Saturday 8 April 2017

कविता-मैं भी जीना चाहती थी


मैं भी जीना चाहती थी सब की तरह
'ख़ुशी' के पल चाहती थी सब की तरह

पर ज़िन्दगी से ठोकरे मुझे मिलती रही
चलना मैं भी चाहती थी सब की तरह

ख्वाब थे जाने कितने ही इन आँखों में
पूरा करना चाहती थी उन्हें सब की तरह

बेमान इश्क भी निकला किस्मत में मेरे
पाना उसे बस चाहती थी सब की तरह

आसमान में पंक्षी देखे ऐसे यु उड़ते हुए
मैं भी तो उड़ना चाहती थी सब की तरह

मीठे पल हँसी ज़िन्दगी के दिलने चाहे थे
'मीठी-ख़ुशी' चाहती थी सब की तरह

मैं भी जीना चाहती थी सब की तरह
'ख़ुशी' के पल चाहती थी सब की तरह
--
Thanks and Regards
*****Archu*****

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