Saturday 1 April 2017

कविता

"इंसान हो तुम इंसान बन कर रहा करो
जख्म न यूँही किसी को तुम दिया करो

है दिल धड़कता एक सीने में तुम्हारे भी
दूसरे की धड़कन न तुम बन्द किया करो

न बहाओ लहू किसी का न बहने दो
इंसान हो इंसानियत को न खोया करो

न बनाओ इस दिल को इतना पत्थर
थोड़ी लाज इंसानियत की किया करो

दिखते नही अश्क किसी की आखो के
मौत पर तो किसी की तुम रोया करो

मार रहा इंसान ही इंसान को इस कदर
प्रेम का पाठ निरीहों से तुम सीखा करो

जगत में उड़ता देखो मानवता का उपहास
ज़िन्दगी की सीख तुम निरीहों से लिया करो

प्रेम ही जीवन है ये न भूलो तुम आज ये बात
इंसान हो इंसानियत का तुम बस मान करो

इंसान हो तुम इंसान बन कर रहा करो
जख्म न यूँही किसी को तुम दिया करो-२"

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