Tuesday 21 April 2020

मेरा गीत मेरी कविता

धीरे-धीरे खुद से ही में जुड़ने लगी हूँ

ऐ ज़िंदगी तुझसे ही मोहब्बत करने लगी हूँ


भूल चुकी थी मुस्कुराना मैं

खो चुकी थी यु हँसना में

खुद से ही बात करने लगी हूँ

धीरे-धीरे खुद से ही में जुड़ने लगी हूँ

ऐ ज़िंदगी तुझसे ही मोहब्बत करने लगी हूँ



गिर कर संभलना सीखने लगी हूँ

खुद से ही दिल लगाने लगी हूँ

'खुशी' ढूंढती थी जो दूसरो में

'मीठी' सी आवाज़ में गुनगुनाने लगी हूँ


धीरे-धीरे खुद से ही में जुड़ने लगी हूँ

ऐ ज़िंदगी तुझसे ही मोहब्बत करने लगी हूँ


दर्द ज़माने के भूल कर

खुद में ही खुदको खो कर

अब फिर महकने लगी हूँ


धीरे-धीरे खुद से ही में जुड़ने लगी हूँ

ऐ ज़िंदगी तुझसे ही मोहब्बत करने लगी हूँ



🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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