Saturday 17 October 2020

ईश्वर वाणी-292 आध्यात्म में अंक 7 का महत्व

 ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यों यद्धपि तुमने मेरे विषय में सुना है, पड़ा है किँतु जानते भी हो कि आखिर में रहता कहाँ हूँ, आखिर मेरा अस्तित्व क्या है हालांकि इस विषय मे पहले भी बता चुका हूँ किंतु आज फिर तुम्हें बताता हूँ।

हे मनुष्यों में निराकार हूँ, मै एक महासगर की भांति हूँ जिसमे अनेक नदिया समाई होती है वैसे ही मुझमे समस्त श्रष्टि व उनके जीव व समस्त जीवात्मा व उनकी मान्यता समाई हुई है।

मैं ही शुरुआत और अंत हूँ, एक ऊर्जा रूप में निरन्तर कार्य करता रहता हूँ किंतु श्रष्टि के निर्माण और संचालन हेतु ही मैंने विशेष कार्य करने के लिए त्रि-देव व देवियो की रचना की, उन्होंने देवता, दानव, मानव, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, अप्सराओ, इंद्र, सप्त ऋषियों, ग्रह नक्षत्र, विभन्न लोकों की रचनाएं की, व प्रत्येक को उसके कार्य सौंपे।

हे मनुष्यों यद्धपि ये पूरी श्रष्टि मुझसे ही संचालित है किँतु मैंने अपने निम्न रूपों को इसके संचालन का कार्य सौंपा है, और मेरे ही ये रूप निश्चित समय बाद अपने अपने लोकों के साथ मुझमे ही विलीन हो जाते हैं।
हे मनुष्यों यद्धपि मैं चाहता तो स्वयं ही समस्त श्रष्टि व जीवों की उत्पत्ति व समाज की रचना कर सकता था किँतु मैंने ऐसा नही किया क्योंकि यदि ऐसा करता तो आने वाले युगों में मानव समुदाय का विश्वास मुझसे उठ जाता यद्धपि सतयुग एक ऐसा युग था इस धरती पर जब मेरे अस्तित्व पर कभी किसी जीव ने शंका नही की, और इसी युग से सभ्यताओं के निर्माण शुरू हुआ किंतु मानव बुद्धि परिवर्तन में यकीन रखती है और उसको साक्ष्य चाहिए, इन्ही साक्ष्यों के लिए विभिन्न वेद-पुराण, ग्रंथ व उनकी कथाओ का निर्माण व उन कथाओ को देश, काल, परिस्थितियों अनुसार मुझे सत्य करना पड़ा।

आज मनुष्य मुझे किसी विशेष नाम और रूप में बांधने का प्रयास करता है किंतु नादान नही जानता कि जो खुद सर्वव्यापक है वो किसी 1 नाम और रूप का मोहताज नही किंतु यदि तुम्हारी आस्था सत्य है तो मै अवश्य वो बन जाता हूँ।

अक्सर तुमने स्वर्ग के विषय मे सुना होगा, निम्न मान्यता के अनुसार ये कहा गया है कि मै स्वर्ग में रहता हूँ जो सातवे आसमाँ के बाद आता है, आज इस सत्य से पर्दा हटाता हूँ।

क्या है सातवे आसमां का चक्कर आखिर है क्या ये?/
स्वर्ग तक केवल वही मनुष्य पहुचता है जिसने अपने कर्म अच्छे रखे इस मृत्यु लोक में, इसलिए मेरे अंशो ने जब धरती के विभिन्न स्थलों पर देश, काल, परिस्तिथि अनुसार जन्म लिया तो कहा जीवन एक बार ही मिलता है इसलिए इसको पाप कर्मों में न लगाओ बल्कि मेरी भक्ति में लगाओ, ऐसा इसलिए भी कहा क्योंकि मानव जीवन युगों में से जीवात्मा को मिलता है जिसको वो सांसारिक भोगो व स्वार्थ सिद्धि में बिता देता है फिर युगों तक भटकता रहता है निम्न योनियो मैं।

आज बताता हूँ सभी मान्यताओ में मान्य स्वर्ग आखिर है कहाँ??
7 लोक 

1- मृत्यु लोक
2- पाताल लोक
3-  यम लोक
4 -गंधर्व लोक
5 - यक्ष लोक
6 -पित्र लोक
7 - देव लोक

और फिर स्वर्ग। यद्धपि संसार मे 7 और 1 अंक बड़ा महत्व है।
ऐसे समझ सकतो को 
विवाह के फेरे 7
वचन             7
समंदर।          7
इंद्र धनुष के रंग 7
जन्म               7
लोक                7
सप्ताह के दिन    7
ऋषि।                7(सप्त ऋषि)

इस श्रष्टि के अतिरिक्त जो श्रष्टीय है वो भी 7 है साथ ही हर जीव अपने भौतिक स्वरूप में 7 बार ही जन्म लेता है।

अब बताता हूँ अंक 1 के विषय मे, ईश्वर अर्थात में 
1, मेरे जितने भी स्वरूप हुए देश काल परिस्थितियों के अनुरूप हुए वो भी 1 समय पर 1 ही हुए, मैं देता हूँ सबको 1 होने की शिक्षा, तुमसे क्या चाहता हूँ सर्फ 1 सच्ची  निष्ठा, मृत्यु उपरांत हर जीवात्मा सब भेद मिटा कर हो जाती है 1, इसलिए इस 1 अंक का बड़ा महत्व है।
निःसंदेह जो मनुष्य भले जीवनकाल में कितना पापी रहा है, किँतु मृत्यु के समय मेरा स्मरण करता है अथवा मेरे जिस रूप में निष्ठा रखता है उसको प्राप्त होता है किंतु फिर उसको उसके कर्म अनुसार जन्म लेना ही होता है उदाहरण- रावण, मेरा परम सेवक होने पर भी उसको राक्षस योनि में जन्म लेना पड़ा, इसी प्रकार हर जीवात्मा को जन्म तो लेना ही पड़ता है भले मेरे किसी भी रूप अथवा लोक की उसको प्राप्ति हो क्योंकि मेरे सभी रूप व लोक नाशवान है और अंत मे मुझमे ही वो विलीन हो जाते हैं अर्थात शून्य हो जाते हैं, क्योंकि भले शून्य का महत्व तुम न समझो पर शून्य खुद में 1 पूर्ण अंक है, शून्य ही शुरआत है शून्य ही अंत है क्योंकि शून्य मैं हूँ।


हे मनुष्यों आशा है कि तुम्हे मेरे दिव्य वचन व वाणी समझ आयी होंगी यदि जिन्हें नही आई उनपर मेरी कृपा नही हुई, इसलिए किसी अज्ञानी के लिए ये वाणिया नही है, जिनके लिए है उन्हें स्वयं प्राप्त होंगी।"

कल्याण हो
 


No comments:

Post a Comment