Tuesday 25 April 2017

ईश्वर वाणी-२०६, ईश्वर की दिव्य किरणे

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि मेरा वास्तविक रूप निराकार है, किंतु सदियो से तुम जिन्हें देवी-देवता कह पूजते आ रहे हो वो मेरा ही एक अंश है।

मैं एक दिव्य ज्योति के समान प्रकाशमान हूँ और ये समस्त रूप जिन्हें तुम अनेक देवी-देवता, जाती, धर्म, सम्प्रदाय, क्षेत्र, भाषा, सभ्यता, संस्कृति के आधार पर जिन्हें पूजते हो जिन पर विश्वाश करते हो, ये सब मेरी ही तो किरणे है जो तुम्हें मुझ तक पहुचाने का मार्ग दिखाती है।

संसार में जब और जहाँ मानवता का नाश हुआ तब तब मैंने ही अपने एक अंश को देश/काल/परिस्तिथि के अनुरूप वहा के लोगो को मानवता की दीक्षा व् एकेश्वाद की शिक्षा देने हेतु भेजा।

मेरे द्वारा तुम्हारा मार्गदर्शन करने वाले मेरे ही उस अंश का जो की मुझ दिव्य जयोति की दिव्य किरण है मानवता का पाठ पढ़ाया, तुम्हे तुम्हारा कर्तव्य याद कराया, जो तुम अनेक ईश्वर के वहम में इधर उधर भटक रहे थे, खुद को श्रेष्ट और अन्य को नीच समझ रहे थे उन्होंने तुम्हे मेरे वस्त्विक रूप दीक्षा दी मेरे सच्चे उस रूप से तुम्हें परिचित कराया।

हे मनुष्यों आज जाती, धर्म, सम्प्रदाय, भाषा, क्षेत्र, रंग, रूप, सभ्यता व् संस्क्रिति के आधार पर तुम लड़ते हो किंतु न मेरा वस्तिविक रूप तुम जानते हो न उनका जिन्होंने मानव जाती के हो रहे दोहन को रोकने हेतु जन्म लिया व् मेरे द्वारा बताये गये मार्ग को तुम्हे दिखाते हुए एकेश्ववाद दीक्षा दी।

हे मनुष्यों मैं पहले भी बता चूका हूँ और आज फिर से कहता हूँ न तो कोई जाती न धर्म न संस्कृति न सभ्यता न भाषा प्रथम है न अंतिम, इसी तरह जितने भी धर्म शास्त्र है धरती पर सभी की अपनी महत्ता व् सभी अति प्राचीन है, सभी एक दूसरे से जुड़े है सभी एक है सभी मेरे निराकार रूप का वरनं करते है, इसलिये कभी किसी को हेय दृष्टि से न देखो न खुद पर अहंकार करो,

हे मनुष्यों बस इतना याद रखो तुम चाहे मेरी जिस किरण पर आस्था रखते हो, मेरी ही किरण की बातो पर विश्वास करते हो चाहे वो कोई भी हो, सब तुम्हे मेरे पास ही पहुचाती है साथ ही तुम्हें एक आदर्श मानव बनती है यदि उनके आदेशो का पालन करते हो तो......।"



कल्याण हो

Saturday 22 April 2017

ईश्वर वाणी-२०५, बुद्धि परीक्षा


ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यु तो मैं कभी किसी जीव को गलत अथवा असत्य का ज्ञान नही देता, सदा सभी को मानव धर्म की ही दीक्षा देता हूँ।
किन्तु कभी कभी तुम्हारी बुद्धि परीक्षा हेतु तुम्हे गलत ज्ञान भी देता हूँ, तुम किसी भी धर्म शास्त्र पर आस्था रखते हो किन्तु कहीं न कही तुम्हारी बुद्धि की परीक्षा हेतु अनुचित तथ्य उसमे डाले है ताकि तुम अपनी बुद्धि का उपयोग कितना करते हो ये मैं जान सकु, क्या तुम आँख बन्द कर मुझपे यकीन करते है तभी धर्म शास्त्रो में उपस्तिथ सभी बाते तुम्हे ठीक लगती है किन्तु वास्तिविक जगत के आधार पर देखजाये तो उचित नही है।
हे मनुष्यों मैं तुम्हारी बुद्धि की परीक्षा इसलिये लेता हूँ और इसलिये धर्मशास्त्र में भी कुछ अनुचित तथ्य इसलिए जोड़े ताकि तुम गलत सही में भेद कर सको, जो अनुचित व् जीव मात्र को नुक्सान पहुचने वाला तथ्य है उसे अपने व्यवहार में न लाओ।
हे मनुष्यों आँख बन्द कर मुझपे विश्वाश मत करो, और इस कारण ही वो तत्व धर्म शास्त्र में जोड़े है हर वो धर्म शास्त्र जिसे तुम मानते और विश्वास करते हो, ऐसा इसलिये ताकी कोई कुटिल शैतान का उपासक तुम्हे बरगला न सके, कोई ईश्वर की कही बातें तुम्हे बता अनुचित व् अनेतिक कार्यो में न लगा दे, मेरे नाम से अनेक प्रकार के प्रलोभन तुम्हे दे कर मानवता की हानि हेतु कार्यो में न लगा दे और तुम आँखे बन्द कर बस उसी की बातो में आते जाओ अपनी बुद्धि का उपयोग ही न करो।
हे मनुष्यों इसीलिए तुम्हे दुःख-सुख की अनुभूति करता हूँ ताकि तुम मुझ पर कितना विश्वाश रखते हो, अगर कोई बुराई का रास्ता अपनाने वाला शैतान का उपासक तुम्हे बरगलाये तो उसके रास्ते पर चलोगे या जो मैंने तुम्हे तुम्हारी बुद्धि के अनुसार गलत सही का निर्णय लेने का अधिकार दिया है उस पर चलोगे।
हे मनुष्यों मेरे लिखे सभी धर्म शास्त्र का सम्मान करो उन पर चलो भी किन्तु जो तथ्य जीव मात्र के अहित के हो तो उन्हें जीवन में न अपनाये, ऐसा तुम करना नही छोड़ोगे तो मेरी कृपा नही अंत में कोप को ही पाओगे, तुम कितनी भक्ति कर लो मेरी किन्तु अंत में शैतान के ही उपासक माने जाओगे और कठोर दंड के भागी बनोगे।"

