Saturday 26 December 2020

मेरी कविता-दर्द भरी

 अपने ही ये साये हमें डराने लगें है

खुद से ही अब हम दूर जाने लगे हैं
हर खवाइश खत्म हो चुकी ज़िंदगी की
अब तो मौत को करीब बुलाने लगे हैं


ये काले साये अब लुभाने लगे हैं
देखो इनसे हम दिल लगाने लगे हैं
झूठी और फरेबी लगती है दुनिया 
साये ये इस तरह मुझे अपनाने लगे हैं

देखो अब दुनिया से हम दूर जाने लगे हैं
नई दुनियां के लोग पुराने बुलाने लगे हैं
बहुत सुकूँ और "मीठी-खुशी" मिलती वहाँ
तभी गीत ये नए उनके हम गाने लगे हैं

दर्द भरी शायरी

 टूट कर ऐसे बिखरे की

सबसे जीते पर खुदसे हार गए हम

दर्द भरी शायरी


 

दर्द भरी शायरी



 

 

Monday 14 December 2020

जल्द मिलेंगे मम

 ये जिंदगी तो बेवफ़ा है इससे किस की यारी है

आज तू चिता पर सोया है कल मेरी बारी है

Sunday 13 December 2020

Miss you mum

 "तुम बिन जिया नही जाता 

जुदाई का ये दर्द पिया नही जाता

आजाओ बाहों मेंफ़िर भरलो माँ मुझे

तुझसे दूर अब और रहा नही जाता"

 "Bahut ummide thi tumse mujhe ya fir jrurt se jyada hi thi

Achha hua jo bata diya ummido se duniya kayam jrur hai

Pr ye ummide kabhi kisi se rakhni nhi chahiye

Kyonki jab koi inhe todta hai to insan zinda lash bn jata hai"


"जीने की ख्वाइश चली गयी मेरी जबसे हाथ क्या तूने छोड़ा

अब ज़िंदा लाश हूँ मैं काश तू देख सकती मुड़कर मुझे तो"

Meri shayri


 

Bahut ummide thi tumse mujhe ya fir jrurt se jyada hi thi
Achha hua jo bata diya ummido se duniya kayam jrur hai
Pr ye ummide kabhi kisi se rakhni nhi chahiye
Kyonki jab koi inhe todta hai to insan zinda lash bn jata hai
Pr dukh nhi mujhe meri kisi ummid tere todne se, 
Dukh to ye hai itna wakt kyon laga diya apni asli surat dikhane me


Wednesday 25 November 2020

ईश्वर वाणी- 298 ,आत्मा, सूक्ष्म शरीर की यात्रा

 ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यधपि तुमने आत्मा व सूक्ष्म शरीर, जीवात्मा के विषय मे बहुत कुछ सुना होगा, किँतु आज तुम्हें बताता हूँ आत्मा और सूक्ष्म शरीर कब अलग होते हैं और कब और कहाँ एक होते हैं।


हे मनुष्यों जब भी किसी जीव की मृत्यु होती है तब उसकी आत्मा उसके भौतिक देह को त्याग कर सूक्ष्म शरीर के साथ देह त्यागती है, आत्मा का स्थान भौतिक देह में हृदय के समीप होता है और वही से वो सम्पूर्ण भैतिक देह को ऊर्जा दे कर जीवित रखती है, किँतु जब उसका देह त्यागने का समय आ जाता है तब वो ऊर्जा भौतिक देह में भेजना बन्द कर देती है जिससे जीव के अंग कार्य करना बंद कर देते हैं और जीव को मृत घोषित कर दिया जाता है।

हे मनुष्यों जिन जीवों की मृत्यु अपने निर्धारित समय पर होती है उन जीवो की आत्मा अर्थात जीवन ऊर्जा जिसका कोई रूप व आकर नही होता, न ही उसके अंदर भावनाये होती है न दर्द न खुशी व दुःख के भाव होते हैं, यही जीवन ऊर्जा एक देह को त्याग कर नई देह धारण कर लेती है, किँतु उसका सूक्ष्म शरीर जो भले अब जीवन ऊर्जाहीन हो अपनी पुरानी यादों और रिश्तों के मोह, धन दौलत के मोह व अन्य तरह की मोह माया में अब भी फॅसा रहता है और ईश्वर में ध्यान नही लगता, इसलिए उसको उसके कर्मो के अनुसार नरक भोगना पड़ता है।

जो व्यक्ति सत्कर्म करते हैं, ईश्वर में ध्यान लगाते हैं, प्रार्थना व पूजा करते हैं तथा जो मोह माया से दूर रहते हैं भले वो गृहस्थ ही क्यों न हो वही व्यक्ति अपने सूक्ष्म शरीर व उसमे उपस्थित प्राणशक्ति ऊर्जा के साथ स्वर्ग व अन्य ईश्वरीय लोक को प्राप्त होते हैं, यही वो आत्माएं होती है जो फ़िर जब दोबारा मृत्यु लोक में मानव रूप में जन्म लेती है तो कई बार इन्हें कई सांसारिक कार्यो की पूर्ति हेतु विभाजित कर दो भागों में बाट कर भेजा जाता है ताकि सांसारिक कार्यो की वो पूर्ति करें, इन आत्माओ का विशेष आध्यात्मिक अथवा सांसारिक कार्य होता है जिसे करने हेतु ही ये जन्म लेती है, ये कई युगों में ही धरती पर जन्म लेती है, इन्हें ही अंग्रेजी में "twinflame" कहा जाता है अर्थात दो जुड़वा आत्माएं।

हे मनुष्यों जैसे तुमने सुना व देखा होगा यदि तुम किसी मृत परिजन की आत्मा को देखते हो तो वो उसी रूप में दिखती है जैसे उसकी मृत्यु  होती है ऐसा क्यों होता है सोचा है??

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उसका सूक्ष्म शरीर अथवा उसमे विद्यमान जीवन ऊर्जा (यदि समय से पूर्व मृत्यु हुई है तो) अपने अतीत में ही जीती है, और अतीत के मोह के कारण न आत्मा भौतिक देह को त्याग कर आगे बढ़ना चाहती है और न भौतिक देह उससे अलग होना चाहता है इसिलए ये आत्माये पृथ्वी पर घूमती है जिन्हें 'भूत-प्रेत' आदि नाम से लोग जानते हैं।

किंतु यदि प्राणशक्ति ने सूक्ष्म देह का त्याग कर दिया है चाहे मृत व्यक्ति की आखिरी इच्छा पूर्ण करके या अन्य किसी विधि से यदि प्राणशक्ति इस सूक्ष्म देह को त्यागती है तो फिर इस देह को भी कर्मानुसार नरक व ईश्वरीय लोक का सुख प्राप्त होने के बाद दूसरी प्राणऊर्जा धारण कर अन्य जन्म की प्राप्ति होती है, और यही चक्र जीवन-मृत्यु का चलता रहता है।

हे मनुष्यों यदि बात की जाए तो आत्मा का आकार सिर्फ उक्त व्यक्ति के अँगूठे के समान ही होता है, किन्तु यदि वो पशु, पक्षी, पेड़, पौधा है तब भी उसकी आत्मा आकर महज एक अनाज के दाने के बराबर ही होता है किँतु सूक्ष्म शरीर का आकार मृत जीव के जितना ही होता और यही उक्त जीव को एक पारदर्शी वस्त्र के समान ढके रहता है जब तक जीव जीवित है, पाँच तत्वों से ये भौतिक शरीर बनता है, चार तत्वों से सूक्ष्म शरीर किँतु एक तत्व से प्राणऊर्जा अर्थात आत्मा बनती है।"
हे मनुष्यों उम्मीद है तुम्हें निम्न बातें समझ आयी होंगी।
कल्याण हो

Monday 9 November 2020

सम्भलना भूल गए-शायरी

 

"सबको हँसाते-हँसाते हँसना हम भूल गए

ग़मो में ऐसे डूबे की अब रोना हम भूल गए
खुद ही गिरते फ़िर खुद ही उठ खड़े हो जाते
संभालते-संभालते सम्भलना ही हम भूल गए"

मोहब्बत तो सच्ची



"मोहब्बत तो हर बार सच्ची ही की थी मैंने

लोग ही झूठे निकले तो कसूर किसका था"




Saturday 7 November 2020

सैड शायरी



 1-ए ज़िंदगी तू मुझे सता बहुत रही है


पल पल तू मुझे क्यों यु रुला रही है

अब नही रही मोहब्बत तुझे शायद

ज़ख्म दे तू खड़ी बहुत मुस्कुरा रही है


2-"लोग कहते ए ज़िंदगी तुझमे अब वो बात नही है
शायद अब मुझे तुझसे मोहब्बत नही है"


3-"कहने को ज़माने से, अब सिर्फ अपनी कहानी है
टूटा है दिल ये मेरा, और आँखों  सिर्फ पानी है
रोती अश्क बहाती 'मीठी-खुशी' के लिए क्यों
दर्द छिपा मुस्कुरा, क्योंकि यही तेरी ज़िंदगानी है

न दिखा ज़ख्म को अपने, तू तो दर्द की रानी है
 न कर उम्मीद किसीसे, आखिर इश्क की तू दानी है
उठ खड़ी हो 'मीठी-खुशी' के साथ और करके दिखा
है तेरी ही ये जिंदगी, जिसकी सिर्फ तू महारानी है

