Sunday 22 October 2017

कविता-है कुछ मुझे कहना

"आज तुमसे है कुछ मुझे कहना
दिलकी गहराई में सनम तुम्ही रहना-२

ना जाना दूर कभी यु मुझसे मेरे दिलबर
बन कर मेरी ज़िन्दगी सनम तुम्ही रहना

तुम्ही हो मेरी बन्दगी ऐ मेरे हमनशीं
तुम्ही तो हो मेरी खुशियो का गहना

मैं हूँ एक नदिया की धारा तुम सागर मेरे
जनम जनम तक साथ तेरे है मुझको बहना

तुमसे ही जोड़ा दिलका एक ये रिश्ता मैंने
इन धड़कनो में सनम तुम्ही अब बस रहना

बहुत रह चुके अकेले इन तन्हाइयो में हम
दर्द जुदाई का और नहीं हमे अब सहना

आ जाओ बाहों में 'मीठी' तुम्हे पुकारे
'ख़ुशी' की साँसों में तुमही  पिया रहना


आज तुमसे है कुछ मुझे कहना
दिलकी गहराई में सनम तुम्ही रहना-२"



No comments:

Post a Comment