कल्याण हो

Tuesday 18 April 2017

कविता

"ए दिल बता मुझे तू कहाँ है
महफ़िल में बता मुझे तू वहां है
ढूंडा तुझे बहुत इन नजारो में
आवाज़ दे बता मुझे तू यहाँ है

ऐ दिल न सता मुझे तू जहां है
न मोड़ मुँह बता मुझे तू कहाँ है
न और रुला मुझे न तड़पा ऐसे
दे तू अपना पता मुझे तू कहाँ है"

कविता

अपनी अधूरी कहानी याद आती है
हर पल बात वही पुरानी याद आती है

तेरा मुस्कुराना मेरे करीब यूँ आना
पल पल तेरी हर वो रवानी याद आती है

कहते है लोग जुदा तू मुझसे हो गया
जो संग जी तेरे वो ज़िंदगानी याद आती है

भले न हो तु आज दुनिया की महफ़िल में
अपनी मोहब्बत की ये निशानी याद आती है

आज भले है अश्क इन आँखों में तेरे बिन
'मीठी-ख़ुशी' की हर नादानी याद आती है

जिये हैं जो ये लम्हें हस कर हमने साथ
साथ तुम्हारे की हर शैतानी याद आती है

अपनी अधूरी कहानी याद आती है
हर पल बात वही पुरानी याद आती है-2

Sunday 16 April 2017

भजन-जीवन की नेया

"जीवन की नेया पार लगाओ प्रभु
भव-सागर से पार लगाओ प्रभु

भटकता रहा हूँ बिन मन्ज़िल के
जगत में है न मेरा कोई ठिकाना-२

आकर मुझको गले लगाओ प्रभु
और न मुझको तुम सताओ प्रभु

जीवन की नेया.................प्रभु

जीवन है मेरा कितना अधूरा
अँधेरे ने इसको है आज घेरा-२

थाम लो हाथ ले चलो साथ मेरे प्रभु
न छोड़ो तन्हा अपना लो मुझे तुम प्रभु

माना न भक्ति है न है धर्म की शक्ति
पापी हूँ मैं पाप ही बस करता रहा हूँ -२

खुदको दूर तुझसे मैं करता रहा हूँ
मर मर के यूँ तो मैं जीता रहा हूँ

अब न दूर मुझसे और न रहो तुम
आ कर मुझे तुम अपनाओ  प्रभु

भला हूँ बुरा हूँ तेरा ही बालक हूँ
मझधार से निकाल दिलसे लगाओ प्रभु

जीवन की नेया.......................प्रभु

वचन न तेरा कभी झूठा बने
आकर हृदय में बस जाओ प्रभु

अकेला रहा हूँ इन रास्तो पर मैं भी कभी
साथी बन कर साथ मेरे तुम भी चलो कभी-२

जीवन की नेया पार लगाओ प्रभु
भव-सागर से पार लगाओ प्रभु-२"








ईश्वर वाणी- मैं सदा सबके साथ हूँ, २०४

ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यो यद्धपि तुमने सुना एवं पड़ा है की भगवन श्री कृष्ण की हज़ारो पत्निया थI तथा प्रत्येक के साथ वह रहा करते थे।