बढ़ आगे भुला सब, ज़िन्दगी है तेरी न कि ये बेगानी है
आखिर अश्क बहाती तू क्यों, करती फिर ये नादानी है
ये तो ज़माने की रीत है पगली 'मीठी' इश्क में अब
'खुशी' के बदले ,अश्को की लड़ी ही यहाँ सबको बहानी है"

Thursday 5 November 2020

Romantic shayri

 दूर तुम से हम जाये  कैसे

तुम को हम भुलाये कैसे
 रूह में बस गए हो तुम हमारी
 हाल-ए-दिल ये बताये कैसे

Wednesday 4 November 2020

सैड शायरी-खुदसे हार गई मीठी

 आँखों मे नमी और दिलमें दर्द है


ये ज़माना देखो कितना हुआ बेदर्द है


सबसे जीती खुदसे हार गई 'मीठी'


'खुशी' की बात कह झूठे मिले हमदर्द है

सैड शायरों-कब कौन सी बात

 न जाने कब कौन सी बात अधूरी रह जाये

न  जाने  किस रात की  सुबह  न आये

जी लूँ तुझे  जी भर  कर ए मेरी ज़िंदगी

शायद  फ़िर तू  मुझे कभी  मिल  न पाए

Tuesday 3 November 2020

मेरी रचना (सैड शायरी)

 ए ज़िंदगी तू कितनी खूबसूरत ह

तेरे होते न किसी की जरूरत है

मिलते हैं रोज़ मुझे अपनी ज़िंदगी कहने वाले
पर बता है मुझे नियत उनकी कितनी बदसूरत है

सैड शायरी

 "भेड़ियों की भीड़ में ये कारनामा करने चले थे

हथेली पर दिल रख फिर मोहब्बत करने लगे थे"

सैड शायरी

 बहुत धोखा देती है किस्मत तू हमें

पर अब मीठी-खुशी से देगी धोखा

और तू यू बस देखती रह जायेगी

सैड शायरी-क्या जुनून झाया

 लिखते लिखते मोहब्बत की कविता

जाने क्या जुनून झाया तुझपे ए मीठी

खुशी की चाहत में ये क्या खता कर दी

शायरों वाली मोहब्बत फ़िर से कर ली

सैड शायरी

 खता उनकी नही खता तो हमारी है

उन्होंने तो सच कहा एक दिन रुसवा कर देंगे

हमने ही मज़ाक समझा तो कसूर हमारा है

सैड शायरी

 ऐ ज़िन्दगी में फ़िर कही बहक न जाऊँ

इस हालात में फ़िर कुछ कर न जाऊँ
एतबार नही रहा अब तुझपर जरा भी
ए ज़िन्दगी तुझसे अब दूर न हों जाऊँ

मेरी कविता

 मेरी कविता



देखो टूट कर कैसे बिखर गए हम


कुछ दूर चले देखे कैसे गिर गए हम


मोहब्बत ढूढ़ने चले थे फिरसे यहाँ


सबकुछ लुटा देखो तन्हा हो गए हम



दे खुशी जहाँ को देखो रोते रह गए हम


अश्क पोछते झूठे मुस्कुराते रह गए हम


शायद यही है तकदीर में तेरी ए मीठी


खुशी की चाहत में हर दर्द सह गए हम

ईश्वर वाणी-296 मेरी स्तुति

 ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों तुम अपने मत, पूजा विधि-पद्धति व मेरे नामो को अनेक प्रकार से लेने को ले कर लड़ते रहते हो किंतु तुम जानकर भी नही जानना चाहते कि कोई चाहे किसी भी नाम और पूजा विधि का प्रयोग करे किंतु ये पूजा और इसका पूण्य मुझतक ही पहुँचती है।


प्राचीन खत्म हुई व वर्तमान में जो है अतित्व में संस्कृतिया इनमे मेरी पूजा, स्तुति, आराधना, साधना व मुझे जानने हेतु काफी लंबी चौड़ी पूजा विधि व अनेक धर्मशास्त्र है जिनका अध्ययन सम्भव नही साथ ही यदि उनका ठीक से अध्ययन न किया जाए तो काफी वाक्य असमंजस की स्थिति उतपन्न करते हैं,, ऐसे में धीरे धीरे मानव नास्तिक होने लगा जिसके कारण आवश्यकता हुई एक सरल पूजा विधि, एक धार्मिक ग्रंथ व एक ईश्वर में विश्वास की जो एक है सबका है और इसी कारण प्राचीन संस्कृतियों कमियों को दूर कर नवीन मतो व धर्मों का जन्म हुआ ताकि संसार मे प्यार व भ्रातत्व की भावना के साथ नास्तिक कोई न हो, सबकी मुझमे आस्था हो।"

कल्याण हो

ईश्वर वाणी-295आखिर आकाशीय उल्का पिंड कौन है, कहाँ से आते हैं

 ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों तुमने आकाश में बहते ये अनेक उल्का लिंड अवश्य देखे होंगे, किंतु ये कौन है कहाँ से आते हैं तुमको आज बताता हूँ।


पृथ्वी पर बहने वाली गंगा नदी व उसकी सहायक पवित्र नदियों में विसर्जित अस्थियां ही आकाशीय उल्का पिंड का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, वैतरणी नदी ही गंगा नदी है और इसमें विसर्जित अस्थियां व इसकी सहायक नदियों में विसर्जित अस्थियां ही आकाशीय उल्कापिंड का एक भाग है।

हे मनुष्यों जब धरती की रचना भी नही हुई थी यही उल्का पिंड इस नदी में बहते थे जिनसे अनेक ग्रह नक्षत्रों का निर्माण हुआ, ये सभी प्राचीन अस्थियां ही थी जो सृष्टि निर्माण से पूर्व ये यही बहती रही है गंगा अर्थात वैतरणी के सहारे और लोक परलोक में।"

कल्याण हो

ईश्वर वाणी-294 नवीन व पुरानी आत्मा

 

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यो यद्धपि तुमने नवीन व पुरानी आत्माओ के विषय में सुना होगा, यदि नही सुना तो आज तुम्हे बताता हूँ कि सृष्टि में दो प्रकार की आत्माये होती है जिनमे से कुछ नवीन तो कुछ प्राचीन होती हैं, किँतु ये कोन सी आत्माये होती है जो नवीन अथवा प्राचीन कहलाती हैं ।

हे मनुष्यों जो आत्मा अपना भौतिक शरीर त्याग के जल्दी ही नया भौतिक शरीर ले लेती है वो पुरानी आत्मा कहलाती है, ऐसी आत्मा कई योनियों में जन्म ले चुकी होती है।
वही जो आत्मा अपने कर्मानुसार स्वर्ग अथवा अपने इष्ट देव अथवा अन्य देवलोक में स्थान प्राप्त कर बाद में पुनः जन्म लेती है वो नवीन आत्मा कहलाती है हालांकि उसने पहले भी कई बार जन्म लिया होता है धरती पर लेकिन उसका स्वर्ग अथवा इष्ट देव के लोक अथवा अन्य देवलोक में स्थान प्राप्त कर पुनः जन्म लेना उसके पिछले जन्मों की जन्म संख्या शून्य कर एक नवीन आत्मा बनाता है।
हे मनुष्यों आशा है तुम्हे अब नवीन व प्राचीन आत्मा में भेद पता चल गया होगा।"

कल्याण हो

Monday 19 October 2020

ईश्वर वाणी-293 आखिर कौन है परमात्मा

 ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि मैं ईश्वर हूँ, सृष्टि का असली मालिक हूँ किँतु इसकी रचना और संचालन हेतु मैंने ही विभिन्न रूपों का निर्माण किया। हालाकिं इसके विषय मे पहले भी बता चुका हूँ किँतु कुछ संछिप्त जानकारी आज तुमको देता हूँ।

मैंने ही संसार में 'परमात्मा' आर्थात संसार का प्रथम तत्व को उतपन्न किया, परमात्मा ही ऊर्जा है, शक्ति है और उसी के कारण अनेक देव, दानव व मानवो का निर्माण हुआ, अनेक लोको का निर्माण भी इसी ऊर्जा के निम्न माध्यमो द्वारा ही हुआ।

संसार मे जितने भी ग्रह नक्षत्र और भैतिक देह धारी जीव है उनमें ऊर्जा रूप में परमात्मा एक अंश उनकी आत्मा रहती है जो उनके भौतिक शरीर को वैसे ही चलाती और जीवन देती है जैसे सम्पूर्ण श्रष्टि को परमात्मा ऊर्जा देते हैं ।

हे मनुष्यों यद्धपि प्रलय काल के विषय मे तुमने सुना होगा, निःसंदेह ये सारी श्रष्टि व समस्त लोक जिसमे त्रि लोक भी शामिल है नष्ट हो जायँगे और परमात्मा में मिल जायँगे। हे मनुष्यों वो परमात्मा में इसलिए मिल जायँगे क्योंकि उन्हें फिरसे निश्चित समय बाद जन्म लेना होता है, यद्धपि परमात्मा को भी यदि मे चाहू तो खुद में विलीन कर लूं किंतु मैं ऐसा नहीं करता क्योंकि ऐसा करने से संसार मे फिरसे सिर्फ शून्य रह जायेगा इसलिए मैं परमात्मा अर्थात मेरे द्वारा निर्मित प्रथम तत्व को मैं नष्ट नही करता ताकि निश्चित समय बाद संसार की उत्पत्ति युही होती रहे।

