Friday 31 May 2019

ईश्वर वाणी-274, आखिर क्यों स्त्रीया हनुमान जी की पूजा नही कर सकती व खास दिनों में निम्न नियमो का पालन करना चाहिए


ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि ये एक अपवाद का विषय रहा है कि स्त्रियां निम्न धार्मिक स्थल पर नही जा सकती अथवा निम्न मेरे स्वरूप का पूजन नही कर सकती, किँतु आज कुछ तथ्य व सत्य तुम्हें बताता हूँ।

यद्धपि मृत्यु लोक में कुछ धार्मिक स्थान ऐसे हैं जहाँ स्त्रियों का जाना मना है व निम्न रूपो में स्त्री द्वारा मेरी स्तुति मना है, यद्धपि कुछ ऐसे नियम मनुष्य द्वारा स्त्री को नीचा दिखाने व पुरुष सत्ता को श्रेष्ठ व उच्च दिखाने के लिए बनाई गई है, किंतु कुछ कथाएं अति प्राचीन सत्य कथाएं है जिनमे स्त्रियों को निम्न धर्मिके स्थल व मेरे ही निम्न रूपमे पूजा के लिए मनाही है लेकिन ऐसा स्त्रियों को नीचा व दोयम दिखाने व पुरुष को श्रेष्ठ दिखाने के लिए नही अपितु स्त्री के अति उच्च व सम्मान के भाव के कारण है।

हे मनुष्यों में आदि तत्व परमात्मा हूँ अर्थात परम+आत्मा। आत्मा एक स्त्री तत्व है, ये ऐसा तत्व है जिसके बिना में भी अपूर्ण हूँ, आत्मा अर्थात शक्ति अथवा जीवन, मुझे परम में यदि आत्मा रूपी शक्ति ना हो तो मैं भी परमात्मा अर्थात प्रथम इस श्रष्टि का व आत्माओ का महासागर कैसे बन सकता हूँ, बिन आत्मा के मैं भी अपूर्ण हूँ जैसे भू लोक के किसी भी जीव की देह बिन आत्मा के कुछ भी नही अपितु मिट्टी के पुतले के समान है।

हे मनुष्यों ये न भूलो की तुम सबके भौतिक स्वरूप व तुम्हारी आत्मा के रूप में प्रत्येक पुरुष के अंदर स्त्री तत्व विधमान है, यदि वो स्त्री तत्व हटा दिया जाए तो पुरुश का अस्तित्व ही भू लोक से मिट जायेगा, इसलिए स्त्री का जो स्थान है वो श्रष्टि में सबसे उच्च है।
यद्धपि मनुष्यों आत्मा जब भौतिक देह में नही होती तब उसे न पुरुष कहते हैं न स्त्री व अन्य जीव जंतु, किंतु आत्मा निराकार स्वरूप में हो कर भी एक शक्ति व ऊर्जा है, यही ऊर्जा व शक्ति रूपी तत्व ही स्त्री तत्व है जो मुझ परम् के साथ जुड़ कर परमात्मा कहलाता है व जीव के साथ जुड़ कर जीवात्मा कहलाता है।

हे मनुष्यों आज तुम्हे बताता हूँ कि हनुमानजी व निम्न धार्मिक स्थल पर स्त्री पूजा क्यों नही कर सकती अपितु पुरुष ही पूजन कर सकते हैं।
आत्मा खुद एक शक्ति व ऊर्जा है, वो खुद भी एक स्त्री तत्व है, जब एक स्त्री तत्व भौतिक स्वरूप में भी स्त्री तत्व में आ जाती है तब वो खुद इतनी पूजनीय हो जाती है कि देवता जो मेरे ही निम्न रूपो से उतपन्न हुए है उसकी पूजा स्वीकार नही कर सकते अपितु वो खुद उस शक्ति की उपासना करते हैं तो ऐसे में वो अपने से उच्च पद प्राप्त व्यक्ति की पूजा कैसे ले सकते हैं, इसको इस तरह समझ सकते हो जैसे तुम कही नॉकरी करते हो और तुम्हारा मालिक अथवा तुमसे उच्च पद प्राप्त व्यक्ति से क्या तुम आदेश दे कर कोई कार्य करा सकते हो, नही न, तो ऐसे में जब जीवात्मा स्त्री शरीर मे होती है तब वो खुद अति पूजनीय होती है जिसके समक्ष मेरे निम्न रूप तक नतमस्तक है, तभी हनुमानजी प्रत्येक स्त्री को "माता" पुकारते हैं क्योंकि "माता" का स्थान संसार मे सबसे ऊँचा है तभी स्त्रियां हनुमानजी की पूजा नही करती किँतु हनुमानजी माता स्वरूप में स्त्रियों की रक्षा अवश्य करते हैं, तभी कहा जाता है भगवान राम व माता सीता की उपासना जो करता है उसकी रक्षा भगवान हनुमान करते हैं।