किंतु इस लीला का भाव यही है भगवान अथवा ईश्वर अथवा परमात्मा जगत में हर किसी के साथ है। देश, काल, परिस्तिथि के अनुसार मेरा रूप रंग आकर भाषा वेशभूषा रीती रिवाज़ भले बदल लू किंतु मूल तत्व वो आदी शक्ति सदा सभी के साथ हूँ ।

हे मनुष्यों तुम मुझे जिस नाम रूप से मुझे पुकारोगे उसी स्वरुप में मैं तुम्हारे समक्ष उपस्तिथ रहूँगा। श्री कृष्ण के हज़ारो रानियों के साथ रहने का एक भाव यह भी है की मैं किसी के साथ भेद भाव नही करता, जो निःस्वार्थ भक्ति से मुझे पाने की लालसा करता है मैं उसके साथ होता हूँ किंतु उसके अनेक जीवन के कर्म ही ये तय करते है की कौन मुझे कितना प्राप्त करता है।

हे मनुष्यों तुम्हारे भौतिक माता-पिता तुम्हारे भौतिक शरीर के आधार पर ही तुमसे सम्बन्ध रखते है, उनके लिये पिछली पीढ़ियों से मिली अनेक मान्यता जो स्वम मानव द्वारा निर्मित है वो ज़िम्मेदार है, अचरज और शैतान का प्रभाव इतना है की मनुष्य इन सब मान्यताओ से बाहर ही नही आना चाहता सब जानते हुये भी, और इस प्रकार मानव अपनी संतान के साथ भी केवल भौतिक देह के आधार पर प्रेम व् अपनत्व का भाव रखता है।

किंतु मैं परमेश्वर प्रत्येक जीव को उसकी भौतिकता नही अपितु आत्मा एवं कर्म के आधार पर व्यवहार रखता हूँ, मेरे लिये भौतिक देह केवल एक वस्त्र के समान है जो कर्मोनुसार बदलते रहते है।

हे मनुष्यों मेरा प्रेम सभी जीवो पर सदा ही एक समान रहता है, मेरे सभी स्वरुप तुम्हें यही दीक्षा देते हैं"


कल्याण हो

Saturday 8 April 2017

चंद अलफाज

"ये चेहरे पे तेरे जो इतना नूर है
शायद तभी तू इतना मशहूर है
है मासूम सी अदा कितनी प्यारी
मोहब्बत का ही ये असर हुज़ूर है"
ये लाइन्स Bossy Boss Mishra के लिये





"खून हिन्दू का बहे या मुस्लमान का
जो बेगुनाह पड़ा है ज़मी पर आज ऐसे
ये शख्स तो है बस मेरे हिंदुस्तान का"

कविता-मैं भी जीना चाहती थी


मैं भी जीना चाहती थी सब की तरह
'ख़ुशी' के पल चाहती थी सब की तरह

पर ज़िन्दगी से ठोकरे मुझे मिलती रही
चलना मैं भी चाहती थी सब की तरह

ख्वाब थे जाने कितने ही इन आँखों में
पूरा करना चाहती थी उन्हें सब की तरह

बेमान इश्क भी निकला किस्मत में मेरे
पाना उसे बस चाहती थी सब की तरह

आसमान में पंक्षी देखे ऐसे यु उड़ते हुए
मैं भी तो उड़ना चाहती थी सब की तरह

मीठे पल हँसी ज़िन्दगी के दिलने चाहे थे
'मीठी-ख़ुशी' चाहती थी सब की तरह

मैं भी जीना चाहती थी सब की तरह
'ख़ुशी' के पल चाहती थी सब की तरह
--
Thanks and Regards
*****Archu*****

Saturday 1 April 2017

कविता

"इंसान हो तुम इंसान बन कर रहा करो
जख्म न यूँही किसी को तुम दिया करो

है दिल धड़कता एक सीने में तुम्हारे भी
दूसरे की धड़कन न तुम बन्द किया करो

न बहाओ लहू किसी का न बहने दो
इंसान हो इंसानियत को न खोया करो

न बनाओ इस दिल को इतना पत्थर
थोड़ी लाज इंसानियत की किया करो

दिखते नही अश्क किसी की आखो के
मौत पर तो किसी की तुम रोया करो

मार रहा इंसान ही इंसान को इस कदर
प्रेम का पाठ निरीहों से तुम सीखा करो

जगत में उड़ता देखो मानवता का उपहास
ज़िन्दगी की सीख तुम निरीहों से लिया करो

प्रेम ही जीवन है ये न भूलो तुम आज ये बात
इंसान हो इंसानियत का तुम बस मान करो

इंसान हो तुम इंसान बन कर रहा करो
जख्म न यूँही किसी को तुम दिया करो-२"

मुक्तक

"मिलकर आओ, हम आज कुछ ऐसा जहाँ बनाये
मिलकर सभी, इन निरीहों का जीवन अब बचाये
जिये खुद भी, और उन्हें जीवन का अधिकार दे
बने धरती स्वर्ग सबके लिये, चलो शाकाहार अपनाये''