हे मनुष्यों इस श्रष्टि के अतिरिक्त जो 7 अन्य श्रिष्टिया है उनको बनाने और ध्वस्त करने हेतु भी परमात्मा को ही मैंने अधिकार दिए हैं और दुबारा वही पुनःनिर्माण करते हैं।

हे मनुष्यों तुम मेरा रूप नही देख सकते न जान सकते इसलिए मैंने परमात्मा को बनाया और उसने अनेक रूपो को जन्म दिया और तुम्हे जन्म दिया और तुमने परमात्मा को अपने देश, काल व परिस्थिति के अनुरूप नाम दे दिया, किँतु तुम कभी वास्तविक रूप से मुझे इस भौतिक स्वरूप के माध्यम से नही जान सकते, यदि मुझे जानना है तो मेरे समस्त रूपो को समझो, खुद को समझो, तुमने यदि खुदको समझ लिया, मेरे सभी भौतिक अभौतिक स्वरूप को समझ लिया तो निश्चित ही मुझे जान लोगे और हर तरह के वहम से खुद को दूर रखोगे।"

कल्याण हो

Saturday 17 October 2020

ईश्वर वाणी-292 आध्यात्म में अंक 7 का महत्व

 ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यों यद्धपि तुमने मेरे विषय में सुना है, पड़ा है किँतु जानते भी हो कि आखिर में रहता कहाँ हूँ, आखिर मेरा अस्तित्व क्या है हालांकि इस विषय मे पहले भी बता चुका हूँ किंतु आज फिर तुम्हें बताता हूँ।

हे मनुष्यों में निराकार हूँ, मै एक महासगर की भांति हूँ जिसमे अनेक नदिया समाई होती है वैसे ही मुझमे समस्त श्रष्टि व उनके जीव व समस्त जीवात्मा व उनकी मान्यता समाई हुई है।

मैं ही शुरुआत और अंत हूँ, एक ऊर्जा रूप में निरन्तर कार्य करता रहता हूँ किंतु श्रष्टि के निर्माण और संचालन हेतु ही मैंने विशेष कार्य करने के लिए त्रि-देव व देवियो की रचना की, उन्होंने देवता, दानव, मानव, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, अप्सराओ, इंद्र, सप्त ऋषियों, ग्रह नक्षत्र, विभन्न लोकों की रचनाएं की, व प्रत्येक को उसके कार्य सौंपे।

हे मनुष्यों यद्धपि ये पूरी श्रष्टि मुझसे ही संचालित है किँतु मैंने अपने निम्न रूपों को इसके संचालन का कार्य सौंपा है, और मेरे ही ये रूप निश्चित समय बाद अपने अपने लोकों के साथ मुझमे ही विलीन हो जाते हैं।
हे मनुष्यों यद्धपि मैं चाहता तो स्वयं ही समस्त श्रष्टि व जीवों की उत्पत्ति व समाज की रचना कर सकता था किँतु मैंने ऐसा नही किया क्योंकि यदि ऐसा करता तो आने वाले युगों में मानव समुदाय का विश्वास मुझसे उठ जाता यद्धपि सतयुग एक ऐसा युग था इस धरती पर जब मेरे अस्तित्व पर कभी किसी जीव ने शंका नही की, और इसी युग से सभ्यताओं के निर्माण शुरू हुआ किंतु मानव बुद्धि परिवर्तन में यकीन रखती है और उसको साक्ष्य चाहिए, इन्ही साक्ष्यों के लिए विभिन्न वेद-पुराण, ग्रंथ व उनकी कथाओ का निर्माण व उन कथाओ को देश, काल, परिस्थितियों अनुसार मुझे सत्य करना पड़ा।

आज मनुष्य मुझे किसी विशेष नाम और रूप में बांधने का प्रयास करता है किंतु नादान नही जानता कि जो खुद सर्वव्यापक है वो किसी 1 नाम और रूप का मोहताज नही किंतु यदि तुम्हारी आस्था सत्य है तो मै अवश्य वो बन जाता हूँ।

अक्सर तुमने स्वर्ग के विषय मे सुना होगा, निम्न मान्यता के अनुसार ये कहा गया है कि मै स्वर्ग में रहता हूँ जो सातवे आसमाँ के बाद आता है, आज इस सत्य से पर्दा हटाता हूँ।

क्या है सातवे आसमां का चक्कर आखिर है क्या ये?/
स्वर्ग तक केवल वही मनुष्य पहुचता है जिसने अपने कर्म अच्छे रखे इस मृत्यु लोक में, इसलिए मेरे अंशो ने जब धरती के विभिन्न स्थलों पर देश, काल, परिस्तिथि अनुसार जन्म लिया तो कहा जीवन एक बार ही मिलता है इसलिए इसको पाप कर्मों में न लगाओ बल्कि मेरी भक्ति में लगाओ, ऐसा इसलिए भी कहा क्योंकि मानव जीवन युगों में से जीवात्मा को मिलता है जिसको वो सांसारिक भोगो व स्वार्थ सिद्धि में बिता देता है फिर युगों तक भटकता रहता है निम्न योनियो मैं।

आज बताता हूँ सभी मान्यताओ में मान्य स्वर्ग आखिर है कहाँ??
7 लोक 

1- मृत्यु लोक
2- पाताल लोक
3-  यम लोक
4 -गंधर्व लोक
5 - यक्ष लोक
6 -पित्र लोक
7 - देव लोक

और फिर स्वर्ग। यद्धपि संसार मे 7 और 1 अंक बड़ा महत्व है।
ऐसे समझ सकतो को 
विवाह के फेरे 7
वचन             7
समंदर।          7
इंद्र धनुष के रंग 7
जन्म               7
लोक                7
सप्ताह के दिन    7
ऋषि।                7(सप्त ऋषि)

इस श्रष्टि के अतिरिक्त जो श्रष्टीय है वो भी 7 है साथ ही हर जीव अपने भौतिक स्वरूप में 7 बार ही जन्म लेता है।

अब बताता हूँ अंक 1 के विषय मे, ईश्वर अर्थात में 
1, मेरे जितने भी स्वरूप हुए देश काल परिस्थितियों के अनुरूप हुए वो भी 1 समय पर 1 ही हुए, मैं देता हूँ सबको 1 होने की शिक्षा, तुमसे क्या चाहता हूँ सर्फ 1 सच्ची  निष्ठा, मृत्यु उपरांत हर जीवात्मा सब भेद मिटा कर हो जाती है 1, इसलिए इस 1 अंक का बड़ा महत्व है।
निःसंदेह जो मनुष्य भले जीवनकाल में कितना पापी रहा है, किँतु मृत्यु के समय मेरा स्मरण करता है अथवा मेरे जिस रूप में निष्ठा रखता है उसको प्राप्त होता है किंतु फिर उसको उसके कर्म अनुसार जन्म लेना ही होता है उदाहरण- रावण, मेरा परम सेवक होने पर भी उसको राक्षस योनि में जन्म लेना पड़ा, इसी प्रकार हर जीवात्मा को जन्म तो लेना ही पड़ता है भले मेरे किसी भी रूप अथवा लोक की उसको प्राप्ति हो क्योंकि मेरे सभी रूप व लोक नाशवान है और अंत मे मुझमे ही वो विलीन हो जाते हैं अर्थात शून्य हो जाते हैं, क्योंकि भले शून्य का महत्व तुम न समझो पर शून्य खुद में 1 पूर्ण अंक है, शून्य ही शुरआत है शून्य ही अंत है क्योंकि शून्य मैं हूँ।


हे मनुष्यों आशा है कि तुम्हे मेरे दिव्य वचन व वाणी समझ आयी होंगी यदि जिन्हें नही आई उनपर मेरी कृपा नही हुई, इसलिए किसी अज्ञानी के लिए ये वाणिया नही है, जिनके लिए है उन्हें स्वयं प्राप्त होंगी।"

कल्याण हो
 


Friday 16 October 2020

ईश्वर वाणी-291, सबकुछ मैं ही हूँ

 ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि इस संसार में सबकुच मेरी ही इच्छा से होता है, मेरी इच्छा के बिना कुछ भी सम्भव नही है।

मैं ही सत्य हूँ मैं ही असत्य हूँ, मैं ही आज हूँ, मैं ही आने वाला व पिछला कल हूँ।

मैं ही तुम हूँ, मैं ही तुम्हारा मित्र, भाई, बहन, माता, पिता, दादा, दादी, नाना, नानी व सभी नातेदार हूँ, मैं ही तुम्हारा पड़ोसी व मैं ही तुम्हारा शत्रु भी हूँ।

मै ही पुण्य हूँ, मैं ही पाप हूँ, मैं ही दुराचारी रावण व राम भी मै ही हूँ।

हे मनुष्यों मैं ही समस्त जीवों में प्राणशक्ति रूप में जीवात्मा बन कर, तुम्हारी शक्ति बन कर तुम्हारे अंदर हूँ।
मैं ही पथभ्रष्ठ हूँ व मैं ही मोक्ष हूँ। तुम यदि मुझे देखना चाहते हो तो हर जीव व समस्त प्रकृति में मेरी मौजूदगी को देखो और महसूस करो, यदि तुम ऐसा करते हो तो निश्चित रूप से अज्ञान का अंधकार तुम्हारे भीतर से चला जायेगा किन्तु यदि नही जाता तो कोई बात नही क्योंकि मैं ही ज्ञान हूँ मैं ही अज्ञान भी हूँ, इसलिए जब तक मेरी इच्छा नही होगी तुम मेरे वास्तविक रूप को नही जान सकते और युगों तक अज्ञान के अंधकार में रह जन्म-मरण के चक्र में उलझे रहोगे क्योंकि सब कुछ मुझसे है, सबकुच मुझमे है और सबकुच मैं ही हूँ।"

