Thursday 28 May 2020

कविता-आदत है मेरी



दर्द में भी मुस्कुराते रहना मज़बूरी नही आदत है मेरी
अश्क़ छिपा यू हँसते रहना मज़बूरी नही आदत है मेरी

तन्हा अकेले यु रहना मज़बूरी नही आदत है मेरी
खुदमें अकेले खोये रहना मज़बूरी नही आदत है मेरी

तन्हाइयो में इन लम्बी रातों का यू फिर गुज़रना
खुद से ही बाते करना मज़बूरी नही आदत है मेरी

खुद से रूठ जाना कभी खुद को ही यू मना लेना
खुद से ही मोहब्बत करना मज़बूरी नही आदत है मेरी

कभी खुद को रुलाना कभी खुद को ही यू सताना
खुद से ही प्यार दिखाना मज़बूरी नही आदत है मेरी

कभी चलते ठहर जाना कभी ठहर कर फिर चल देना
ज़िंदगी मे न हार मानना मज़बूरी नही आदत है मेरी

ज़ख़्म खाकर भी मुस्कुराना दर्द ले कर प्यार जताना
इश्क़ में यु हार जाना मज़बूरी नही आदत है मेरी

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