Tuesday 5 May 2020

ईश्वर वाणी-285, ईश्वर की सच्चाई

ईश्वर कहते हैं, "संसार का सत्य तो यही है कि मै निराकार हूँ, शून्य हूँ, में ही आदि और अंत हूँ, अनन्त ब्रह्मांड में ही हूँ, मुझे जितना जानने की चेष्टा करोगे उतने उलझते जाओगे क्योंकि में अथाह और अपार हूँ।

हे मनुष्यों पल पल तुम्हे अपनी निम्न लीलाओ के माध्यम से अपने निराकार रूप के विषय मे बताता रहता हूं किँतु तुमतो केवल भौतिक देह पर ही विश्वास कर उसको ही सत्य मानते हो।

ये सत्य है मैं ही देश काल परिस्तिथि के अनुसार अपने ही अंशो को धरती पर भेजता हूँ जीवो के कल्याण होतु, मेरे अंश ही में स्वयं हूँ जो भौतिक देह प्राप्त कर इस धरती पर जन्म लेता हूँ किंतु अज्ञान के अंधकार में डूबे मनुष्य ये नही जानते और जाति व धर्म के नाम पर लड़ते रहते हैं।

भगवान शिव के शिव लिंग और सालिकराम के मेरे स्वरूप को देख कर तुम अंदाजा नही लगा सकते कि कौन सा शिवलिंग है और कौन सा सालिकराम, उसी प्रकार शक्तिपीठो में मेरे निराकार स्वरूप के ही दर्शन तुम पाते हो, ऐसा इसलिए क्योंकि मैं तुम्हे बताना चाहता हूँ की मुझे इन भौतिक स्वरूपों से मत आंको जो तुम्हारी कल्पना ने ही मुझे स्वरूप दिया है बल्कि मेरे वास्तविक रूप से जानो जो स्वयं मेरा व तुम्हारी आत्मा का है।
मैंने प्रथम तुम्हारी आत्मा को खुद से बनाया उसके भौतिक क्या बना उसको देह रूपी घर दे कर्म करने हेतु संसार मे भेजा, जिसमे अपनी भौतिक क्या के अनुरूप जो कर्म करे उसका वैसा फल मिला।
लेकिन मनुष्य मुझे अपने अज्ञान के अंधकार के तले ऐसे भुला बैठा की जैसे संसार के अन्य जीवों के साथ वो भेदभाव करता है मेरे साथ करने लगा और मेरी बनाई रचना को छती पहुचाने लगा।
उसके इस अपराध का बोध करने व दण्ड अधिकारी होने पर मुझे भी भौतिक देह ले कर अपने अंशो के रूप में जन्म लेना पड़ता है व जीव जाती की रक्षा करनी पड़ती है, यही युगों युगों का चक्र है।"

कल्याण हो

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