कल्याण हो


ईश्वर वाणी-290 अकाल मृत्यु व स्वाभाविक मृत्यु में भेद

 ईश्वर वाणी- अकाल मृत्यु व स्वाभाविक मृत्यु में अंतर



ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि सुना और देखा है कई मृतक जीवों को, तुमने सुना भी होगा कि अगर कोई बालक या युवा जब उसकी मृत्यु होती है तो कहते हैं लोग की इसकी अकाल मृत्यु हुई है, शास्त्रों में भी अकाल मृत्यु के विषय मे लिखा है जहाँ वही ये भी लिखा है कि जन्म के समय से ही तय है कि किसकी मृत्यु कब और कैसे होगी फिर अकाल मृत्यु कैसे हुई क्योंकि सब कुछ तो पहले ही लिखा जा चुका है।



  किँतु आज तुम्हें बताता हूँ कि अकाल मृत्यु और स्वाभाविक मृत्यु में क्या भेद है, आखिर क्यों किसी की मृत्यु को अकाल कहा जाता है जबकि सबकुछ पहले से तय है।



  हे मनुष्यों ये आवश्यक नही की केवल किसी शिशु, बालक या युवा की मृत्यु हुई है तो केवल वही अकाल है, क्योंकि निश्चित समय से पहले हुई किसी की भी मृत्यु अकाल ही होती है यद्धपि तुम फिर कहोगे की अकाल कैसे हुई क्योंकि सबकुच पहले से ही तय था।



  हे मनुष्यों अकाल मृत्यु वो होती है जिसको समय रहते टाला जा सकता है, अर्थात कुछ न कुछ संकेत प्रकति के माध्यम से तुम्हें अवश्य मिलते हैं जिन्हें अगर तुमने समझा तो तुम किसी का जीवन बचा सकते हो जैसे-यदि कोई व्यक्ति बीमार है और इलाज नही करा रहा जबकि उसकी बीमारी ठीक होने वाली है कोई असाध्य रोग उसको नही है, किंतु वो अपना इलाज नही कराता और हर दिन उसकी दशा और खराब होती जाती है फिर एक दिन उसकी बीमारी असाध्य बन जाती है और फिर वही उसकी मौत की वजह बनती है, इस प्रकार की मृत्यु ही अकाल होती है।



  कोई व्यक्ति किसी की हत्या करने का प्रयास करता है और प्रहार करता है, घायल व्यक्ति को उपचार हेतु चिकित्सक के पास ले जाया जा सकता था जिससे उसके जीवन की रक्षा होती किँतु ऐसा नही हुआ तो ये हुई अकाल मृत्यु।



  किसी व्यक्ति के साथ कोई दुर्घटना घटी, व्यक्ति घायल हुए, ऐसे में उसको सही चिकित्सा मिले तो ठीक हो जाये पर लोग सिर्फ उसके मरने का तमाशा देखते हैं ऐसे मृत्यु अकाल कहलाती है।



  यदि कोई आत्महत्या, काला जादू, टोना-टोटका व नकारात्मक शक्तियों के माध्यम से किसी की हत्या करता है तो ऐसी मौत अकाल कहलाती है क्योंकि इन्हें सही समय पर टाला जा सकता था और मेरे द्वारा कुछ संकेत दिए भी जाते हैं कि इसकी अकाल मौत होने वाली है इसकी रक्षा करो पर लोग इस पर ध्यान नही देते।



इस प्रकार जिस भी तरह से मृत्यु हुई है जाना जा सकता है वो अकाल है या नही।



वही यदि स्वाभाविक मृत्यु होगी तो सबसे पहले उम्र आती है, यदि व्यक्ति की उमर काफी हो चुकी है तो देह का त्यागना स्वाभाविक है।



  वही यदि कोई गंभीर बीमारी है जो काफी समय से चल रही थी, इलाज़ के बाद भी तबियत न सुधर रही हो तो ये भी 1 स्वाभाविक मृत्यु होती है।



  वही यदि किसी की मृत्यु किसी के माध्यम से होना लिखा है और इसको टाला नही जा सकता तो कोई न कोई कारण ऐसे जरूर बनेंगे की व्यक्ति उपचार से पूर्व ही अर्थात बेहतर उपचार के बावजूद उसकी जान नही बच पायेगी।



किसी हादसे अथवा किसी के द्वारा हत्या होने अगर लिखा है तब भी कोई न कोई वजह ऐसी जरूर बनेंगी की हर तरह की कोशिश के बाद भी नही उसको बचा सकते, अर्थात उनकी मौत को टालने की लाख कोशिश करो पर नही उनकी जान बच सकती।



बहुत ही बारीक भेद है स्वाभाविक मृत्यु और अकाल मृत्यु का, किँतु यदि ये समझ लिया तो तुम्हे पता चल जाएगा कि उक्त व्यक्ति की मृत्यु किस प्रकार है फिर उसकी अगली यात्रा हेतु वैसे ही प्राथना करो जिससे उक्त व्यक्तिवकी आत्मा को शांति मिले"



कल्याण हो

Sunday 27 September 2020

पुत्री दिवस पर मेरी छोटी सी रचना

 Daughter's day pr meri likhi 1 chhoti c kavita..



"कितनी प्यारी कोमल कली होती हैं बेटिया


देखो कितनी हंसी मनचली होती हैं बेटिया


बन शहज़ादी राज़ करती ये दिलो पर सबके


सबकी दुलारी कितनी चुलबुली होती हैं बेटियां"


🙏🏻🙏🏻


Ap sabi girls k liye sath hi jinki betiya hai unke liye bhi..🙏🏻🙏🏻

Saturday 26 September 2020

रोमांटिक शायरी-दिलसे

 "आजा तेरी बाहों में ज़िन्दगी गुज़ार दूँ


हर इक पल तुझे इतना मै प्यार दूँ


रहे 'मीठी-खुशी' सदा ज़िंदगी मे तेरी


ऐ मेरे हमदम तेरे लिए खुदको मै वार दूँ "


🤗😇🤗😇

Friday 25 September 2020

ईश्वर वाणी-289 सकारात्मक सोच

 ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्य तुम्हारा अहंकार, तुम्हारी ईर्ष्या, कटु वचन ही तुम्हें इतना निर्बल बनाते हैं कि तुम पर नकारात्मक लोग अपनी नकारात्मकता को तुम पर छोड़ देने में कामयाब हो जाते हैं।

तुमने अधिकतर देखा और सुना होगा कि फलां व्यक्ति पर कोई नकारात्मक शक्ति है अथवा किसी पर किसीने कोई नकारात्मक क्रिया कर दी, तो आखिर ऐसा क्या है जो तुम इसके प्रभाव में आ जाते हो? आखिर इतने निर्बल क्यों हो जो इसके प्रभाव में आसानी से आ जाते हो और जीवन नष्ट करते हो।

हे मनुष्यों संसार मे सकारात्मक और नकारात्मक विचारधाराएं तो चलती रहेंगी किंतु तुम्हे इससे बचना होगा ताकि न सिर्फ इस भौतिक जीवन अपितु उस अभौतिक जीवन को भी सुधार सके जो इस जीवन के बाद तुम्हे मिलने वाला है।

इसके लिए हर दिन मेरा ध्यान करो और मुझसे हर पल यही कहो को मैं तुम्हारा मार्गदर्शन करू।

साथ ही तुम काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार का त्याग करो, यद्धपि तुम्हारा अहित करने वाले ऐसे ऐसे वाक्य कहेंगे जिससे तुम्हे क्रोध और आवेश आएगा क्योंकि जितना तुम्हे क्रोध आवेश और ईर्ष्या आएगी तुम्हारी खुदकी सकारात्मक शक्ति कम होगी और जब वो कम होगी तो तुम पर कोई भी नकारात्म क्रिया हो सकती है आसानी से ।

हे मनुष्य इसलिए खुद को इतना सकारात्मक बना लो कि कोई नकारात्मक क्रिया तुम को छू तक न सके, भगवान बुद्ध, महावीर जी, जीसस आदि अनेक देव हुए जिन्होंने अपने को इतना सकारात्मक बनाया की इन्हें देख कर खुद ब खुद नकारात्मक ऊर्जा दूर भागती थी साथ ही इनके आभामंडल के समक्ष आने से भी डरती थी।

तुम्हें भी खुद को इतना सकारात्मक और सात्विक बनाना है कि नकारात्मक ऊर्जा तुम्हारे आभामंडल के पास आने से भी डरे ताकि तुम्हे तुम्हे कभी कोई नुकसान न पहुँचा सके।

इसलिए कहते हैं अपने शत्रुओं को भी छमा कर दो, और खुद पल पल जाने अनजाने व पिछले कई जन्मों में हुई गलती के लिए मॉफी माँगते रहो।