हे मनुष्यों किँतु अब तुम सोचोगे की यदि स्त्री इतनी पूजनीय है तो उसको पूजन की आवश्यकता ही क्या है, तो तुमको मैं बताता हूँ मेरे जिन स्वरूप की स्त्री पूजा करती है तो केवल मेरे उस रूप के लिए वो केवल एक जीवात्मा है और मेरे परमात्मा स्वरूप की स्त्री पूजा कर सकती है अथवा करती है जिसका उसको फल प्राप्त होता है किँतु माह के कुछ विशेष दिन समस्त स्त्रियों के लिए निषेध है पूजा के लिए, इसलिए नही की मैं स्त्रियों को नीचा व दोयम दिखा कर पुरुषसत्ता को बढ़ावा दे रहा हूँ अपितु इसलिए निषेध है क्योंकि स्त्री उन दिनों में अति श्रेष्ठ व उच्च हो जाती है, और अपने से उच्च व श्रेष्ठ की पूजा स्वीकार्य नही होती क्योंकि वो तो खुद मेरी पूजनीय होती है, अर्थात जो मे्रे से भी उच्च पद पर आसीन है उसकी पूजा मैं अर्थात परमात्मा भी नही लेता।

हे मनुष्यों संसार मे समस्त रूपों में स्त्री का स्वरूप ही आती श्रेष्ठ है तभी उसको जगत जननी भी कहा जाता है, किँतु मूर्ख पुरुषों द्वारा एक भ्राति फैलाई गई है कि रजस्वला स्त्री अशुद्ध होती है, इससे दूर रहो, पुरुषों व खुद स्त्रियों द्वारा उसका अपमान किया जाता है जोकि पूरी तरह अनुचित है।
पृथ्वी भी एक स्त्री है, जो कि रजस्वला होती है, ये तब रजस्वला होती है जब जवालामुखी फटता है, हालांकि उस प्रकिया के दौरान जो भी उसके सम्पर्क में आता है उसका सर्वनाश हो जाता है किँतु बाद में उसमे ही जीवन पनपता है व जीवनयोपगी वातावरण व भोज्य सामग्री खेती आदि हेतु भूमि का निर्माण होता है।
हे मनुष्यों क्या तुम उस ज्वालामुखी विस्फोट को धरती का अपवित्र होना कह सकते हो??नही??
 
यदि धरती रजस्वला होने पर अशुद्ध व अपवित्र नही तो बाकी स्त्रियां क्यों अपवित्र हुई। हाँ ये सत्य है उस अवस्था मे स्त्री के शरीर से ऐसी ऊर्जा आवश्यक निकलती है जिसके ताप को सहना हर किसी बस में नही तभी ये नियम बनाये गए कि स्त्री पेड़ पौधों मे जल न दे क्योंकि वो सूख सकते हैं, वो स्त्री का ताप शायद न सह सकें, रसोई में भोजन इसलिए नही बनाने की अनुमति है कि स्त्री खुद अभी पूर्ण स्त्री ताप पर है ऐसे में अग्नि का ताप स्त्री को हानि पहुँचा सकता है अथवा स्त्री के शरीर को बाद में नुकसान न हो कोई इसलिए अग्नि के पास जाने की मनाही है, जैसे ज्वालामुखी विस्फोट हुआ और वही कोई आग लगाने का प्रयास करे अथवा लगा दे तब क्या अनिष्ट होगा, इसीलिए खट्टी वस्तुओं के सेवन की मनाही है क्योंकि स्त्री खुद शक्ति स्वरूप में होती है और जैसे भगवती दुर्गा को उनकी पूजा में खट्टा नही देते तो साक्षात शक्ति स्वरूपनी स्त्रीको भी इसके सेवन से बचना चाहिए।

