Tuesday 5 May 2020

तेरे बिन हम मुस्कुराना भूल गए -कविता

तेरे बिन हम मुस्कुराना भूल गए
तेरे बिन हम गुनगुना भूल गए
तुम थे साथ जो मेरे 'खशी' थी संग
'मीठी' बात अब बनाना भूल गए

गिर कर फिर सम्भलना भूल गए
इन राहों पर भी चलना भूल गए
काटे भी फूल लगते थे कभी मुझे
फूलोंकी कोमलता भी अब भूल गए

दर्द इतना मिला कि सुकून भूल गए
ज़ख़्म पर मरहम लगाना भी भूल गए
चोट लगने पर भी मुस्कुराते थे कभी
तेरे बिन हम मुस्कुराना भूल गए



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