नेक कर करो, किसी भी जीव का जाने अनजाने दिल दुखाने और नुकसान पहुँचाने से बचो, लोग तुम्हें लाख चिढ़ाए, क्रोध दिलाये, लेकिन उनके नकारात्मक प्रभाव में मत आओ, और यदि उनके प्रभाव में आ जाते हो तो कोशिश करो उनसे दूरी बना कर उनके विषय मे सोचना त्याग कर अन्य के विषय मे सोचें जिससे सकारात्मक ऊर्जा तुम्हें मिलती हो।

ऐसा करो निश्चित ही लाभ मिलेगा,

कल्याण हो


Wednesday 19 August 2020

मेरी शायरी

 "न बिछड़ने का गम है न मिलने की उमंग है

है मोहब्बत ही कुछ ऐसी इसमे हज़ारो रंग है

कभी दर्द तो कभी 'मीठी-खुशी' झलकाती है

जुदा हो कर भी दिलमें देखो आज हम संग है"


Wednesday 12 August 2020

मेरी शायरी

 "झूठे हैं नाते झूठे ये तराने हैं


कहने को सब यहाँ अपने हैं


पर जब मुड़ कर देखो तो


यहाँ सबके के सब बेगाने हैं"

मेरी रचना मेरी शायरी

 "मोहब्बत में मिली हमें क्या खूब ये सौगात

देखो फ़िर मिली हमें ग़मो की ये बरसात
सोचा था न करेंगे दिल का सौदा फिर कभी
हारे फिर दिल अपना मिली दर्द भरी ये रात"

मेरी शायरी

 मुझ को मेरे हाल पर छोड़ दे तू ऐ ज़िंदगी

मेरी ज़िम्मेदारी का बोझ उठाना तेरे बस की बात नही

Tuesday 23 June 2020

हिंदी रोमांटिक शायरी

दिलकी बात किसीसे बताई नही जाती

लाख चाहने पर भी ये छिपाई नही जाती

एक याद है उनकी दिलमे मेरे ऐसे बसी

जो चाह कर भी मुझसे मिटाई नही जाती"

शायरी-हिंदी रोमांटिक

"काश तुम देख सकते इन रात के अंधेरो में मुझे

की तुम्हारी याद अब मुझे सोने भी नही देती" 

Wednesday 17 June 2020

मेरी शायरी

1-"आ भी जाओ अब तुम बाहों में मेरी
की कब तक खुद को यु संभालूं में"

2-"पल पल कमी तुम्हारी खलती है
जब ये हवा छूकर मुझे निकलती है
होती है महक इसमें तुम्हारी ही
जब ये टकरा कर मुझसे चलती है"

Tuesday 16 June 2020

Romantic shayri-hindi




"आज कुछ ऐसे तेरे सीने से लग जाऊँ मैं
तेरी हर धड़कन को कुछ यु सुन पाऊँ में
तेरे दिल की बात मेरे दिल तक पहुँच सके
मेरे हमदम कुछ ऐसे आज तेरी बन जाऊँ में"

Sunday 14 June 2020

रोमांटिक कविता

"लब हैं खामोश पर दिल कुछ कहना चाहता है
इस मदहोश रात में आज ये तेरा होना चाहता है
कुछ तुम हो चुप कुछ शरमाये से हम भी है बैठे
बढ़ाओ कुछ कदम दिल तुम्हारा होना चाहता है

तन्हा ज़िंदगी मे ये दिल अब तुम्हे पाना चाहता है
संग जिये  'मीठी-खुशी' के वो पल जीना चाहता है
तोड़के ज़माने की रस्मों और रिवाज की ये जंजीरे
आज मोहब्बत में तेरी मेरा दिल खोना चाहता है"



Saturday 30 May 2020

कहानी-short story






एक व्यक्ति किसी महिला से मिला,  उससे कहा कि मैं बहुत भूखा हूँ, बहुत दिनों से भोजन देखा तक नही, मुझे भोजन चाहिए।


इस प्रकार हर रोज़ वो उस महिला के पास जा कर वो उससे भोजन मांगता, पहले तो महिला ने उस पर ध्यान नही दिया लेकिन एक दिन सोचा शायद ये सच में भूखा है, और उसने उस आदमी को भोजन खिलाने का मन बनाया जब वो फिर उसके पास भूख की बात कहने आया।


महिला ने जब भोजन देने की बात की तो वो व्यक्ति बोला किस नाते से मुझे भोजन दोगी, महिला बोली जिस नाते से तुम भोजन खा सको।


इस तरह वो व्यक्ति उस महिला से भोजन खाने आने लगा, किंतु फिर उसने आना कम कर दिया लेकिन महिला प्रतिदिन उस आदमी के लिए भोजन निकालती रही, जब उस आदमी ने भोजन खाने आना पूरी तरह बंद कर दिया तो वो महिला उसके घर भोजन पहुचा कर आने लगी।


लेकिन फिर एक दिन वो आदमी उस महिला से बोला , "मुझे तुम्हारे भोजन की जरूरत नही है, हर रोज़ ले कर चली आती हो अच्छा नही लगता, मैं अपनी पसंद का कुछ खा नही सकता, अगर कभी मेरी पसन्द का बने तो लाना अन्यथा भोजन ले कर नही आना, मै मर जाऊँगा ये और इतना खा कर , मुझसे नही हज़म होता ये, पेट फट रहा है इतना खा कर,अब कल से मत लाना अपना भोजन मैं हाथ जोड़ता हूँ तुम्हारे👐"।


महिला का दिल टूट गया और सोचने लगी कि क्या भूख भूख चिल्ला कर उससे भोजन की मांग करने वाला आदमी सचमें क्या भूखा था या फिर झूठ बोला था अपनी किसी जरूरत को पूरा करने के लिए, शुरुआत में उस महिला के द्वारा दी गयी सूखी रोटी भी उस आदमी को अच्छी लगती थी लेकिन अब पकवान भी खराब लगते हैं, क्या सच मे उस आदमी को इसकी जरूरत भी थी उस महिला के दयालु स्वभाव का लाभ लेने उसके पास आया था।




मित्रों यही होता है जब किसी को जरूरत से ज्यादा प्यार मिल जाये बेहिसाब मिल जाये तो लोग इस प्यार को वैसे ही नही संभाल पाते जैसे वो आदमी उस महिला के भोजन को न संभाल पाया न हजम कर पाया, लेकिन किस को इसकी जरूरत सच में है जो प्यार को और उस भोजन को संभाल सके ऐसा व्यक्ति आज के माहौल में मिलना मुश्किल है लेकिन आपकी ज़िंदगी मे कोई है जो इतना प्यार देता हो तो संभाल के रखिये क्योंकि निःस्वार्थ प्यार आजकल न के बराबर ही मिलता है और जिसको मिलता  खुशनसीब होते हैं

तन्हा शायरी



1-"हाथों की लकीरों को खूब बदलते देखा है
वक्त को हर पल यू खूब मचकते देखा है
कभी धूप कभी छाँव जैसे होते हैं ये रिश्ते
हर निखरे रिश्ते को भी खूब ढलते देखा है"

2-"रेत पर लिखे शब्दो की तरह हो गए रिश्ते दिलके
कब मोहब्बत लिखी और कब मिटा भी गए दिलसे"

Thursday 28 May 2020

कविता-आदत है मेरी



दर्द में भी मुस्कुराते रहना मज़बूरी नही आदत है मेरी
अश्क़ छिपा यू हँसते रहना मज़बूरी नही आदत है मेरी

तन्हा अकेले यु रहना मज़बूरी नही आदत है मेरी
खुदमें अकेले खोये रहना मज़बूरी नही आदत है मेरी

तन्हाइयो में इन लम्बी रातों का यू फिर गुज़रना
खुद से ही बाते करना मज़बूरी नही आदत है मेरी

खुद से रूठ जाना कभी खुद को ही यू मना लेना
खुद से ही मोहब्बत करना मज़बूरी नही आदत है मेरी

कभी खुद को रुलाना कभी खुद को ही यू सताना
खुद से ही प्यार दिखाना मज़बूरी नही आदत है मेरी

कभी चलते ठहर जाना कभी ठहर कर फिर चल देना
ज़िंदगी मे न हार मानना मज़बूरी नही आदत है मेरी

ज़ख़्म खाकर भी मुस्कुराना दर्द ले कर प्यार जताना
इश्क़ में यु हार जाना मज़बूरी नही आदत है मेरी

ईश्वर वाणी-288, संसार के मुख्य सागर

ईश्वर कहते हैं, "चूंकि ये पूरी धरती ही सम्पूर्ण ब्राह्मण का प्रतीक है, जैसे आकाश में दिव्य सागर है, दिव्य लोक है जिन्हें केवल दिव्य दृष्टि व आध्यात्म की शक्ति के द्वारा ही जाना जा सकता हैं,

वैसे ही धरती पर भी मुख्य रूप से 3 तरह के सागर है जिनके विषय मे तुम्हे आज बताता हूँ।

1-तरल सागर, 2-कठोर सागर, 3-सूखा सागर

1-तरल सागर- ये वो सागर है जिसके विषय मे तुम जानते हो, जिसमे अनेक लहरे उठती तुम देखते हो, जलचर जीवो को तुम देखते हो, कई नौका, जहाज़ आदि को देखते हो और जो धरती के अधिकतम भाग में बहता है।

2-कठोर सागर,  ग्लेशियर व पहाड़ो पर सदा अपनी आगोश में लेने वाली बर्फ ही कठोर सागर है, इसमें भी बेहद ठंड में जीवित रहने वाले प्राणी रहते हैं।