हे मनुष्यों संसार के श्रेष्ठ जन्मों में से श्रेष्ठ जन्म स्त्री का है, स्त्री पूजनीय है, वो संसार के प्रत्येक जीव व समस्त ब्रह्मांड में है, उसके बिना कुछ सम्भव नही, जो स्त्रियों को गाली देते व अपमानित करते है, उनके साथ निन्म गलत कार्य करते हैं, वो निश्चित ही नरक की अग्नि में अनन्त वर्षो तक जलते हैं।

हे मनुष्यों ये न भूलो की स्त्री इतनी पवन व पूजनीय है तभी मेरे निम्न स्वरूप उससे पूजा नही लेते अपितु खुद उसकी पूजा करते हैं, और रजस्वला होने पर मेरे कोई भी स्वरूप उसकी पूजा नही लेते क्योंकि वो खुद अति पूजनीय है, उसका तपोबल इतना अधिक बढ़ जाता है जिसका सामना न मैं न मेरा कोई स्वरूप कर सकता है इसलिए स्त्री को उस समय केवल शांत हो कर विश्राम करना चाहिए।

हे मनुष्यों आशा है स्त्रियों व पूजा से सम्बंधित आशंका तुम्हारे हृदय से निकल गयी होगी और तुम्हे नवीन ज्ञान की प्राप्ति के साथ नारी जाति के प्रति सम्मान का भाव जागा होगा।"

कल्याण हो

Wednesday 22 May 2019

ईश्वर वाणी- 273 सब कुछ पहले ही लिखा जा चुका है


ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि तुम भले मुझे और मेरा अस्त्तित्व नकार दो, तुम भले अपने कर्मो को ही श्रेष्ठ कहो किंतु जो भी तुम करते हो सोचते हो, जो भी अच्छा या बुरा तुम्हारे साथ होता है वो सब पहले ही श्रष्टि निर्माण के समय ही लिखा जा चुका है।

प्रत्येक जीव आत्मा कितने समय तक अपने भौतिक रूप में रहेगी, कितने समय सूक्ष्म शरीर मे रहेगी कितने समय स्वर्ग भोगेगी अथवा निम्न नरको में निवास करेगी, किसके कर्म क्या होंगे और उनको क्या दंड मिलेगा ये सब लिखा जा चुका है और सब कुछ उसके ही अनुसार हो रहा है।

निम्न धार्मिक ग्रंथो की कथाओं को देखो उनमे जो लिखा था वो जैसे सत्य हुआ, मेरे निम्न रूपो में मेरे अंशो का आगमन व उनका जीवन व देह त्याग कर मुझमे फिर मिलन, जैसे उनका तय था व तय है वैसे ही तुम्हारा तय है।

इसलिए शोक न कर और मेरी शरण मे आ,मैं तेरे आँसू पोंछउँगा, तेरे दुख को कम करूँगा, तू मुझमे विश्वाश रख, यद्धपि तुझे बहकाने वाले तेरे पास ही है, तुझे मुझसे दूर करने वाले तेरे पास ही है, तू इसको अपनी एक परीक्षा मान और मुझमे विश्वास पैदा कर, मै तुझे वो सब दूँगा जो इस संसार मे भी उपलब्ध नही है, तू बस सांसारिक बातों और रिश्तों के मोह से दूर होकर मेरी शरण मे आ, तेरा वास्तविक संसार और परिवार तो मैं हूँ, तू मेरी सुन और नेकी कर, भले तेरे प्रारब्ध में बुरा लिखा हो लेकिन तू नेकी कर निश्चय ही तू मुझे पायेगा और असीम सुख को प्राप्त करेगा।"

