Wednesday 4 October 2017

ईश्वर वाणी-२२४-धार्मिक ग्रन्थ

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्दपि तुम मुझ पर आस्था रखते हो, मेरी आराधना करते हो, अपने ही अनुकूल धार्मिक शास्त्र पड़ते और विश्वास करते हो, किंतु यदि तुम केवल उसी एक धार्मिक शास्त्र को सही मानते हो जिस पर तुम और तुम्हारा समुदाय यकीं करता है बाकी की अवहेलना करते हो तो तुम मेरे क्रोध के भागी बनते हो।

मेरे द्वारा रचित किसी भी धार्मिक ग्रन्थ में ये उल्लेख नही है की किसी भी धार्मिक शास्त्र का अपमान करो और सिर्फ जिस पर तुम्हारा और तुम्हारे समुदाय का विश्वास हो केवल उसी को सत्य और मेरी वाणी मान सबका अनादर करो।

हे मनुष्यों देश/काल/परिस्तिथि और भाषा के अनुरूप ही ये धार्मिक शास्त्र रचे गए है, जहाँ जहाँ जिस बात की आवश्यकता हुई वहा वहां उसी के अनुरूप इनकी रचना की गयी ताकि भटके हुए मानव को एक सही पथ मिल सके और उसके समुचित मानव चरित्र का विकास हो सके, मानव अपने जन्म की इश्वरिये वजह जान सके और मेरे द्वारा बताये मार्ग पर चल प्राणी जाती के कल्याण हेतु कार्य कर मोक्ष की और अग्रसर हो सके।

हे मनुष्यों इसलिये केवल तुम्हारा ये मानना की केवल मेरा ही धर्म शास्त्र श्रेष्ट सही और ईश्वर की और से है गलत है, मेरी तरफ से तो सभी धार्मिक शास्त्र है किंतु तुमने अपने अनुसार बदलाव कर मेरी बातो को अपने अनुसार लिख दिया है और उन्ही पर विश्वास कर मानव ने मानव को ही शत्रु बना अपने समुदाय के अनुरूप ही राज्यो/राष्ट्रों का निर्माण कर लिया है किंतु शान्ति तुमने वहा भी नही पायी है क्योंकि तुमने अपनी ही जाती को शत्रु बना लिया है और मेरे धारमिक शास्त्रो की अवहेलना कर केवल अपने समुदाय में मान्य धर्म शास्त्र पर यकीं किया।

हे मनुष्यों तुमने मेरी निंदा की, मेरी लिखी बातो (विश्व के सभी धर्म शास्त्र) पर अविश्वाश कर केवल एक ही धर्म शास्त्र पर यकीं कर सभी को दुत्कार कर मेरा अपमान किया, हे मनुष्यों तुम्हे क्या लगता है मैं इतना तुच्झ हूँ जो केवल एक दो तीन चार पुस्तको में आ जाऊँगा, मेरी बाते इतनी निम्न होंगी जो गिने चुने शास्त्रो में ही सिमट कर रह जाएंगी।

हे मनुष्यों ये न भूलो जगत को जन्म देने वाला, नष्ट करने वाला, जीवो को जन्म और नष्ट करने वाला, अतीत वर्तमान भविष्य बनाने वाला, दुःख सुख देने वाला, ब्रमांड चलाने वाला तुम सबका स्वामी मैं ही हूँ, तो क्या मेरी बाते इतनी तुच्छ होंगी जो गिनी चुनी किताबो में आ जायँगी।

हे मनुष्यों विश्व के सभी ग्रन्थ व् धार्मिक शास्त्र मेरे रूप और मेरी बातो का एक सारांश मात्र भी नही है किंतु तुम केवल गिनी चुनी पुष्टको पर भरोसा कर मेरा अपमान करते हो, यदि मेरे विषय में थोडा सा भी जानना है तो विश्व के सभी धर्म शास्त्र पर भरोसा करो, सबको सम्मान दो तभी कुछ हद तक मुझे प्राप्त कर सकते हो।"

कल्याण हो

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