    जैसे तरल सागर में तूफान, बाढ़, सुनामी आते हैं वैसे ही कठोर सागर में भी तूफान और तूफानी बर्फीले सुनामी आते हैं।

3-सूखा सागर, धरती के रेतीले स्थान को सूखा सागर कहते हैं, जैसे तरल सागर व कठोर सागर में तूफान आदि आते हैं, व उनमे अनेक जीव रहते हैं वैसे ही यहाँ भी अनेक जीव रहते हैं व रेतीले तूफान, रेतीली लहरे यहाँ उठती रहती है।

हे मनुष्यो आकाशीय दिव्य सागर को तो तुम बिना आध्यात्मिक शक्ति के न देख पाओ किंतु धरती के इन मुख्य सगरो को अवश्य देख सकते हो और जान सकते हो समझ सकते हो कि संसार का असली मालिक मैं हूँ, में ही शून्य हूँ और में ही सर्वष्य हूँ।"

कल्याण हो 

ईश्वर वाणी-287,आत्मा की शक्ति

ईश्वर कहते हैं, 'हे मनुष्यों यद्धपि तुम्हारी आत्मा तुम्हारी देह में हो कर अपने मे छिपी कई शक्तियों को नही पहचानती किंतु जब तुम सोते हो तब ये कई भौतिक बन्धनों से मुक्त हो कर भ्रमण करती है, तुम्हे कुछ सपने याद रहते हैं तो कुछ नही।

तुमने कई बार देखा होगा जो स्थान तुम सपने में देखते हो कुछ दिन बाद तुम्हारा ऐसी जगह जाना होता है फिर तुम्हे याद आता है कि मैं तो सपने में आ चुका हूँ यहाँ अथवा ये जगह जानी पहचानी सी लग रही है, कारण इसका यही होता है कि सपने में आत्मा स्वछंद विचरण करती है।

कई बार ये सपने के द्वारा भविष्य तो कई बार अतीत को दिखाती है यहाँ तक कि पिछले कई जन्मों की यात्रा भी आत्मा सपने में करती है तभी कई बार सपनो में अजनबी लोग दिखते हैं जिनसे तुम कभी मिले तक नही हो।

आत्मा एक ही समय मे कई स्थानों पर पहुँच सकने की छमता रखती है, निश्चित ही सपनो के माध्यम से ये कई जगह एक ही समय मे पहुँच सकती है, तुमने देखा होगा कई लोग जो तुम्हारे जानने वाले होते हैं वो कहते हैं कि उन्होंने तुम्हे सपने में देखा जबकि तुमने उन्हें सपने में नही देखा इसका कारण तुम्हारी आत्मा उन सपनों में भी थी जो तुम देख रहै थे और उनमें भी थी जो तुम्हारे जानने वाले देख रहे थे अर्थात एक ही समय मे अलग अलग जगह पर, लेकिन अधिकतर कुछ छड़ का ये अंतर अवश्य रखती है सपनो में आने का किँतु फिर भी कई बार एक ही समय पर अलग अलग लोगो और स्थानों पर होना इसकी एक से ज्यादा रूप लेने की कला को दर्शाती है।

आत्मा शरीर से ऐसे जुड़ी होती है जैसी एक शिशु माँ के गर्भ में गर्भनाल से जुड़ा होता है, इसलिए शरीर से अलग हो कर भी ये जब सपनो के द्वारा भमण करती है तब देह की मृत्यु नही होती और व्यक्ति को जब जगाया जाता है तब ये वापस अपने शरीर मे उस अदृश्य नाल के माध्यम से लौट आती है जो इसको शरीर से बाँध के रखती है।

आत्मा की इन शक्तियों को जानने और जाग्रत अवस्था मे इन शक्तियों को लाने हेतु आध्यात्म से जुड़ना होता है, ध्यान, योग, साधना करनी होती है जिनके माध्यम से व्यक्ति अपनी इन शक्तियों को जाग्रत कर अपनी इच्छा अनुसार भी प्रयोग कर सकता है।"

कल्याण हो

Friday 15 May 2020

Romantic shayri

"दिल से दिल की कुछ ऐसे बात किया करो

हकीकत न सही सपनो में मुलाकात किया करो

दिन के उजाले में मिलन हो नही सकता अभी

कोशिश मिलने की हमसे हर रात किया करो"

Romantic shayri

अपना बना कर छोड़ न जाना

दिल मेरा कभी तोड़ न जाना

कहेंगे नही, टूट के बिखर जायँगे

किसी राह पे मुह मोड़ न जाना

Tuesday 5 May 2020

रोमांटिक शायरी

"मुझमें ऐसे बस गए हो तुम
रूहसे साँसों में उतर गए हो तुम
अब मुझमें 'मैं' कहाँ हूँ भला
मुझमें कुछ ऐसे यु समा गए हो तुम"

हिंदी रोमांटिक शायरी

"सुना था नाम मोहब्बत का 
पर होती है क्या मालूम न था
पर तुम जो मिले मेरा हर लम्हा 
ही मोहब्बत बन गया"

Romantic hindi shayri

"कल भीड़ में हम तुम्हें न दिखे
कल महफ़िल में हम तुम्हें न मिले
प्यार तो हमेशा रहेगा दिलमे हमारे
चाहें कल दुनियां में हम रहे न रहें"

तेरे बिन हम मुस्कुराना भूल गए -कविता

तेरे बिन हम मुस्कुराना भूल गए
तेरे बिन हम गुनगुना भूल गए
तुम थे साथ जो मेरे 'खशी' थी संग
'मीठी' बात अब बनाना भूल गए

गिर कर फिर सम्भलना भूल गए
इन राहों पर भी चलना भूल गए
काटे भी फूल लगते थे कभी मुझे
फूलोंकी कोमलता भी अब भूल गए

दर्द इतना मिला कि सुकून भूल गए
ज़ख़्म पर मरहम लगाना भी भूल गए
चोट लगने पर भी मुस्कुराते थे कभी
तेरे बिन हम मुस्कुराना भूल गए



ईश्वर वाणी-285, ईश्वर की सच्चाई

ईश्वर कहते हैं, "संसार का सत्य तो यही है कि मै निराकार हूँ, शून्य हूँ, में ही आदि और अंत हूँ, अनन्त ब्रह्मांड में ही हूँ, मुझे जितना जानने की चेष्टा करोगे उतने उलझते जाओगे क्योंकि में अथाह और अपार हूँ।

हे मनुष्यों पल पल तुम्हे अपनी निम्न लीलाओ के माध्यम से अपने निराकार रूप के विषय मे बताता रहता हूं किँतु तुमतो केवल भौतिक देह पर ही विश्वास कर उसको ही सत्य मानते हो।

ये सत्य है मैं ही देश काल परिस्तिथि के अनुसार अपने ही अंशो को धरती पर भेजता हूँ जीवो के कल्याण होतु, मेरे अंश ही में स्वयं हूँ जो भौतिक देह प्राप्त कर इस धरती पर जन्म लेता हूँ किंतु अज्ञान के अंधकार में डूबे मनुष्य ये नही जानते और जाति व धर्म के नाम पर लड़ते रहते हैं।

भगवान शिव के शिव लिंग और सालिकराम के मेरे स्वरूप को देख कर तुम अंदाजा नही लगा सकते कि कौन सा शिवलिंग है और कौन सा सालिकराम, उसी प्रकार शक्तिपीठो में मेरे निराकार स्वरूप के ही दर्शन तुम पाते हो, ऐसा इसलिए क्योंकि मैं तुम्हे बताना चाहता हूँ की मुझे इन भौतिक स्वरूपों से मत आंको जो तुम्हारी कल्पना ने ही मुझे स्वरूप दिया है बल्कि मेरे वास्तविक रूप से जानो जो स्वयं मेरा व तुम्हारी आत्मा का है।
मैंने प्रथम तुम्हारी आत्मा को खुद से बनाया उसके भौतिक क्या बना उसको देह रूपी घर दे कर्म करने हेतु संसार मे भेजा, जिसमे अपनी भौतिक क्या के अनुरूप जो कर्म करे उसका वैसा फल मिला।
लेकिन मनुष्य मुझे अपने अज्ञान के अंधकार के तले ऐसे भुला बैठा की जैसे संसार के अन्य जीवों के साथ वो भेदभाव करता है मेरे साथ करने लगा और मेरी बनाई रचना को छती पहुचाने लगा।
उसके इस अपराध का बोध करने व दण्ड अधिकारी होने पर मुझे भी भौतिक देह ले कर अपने अंशो के रूप में जन्म लेना पड़ता है व जीव जाती की रक्षा करनी पड़ती है, यही युगों युगों का चक्र है।"

