Saturday 22 April 2017

ईश्वर वाणी-२०५, बुद्धि परीक्षा


ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यु तो मैं कभी किसी जीव को गलत अथवा असत्य का ज्ञान नही देता, सदा सभी को मानव धर्म की ही दीक्षा देता हूँ।
किन्तु कभी कभी तुम्हारी बुद्धि परीक्षा हेतु तुम्हे गलत ज्ञान भी देता हूँ, तुम किसी भी धर्म शास्त्र पर आस्था रखते हो किन्तु कहीं न कही तुम्हारी बुद्धि की परीक्षा हेतु अनुचित तथ्य उसमे डाले है ताकि तुम अपनी बुद्धि का उपयोग कितना करते हो ये मैं जान सकु, क्या तुम आँख बन्द कर मुझपे यकीन करते है तभी धर्म शास्त्रो में उपस्तिथ सभी बाते तुम्हे ठीक लगती है किन्तु वास्तिविक जगत के आधार पर देखजाये तो उचित नही है।
हे मनुष्यों मैं तुम्हारी बुद्धि की परीक्षा इसलिये लेता हूँ और इसलिये धर्मशास्त्र में भी कुछ अनुचित तथ्य इसलिए जोड़े ताकि तुम गलत सही में भेद कर सको, जो अनुचित व् जीव मात्र को नुक्सान पहुचने वाला तथ्य है उसे अपने व्यवहार में न लाओ।
हे मनुष्यों आँख बन्द कर मुझपे विश्वाश मत करो, और इस कारण ही वो तत्व धर्म शास्त्र में जोड़े है हर वो धर्म शास्त्र जिसे तुम मानते और विश्वास करते हो, ऐसा इसलिये ताकी कोई कुटिल शैतान का उपासक तुम्हे बरगला न सके, कोई ईश्वर की कही बातें तुम्हे बता अनुचित व् अनेतिक कार्यो में न लगा दे, मेरे नाम से अनेक प्रकार के प्रलोभन तुम्हे दे कर मानवता की हानि हेतु कार्यो में न लगा दे और तुम आँखे बन्द कर बस उसी की बातो में आते जाओ अपनी बुद्धि का उपयोग ही न करो।
हे मनुष्यों इसीलिए तुम्हे दुःख-सुख की अनुभूति करता हूँ ताकि तुम मुझ पर कितना विश्वाश रखते हो, अगर कोई बुराई का रास्ता अपनाने वाला शैतान का उपासक तुम्हे बरगलाये तो उसके रास्ते पर चलोगे या जो मैंने तुम्हे तुम्हारी बुद्धि के अनुसार गलत सही का निर्णय लेने का अधिकार दिया है उस पर चलोगे।
हे मनुष्यों मेरे लिखे सभी धर्म शास्त्र का सम्मान करो उन पर चलो भी किन्तु जो तथ्य जीव मात्र के अहित के हो तो उन्हें जीवन में न अपनाये, ऐसा तुम करना नही छोड़ोगे तो मेरी कृपा नही अंत में कोप को ही पाओगे, तुम कितनी भक्ति कर लो मेरी किन्तु अंत में शैतान के ही उपासक माने जाओगे और कठोर दंड के भागी बनोगे।"

कल्याण हो

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