Friday 10 May 2013

ईश्वर वाणी**38** -हे स्वम पे अभिमान करने वाले व्यक्ति अपने पर अभिमान ना कर...........Ishwar Vaani-38

ईश्वर कहते हैं "हे स्वम पे अभिमान करने वाले व्यक्ति अपने पर अभिमान ना कर, स्वम को ग्यानी और बुध्हीमान समझने वाले व्यक्ति अपने पर अभिमान ना कर, तेरा ज्ञान और तेरी बुध्ही नगण्य है, तेरा रूप और तेरा वैभव भी नगण्य है, हे मनुष्य तू किस पर अभिमान करता है, क्या तू अपनी देह पर अभिमान करता है जो एक दिन मिटटी में मिल जायेगी, एक समय ऐसा आएगा जब तेरे अपने ही तुझे अपने से दूर कर तुझे माटी में मिलाने के लिए शीग्रता करेंगे और तुझे एक पल भी बर्शास्त ना कर सकेंगे, क्या तू उस काया का अभीमान करता है, या फिर तू उस माया और वैभव का अभिमान करता है जिसके कारण तूने अनेक  भोतिक सुख तो भोगे, जिसके कारण तूने अपने देह को तो राहत दी अनेक कष्टों से लेकिन तू अपनी देह के मूल कर्तव्यों को भूल गया, तू भूल गया की तुझे ये देह उस परमेश्वर ने किस उद्देश्य से दी है, तू उसके उद्देश्य को भूल कर भोग-विलास में लीन  हो गया और आज अपने वैभव पर अभिमान करता है, या फिर तू अभिमान करता है अपने ज्ञान का, हे मनुष्य तेरा ज्ञान कितना है, और क्या जानता है तू जो खुद पर अभिमान करता फिरता है, जितना तू खुद को ग्यानी समझेगा मेरी नज़र में तू उतना ही अज्ञानी और मूर्ख होगा, क्यों की एक ग्यानी मनुष्य खुद को  ग्यानी नहीं समझता, एक ग्यानी मनुष्य कभी अपने ज्ञान का अभिमान नहीं करता अपितु अपने ज्ञान का निःस्वार्थ भाव से प्रचार-प्रसार करता है, जो व्यक्ति खुद को ग्यानी न मान कर निःस्वार्थ भाव से प्राणियों के कल्याण हेतु कार्य करता है, जो मनुष्य अपने को ग्यानी  एवं  परम ग्यानी ना समझ कर मेरा स्मरण कर के प्राणियों के कल्याण हेतु ज्ञान का और इश्वारिये उद्देश्यों का प्रचारक बन कर उनका प्रचार-प्रशार करता है वो मनुष्य मेरी दृष्टि में परम ग्यानी है, किन्तु जो मनुष्य अपने ज्ञान का अभिमान करते है मैं उनके ज्ञान को नष्ट कर देता हूँ क्योंकि ज्ञान तो अपार है, ज्ञान की गहराई और उंचाई आज तक संसार में मेरे अतिरिक्त कोई नहीं जानता, जो मनुष्य इसका अभिमान करते हैं मैं उनके लिए ज्ञान का वो समंदर प्रादान करता हूँ जिसे वो कभी पार नहीं कर सकते, इसलिए मेरी दृष्टि में वो सबसे अधिक अज्ञानी होते हैं किन्तु जो अहंकार नहीं करते अपने ज्ञान का और निःस्वार्थ प्रचारक बन कर संसार के प्राणियों को ज्ञान की प्रकाश से रोषित करते हैं मेरी दृष्टि में वो परम ग्यानी है और ऐसे मनुष्यों को मैं स्वम ज्ञान प्रदान कर के अथाह ज्ञान के सागर को पार करा कर अपने में समाहित कर लेता हूँ" ।
       इश्वर कहते हैं  " जो व्यक्ति खुद को श्रेष्ठ समझते हैं, जो व्यक्ति खुद को उच्च समझते हैं एवं दूसरों को नीच समझते हैं, मेरी दृष्टि में वो ही अयोग्य और नीच हैं, भले वो खुद को मनुष्यों में  श्रेष्ठ  समझे किन्तु मेरी दृष्टि में वो सबसे अधिक आयोग और नीच हैं, ईश्वर कहते हैं जो मनुष्यों की दृष्टि में योग्य और उच्च होता है वो मेरी दृष्टि में  नहीं क्योंकि ऐसे मनुष्य अहंकारी और अभिमानी होते हैं किन्तु जो खुद को आयोग और नीच समझ कर सदा प्राणी कल्याण हेतु कार्य करता है एवं स्वम को मेरा दास मान कर मेरी शिक्षा का निःस्वार्थ प्रचार-प्रसार समस्त मानव समूह में करता है वो ही व्यक्ति मेरी दृष्टि में श्रेष्ट एवं योग्य और उच्च है और मेरा अति प्रिये भी । 
    
    इसलिए हे मनुष्यों अपने पे अहंकार ना करो, खुद पे अभिमान ना करो, इस संसार में जो भी तुम्हे दिया गया है वो मेरे द्वारा ही तो दिया गया है, इसलिए हे मनुष्यों अपने कर्तव्यों को जानो, उन्हें याद करो की किस उद्देश्य से तुम्हे इस पृथ्वी पर भेजा  गया है, अपने उद्देश्यों को पूर्ण करो, अभिमान और अहंकार का त्याग करो, अपने  कार्यों  को पूर्ण कर मुझमे ही समां जाओ तुम्हरा कल्याण हो।।"       

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