कल्याण हो

कविता-खुशबू तुम्हारी होती है

 ये हवा यु बहती है

धीरेसे मुझसे कुछ कहती है

छूती ये बदन को मेरे

जिसमे खुशबू तुम्हारी होती है


दिलमे याद तुम्हारी रहती है

हर पल बात तुम्हारी होती है

कैसे मजबूर है आज यहाँ हम

धड़कन दिलसे यही कहती है

ईश्वर वाणी-284,जन्म जन्मों का सत्य

 हैं, "हे मनुष्यों जैसे मैं ही साकार रूप में जीव जाती की रक्षा हेतु देश, काल, परिस्तिथि के अनुरूप जन्म लेता हूँ वैसे ही संसार के प्रत्येक जीव भी मुझसे ही निकले और इस पृथ्वी पर जन्म ले कर अपने कर्म कर रहे हैं।
अच्छे अथवा बुरे कर्म, सुख अथवा दुःख, ज्ञानी अथवा अज्ञान, धनी अथवा निर्धन, सत्य व असत्य जो भी ये कर्म कर रहे वो सब पहले ही उनके आने से पूर्व ही तय हो चुका है।
कौन कितनी बार क्या जन्म लेगा और कितनी बार और कब तक स्वर्ग, नरक अथवा ईश्वरीय लोक को भोगेगा ये सब पहले ही तय हो चुका है, यहाँ तक कि जो आत्माएं अभी जन्म भी ले पायी हैं उनके विषय में भी सब तय हो चुका है, उनके कर्म तय हो चुके हैं।

प्रत्येक जीव संसार मे मेरी आज्ञा अनुसार ही मेरे अनुरूप ही लीला करने आया है और करता है, प्रत्येक जीव स्वर्ग, नरक अथवा मेरे लोक से हो कर ही जन्म लेती है और उसमें मेरे अनुरूप ही आत्मिक शक्ति होती है किंतु उसके कर्म उसकी शक्ति को छिपा देते हैं और उसके मष्तिष्क को अपने अंदर छिपी ये शक्ति याद नही रहती क्योंकि यदि याद रहती तो जीव मुख्यतः मानव इनका दुरुपयोग अवश्य करता।

इसलिए हे खुद के अंदर छिपी शक्ति को जानो, मुझसे जुडो और मेरे बताये नियमो का पालन करो, निश्चित ही तुम मेरे जितने ही शक्तिशाली बनोगे, ये न भूलो हर जीव चाहे स्वर्ग, नरक अथवा ईश्वसरिये लोक से आया हो सब मुझसे ही मेरे ही लोक से मेरे इच्छा अनुसार ही लीला करने आया है क्योंकि ये संसार ही मेरी एक लीला मात्र है"।।

कल्याण होहता 

Monday 27 April 2020

Sad Shayri

1-🌹❤️🌹: "ऐ ज़िन्दगी और कितना तड़पायगी

ऐ ज़िन्दगी और कितना रुलायेगी

वैसे ही तो बहुत गम है फैले जहाँ में

ऐ ज़िन्दगी तू और  कितना सतायेगी"

2-🌹❤️🌹: "न मेरे खोने का गम है

न मेरे होने की खुशी है

ए ख़ुदा है तुझसे शिकवा

 कैसी ये ज़िन्दगी मुझे दी है"

Wednesday 22 April 2020

ईश्वर वाणी-283, अगली यात्रा की पूँजी

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों ये तुम्हारा जीवन बहुत ही छोटा है, मेरे अतिरिक्त कोई नही जानता कि कब कैसे तुम्हे इस जीवन यात्रा को समाप्त कर दूसरी यात्रा प्रारंभ करनी है।

इसलिये हे मनुष्यों जैसे तुम अपनी कमाई धनराशि से कुछ धन बचा कर भविष्य के लिए एकत्रित करते हो, उसी तरह अपनी नई जीवन यात्रा हेतु भी अभी से धन एकत्रित करना आरम्भ कर दो।

आत्मा रूपी जीव के लिए प्रतिदिन अनेक सत्कर्म रूपी धन को एकत्रित करना अभी से आरंभ कर दो ताकि जब तुम्हारी आत्मा अपने कर्मानुसार स्वर्ग, नरक व ईश्वसरिये लोक का भोग प्राप्त कर पुर्नजन्म रूपी नए भविष्य में प्रवेश ले तो पिछले जन्मों की कर्म रूपी पूँजी उसके साथ हो।

तुम्हारे अभी से किये अच्छे कर्म ही तय करते हैं कि तुम्हे अगला जीवन कौन सा और क्या मिलेगा, दुःख सुख भी तुम्हारे आज के जीवन से ही भविष्य रूपी पुनर्जन्म के ही लिए ये तय करता है।

किंतु जो मनुष्य पुनर्जन्म में विश्वास नही करते उन्हें भी ये अवश्य जान लेना चाहिए कि तुम्हारे कर्म ही तुम्हारी धरना अनुसार ही स्वर्ग, नरक व ईश्वसरिये लोक का भोग कराएंगे इसलिए सिर्फ सत्कर्म करो और आगे बढ़ो।"

कल्याण हो

Tuesday 21 April 2020

मेरा गीत मेरी कविता

धीरे-धीरे खुद से ही में जुड़ने लगी हूँ

ऐ ज़िंदगी तुझसे ही मोहब्बत करने लगी हूँ


भूल चुकी थी मुस्कुराना मैं

खो चुकी थी यु हँसना में

खुद से ही बात करने लगी हूँ

धीरे-धीरे खुद से ही में जुड़ने लगी हूँ

ऐ ज़िंदगी तुझसे ही मोहब्बत करने लगी हूँ



गिर कर संभलना सीखने लगी हूँ

खुद से ही दिल लगाने लगी हूँ

'खुशी' ढूंढती थी जो दूसरो में

'मीठी' सी आवाज़ में गुनगुनाने लगी हूँ


धीरे-धीरे खुद से ही में जुड़ने लगी हूँ

ऐ ज़िंदगी तुझसे ही मोहब्बत करने लगी हूँ


दर्द ज़माने के भूल कर

खुद में ही खुदको खो कर

अब फिर महकने लगी हूँ


धीरे-धीरे खुद से ही में जुड़ने लगी हूँ

ऐ ज़िंदगी तुझसे ही मोहब्बत करने लगी हूँ



🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Sunday 19 April 2020

रोमांटिक शायरी

कैसे बताऊ तुम्हें दिल की ये मज़बूरी
कैसे समझाऊ तुमसे मिलना है जरूरी
नही लगता ये दिल कही तुम बिन मेरा
आजाओ बाहों में मेरी न रखो और दूरी

रोमांटिक हिंदी शायरी

तुमसे मिलने की आस दिलमे है
तुमसे मिलन की प्यास दिल मे है
कब होगी ये दूरियां खत्म हमारी
पल-पल तुम्हारा अहसास दिलमे है

मेरा गीत-ए दिल आज जरा

ए दिल आज जरा ये पुकार सुन

धड़कन तुझसे क्या कहती है, ये आवाज़ सुन

आज बहका सा है कुछ दिल मेरा

आज महका सा है ये जीवन मेरा

तुमने थामा हाथ तो

खिल उठा दिल का हर कोना


खुशी की ये फुहार सुन

ए दिल आज जरा ये पुकार सुन

धड़कन तुझसे क्या कहती है, ये आवाज़ सुन


तुमसे पहले थी ज़िन्दगी में सिर्फ तन्हाई

मिली मुझे तो सबसे ही सिर्फ रुसवाई

तुम न होना अब जुदा कभी मुझसे

ए मेरे हमदम न छोड़ के फिर तुम जाना



ए मेरे दिलबर सदा बनकर मेरे रहना

बहती हवा की मीठी पुकार सुन

ए दिल आज जरा ये पुकार सुन

धड़कन तुझसे क्या कहती है, ये आवाज़ सुन

Friday 10 April 2020

Meri kavita

"ए वक़्त किया तूने कितना मजबूर है

अपनी मोहब्बत से हुए कितना दूर है

पर तू वक्त है बीत जायेगा एक दिन

फिर छाया कैसा तुझे खुदपे ये  गुरुर है


हालात से बाँध हुआ तू बड़ा मगरूर है

आज ऐसे इन्तजार में बैठे हम जरूर है

पर तू वक्त है बीत जायेगा एक दिन

फिर छाया कैसा तुझे खुदपे ये  गुरुर है"

Tuesday 31 March 2020

Jay mata di

तुम बिन अधूरी है मेरी ज़िंदगानी

तुमसे ही शुरू है मेरी हर कहानी

करना माफ़ हर खता तुम मेरी

तुम हो जगतजननी मेरी माता रानी


जय माता दी


माता रानी सबकी रक्षा करें

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Romantic hindi shayri

1-"खूबसूरत सुबह का एक अहसास हो तुम
मेरे हर दिन का हसीं अहसास हो तुम
तुमसे ही होती है अब मेरे दिन की शुरुआत
मेरे लिए तो हर पल सब से खास हो तुम"

2- दिल में दर्द और आँखे नम है

बिन तुम्हारे कितना तन्हा हम है

सताकर तुम्हें खुश हम भी नही

तुम बिन ज़िंदगी मे कितना गम है


3-"मेरी ख़ता की न ऐसी तुम सज़ा दो

मेरे ख्याल को न दिलसे तुम मिटा दो

दिल मे कितना दर्द है तुम्हे सताकर

यु दूर जाने की मुझे कुछ तो वजह दो"


4- शायद हमने तुम्हे फ़िर रुला दिया

तुमने भी देखो हमे कैसे भुला दिया

हम तो पहले से तन्हा थे यहाँ पर

मगर तुमने फिर अहसास दिल दिया


 5-"मेरी ख़ता की फिर न ऐसी सज़ा देना

दिल से दूर मुझे न कभी तुम करना

काश दिल का हाल तुम्हे दिखा सकते

फिर न कभी हमे दिलसे जुदा करना"


