कल्याण हो