कल्याण हो

Sunday 5 May 2019

पुरुषवादी सोच और स्त्री

अभी कुछ दिन पहले एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें एक उम्र दराज़ महिला कम कपड़े पहने हुए युवतियों के लिए बोल रही थी कि इनका बलात्कार होना चाहिए क्योंकि इन्होंने ऐसे कपड़े पहने हैं साथ ही वहाँ मौजूद युवकों को भी उनका रेप करने के लिए उकसा रही है।
अब इसको क्या कहे एक छोटी और विछिप्त सोच या पुरुषवादी सोच जो हर स्त्री को बचपन से ही विरासत में मिली है, बचपन से ही हर लड़की को (कुछ उच्च वर्ग/उच्च मध्य वर्ग को छोड़कर) उसके घर वाले खासकर माँ व अन्य महिलाएं यही बोलती हैं कि ऐसे कपड़े मत पहनो, इतने बजे तक रात को बाहर न रहो, ये न करो वो न करो, तमाम तरह की बंदिशें बचपन से ही लगा दी जाती हैं और बंदिशें आगे की पीढ़ी को एक के बाद एक फिर अवतरित होती जाती है।
ऐसा सिर्फ और सिर्फ पुरुषवादी सोच के कारण है, महिलाएं ही अपने बेटों की बोलती है तुम लड़के हो तुम कुछ भी करो तुम्हारा कुछ नही बिगडेंगा वही लड़कियों पर बंदिशें । ऐसा इसलिए क्योंई कि सदियों पहले ही ऐसा माहौल दे दिया गया है कि पुरुष अगर किसी महिला/युवती/बालिका का रेप करे तो पुरुष का कुछ नही जाएगा वो पवित्र रहेगा लेकिन स्त्री चुकी उसकी पवित्रता उसके निज़ी अंगों में ही है उसकी गलती न होने पर भी उसका ही सब कुछ जाता है, एक बलात्कारी पुरुष या एसिड अटैक किसी लड़की पर करने वाला पुरुष उसकी शादी बड़ी आसानी से हो जाती है लेकिन जिसके साथ ऐसा होता है उसका हाथ थामने वाला कोई नही होता कारण पुरुषवादी सोच।
सदियों पहले हिंदू धर्म मे 'कन्यादान' रूपी कुरीति बनी जिसका आज तक पालन हो रहा है, 'कन्यादान' मतलब कन्या का दान जो विवाह में होता है अनिवार्य जो लड़की के घरवाले करते हैं, लेकिन कन्या का दान ही क्यों पुरुषदान क्यो नही होता, आखिर शादी तो दोनों की ही होती है, अथवा कन्या यानी लड़की कोई वस्तु अथवा पशु है जिसका दान किया जाता है।
मैंने कई धार्मिक धारावाहिक देखे जिनमे स्त्रीया पुरुषों को स्वामी कहती हैं (पति को), स्वामी मतलब मालिक, फिर स्त्री की स्थिति क्या हुई यदि पुरुष स्वामी है तो, पुरुष स्त्री को स्वामिनी नही कहते किंतु स्त्री पति को स्वामी कहती है, तभी पुरुष चाहे जितनी भी शादी कर ले मान्य है किंतु स्त्री के मन में ख्याल भी परपुरुष का न आये।

28 फरबरी 2019 को मेरे सबसे बड़े भाई की अचानक मौत हो गई, मेरी माँ दिन रात उसके लिए आँसू बहाती है, मुझे पता है उसकी जगज अगर मेरी मौत होती तो अब तक सबकी ज़िन्दगी पहले की तरह नॉर्मल हो चुकी होती पर चूँकि भाई की मृत्यु हुई है इसलिए मा का कष्ट अधिक बड़ा है ।

ये बात युही नही कहि मैंने, बरसो पहले मेरे भाई के दोस्त की बहन की एक हादसे में मौत हुई थी, तब मेरी माँ ने कहा था "किस्मत वालो की बेटी मरती है", और भाई की मौत के बाद भी यही कहा "बेटी तो किस्मत वालो की मरती है, बेटा बदनसीब का का मरता है, हमारा मरा भी तो बेटा", इसको क्या कहेंगे पिछड़ी वही पुरुषवादी सोच जो मेरी माँ को उनकी माँ से पीढ़ी दर पीढ़ी मिलती रही है।

किसी से मुझे कोई शिकायत नही है क्योंकि हम किसी की सोच नही बदल सकते लेकिन खुद को बदल सकते हैं, मेरी अपनी कोई बेटी होती तो उसको वो सब मिलता जिसके लिए मुझे रोका टोका गया, अपमानित किया गया, मुझे एहसास कराया गया चूँकि मै एक लड़की हूँ ये ही मेरा एक अपराध है, लेकिन मेरी अपनी बेटी होती तो ऐसा उसके साथ मैंने कभी न किया होता।
खेर मुझे लगता है आज की पीढ़ी को पुराने पुरुषवादी और नारी विरोधी हर रिवाज़ को तोड़ना चाहिए, साथ ही हर स्त्री को अपने अधिकारों के प्रति आवाज़ उठानी चाहिए, इसके साथ ही जो स्त्री को स्त्री से ही जो ईर्ष्या का भाव है चाहे मा-बेटी, सास-बहू या सहेली इस भाव को खत्म करना चाहिए क्योंकि नारी नारी की यही शत्रुता पुरुसगवादी सोच को बढ़ावा देती है।