6-"हर पल हर लम्हा हम आपको याद करते हैं

आपको क्या पता आपसे कितना प्यार करते हैं"


7-"मुझे तो हर पल आस तुम्हारी होती है

हर जगह बस तलाश तुम्हारी होती है

काश ख्वाब में मिलने आओ तुम हमसे

इसी उम्मीद में अब 'मीठी-खुशी' सोती है"


8- हर रात आपकी प्यारी हो जाये

खूबसूरत ख्वाब आपकी आँखों मे आये

मिले सब आपको सपनो में जो चाहो

सुबह आपका ख्वाब पूरा हो जाये

Thursday 19 March 2020

Romantic shayri-hindi

"तुमसे जुदा हो नही पाते
दूर तुमसे हो नही पाते
प्यार बहुत है तुमसे हमे
बिन तुम्हारे रह नही पाते"

Meri shayri-romantic

काश दिल की आवाज़ तुम तक पहुँच जाए
काश दिल से दिल की बात आज हो जाए
तुम सुनो धड़कन मेरी कुछ सुनू में तुम्हारी
काश दिल से दिल कुछ आज ऐसे मिल जाए

Wednesday 18 March 2020

गीत-एक कदम टीम चलो

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एक कदम तुम चलो, कुछ दूर हम चले

कुछ तुम आगे बढ़ो, कुछ कदम हम चले


मोहब्बत के फ़साने आज कुछ ऐसे लिखें

दिल की हर बात जो फिर आँखों में दिखे

तेरी ज़ुल्फ़ के साये में आज फिर हम मचले

एक कदम तुम चलो, कुछ दूर हम चले


तेरी बाहों में आ कर हम बहकते रहे सदा

तुझसे मिल कर कुछ ऐसे चहकते रहे सदा

कुछ तुम महको, कुछ हम बहकते चले

एक कदम तुम चलो, कुछ दूर हम चले



एक कदम तुम चलो, कुछ दूर हम चले

कुछ तुम आगे बढ़ो, कुछ कदम हम चले


तुमसे है कितनी प्रीत आज तुम्हें बता दु

अपना हाल-ए-दिल में तुमको दिखा दु

कुछ मोहब्बत में तुम तड़पो कुछ हम तड़पे

ज़ज़्बात अपने कुछ तुम कहो कुछ हम कहे


एक कदम तुम चलो, कुछ दूर हम चले

कुछ तुम आगे बढ़ो, कुछ कदम हम चले



चर्चा अपनी मोहब्बत की अब होने लगी है

हर जगह इश्क की सुगबुगाहट अब होने लगी है

तेरे प्यार का प्याला कुछ यूं छलकने लगा है

ये दिल, मेरा दिल तेरी याद में कैसे रोने लगा है


दिल की बात कुछ, तुमसे कहते चले

एक कदम तुम चलो, कुछ दूर हम चले



एक कदम तुम चलो, कुछ दूर हम चले

कुछ तुम आगे बढ़ो, कुछ कदम हम चले


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Meri shayri-romantic

ज़िंदगी तुम बिन अधूरी सी है
फिर क्यों छाई ये दूरी सी है
है मोहब्बत तुमसे बैतन्हा हमे
खामोशी की कुछ मज़बूरी सी है

Sunday 15 March 2020

कविता-कौन अपना है कौन पराया

कौन अपना है कौन पराया ये समझ नही पाते

शायद इसिलए ही पग पग है हम धोखे खाते

हर शख्स लगता है हमे तो वफादार इस जहाँ में

वही वफादार ही आखिर यहाँ दगा हमे दे जाते


इश्क की महफ़िल में अक्सर ऐसे लोग मिल जाते

पहले बाँधते बंधन प्यार का फिर तोड़ कर चले जाते

अपने इस नादाँ दिल पर रोती 'मीठी-खुशी' अक्सर

मासूमों के दिल से ही तो आखिर ये लोग हैं खेल जाते


नादाँ ही तो अक्सर हर दफा वफा की भूल कर जाते

टूटे दिल की पीर ले कर मासूम ही तो अश्क़ बहाते

नही है नसीब में तेरे मोहब्बत ए 'मीठी-खुशी' समझ ले

तू है नादाँ बहुत जिसका पल पल फायदा लोग उठाते


पहले अपना कर फिर तुझे देख कैसे ये ठुकराते

मरहम बता चोट पर और ज़ख़्म गहरे दे जाते

दुनिया की रीत यही है सदियों से 'मीठी-खुशी'

बेवफाई कर देखो महफ़िल में लोग कैसे इतराते

Saturday 14 March 2020

गीत- मेेरे सनम मेरे हमदम



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अपनी हर सांस को, तेरे नाम किया है
दिल की हर धड़कन ने , नाम तेरा लिया है
तू अनजान न बन, मेरे ज़ज़्बातों से और
मैंने तो आखिर, दिल तुझको ही दिया है

मेेरे सनम मेरे हमदम, न कर मुझपे सितम


तू खुशी है मेरी , तू ज़िन्दगी है मेरी
न सह सकूँगा अब, तुझसे ये में दूरी
तेरे प्यार के साये में,  गुज़ार दूं ज़िन्दगी
न हो कोई अब, फिर कोई मज़बूरी


छोड़ लाचारी सारी, इश्क में और सारे भरम

मेेरे सनम मेरे हमदम, न कर मुझपे सितम


तुझसे पहले थी, ज़िंदगी मे सिर्फ तन्हाई
तुमसे मिलकर,  एक आस दिल मे आयी
मुस्कुरा उठा दिल मेरा, जबसे तुझे देखा
सूनी सी ज़िंदगी मे, तू 'मीठी-खुशी लायी


बना कर अपना मुझे, न कर पीछे तू कदम
एक तू ही तो मेरा अपना, यहाँ मेरा हमदम
न दिल तोड़ दिल न दूर जा, कर इतना रहम

मेेरे सनम मेरे हमदम, न कर मुझपे सितम

मेेरे सनम मेरे हमदम, न कर मुझपे सितम

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गीत-तुम्हारी यादों को

तुम्हारी यादों को दिलमें बसाए बैठे हैं।


कभी मुड़कर, मुझे भी तुम देख लेना

वक्त मिले तो, याद मुझे भी तुम कर लेना

ये माना, नही तुम्हे अब जरूरत हमारी

हकीकत न सही, ख्वाब मुझे समझ लेना

तेरी मोहब्बत की, हसरत सजाए बैठे हैं

तुम्हारी यादों को, दिल में बसाए बैठे हैं


रूठे तुम, ऐसे की मना हम ना पाये

दूर ऐसे हुए की, फिर करीब न आये

तू खुश रहे सदा, यही दुआ करते हैं

भले तेरे बिना, हम और जी न पाये


तेरी हर बात को, सीने से लगाये बैठे हैं

तुम्हारी यादों को, दिलमें बसाए बैठे हैं


तुझे याद कर, रोते है हम रात-दिन

तेरे लिए तो, तड़पते है हम हर दिन

काश तू फिर, मुड़कर देख हाल मेरा

करते हैं सबसे, अब तेरी ही बात रात-दिन


पत्थर से पिघलने की, आस लगाए बैठे हैं

मौत से ज़िन्दगी की, उम्मीद लागाये बैठे हैं


बेवफा से वफ़ा की, आस लगाए बैठे हैं

तुम्हारी यादों को, दिलमें बसाए बैठे हैं

Monday 9 March 2020

ईश्वर वाणी-282, पारलौकिक दुनियां



ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों जैसे पृथ्वी पर अनेक जलचर, थलचर व आकाश में उड़ने वाले प्राणी है व उनकी अपनी एक अलग दुनिया है ठीक वैसे ही एक दुनियां भौतिक देह त्याग चुकी आत्माओ की भी है।

जैसे सागर की गहराई में अनेक प्रकार के जीव रहते हैं, ये सागर ही उनका घर है, अगर उन्हें सागर से निकाल दिया जाए तो वो मर जाते हैं, ठीक वैसे ही थलचर जीवो को अगर सागर की गहराई में भेज दिया जाए तो वो जी नही सकते, कारण दोनों की अपनी अपनी अलग दुनिया के निवासी हैं और अपनी ही दुनिया के लिए बने हैं।

ठीक वैसे ही जीव-आत्माओ की भी दुनिया है, वहाँ भी यहाँ की भांति अच्छी बुरी जीवात्मायें रहती है, यधपि कुछ आत्माएं जो अपने परिवार या अपने किसी प्रिये के जीवित रहते करीब होती है मृत्यु के बाद भी कोशिश करते हैं उनके करीब रहे, उन्हें अहसास दिलाये की भले शरीर न सही पर अब वो उनके साथ है यधपि वो अब इस भौतिक जगत की निवासी नही रही।

कुछ व्यक्ति आधुनिकता के नाम पर उस पारलौकिक दुनिया पर भरोसा न करके उसका उपहास करते हैं, ऐसा इसलिए क्योंकि उनके अपने कर्म जो पिछले जन्म और इस जन्म के ऐसे  नही रहे जो उन्हें उस सत्य से अवगत कराएं जो परम है, सत्य वो नही जो दिखता है, सत्य वो है जो दिखता नही पर होता है।

हे मनुष्यों आध्यात्म से जुडो ताकि तुम्हे भी उस परमकी प्राप्ति हो जो सत्य है जिससे तुम्हारी आत्मा का पूर्ण विकास हो उसका कल्याण हो।"

कल्याण हो